गणेश की सिद्धी—
गणेश की सिद्धि के लिये बुधवार का व्रत और केतु के जाप जरूरी है.

लक्ष्मी की वृद्धि—
कहावत है कि चिन्ता से चतुराई घटे दुख से घटे शरीर,पाप से लक्ष्मी घटे कहि गये दास कबीर,दूसरे के लिये भला सोचने वाले की लक्ष्मी कभी घटती नही है और पाप करने वाले की एक बार लक्ष्मी बढती दिखाई देती है वह केवल उसकी आगे की पीढियों के लिये जो स्थिर लक्ष्मी होती है वह अक्समात सामने आकर धीरे धीरे विलुप्त होने लगती है,श्री सूक्त का पाठ और लोगों के प्रति दया तथा भला करने की भावना लक्ष्मी की व्रुद्धि करता है.

चाणक्य की बुद्धि—
बुद्धि का मालिक बुध है और बुधवार के शाम के समय सरस्वती की आराधना ही चाणक्य की बुद्धि को प्रदान करने वाला है,सिर पर रखे जाने वाले बाल भी बुद्धि को कम करते है.एक वस्त्र और दरी पर सोना जाडे में भी कम वस्त्रों का उपयोग और शरीर को आराम नही मिलने वाले साधन ही बुद्धि को बढाने के लिये माने जाते है.

विक्रमादित्य का न्याय—
गुरु न्याय देने का मालिक है और न्याय को मानने के लिये सूर्य जिम्मेदार होता है,जिनकी कुंडली में गुरु और सूर्य प्रबल होते है वे कभी भी अपने न्याय के रास्ते को नही छोड सकते है,ईश्वरीय शक्तियां खुद आकर उसके शरीर और आत्मा की रक्षा करती है और जो आगे होना है उसका फ़ल बताती है.

पन्ना सी धाय—
सेवा भाव और कन्या राशि का यह अनूठा उदाहरण मेवाड में माना जाता है,वह सेवा की भावना कि जिसके प्रति समर्पण की भावना है उसके लिये अपने खुद के जीवन को बरबाद करने के बाद भी सेवा करने वाले व्यक्ति की रक्षा करना इसी श्रेणी में माना जाता है.

कामधेनू सी गाय—
नवां और बारहवां शुक्र कामधेनु रूपी गाय के रूप में माना जाता है,नवे भाव से शुक्र मन चाही वस्तु को देने वाला होता है और बारहवां शुक्र किसी भी आपत्ति को अपने ऊपर झेलकर दूसरे को सुखी रखता है.

भीष्म की प्रतिज्ञा—
जो कह दिया वह कर दिया ही इस कहावत के अन्दर आता है,मेष राशि का लगन का मंगल अपनी कही बात को पूरी करने के लिये अपने को बलिदान भी करवा सकता है.

हरिश्चन्द्र की सत्यता—
कहना और करना तथा जो है उसी को बताना कोई भी गुप्त भेद नही रखना और जो रास्ता है उसी पर चलना कभी अपने पथ से विचलित नही होना,यह कारण केवल सूर्य के अन्दर ही प्रकट होता है,लेकिन सूर्य को ग्रहण देने वाला राहु है,जो सूर्य से अष्टम होने पर अपनी दशा अन्तर्दशा में राजा हरिश्चन्द्र जैसी दशा को उत्पन्न करता है.

मीरा की भक्ति—
गुरु केतु का अनूठा संगम ही मीराबाई जैसी भक्ति को प्रदान करता है,जिसकी कुंडली में गुरु केतु एक साथ होते है वह आसमानी ताकतों का सरताज होता है,उसे दीन दुनिया से कोई मतलब नही होता है,वह केवल उसी परमात्मा के लिये अपने जीवन को समर्पित कर देता है,अक्सर गुरु बाहवां और चौथा केतु भी इसी आदत को देता है.

शिव की भक्ति—
भगवान शिव को चन्द्रमा और उनकी भक्ति को गुरु से जोडा जाता है,जिसकी कुंडली में गुरु किसी तरह से वृश्चिक राशि को बल दे रहा हो,और केतु उसके आसपास हो,अथवा केतु भी बल दे रहा हो,चन्द्रमा जिसका चौथा आठवां या बारहवां है वह शिवकी भक्ति में चला जाता है,इस प्रकार के लोग अन्दरूनी बातों को जानने वाले और भावुक भी होते है,दूसरे का भला करने में इनको मजा आता है भले ही शाम को घर पर सभी भूखे सोयें लेकिन दूसरे के भोजन की चिन्ता इनके अन्दर होती है.

कुबेर की सम्पन्नता—-
कुबेर को धन का राजा कहा गया है,उनकी धन प्राप्त करने की कला केवल व्यक्ति की कामनाओं से है,और धन उन्ही को प्रदान किया जाता है जो बुद्धि से ऊंचे और कार्यों में तेज होते है,बुध शनि की युति वाले जातक कुबेर की श्रेणी में आते है.

विदेह की विरक्ति—
राजा जनक का दूसरा नाम ही विदेह है जो व्यक्ति अपने शरीर और भौतिक कारणों का ध्यान नही रख कर केवल अपने को ईश्वरीय ताकत के सहारे छोड देता है उसे कभी बडे से बडे कार्य में भी बाधा नही आ सकती है,संसार के स्वामी की शक्ति रूपी धनुष को तोडने के लिये भगवान विष्णु को और माता जानकी के रूप में लक्ष्मी को खुद उनके दरवाजे पर अवतरित होना पडा था तथा सभी देवी देवताओं ने उनकी प्रतिज्ञा को पूर्ण करने में अपनी पूरी शक्तियां लगा दीं थी.धनु राशि का गुरु और सिंह का केतु विदेह की विरक्ति को पैदा करता है.

तानसेन का राग—
संगीत को इतना अच्छा जानना कि दीपक राग के चलाते ही दीपक अपने आप प्रज्ज्वलित हो जाये,बादलों से अपने आप राग के शुरु होते ही बारिस शुरु हो जाये,आने जाने वाले अपने अपने स्थान रुक जावें और कर्णमोहिनी विद्या से अभिभूत होकर अपने को ही भूल जावें.
दधीचि का त्याग,
भृर्तहरी का बैराग,
एकलव्य की लगन,
सूर के भजन,
कृष्ण की मित्रता,
गंगा की पवित्रता,
मां का ममत्व,
पारे का घनत्व,
कर्ण का दान,
विदुर की नीति,
रघुकुल की रीति

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