ध्यान दीजिये—-उत्तरमुखी प्लॉट देगा लाभ सरकारी कर्मचारी को—-

आप सभी जानते हें की वास्तु की सबसे सरल परिभाषा यह है कि यह हमारे आसपास मौजूद भौतिक वातावरण है। इसलिए अगर वास्तु सम्मत कुछ उपायों को अपनी लाइफ स्टाइल में शामिल किया जाए, तो इससे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आता है। इसलिए कुछ खास पड़ाव पर वास्तु शास्त्र के नियमों का पालन जरूर करना चाहिए। 

आइए जानते हैं, प्लॉट खरीदने संबंधी कुछ  वास्तु सम्मत बातें—
– अगर आप फ्लैट या प्लॉट खरीदने की सोच रहे हैं, तो कभी भी उत्तर या पूर्व की ओर ढलान वाले प्लॉट या फ्लैट न खरीदें। 
– अगर दो बड़े प्लॉट के बीच में कोई प्लॉट हो, तो इसे खरीदने से बचें। ऐसे प्लॉट या जमीन अशुभ एवं दुर्भाग्यशाली माने जाते हैं।
– अगर किसी प्लॉट के नजदीक या सामने कोई मंदिर या धार्मिक स्थल हो, तो इसे खरीदने से बचें। साथ ही यह बात भी ध्यान दें कि घर का मुख्य दरवाजा कभी भी मंदिर के मुख्य दरवाजे के सामने न पड़े।
– स्कॉलर, पुजारी या शिक्षकों के लिए पूर्व की ओर का प्लॉट, सरकारी कर्मचारी या प्रबंधन के क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों के लिए उत्तर की ओर का प्लॉट सही माना जाता है। 
– आयताकार, वृत्ताकार और गोमुखी प्लॉट को वास्तु शास्त्र में खरीदने योग्य बताया गया है और विशेषकर वैसे प्लॉट जो पूर्व दिशा में ज्यादा लंबे हों।

– प्लाट जहाँ तक संभव हो उत्तरमुखी या पूर्वमुखी ही लें। ये दिशाएँ शुभ होती हैं और यदि किसी प्लॉट पर ये दोनों दिशा (उत्तर और पूर्व) खुली हुई हों तो वह प्लॉट दिशा के हिसाब से सर्वोत्तम होता है। 
– प्लॉट के पूर्व व उत्तर की ओर नीचा और पश्चिम तथा दक्षिण की ओर ऊँचा होना शुभ होता है। 
– प्लाट के एकदम लगे हुए, नजदीक मंदिर, मस्जिद, चौराह, पीपल, वटवृक्ष, सचिव और धूर्त का निवास कष्टप्रद होता है।
– पूर्व से पश्चिम की ओर लंबा प्लॉट सूर्यवेधी होता है जो कि शुभ होता है। उत्तर से दक्षिण की ओर लंबा प्लॉट चंद्र भेदी होता है जो ज्यादा शुभ होता है ओर धन वृद्धि करने वाला होता है। 
– प्लॉट के दक्षिण दिशा की ओर जल स्रोत हो तो अशुभ माना गया है। इसी के विपरीत जिस प्लॉट के उत्तर दिशा की ओर जल स्रोत (नदी, तालाब, कुआँ, जलकुंड) हो तो शुभ होता है।
– जो प्लॉट त्रिकोण आकार का हो, उस पर निर्माण कराना हानिकारक होता है।
– भवन निर्माण कार्य शुरू करने के पहले अपने आदरणीय विद्वान पंडित से शुभ मुहूर्त निकलवा लेना चाहिए। 
– भवन निर्माण में शिलान्यास के समय ध्रुव तारे का स्मरण करके नींव रखें। संध्या काल और मध्य रात्रि में नींव न रखें।
– नए भवन निर्माण में ईंट, पत्थर, मिट्टी ओर लकड़ी नई ही उपयोग करना। एक मकान की निकली सामग्री नए मकान में लगाना हानिकारक होता है। 
– भवन का मुख्य द्वार सिर्फ एक होना चाहिए तो उत्तर मुखी सर्वश्रेष्ठ एवं पूर्व मुखी भी अच्छा होता है। मुख्य द्वार की चौखट चार लकड़ी की एवं दरवाजा दो पल्लों का होना चाहिए।
– भवन के दरवाजे अपने आप खुलने या अपने आप बंद न होते हों यह भी ध्यान रखना चाहिए। दरवाजों को खोलने या बंद करते समय आवाज होना अशुभ माना गया है। 
– भवन में सीढ़ियाँ वास्तु नियम के अनुरूप बनानी चाहिए, सीढ़ियाँ विषम संख्या (5,7, 9) में होनी चाहिए।
– भवन के लिए चयन किए जाने वाले प्लॉट की चारों भुजा राइट एगिंल (9. डिग्री अंश कोण) में हों। कम ज्यादा भुजा वाले प्लॉट अच्छे नहीं होते। 
– प्‍लॉट की लंबाई उत्तर- दक्षिण दिशा की बजाय पूर्व-पश्चिम दिशा में अधिक होना शुभ माना जाता है। 
– प्‍लॉट या बिल्डिंग में भारी सामान दक्षिण-पश्चिम दिशा के कोने में रखा जाना चाहिए। 
– बड़ा प्‍लॉट समद्धि का सूचक होता है बशर्ते उसमें सीवरेज या क्रेक नहीं होना चाहिए। 
– बिल्डिंग या फैक्ट्री का निर्माण करते समय दक्षिण या उत्तर दिशा की ओर अधिक खाली स्थान छोड़ना अच्छा नहीं माना जाता है। 
प्‍लॉट का आकार आयताकार या चौकोर होना वास्तु में अच्छा माना जाता है।
–  प्लॉट के दक्षिण दिशा की ओर जल स्रोत हो तो अशुभ माना गया है। इसी के विपरीत जिस प्लॉट के उत्तर दिशा की ओर जल स्रोत (नदी, तालाब, कुआँ, जलकुंड) हो तो शुभ होता है।
प्लॉट के पूर्व व उत्तर की ओर नीचा और पश्चिम तथा दक्षिण की ओर ऊँचा होना शुभ होता है। 

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