कल 6 नवंबर ,…1 (देवप्रबोधिनी एकादशी) को नींद से जागेंगे भगवान विष्णु—-

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी को भगवान विष्णु नींद से जागते हैं, ऐसा धर्म ग्रंथों में लिखा है। 

इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। इस बार देवप्रबोधिनी एकादशी का पर्व 6 नवंबर को है। इसकी कथा इस प्रकार है-


धर्म ग्रंथों के अनुसार भाद्रपद मास(भादौ) की शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु ने दैत्य शंखासुर को मारा था। शंखासुर बहुत पराक्रमी दैत्य था। इस वजह से लंबे समय तक भगवान विष्णु का युद्ध उससे चलता रहा। अंतत: घमासन युद्ध के बाद शंखासुर मारा गया। इस युद्ध से भगवान विष्णु बहुत अधिक थक गए। तब वे थकावट दूर करने के लिए क्षीरसागर में आकर सो गए। वे वहां चार महिनों तक सोते रहे और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागे। तब सभी देवी-देवताओं द्वारा भगवान विष्णु का पूजन किया गया। इसी वजह से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन व्रत-उपवास करने का विधान है।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी कहते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु चार महिनों की गहरी नींद से जागते हैं। 

इसे देवोत्थापनी या देवउठनी एकादशी भी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। 
इस बार देवप्रबोधिनी एकादशी का पर्व 6 नवंबर ,2011 को है।

ऐसे करें भगवान विष्णु का पूजन—-

हिंदू शास्त्रों के अनुसार कार्तिक शुक्ल एकादशी को पूजा-पाठ, व्रत-उपवास किया जाता है। इस तिथि को रात्रि जागरण भी किया जाता है।

देवप्रबोधिनी एकादशी पर भगवान विष्णु को धूप, दीप, नैवद्य, पुष्प, गंध, चंदन, फल और अध्र्य आदि अर्पित करें।

भगवान की पूजा करके घंटा, शंख, मृदंग आदि वाद्य यंत्रों के साथ निम्न मंत्रों का जप करें-



उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद त्यज निद्रां जगत्पते।

त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्।।

उत्तिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुंधरे।


हिरण्याक्षप्राणघातिन् त्रैलोक्ये मंगलं कुरु।।

इसके बाद भगवान की आरती करें और पुष्पांजलि अर्पण करके निम्न मंत्रों से प्रार्थना करें-

इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।


त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थं शेषशायिना।।

इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो।


न्यूनं संपूर्णतां यातु त्वत्वप्रसादाज्जनार्दन।।

इसके बाद प्रहलाद, नारदजी, परशुराम, पुण्डरीक, व्यास, अंबरीष, शुक, शौनक और भीष्मादि भक्तों का स्मरण करके चरणामृत और प्रसाद का वितरण करना चाहिए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here