वास्तुदोष के कारण स्वामी रामदेव जी के भविष्य की राह कठिन–वास्तुगुरू कुलदीप सलूजा
वास्तु के प्राचीन ग्रंथों के अनुसार जब भाग्य अच्छा हो और वास्तु खराब हो, तब भी व्यक्ति जीवन में सफलता प्राप्त करता है, पर यह सफलता काफी मेहनत व कठिनाईयों के बाद मिलती है। भाग्य अच्छा हो और वास्तु भी अच्छा हो,तब व्यक्ति जीवन में खूब सफलताएं हासिल करता है और यह सफलताएं बिना किसी विशेष मेहनत व परेशानी के प्राप्त हो जाती हैं ऐसा ही कुछ योगाचार्य स्वामी रामदेव जी के साथ भी देखने में आता है। जब से स्वामी रामदेव जी ने हरिद्वार के कनखल क्षेत्र में स्थित कृपालु बाग आश्रम जिसे अब दिव्य योग मंदिर आश्रम भी कहते है, से अपनी गतिविधियां संचालित की तो उसके बाद देखते ही देखते वह विश्व स्तरीय प्रसिद्धि पा गए। निश्चित ही उस समय उनके भाग्य की प्रबलता प्रारंभ हो चुकी थी और इस प्रबलता में कृपालु बाग आश्रम की वास्तुनुकुलताओं ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। स्वामी जी ने भारत सहित पूरे विश्व में योग के प्रति जागृति ला दी है। अब स्वामी जी देशभर में फैले अपने असंख्य अनुगामियों की अपने प्रति विश्वास एवं आस्था को देखते हुए पतंजलि योग पीठ के साथ-साथ भारत स्वाभिमान संगठन की स्थापना भी कर दी है। जो आगामी लोकसभा चुनाव में भारत की प्रत्येक सीट पर अपने उम्मीद्वार खड़ा करेगा। आजकल जिसका प्रचार-प्रसार स्वामी जी द्वारा पूरे दम-खम के साथ किया जा रहा है।
निश्चित ही भारत स्वाभिमान संगठन के गठन के पीछे स्वामी जी के मन में राष्ट्र प्रेम और मानव सेवा की भावना ही है। यही कामना है कि, परमपिता परमेश्वर उन्हें इस राजनैतिक आंदोलन में भी योग की भांति ही सफलता दिलवाए जिससे देश में नैतिक क्रांति आए जिसकी आज भारत को अत्यंत आवश्यकता है। निश्चित ही इस नैतिक क्रांति से भारत को भ्रष्ट नेताओं से छुटकारा मिल सकता है और ऐसा हुआ तो निश्चित ही भारत विश्व में अपना विशेष स्थान प्राप्त कर सकता है।
किंतु दोस्तों! देखने में आता है कि, जब आदमी का समय बलवाना होता है और उसे बड़ी-बड़ी उपलब्ध्यिां सहज हासिल होती है। ऐसे में तब सफल आदमी को भाग्य और वास्तु जैसी बातें फिजूल नजर आती है। इसी कारण समय-समय पर स्वामी रामदेव जी ने अपने भाषणों में वास्तुशास्त्र का विरोध किया है जो कि, एक सफल आदमी की स्वभाविक प्रक्रिया है। कुछ वर्ष पूर्व स्वामी जी द्वारा दैनिक भास्कर में लिखे एक लेख ÷÷भारत में ही क्यों होता है ग्रहों का असर” में स्वामी जी ने ग्रहों के साथ-साथ वास्तुशास्त्र का विरोध करते हुए लिखा था कि, ÷÷जब सृष्टि के कण-कण में परमात्मा व्याप्त हैं, पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण सहित दसों दिशाओं में ईश्वर विद्यमान है तो फिर दिशाओं में दोष बताकर भोले-भाले लोगों की फैक्ट्री या घरों को क्यों तोड़ा जा रहा है?”
स्वामी जी के द्वारा वास्तु के बारे में बगैर शास्त्रोक्त आधार के दिये गए कथन से मैं बिलकुल सहमत नहीं हूं। जिस प्रकार स्वामी रामदेव जी मानते है कि, योग स्वस्थ रहने का महामंत्र है उसी प्रकार वास्तु भी सुखद एवं सरल जीवन जीने का महामंत्र हैं वास्तुशास्त्र एक प्राचीन विज्ञान है। यह किसी धर्म या संप्रदाय से नहीं बल्कि सार्वभौमिक सत्य से जुड़ा हुआ है। जिसे हजारों वर्षों के अनुसंधान के बाद विद्वान ऋषि-मुनियों द्वारा लोकोपयोगी बनाया गया है। विश्वकर्मा प्रकाश और समरांगण सूत्रधार वास्तुशास्त्र के प्रमुख प्राचीन ग्रंथ है। इन ग्रंथो के अलावा भी हमारे कई प्राचीन ग्रंथो जैसे – रामायण, महाभारत, मत्स्य पुराण इत्यादि में वास्तु के बहुमूल्य सिद्धांत बिखरे पड़े है। जहां        धर्म के माध्यम से इस शास्त्र के लोकोपयोगी सिद्धांतों को व्यवहार में लाने की पुष्टि होती है।
दिनांक ७ मार्च २०१० को कुंभ मेले के दौरान मुझे कनखल स्थित कृपालु बाग आश्रम और हरिद्वार-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक ५८ पर बहदराबाद स्थित पतंजलि योग पीठ देखने का मौका मिला। आजकल यहां हो रहे निर्माण कार्यों को वास्तु की दृष्टि से देखने पर लगता है कि, अब स्वामी के भाग्य की अनुकुलता में कहीं ना कहीं कमी आ रही है इसी कारण कनखल के कृपालु बाग से संचालित स्वामी जी का दिव्य योग मंदिर आश्रम में किये जा रहे नये निर्माण कार्यों में ऐसे वास्तुदोष आ रहे है, जो आश्रम की वास्तुनुकुलताओं को कमजोर करेगें। इसी प्रकार बहदराबाद स्थित स्वामी जी का ड्रीम प्रोजेक्ट पतंजलि योग पीठ में किये जा रहे भारी निर्माण कार्यों में तो कई महत्वपूर्ण वास्तुदोष है। इन दोनों स्थानों पर हो रहे वास्तु विपरित निर्माण कार्यों को देखकर ही कहा जा सकता है कि, जो यश, धन और सम्मान स्वामी रामदेव जी ने पिछले दशक में पाया है निश्चित ही उसमें अब उतार का समय प्रारंभ हो चुका है। इन दोनों ही स्थानों से ही स्वामी जी की मुख्य गतिविधियां चल रही है और इनकी वर्तमान वास्तु स्थितियों को देखते हुए अब यह तय है कि, भारत स्वाभिमान संगठन अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकेगा। इसके लिए स्वामी जी चाहे कितने ही प्रयास कर लें, धन खर्च कर दें अपने संपर्कों का उपयोग कर लें, किंतु उन्हें उचित सफलता किसी भी कीमत पर हासिल नहीं हो सकेगी, यह तय है क्योंकि, यदि भाग्य खराब हो और वास्तु विन्यास अच्छा हो, तो दुःख व परेशानी वाला समय कम तकलीफ के व्यतीत हो जाता है, पर भाग्य खराब हो और साथ ही वास्तु भी खराब हो, तो व्यक्ति का जीवन काफी कष्टप्रद हो जाता है, और यह खराब समय बड़ी कठिनाई के साथ निकलता है। जैसे कि एक वाहन से सफर करते समय अच्छी सड़क आपको आपकी मंजिल तक बड़े आराम से पहुंचा सकती है। यदि सड़क खराब हो तो, यात्रा थकाने वाली और कष्टदायक हो सकती है और यह भी हो सकता है कि आप मंजिल तक पहुंच ही ना पाए। दोनों ही स्थितियों में आपको मंजिल तक पहुंचाने का साधन वाहन है ना कि सड़क। किंतु सड़क भी महत्वपूर्ण है। उसकी महत्वता को कम नहीं आंका जा सकता है। वास्तु भी इसी सड़क की तरह है और भाग्य वाहन की तरह है। अगर वाहन अच्छा होगा और परंतु सड़क खराब होगी तो मंजिल में पहुंचने पर बहुत सारी दिक्कते आएगी। इस कारण वास्तु भी महत्वपूर्ण है। वास्तुनुकुलताएं हमारे जीवन की यात्रा को अधिक सरल और सुखद बनाती है।
वास्तुशास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति को यश और धन पाने के लिए चाहे वह नेता, अभिनेता, व्यापारी, या प्रोफेशनल हो, उसके घर एवं कार्यस्थल की उत्तर दिशा, ईशान कोण एवं पूर्व दिशा में वास्तुनुकुलता होना अत्यंत आवश्यक है। उत्तर दिशा की वास्तुनुकुलता यश दिलाने, पूर्व दिशा की वास्तुनुकुलता धन दिलाने में और ईशान कोण की वास्तुनुकुलता यश और धन दोनों दिलाने में सहायक होती है। यदि उपरोक्त दिशाओं में वास्तुदोष है तो निश्चित ही वहां रहने वालों को अपयश मिलता एवं धन की हमेशा कमी बनी रहती है। इन दिशाओं की वास्तुनुकुलताओं के लिए यह जरूरी है कि भवन की यह दिशाएं किसी भी प्रकार दबी, कटी, घटी नहीं होनी चाहिए। इन्हीं दिशाओं में भूमिगत पानी का स्रौत, या किसी भी प्रकार का गड्डा फर्श का ढाल हो तो वह यश और धन दिलाने में बूस्टर की तरह कार्य करता है। इसके विपरित इन दिशाओं का किसी भी प्रकार से ऊंचा होना अपयश और धन हानि का कारण बनता है।
विश्व के सातों आश्चर्य भी अपनी उत्तर दिशा की अनुकुलता के कारण ही प्रसिद्ध है। सभी आश्चयर्ोे की उत्तर दिशा में गहरी नीचाई है और ज्यादातर आश्चर्यों की उत्तर दिशा में पानी है जैसे ताजमहल की उत्तर दिशा में यमुना नदी, और पैरिस के एफिल टॉवर की उत्तर दिशा में सान नदी बह रही है, म्रिस के गीजा पिरामिड़ की उत्तर दिशा में गहरी नीचाई के साथ, पूर्व दिशा में नील नदी बह रही है। विश्व का सबसे धनी एवं प्रसिद्ध धार्मिक स्थल ईसाईयों की पवित्र नगरी वेटिकन सिटी की इस स्थिति में भी उत्तर एवं पूर्व दिशा में बह रही टिब्बर नदी की ही अहम भूमिका है। इसी प्रकार भारत के पहले और विश्व के दूसरे नम्बर के धनी प्रसिद्ध धार्मिक स्थल तिरूपति बालाजी की उत्तर दिशा में बड़े आकार का स्वामी पुष्यकरणी कुंड के साथ-साथ उत्तर, पूर्व दिशा एवं ईशान कोण में तीखा ढलान है और दक्षिण-पश्चिम दिशा में ऊंचाई है। जम्मू, कटरा स्थित वैष्णोंदेवी मंदिर एवं शिर्डी स्थित सांई बाबा के मंदिर की उत्तर दिशा में भी नीचाई है। हरिद्वार स्थित हर की पौढ़ी की प्रसिद्धि का कारण दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर नीचाई तथा पश्चिम दिशा के पहाड़ की ऊंचाई और पूर्व दिशा में बह रही गंगा नदी की नीचाई है। मदुरै स्थित मीनाक्षी मंदिर को उत्तर दिशा में बहने वाली वैगै नदी के कारण ही प्रसिद्धि मिली है। इसी प्रकार दक्षिण भारत के सभी प्रसिद्ध मंदिरों जैसे ज्योर्तिंलिंग रामेश्वरम्‌, गुरूवयुर मंदिर त्रिशुर, कण्ठेश्वरा मंदिर नंजनगुड मैसूर, श्रीरंगनाथ स्वामी श्रीरंगपत्तनम्‌, पद्मनाभ स्वामी मंदिर त्रिरूअन्नतपुरम्‌, सुचीद्रम टेम्पल कन्याकुमारी, वडक्कन्नाथन मंदिर त्रिशुर इत्यादि मंदिरों में उत्तर दिशा में पानी के कुंड है या नदी बह रही है। जयपुर स्थित आमेर का किला, हैदराबाद स्थित गोलकुंडा फोर्ट की प्रसिद्धि में भी उत्तर एवं पूर्व दिशा की नीचाई और वहां पानी का जमाव ही उन्हें प्रसिद्धि दिलाने में सहायक हो रहा है। इसी प्रकार चंड़ीगढ़ की प्रसिद्धि ईशान कोण स्थित सुखना लेक और जयपुर की प्रसिद्धि में ईशान कोण स्थित जलमहल तालाब के कारण है।
आईए देखते है कि, ऐसी कौन सी वास्तुनुकुलताएं थी जिन्होंने बाबा रामदेव को इतना सफल बनाया और नये निर्माण में ऐसे कौन से वास्तुदोष आ गए है जो आगामी समय में स्वामी जी के लिए अपयश, धनहानि एवं उनकी सफलता में बाधा पैदा करेगें।
 दिव्य योग मंदिर आश्रम, कनखल हरिद्वार
स्वामी जी का कनखल स्थित दिव्य योग मंदिर आश्रम विदिशा प्लॉट पर बना है जिसमें दिशाएं मध्य में न होकर कोने में है। एक कोने में पूर्व दिशा और दूसरे कोने में उत्तर दिशा है। आश्रम की उत्तर-पूर्व दिशा में आश्रम के सामने सड़क सटी हुई एक बड़ी नहर उत्तर दिशा से पूर्व दिशा की ओर बह रही है।
आश्रम का मुख्य द्वार उत्तर-पूर्व दिशा में ही वास्तुनुकुल स्थान पर बना है जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है इसी कारण यहां लोगों का खूब आना-जाना बना रहता है। दिव्य योग मंदिर आश्रम की चार दीवारी के अंदर पहले केवल कृपालु बाग आश्रम का भवन ही था जो आज भी गेरूआ रंग से पुता हुआ है। वर्तमान का दिव्य योग मंदिर आश्रम पहले एक आम का बगीचा था। जब इस बगीचे में कृपालु बाग आश्रम बना होगा उस समय आश्रम एवं आश्रम के आसपास की जमीन नीची थी। आश्रम के मुख्यद्वार और पार्किंग के बीच यह नीचाई अभी भी नजर आती है। उत्तर दिशा में आश्रम से सटा हुआ आम का बगीचा अभी भी आश्रम से नीचा है। जब कृपालु बाग आश्रम और आश्रम के आसपास की जमीन का स्तर एक समान था तब यहां का वास्तु साधारण रूप से अनुकुल था। जब ९० के दशक में स्वामी रामदेव जी ने इस कृपालु बाग आश्रम से दवाईयां देना एवं योग सीखाना प्रारंभ किया।              तो धीरे-धीरे उन्हें इस साधारण वास्तुनुकुलता में भी यश मिलने लगा। जब एक ओर स्वामी जी ने आश्रम के दक्षिण-पश्चिम दिशा में औषधियां बनने के लिए जो भवन बनाए है वह जमीन स्तर ऊंचे निर्मित किए गए है और दूसरी ओर सड़क भी पक्की बनने के कारण ऊंची हो गई। ऐसी स्थिति में मुख्यद्वार से अंदर जाने के लिए ढलान देनी पड़ी। वर्तमान में दक्षिण-पश्चिम दिशा में जहां औषधी निर्माण होते है वह सभी भवन ऊंचाई लिए हुए और उनके सामने खुली जगह का ढलान उत्तर-पूर्व दिशा की ओर है। साथ ही सड़क से थोड़ा ढलान अंदर आश्रम की ओर आ रहा है। इस कारण सबसे पुराना बना दो मंजिला कृपालु बाग आश्रम भवन जो कि अब दिव्य योग मंदिर परिसर के उत्तरी भाग में स्थित है के ग्राऊण्ड फ्लोर का फर्श लगभग ३ फीट नीचा होकर दिव्य योग आश्रम की वास्तुनुकुलता को बढ़ाने में जबरदस्त सहायक हो गया। अनुयायियों की बढ़ती संख्या के कारण उत्तर दिशा में टॉयलेट ब्लॉक बनया गया और वहीं पर उसका सैप्टिक टैंक भी बनाया गया जो यश बढ़ाने में और अधिक सहायक हो गया। कृपालु बाग आश्रम की उत्तर दिशा के कोने में भी एक छोटा सैप्टिक टैंक भी वास्तुनुकुल स्थान पर है। समय-समय पर दिव्य योग आश्रम परिसर के बाहर हुए परिवर्तन भी वास्तुनुकुल होकर धन और प्रसिद्धि दिलवाने में सहायक हुए। वर्तमान में परिसर के बाहर एक ओर उत्तर दिशा में बगीचा २ से ३ फीट नीचा है, तो दूसरी ओर दक्षिण दिशा में सड़क ऊंचाई पर है। साथ ही बाहर ही आग्नेय कोण में ट्रांसफार्मर वास्तुनुकुल स्थान पर लगा है। कुल मिलाकर ९० के दशक में आश्रम के अंदर और बाहर हुए निर्माण सहज भाव से वास्तुनुकुल हो गए इस कारण स्वामी जी ने बहुत ही कम समय में अत्यधिक यश प्राप्त कर लिया।
किंतु वर्तमान में पश्चिम दिशा में जो नया औषधी भवन बना है उस पर पश्चिम दिशा से एक मार्ग प्रहार भी हो रहा है। पश्चिम दिशा में भवन का यह बढ़ाव और उस पर मार्ग प्रहार आश्रम की वास्तुनुकुलता को कम कर रहा है। इसी के साथ पश्चिम वायव्य में डॉक्टर चैम्बर के पीछे जो नया निर्माण चल रहा है। उससे आश्रम का वायव्य कोण ढंक गया है। वायव्य कोण का यह दोष आर्थिक हानि का कारण बनता है।
डॉक्टर चैम्बर भी जमीन तल से २ फीट ऊंचाई पर आश्रम की उत्तर दिशा में बना है। इसके फर्श की यह ऊंचाई भी आश्रम की वास्तुनुकुलता को कम कर यश में कमी कर रही है।
आश्रम को देखने से ऐसा लग रहा था कि, वास्तु विपरित निर्माण कार्य लगभग २-३ वर्ष पूर्व ही शुरू हुए है। जो कि, स्वामी इस स्थान की यश और प्रसिद्धि में धीरे-धीरे कमी करते जाएगें।
भारत स्वाभिमान एवं पतंजलि योग पीठ, बहदराबाद
दिल्ली हरिद्वार नेशनल हाईवे ५८ पर बना बहदराबाद स्थित पतंजलि योग पीठ का उद्घाटन ६ अगस्त २००६ को हुआ। पतंजलि योग पीठ की वर्तमान बनावट अनियमित आकार के प्लॉट पर की जा रही है और अनियिमित आकार के प्लॉट पर वास्तुनुकुल निर्माण कार्य हो ही नहीं सकता। पतंजलि योग पीठ के वास्तुदोष और उसके प्रभाव इस प्रकार रहेगें।
परिसर का मुख्यद्वार दक्षिण दिशा में वास्तुनुकुल स्थान पर है। जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है।  जिससे यहां चहल-पहल बनी रहती है। किंतु यही दीवार सड़क के कारण इस प्रकार तीरछी बनी है कि, इस परिसर का दक्षिण आग्नेय दक्षिण दिशा के साथ मिलकर बढ़ाव लिए हुए है। वास्तु सिद्धांत के अनुसार दक्षिण के साथ मिलकर आग्नेय में बढ़ाव होता तो आपसी झगड़े, मानसिक व्यथा, अशान्ति रहती है और धन नष्ट होता है। 
पश्चिम वायव्य पश्चिम दिशा के साथ मिलकर बढ़ाव लिए हुए है। यह बढ़ाव दूरभाष केंद्र तक फैला हुआ है। जहां पर पतंजलि आयुर्वेदिक महाविद्यालय बना हुआ है और वहां पर और कई भवन निर्माण भी हो रहे है। जब वायव्य का बढ़ाव पश्चिम के साथ मिलकर होता तो प्लाट का स्वामी चित्त-चांचल्य, राजा का क्रोध, अपमान, अनेक चिंताओं, धन हानि से पीड़ित होता है।
पूर्व दिशा की कम्पाऊण्ड वाल सीधी है। उत्तर दिशा में कट गई जहां जनरेटर लगा है और यह कटाव सीढ़ियों की तरह उत्तर वायव्य से होता हुए पश्चिम दिशा की ओर बढ़ रहा है इस प्रकार इस परिसर का उत्तर ईशान एवं उत्तर दिशा कट गई है। परिसर के इस कटाव के कारण गरीबी होगी, सुख का अभाव रहेगा, अपमान, अशान्ति, और दुःख से पीड़ा होगी।
पश्चिम दिशा में कोने पर बोरिंग है जो कि, वास्तुनुकुल स्थान पर नहीं है परंतु इतने बड़े प्लॉट में यह कोई विशेष कुप्रभाव नहीं डाल रहा है।
इस परिसर में के अंदर बने सभी भवनों में जिस तरह टॉयलेट ब्लॉक है परिसर को देखने से लगता है कि, उनके सैप्टिक टैंक परिसर के मध्य भाग में या पश्चिम दिशा में कहीं होना चाहिए जो कि भारी खर्च या परेशानी का कारण बनेगें।
पतंजलि योग पीठ में कुछ वास्तुनुकुलाएं भी है जैसे – जनरेटर के पास एक भूमिगत पानी का बड़ा टैंक है। जो कि पूर्व दिशा में स्थित है, जनरेटर के पास ही उत्तर दिशा में बोरिंग और एक दो छोटे-छोटे टैंक है जो कि वास्तुनुकुल होकर निश्चित रूप से धन लाने में सहायक हो रहे है परंतु, यह अनुकुलता वास्तुदोषों से होने वाली धन हानि की तुलना में काफी कम है।
अतः जिस तरह पिछले दशक में स्वामी रामदेव जी ने सहज और सरलता से यश और धन अर्जित किया है उसमें कृपालु बाग आश्रम और उसके सामने वाली उत्तर-पूर्व दिशा में बहने वाली नहर की वास्तुनुकुलता का योगदान रहा। परंतु पतंजलि योग पीठ की उत्तर, पूर्व दिशा एवं ईशान कोण में ऐसी कोई वास्तुनुकुलता जैसे पानी का कोई बड़ा जमाव, नहर या नीचाई नहीं है जो ऐसी यश और प्रसिद्धि में दिलाने में सहायक हो जो चुनाव में भारत स्वाभिमान संगठन को सम्मानजनक विजय दिला सके क्योंकि, चुनाव में किसी भी संगठन के मुख्यालय की वास्तुनुकुलता बहुत महत्वपूर्ण होती है। इसी के साथ ध्यान रहे कि, चुनाव में केवल वहीं प्रत्याशी विजय प्राप्त करता है जिसका घर और कार्यस्थल दोनों ही वास्तुनुकुल हो। दिव्य योग मंदिर आश्रम और पतंजलि योग पीठ की वर्तमान वास्तु स्थिति को देखकर केवल यही कहा जा सकता है कि, स्वामी रामदेव जी के भविष्य की राह कठिनाईयों से भरी ही रहेगी।

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