वेदांग और सूत्र-ग्रन्थ—खींवराज शर्मा 

वेदांग—-

शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, छन्द और निरूक्त – ये छ: वेदांग है।

.. शिक्षा – इसमें वेद मन्त्रों के उच्चारण करने की विधि बताई गई है।
.. कल्प – वेदों के किस मन्त्र का प्रयोग किस कर्म में करना चाहिये, इसका कथन किया गया है। इसकी तीन शाखायें हैं- श्रौत सूत्र, गृह्य सूत्र और धर्मसूत्र।
.. व्याकरण – इससे प्रकृति और प्रत्यय आदि के योग से शब्दों की सिद्धि और उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित स्वरों की स्थिति का बोध होता है।
4. निरूक्त – वेदों में जिन शब्दों का प्रयोग जिन-जिन अर्थों में किया गया है, उनके उन-उन अर्थों का निश्चयात्मक रूप से उल्लेख निरूक्त में किया गया है।
5. ज्योतिष – इससे वैदिक यज्ञों और अनुष्ठानों का समय ज्ञात होता है। यहाँ ज्योतिष से मतलब `वेदांग ज्योतिष´ से है।
6. छन्द – वेदों में प्रयुक्त गायत्री, उष्णिक आदि छन्दों की रचना का ज्ञान छन्दशास्त्र से होता है।

सूत्र-ग्रन्थ—–

1. श्रौत सूत्र – इनमें मुख्य-मुख्य यज्ञों की विधियाँ बताई गई है। ऋग्वेद के सांख्यायन और आश्वलायन नाम के श्रौत-सूत्र हैं। सामवेद के मशक, कात्यायन और द्राह्यायन के श्रौतसूत्र हैं। शुक्ल यजुर्वेद का कात्यायन श्रौतसूत्र और कृष्ण यजुर्वेद के आपस्तम्ब, हिरण्यकेशी, बोधायन, भारद्वाज आदि के 6 श्रौतसूत्र हैं। अथर्ववेद का वैतान सूत्र है।
2. धर्म सूत्र – इनमें समाज की व्यवस्था के नियम बताये गये हैं। आश्रम, भोज्याभोज्य, ऊँच-नीच, विवाह, दाय एवं अपराध आदि विषयों का वर्णन किया गया है। धर्मसूत्रकारों में आपस्तम्ब, हिरण्यकेशी, बोधायन, गौतम, वशिष्ठ आदि मुख्य हैं।
3. गृह्य सूत्र – इनमें गृहस्थों के आन्हिक कृत्य एवं संस्कार तथा वैसी ही दूसरी धार्मिक बातें बताई गई है। गृह्य सूत्रों में सांख्यायन, शाम्बव्य तथा आश्वलायन के गृह्य सूत्र ऋग्वेद के हैं। सामवेद के गोभिल और खदिर गृह्य सूत्र हैं। शुक्ल यजुर्वेद का पारस्कर गृह्य सूत्र है और कृष्ण यजुर्वेद के 7 गृह्य सूत्र हैं जो उसके श्रौतसूत्रकारों के ही नाम पर हैं। अथर्ववेद का कौशिक गृह्य सूत्र है।

स्मृति—–

जिन महर्षियों ने श्रुति के मन्त्रों को प्राप्त किया है, उन्हींने अपनी स्मृति की सहायता से जिन धर्मशास्त्रों के ग्रन्थों की रचना की है, वे `स्मृति ग्रन्थ´ कहे गये हैं।

इनमें समाज की धर्ममर्यादा – वर्णधर्म, आश्रम-धर्म, राज-धर्म, साधारण धर्म, दैनिक कृत्य, स्त्री-पुरूष का कर्तव्य आदि का निरूपण किया है। मुख्य स्मृतिकार ये हैं और इन्हीं के नाम पर इनकी स्मृतियाँ है –

* मनु
* अत्रि
* विष्णु
* हारीत
* याज्ञवल्क्य
* उशना
* अंगिरा
* यम
* आपस्तम्ब
* संवर्त
* कात्यायन
* बृहस्पति
* पराशर
* व्यास
* शंख
* लिखित
* दक्ष
* गौतम
* शातातप
* वशिष्ठ

इनके अलावा निम्न ऋषि भी स्मृतिकार माने गये हैं और उनकी स्मृतियाँ उपस्मृतियाँ मानी जाती हैं। –

* गोभिल
* जमदग्नि
* विश्मित्र
* प्रजापति
* वृद्धशातातप
* पैठीनसि
* आश्वायन
* पितामह
* बौद्धायन
* भारद्वाज
* छागलेय
* जाबालि
* च्यवन
* मरीचि
* कश्यप आदि

पुराण

18 पुराणों के नाम विष्णु पुराण में इस प्रकार है –

* ब्रह्म
* पद्म
* विष्णु
* शिव
* भागवत
* नारद
* मार्कण्डेय
* अग्नि
* भविष्य
* ब्रह्मवैवर्त्त
* लिंग
* वराह
* स्कन्द
* वामन
* कूर्म
* मत्स्य
* गरूड़ और
* ब्रह्माण्ड।

इनके अलावा देवी भागवत में 18 उप-पुराणों का उल्लेख भी है –

* सनत्कुमार
* नरसिंह
* बृहन्नारदीय
* शिव अथवा शिवधर्म
* दुर्वासा
* कपिल
* मानव
* औशनस
* वरूण
* कालिका
* साम्ब
* नन्दिकेश्वर
* सौर
* पराशर
* आदित्य
* महेश्र
* भागवत तथा
* वशिष्ठ।

इनके अलावा

* ब्रह्माण्ड
* कौर्म
* भार्गव
* आदि
* मुद्गल
* कल्कि
* देवीपुराण
* महाभागवत
* बृहद्धर्म
* परानन्द
* पशुपति पुराण नाम के 11 उपपुराण या `अतिपुराण´ और भी मिलते हैं।

पुराणों में सृष्टिक्रम, राजवंशावली, मन्वन्तर-क्रम, ऋषिवंशावली, पंच-देवताओं की उपासना, तीर्थों, व्रतों, दानों का माहात्म्य विस्तार से वर्णन है। इस प्रकार पुराणों में हिन्दु धर्म का विस्तार से ललित रूप में वर्णन किया गया है।

आगम या तन्त्रशास्त्र——

इन शास्त्रों में मुख्यतया हिन्दू धर्म के देवताओं की साधना की विधियाँ बतलाई गई है। किन्तु इनके अलावा इनमें अन्य विषयों का भी समावेश है। ये शास्त्र तीन भागों में विभक्त है –

* आगम,
* तन्त्र व
* यामल

आगम ग्रन्थ—-

सृष्टि, प्रलय, देवताओं की पूजा तथा साधन विधि, पुरश्चरण, षट्कर्म-साधन, चतुर्विध ध्यान योग आदि विषयों का वर्णन है।

तंत्र ग्रन्थ—–

सृष्टि, प्रलय, मंत्र-निर्णय, देवताओं का संस्थान, तीर्थवर्णन, आश्रम धर्म, विप्र संस्थान, भूतादि का संस्थान, कल्प वर्णन, ज्योतिष संस्थान, पुराणाख्यान, कोष, व्रत, शौचाऽशौच, स्त्री-पुरूष लक्षण, राजधर्म, दानधर्म, युग धर्म व्यवहार, अध्यात्म आदि विषयों का वर्णन किया गया है। तन्त्र शास्त्र सम्प्रदायात्मक है। वैष्णवों, शैवों, शाक्तों आदि के अलग-अलग तंत्र ग्रन्थ हैं।

यामल ग्रन्थ—–

सृष्टि तत्त्व, ज्योतिष, नित्यकृत्य, कल्पसूत्र, वर्णभेद, जातिभेद और युगधर्म आदि विषयों का वर्णन किया गया है।

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