गण्डात नक्षत्र ………

भारतीय ज्योतिष में संधिकाल या संक्रमणकाल सदैव अशुभ माना गया हैं | संधि से

मतलब दो परस्पर ग्रह, नक्षत्र , राशियों का समाप्तीकाल और दुसरों का प्रारंभकाल से माना गया हैं |

सर्वविदित हैं कि जब दो ऋतुयें परस्पर मिलती हैं तो उसी समय दुनियाँ में रोग ज्यादा

फैलते हैं | दिन और रात्री के संधिकाल में भजन किर्तन करना उपयुक्त होता हैं |

जब देश और राज्य की सरकारे बदलती हैं तो उस समय भी संक्रामण काल के कारण

प्रजा को कष्ट मिलता हैं |ज्योतिष में भी संधिकाल स्थिती के अनेक उदाहरण देखने

मिलते हैं | जैसे संक्रातीसंधि, नक्षत्रसंधि ,राशिसंधि, लग्नसंधि , भावसंधि आदि हैं |

इन संधियो में जन्में जातको को काफी कठनाईयों का सामना करना पडता हैं |

इन्ही संधियो में शुभकार्य , विवाह, यात्रा करना वर्जित हैं |

इसी प्रकार छः नक्षत्र ऐसे है जहाँ राशिसंधि और नक्षत्रसंधि एक साथ आते हैं |

इन्ही को गंडात नक्षत्र कहते हैं | रेवती अश्वनी से मीन और मेष की संधी बनती हैं |

अश्लेषा व मघा से कर्क और सिंह की संधि बनती हैं | ज्येष्ठा व मूल से वृश्चिक तथा

धनु की संधी बनती हैं | यदि इन राशी पर हम ध्यान दे तो मेष ,धनु , सिंह अग्नि

तत्ववाली राशियाँ हैं |कर्क, वृश्चिक, मीन जलचरवाली राशियाँ हैं | अश्वनी मघा मूल

नक्षत्रों के स्वामी केतु हैं और ये तमोगुणी हैं | रेवती ,अश्लेषा व ज्येष्ठा का स्वामी

बुध हैं और ये स्वभाव से रजोगुणी हैं | अतः नक्षत्रों की जोडियाँ रेवती , अश्लेषा ,

मघा , तथा ज्येष्ठा मूल ये गडांत कहलाते हैं | ज्येष्ठा मूल और अश्लेषा बडे मूल

कहलाते हैं | मघा , रेवती , अश्विनी छोटे मूल कहलाते हैं बडे मूल में जन्मे जातको

का जन्म के २७ वें दिन जब चंद्रमा उसी नक्षत्र में आता हैं तब मूल शांति कराई

जाती हैं | छोटे मूलो की शांति १० वें या १९ वें दिन जब उसी स्वामी का

दूसरा या तीसरा नक्षत्र आता हैं तब कराई जाती हैं | ज्येष्ठा नक्षत्र की अंतिम १ घडी
अर्थात २४ मिनिट तथा मूल नक्षत्र की प्रारंभ की १ घडी अभूक्त घडी कहलाते हैं |

अश्वनी नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म होने के कारण पिता को कष्ट , दूसरे चरण में ऐश्वर्य,

तिसरे चरण में उच्चपद , तथा चोथे चरण में राज्य सम्मान मिलता हैं | अश्लेषा नक्षत्र में

प्रथम चरण में राज्य सुख , द्वितीय में धन हानि , तृतीय में माता को कष्ट, चतुर्थ में

पिता को कष्ट रहता हैं | मघा में पहले चरण में माता को कष्ट , दूसरे में पिता को

कष्ट , तिसरे में सुख संपत्ति और चोथे में धन लाभ रहता हैं | ज्येष्ठा के प्रथम चरण

में भाई को कष्ट , द्वितीय में अनुज को पीङा , तृतीय में माता को कष्ट चतुर्थ में

स्वयं कष्ट पाता हैं | मूल नक्षत्र के प्रथम में पितु कष्ट , दुसरे में माता को पीङा ,

तिसरे में धन नाश , चोथे में धन लाभ होता हैं | रेवती में पहले चरण में राज्य सम्मान ,
दुसरे में राज्य सुख , तिसरे में सुख संपदा पर चोथे में स्वयं को कष्ट रहता हैं |

दुसरे में राज्य सुख , तिसरे में सुख संपदा पर चोथे में स्वयं को कष्ट रहता हैं |

अतः मूल शांति किसी विद्वान पंडीत से करानी चाहियें |

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here