आइए इस बार इको फ्रैंडली दीवाली मनाएं :-

दीपावली भारत का एक ऐसा त्योहार है जिसे सभी जातियों, धर्मों और सम्प्रदाय के लोग उल्लास पूर्वक मनाते हैं। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की विजय की विजय के प्रतीक स्वरूप मनाया जाता है। कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाने वाले इस त्योहार के दिन जलाए जाने वाले मिट्टी के छोटे-छोटे दिये इस बात का प्रतीक हैं की इंसान को कभी जीवन में आने वाली परेशानियों से घबड़ाना नहीं चाहिए क्योंकि हर काली रात के पीछे प्रकाश की सुनहरी किरणें छिपी होती हैं।

पहले दीवाली का अर्थ था घर की सफाई-सजावट, पारम्परिक लक्ष्मी पूजन और तत्पश्चात परिवार-जनों और मित्रों को पर्व की बधाई देना। तब मिट्टी के दियों से पूरे घर को सजाया जाता था। हजारों की संख्या में जलने वाले इन दियों को देखकर ऐसा लगता था मानों सम्पूर्ण तारा-मंडल हमारी खुशियों में शामिल होने के लिए धरा पर उतर आया हो। परंतु समय के साथ दीवाली मनाने के तरीकों में भी बदलाव आया है। अब दीपावली का अर्थ है बिजली की रोशनी से जगमगाते घर और शोर और बारूद के धुएं से उत्पन्न दम-घोटू वातावरण। रोशनी और शोर के इस खेल में लोग इतने मस्त हो जाते हैं कि भूल जाते है उनका यह क्षणिक आनंद पर्यावरण को कितना नुकसान पहँचा रहा है।
दीवाली मनाने की हमारी इस आधुनिक शैली में वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण तो होता ही है साथ ही जिस जगह पर पटाखे फोड़े जाते हैं उस जगह की जगह की मिट्टी अपने प्रकृतिक गुण खो बैठती है। साथ ही आज जब हमारा देश देश बिजली के गहरे संकट से गुजर रहा है उस समय बिजली का इतना दुरुपयोग न जाने कितने घरों को दीपावली के दिन भी रोशनी की एक किरण के लिए तरसा देता है…ये भला कहां का न्याय है कि कुछ घर रोशनी से सराबोर हो और कुछ उसकी एक किरण के लिए भी तरस जाएं।
पटाखे जलाना दीपावली का मुख्य आकर्षण होता है। आकाश में छोड़े जाने वासे ये पटाखे अपनी जो सतरंगी छटा बिखेरते हैं, वह निःसंदेह सभी को आकर्षित करते है। पर रोशनी और आवाज पैदा करने वाले ये पटाखे कॉपर, पोटैशियम नाइट्रेट, कार्बन, शीशा, केडमिनम, जिंक और सल्फर जैसे जहरीले रसायनिक सम्मिश्रण से बनाए जाते हैं। जब इन्हें जलाया जाता है तो इनसे कार्बन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड जैसी विषैली गैसें उत्पन्न होती है जिनसे वायु प्रदूषण तो होता ही है साथ ही सम्पर्क में आने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।
कॉपरः साँस की नली में जलन पैदा करता है जिसके कारण कई तरह के साँस संबंधी रोग हो सकते हैं।
कैडमिनमः इसके कारण रक्त में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। जो आपकी किडनी को नुकसान पहुँचा सकता है।
शीशाः इसका स्नायुतंत्र पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
मैग्नीशियमः मैग्नीशियम के प्रभाव से बुखार आ सकता है। इस बखार को मेटल फ्यूम फीवर कहा जाता है क्योंकि इस अवस्था रोगी के मुह में धातु (मेटालिक) का सा स्वाद रहता है।
जिंकः इसके कारण भी मेटल फ्यूम फीवर होता है, साथ ही रोगी को उल्टियां भी होती हैं।
सोडियमः वातावरण की नमी के सम्पर्क में आते ही यह ज्वलनशील हो जाता है, जिसके कारण जलने की संङावनाएं बढ़ जाती हैं।
ये जहरीले पदार्थ न केवल इंसानों पर प्रकृति में मौजूद प्रत्येक जीवन पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं। वातावरण में इनका प्रभाव काफी समय तक रहता हैं, इसलिए इसके प्रभाव दीपावली के काफी समय बाद तक महसूस किए जा सकते हैं।
पटाखे जलाने से काफी मात्रा में जहरीला धुँआ हवा में मिल जाता है। जिससे साँस संबंधी तकलीफे होना आम बात है। खासकर अस्थमा के रोगियों को तो तो यही सलाह दी जाती है कि दीवाली की रात वे घर से बाहर न निकले। सावधानी न बरतने पर उन्हें अस्थमा का दौरा पड़ सकता है।

पटाखे मतलब आवाज-जितनी तेज आवाज उतना ज्यादा रोमांच। इस रोमांच को पाने के लिए लोग बड़े-बड़े बम खरीदते है जिनकी आवाज से तेज शोर पैदा होता है। सामान्यतः पचास डेसीबेल्स से ज्यादा की ध्वनि शोर की श्रेणी में आती है और ये बम सौ डेसीबल्स या कभी-कभी उससे भी ज्यादा धवनि पैदा करते हैं। बम के फटने से अचानक उत्पन्न होने वाला शोर व्यक्ति को अस्थायी रूप से बहरा हो सकता है। लगातार छुड़ाएं जाने वाले पटाखों के कारण वृद्ध और बीमार छोटे बच्चों की नींद बाधित हो सकती है। इसके अलावा हमारे पालतू पशुओं की हालत उस दिन देखने लायक होती है। उन मूक और मासूमों को कहीं सर छुपाने की जगह नहीं मिलती। होने वाले हर धमाके के साथ वे बेचैनी से एक कमरे से दूसरे कमरे भागते हुए देखे जा सकते है।

पटाखे बनाने वाले ज्यादातर कारखाने अपने यहां मजदूर के रूप में बच्चो को ही काम पर रखते हैं। इन बच्चों के वो सुरक्षा इंतजाम उपलब्ध नहीं कराए जाते जो इस तरह जहरीले पदार्थों के साथ काम करते वक्त उन्हें उपलब्ध कराए जाने चाहिए। फलस्वरूप इन पदार्थों के दुष्प्रभावों के कारण होने वाली बीमारियों से ये बच्चे ग्रसित हो जाते हैं और समुचित चिकित्या व्यवस्था के अभाव में इनमें से बहुत सारे बच्चे अपनी युवावस्था तक भी नहीं पहुँच पाते।

यह सब कहने के पीछे हमारा उद्देश्य यह बिलकुल नहीं है कि हम रोशनी के इस पावन पर्व को ही न मनाएं, पर इस तरह मनाए कि इससे हमारे पर्यावरण को नुकसान न पहुँचे। अपनी इस दीवाली को सुखद और यादगार बनाने के लिए हम कई चाजें कर सकते है जैसे-
एक साथ कई परिवार मिल कर इस पर्व का आनंद उठाएं, इस तरह पटाखों की संख्या में कमी लाई जा सकती है और प्रदूषण का दायरा भी सीमित हो जाएगा।
त्योहार मनाने से पहले ही यह बात को निश्चित कर लें की पटाखे सीमित मात्रा में पूर्व निश्चित समय पर ही फोड़े जाए।
इस बात का भी ध्यान रखना जरूरी है की जिस जगह पटाखे फोड़े जा रहे हैं वह किसी अस्पताल के नजदीक न हो। पटाखे भीड़-भाड़ स्थानों में भी न चलाए, इससे दुर्घटना हो सकती है।
पारम्परिक रूप से जलाए जाने वाले रसायनिक पटाखों की जगह इको फ्रैंडली पटाखों का प्रयोग करें। ये पटाखे पुर्नचक्रित कागज से बनाएं जाते है तथा इससे उत्पन्न होने वाली ध्वनि प्रदूषण बोर्ड द्वारा पूर्व निर्धारित होती है। इन पटाखों की एक और खासियत होती है कि ये ध्वनि कम पैदा करते है रंग और रोशनी ज्यादा।
इस दीवाली पर बिजली अधाधुंध प्रयोग से बचने के लिए बिजली से जलने वाली लड़ियों के स्थान पारम्परिक रूप से बनने वाले मिट्टी के दियों का प्रयोग करे। इन नन्हें दीपको का प्रयोग कर आप उन कई घरों को भी रोशन कर सकते है जो इन दियों के घटते प्रयोग के कारण अपना व्यवसाय दिन-पर-दिन खोते जा रहे हैं।
इस दीवाली पर जब आप अपने घर की सफाई के दौरान प्रयोग में न आने वाली चीजों को निकाले तो फेंकने से पहले एक बार सोचें की क्या ये अभी किसी के और के द्वारा प्रयोग में लाई जा सकती हैं, यदि हां, तो फेंकने से बेहतर है कि उन वस्तुओं को गरीब और जरूरतमंद लोगों को दे दें।

इको फ्रैंडली दीवाली का यह अर्थ बिलकुल नहीं है की आप वह सब कुछ त्याग जो आपको बहुत पसंद है, जिन्हें करने का आप साल भर इंतजार करते हैं। बस वक्त का तकाज़ा है कि एक बार पीछे मुड़ कर देखिए। देखिए दीवाली बनाने की वह परम्परागत शैली। जिसके अनुशरण से समाज का प्रत्येक व्यक्ति किसी न रूप में लाभान्वित होता है। दीवाली के उस मर्म को समझिए। दीवाली का अर्थ दिखावा नहीं है। दीवाली का अर्थ है प्यार, एकता, सौहार्द और खुशियां, जो इस दीवाली आप पूरी दुनिया को बाँट सकते हैं।
आप सभी को दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं।

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