*********शनैश्चरस्तवराज: ***

पवन तलहन –

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श्री गणेशाय नम:!! नारस उचाव!!
ध्यात्वा गणपतिं राजा धर्मराजो युधिष्ठिर !!
धीर: शनैश्चरस्येमं चकार स्तवमुत्तमम!!१!!
शिरो मे भास्करि पातु भालं छायासुतोsवतु!!
कोटराक्षो द्दशौ पातु शिखि कंठनिम: श्रुती !!२!!
घ्राणं मे भीषण: पातु मुखं बलिमुखोsवतु!!
स्कन्धौ संवर्तक पातु भुजौ मे भयदोsवतु !!३!!
सौरिर्मे हृदय पातु नाभिं शनैश्चराsवतु!!
ग्रहराज: कटिं पातु सर्वतो रविनंदन:!!४!!
पादौ मंदगति: पातु कृष्ण: पातवखिलं वपु:!!
रक्षामेतां पठेन्नित्यं सौरेर्नामबलैर्युताम!!५!!
सुखो पुत्री चिरायुश्च स भवेन्नात्र संशय:!!
ॐ सौरि: शनैश्चर: कृष्णो नीलोत्पलनिभ: शनि:!!६!!
शुष्कोदरो विशालाक्षो दुर्निरीक्ष्यो विभीषण:!!
शितिकंठनिभौ नीलश्छायाहृदयनंदन:!!७!!
कालदृष्टि: कोटराक्ष: स्थलरोमा बलीमुख:!!
दीर्घो निर्मांसगात्रस्तु शुष्को घोरो भयानक:!!८!!
नीलांशु: क्रोधनो रौद्रो दीर्घश्मश्रुर्जटाधर:!!
मन्दो मंदगति: खंजोsतृप्त: संवर्तको यम:!!९!!
ग्रहराज: करालो च सूर्यपुत्रो रवि: शशी!!
कुजो बुधो गुरु: काव्यो भानुज: सिंहिकासुत:!!१०!!
केतुर्देवपतिर्बाहू: कृतान्तो नैर्त्रिर्ततस्तथा !!
शशी मरुत्कुबेरश्च ईशान: सुर आत्मभू:!!११! !
विष्णुर्हरो गणपति: कुमार: काम ईश्वर:!!
करता हरता पालयिता राज्यभूग राज्यदायक:!!१२!!
छायासुत: श्यामलांगो धनहर्ता धनप्रद:!!
क्रूरकर्मविधाता च सर्वकर्मावरोधक:!!१३!!
तुष्टो रुष्ट: कामरूप: कामदो रविनंदन:!!
ग्रहपीड़ाहर: शान्तो नक्षत्रेशो ग्रहेश्वर:!!१४!!
स्थिरासन: स्थिरगतिर्महाकाया महाबला:!!
महाप्रभो महाकाल: कालात्मा कालकालक:!!१५!!
आदित्यभयदाता च मृत्युरादित्यनादन:!!
शतभिरुक्षदयित: त्रयोदशितिथिप्रिय:!!१६!!
तिथ्यात्मा तिथिगणो नक्षत्रगणनायक:!!
योगराशिर्मुहूर्तात्मा करता दिनपति: प्रभु:!!१७!!
शमीपुष्पप्रिय: श्यामस्त्रैलोक्या भावदायक:!!
नीलवासा: क्रियासिन्धुर्नीलांजन चयच्छवि:!!१८!!
सर्वरोगहरो देव: सिद्धो देवगणस्तुत:!!
अष्टोत्तरशतं नाम्नां सौरेश्छायासुतस्य य:!!१९!!
पठेन्नित्यं तस्य पीड़ा समस्ता नश्यति ध्रुवम!!
कृत्वा पूजां पठेन्मर्त्यो भक्तिमान य: सतवं सदा!!२०!!
विशेषत: शानिदिने पीड़ा तस्य विनश्यति !!
जन्मलग्ने स्थितिर्वापि गोचरे क्रूरराशिगे !!२१!!
दशासु च गते सोरेस्तादा स्तवमिमं पठेत !!
पूजयेद्य: शनिं भक्त्या शमीपुष्पाक्षताम्बरै:!!२२!!
विधाय लोहप्रतिमां नरो दुखाद्विमुच्यते !!
बाधा त्वन्य ग्रहाणां च य: पठेत्तस्य नश्यति !!२३!!
भीतो भयाद्विमुच्तेत बद्धो मुच्य्र्ट बन्धनात !!
रोगी रोगाद्विमुच्येत नर: स्तवमिगं पठेत!!२४!!
पुत्र वान्धनवान श्रीमान्जायते नात्र संशय:!!२५!!
नारद उचाव—–
स्तवं निशम्य पार्थस्य प्रत्यक्षोभूच्छनैश्चर:!! 

दत्त्वा राज्ञ वरं कामं शनिश्चांतर्दधे तदा!!२६!!


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विशेष बात——

मित्रो———— इस “शनैश्चरस्तवराज” को कहीं खो मत देना, बहुत संभाल कर रखना ! यह “शनैश्चरस्तवराज” बहुत ही उपयोगी है! इसके करने पर शनिदेव बहुत-बहुत प्रसन्न होते हैं! और सर्वग्रह शांत होकर शुभ फल देते हैं! गृह में कैसी भी पीड़ा हो, सब शांत हो जाती है! ======== हो सके इसे याद कर लें—–shaayad is ke pashchaat fir n mile——

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