केसे करें वास्तु सम्मत  गृह निर्माण..???—-
वास्तु शास्त्र  की रचना मूलरूप से सूर्य मंडल पर यह एक वैज्ञानिक सत्य है कि एक भवन की वास्तु का प्रभाव उस भवन में रहने वाले सभी प्राणियों पर कुछ न कुछ तो पड़ता ही है। उस मकान के मालिक किरायेदार, भवन बनाने वाले ठेकेदार तथा मजदूरों पर इसका प्रभाव देखा गया है। 
वास्तु में सबसे ज्यादा मतांतर मुख्य द्वार को लेकर है। अक्सर लोग अपने घर का द्वार उत्तर या पूर्व दिशा में रखना चाहते  हैं  लेकिन समस्या तब आती है जब भूखंड के केवल एक ही ओर दक्षिण दिशा में रास्ता हो। वास्तु में दक्षिण दिशा में मुख्य द्वार रखने को प्रशस्त बताया गया है। आप भूखंड के 8. विन्यास करके आग्नेय से तीसरे स्थान पर जहां गृहस्थ देवता का वास है द्वार रख सकते हैं। द्वार रखने के कई सिद्धांत प्रचलित हैं जो एक दूसरे को काटते भी हैं ।
ऎसे में असमंजस पैदा हो जाता है। ऎसी स्थिति में सभी विद्वान मुख्य द्वार को कोने में रखने से मना करते हैं। ईशान कोण को पवित्र मानकर और खाली जगह रखने के उद्देश्य से कई लोग यहां द्वार रखते है लेकिन किसी भी वास्तु पुस्तक में इसका उल्लेख नहीं मिलता है।

दूसरी समस्या लेट-बाथ की आती है। क्योंकि जहां लैट्रिन बनाना प्रशस्त है वहां बाथरूम बनाया जाना वर्जित है। यहां ध्यान रखना चाहिए कि जहां वास्तु सम्मत लैट्रिन बने वहीं बाथरूम का निर्माण करे। यानी लैट्रिन को मुख्य मानकर उसके स्थान के साथ बाथरूम को जोड़े। यहां तकनीकी समस्या पैदा होती है कि लैट्रिन के लिए सेप्टिक टैंक कहां खोदे क्योंकि जो स्थान लैट्रिन के लिए प्रशस्त है वहां गड्डा वर्जित है। ऎसे में आप दक्षिण मध्य से लेकर नैऋत्य कोण तक का जो स्थान है उसके बीच में अटैच लेटबाथ बनाएं और उत्तर मध्य से लेकर वायव्य कोण तक का जो स्थान है उसके बीच सेप्टिक टैंक का निर्माण कराएं।
अक्सर लोग वास्तुपूजन को कर्म कांड कहकर उसकी उपेक्षा करते हैं। यह ठीक है कि वास्तुपूजन से घर के वास्तुदोष नहीं मिटते लेकिन बिना वास्तुपूजन किए घर में रहने से वास्तु दोष लगता है। इसलिए जब हम वास्तु शांति, वास्तुपूजन करते हैं तो इस अपवित्र भूमि कोे पवित्र करते हैं। इसलिए प्रत्येक मकान, भवन आदि में वास्तु पूजन अनिवार्य है। 

कुछ व्यक्ति गृह प्रवेश से पूर्व सुंदरकांड का पाठ रखते हैं। वास्तुशांति के बाद ही सुंदरकांड या अपने ईष्ट की पूजा-पाठ करवाई जानी शास्त्र सम्मत है।

फेंगशुई के सिद्धांत भारतीय वास्तु शास्त्र से समानता रखते हैं वहीं कई मामलों में बिल्कुल विपरीत देखे गए हैं। भारतीय वास्तु शास्त्र को आधार मानकर घर का निर्माण या जांच की जानी चाहिए और जहां निदान की आवश्यकता हों वहां फेंगशुई के उपकरणों को काम में लेने से फायदा देखा गया है।
वास्तु का प्रभाव हम पर क्यों होगा, हम तो मात्र किराएदार हैं। ऎसे उत्तर अक्सर सुनने को मिलते हैं। यहां स्पष्ट कर दें वास्तु मकान मालिक या किराएदार में भेद नहीं करता है। जो भी वास्तु का उपयोग करेगा वह उसका सकारात्मक अथवा नकारात्मक फल भोगेगा। व्यक्ति पर घर के वास्तु का ही नहीं बल्कि दुकान कार्यालय, फैक्ट्री या जहां भी वह उपस्थित है उसका वास्तु प्रभाव उस पर पड़ेगा। घर में व्यक्ति ज्यादा समय गुजारता है। इसलिए घर के वास्तु का महत्व सर्वाधिक होता है। पड़ोसियों का घर भी अपना वास्तु प्रभाव हम पर डालता है।
क्या मेरे लिए पैतृक मकान अशुभ हो सकता है? 

          
                
इस संबंध में राय यह बनती है कि मात्र मकान के पैतृक होने से वह शुभदायक हो, यह कतई आवश्यक नहीं है। अधिकांशत: व्यक्ति पुरखों की सम्पत्ति पर श्रद्धा भाव रखते हैं और इसी श्रद्धा वश इसे शुभ मान बैठते हैं। वास्तु का प्रभाव व्यक्तिगत होता है। घर के प्रत्येक सदस्य पर इसका प्रभाव अलग-अलग पड़ता है। पुत्र उसी मकान में रहते हुए पिता का कर्ज उतार सकता है तो दूसरी ओर धनाढ़य पिता का पुत्र उसी में पाई-पाई का कर्जदार हो सकता है। प्राय: जब पैतृक सम्पत्ति का बंटवारा होता है तब पैतृक मकान जिस के हिस्से में आए उस पर प्रत्यक्ष प्रभाव देखा जा सकता है।

कई लोग घर के चारों ओर परिक्रमा को अशुभ मानते हैं। ऎसे में जब उन्हें कोई समस्या घेर लेती है तो सबसे पहले वे घर की परिक्रमा को रोकते है जो वास्तु नियमों के विरूद्ध है। घर में हम मंदिर रखते हैं और घर को मंदिर की उपमा भी देते है। वास्तुशास्त्र के अनुसार घर के चारों ओर परिक्रमा लगे तो यह अत्यंत शुभदायक है।

जीवन में सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है अपना मकान/कोठी/बंगला बनाना, क्योंकि इसमें हमारी सम्पूर्ण कमाई व्यय होती है. किसी महापुरुष ने ठीक ही कहा है कि घर और वर के बारें में जीवन में बहुत सोच समझ कर ही निर्णय करना चाहिए. घर का तात्पर्य अपने आशियाने से है और वर का तात्पर्य अपनी बेटी के सुहाग से कहा गया है. उसी सन्दर्भ में इस लेख में चर्चा कर रहा हूं, कि मकान के अंदर किस किस प्रयोजन के लिए किस किस स्थान का उपयोग करना चाहिए.
प्रत्येक व्यक्ति अपना जीवन आनन्दमय सुखी व समृद्ध बनाने में सदा ही लगा रहता है। 
परन्तु कभी-कभी बहुत अधिक प्रयास करने पर भी वह सफल नही हो पाता। ऐसे में वह ग्रहषांति, अपने इष्ट देवी देवताओं की पूजा अर्चना करता है। परन्तु  उससे भी उपयुक्त फल प्राप्त न होने के कारण वह अपने भाग्य को कोसता है। और कहता है कि मेरे भाग्य में ऐसा ही कुछ लिखा हुआ है, मैं 

इसे नहीं बदल सकता। परन्तु ग्रहषांति, देवी देवताओं की पूजा अर्चना और प्रयत्न के अलावा मनुष्य को एक विषय पर और ध्यान देना  चाहिए और वह है उसके घर एंव दुकान की ‘‘वास्तु’’ वास्तुषास्त्र का पालन करने से व विभिन्न तकनीकों द्वारा वास्तुदोष निवारण करने से एक व्यक्ति के जीवन की पूर्ण कायापलट हो सकती है। वह सभी सुख साधनों को प्राप्त कर सकता है। 

वास्तु शास्त्र 

की रचना मूलरूप से सूर्य मंडल पर आधारित है। भवन निर्माण करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पूर्व से उदित होने वाले सूर्य 

की अधिक से अधिक किरणें हमारे घर में प्रवेष कर सकें। सूर्योदय की किरणों से हमारे शरीर को विटामिन डी की प्राप्ति होती है, जिसका सीधा असर हमारे शरीर पर पड़ता है। साथ ही साथ सूर्य की इन किरणों में प्रचूर मात्रा में अल्ट्रा किरणें पाई जाती हैं जो कि ऊर्जा का बहुत बडा स्त्रोत है। इसी प्रकार मध्याह्न के पष्चात् सूर्य से इन्फ्रा किरणें मिलती है जो हमारे शरीर पर विपरीत असर डालती है। इसलिए भवन का निर्माण करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सूर्य की ब्रह्मबेला की किरणें हमारे घर में अधिक से अधिक प्रवेष करें और मध्याह्न की किरणों का असर हमारे घर पर कम से कम पड़े पूर्व क्षेत्र को पष्चिम क्षेत्र की तुलना में नीचा रखने से एंव अधिक दरवाजे खिड़कियाँ बनाने से प्रातः कालीन सूर्य की किरणों का लाभ पूरे भवन को प्राप्त होता 

है। पूर्व एंव उत्तर क्षेत्र अधिक खुला होने से वायु तथा चुम्बकिय किरणें जो उत्तर से दक्षिण की और बहती है, भवन में बिना रूकावट के प्रवेष करती है। 

दक्षिण पष्चिम में छोटी-छोटी खिड़कियां होने से धीरे धीरे वायु निकलती रहती है, जिससे घर का वायु मंडल स्वच्छ रहता है, घर में रहने वाले सभी प्रणियों को निरोगी काया प्राप्त होती है, तथा सुख समृद्धि बढती है। यदि मनुष्य मकान का निर्माण इस प्रकार से करें जो प्राकृतिक व्यवस्था के अनुरूप 

हो तो वह मनुष्य प्राकृतिक ऊर्जा स्त्रोतों को भवन के माध्यम से अपने कल्याण के लिए उपयोग कर सकता है। अब पूर्व मुखी गृह का वास्तु विष्लेषण करते हैं। जिस गृह का मुख्य द्वार पूर्व दिषा की ओर हो उसे पूर्वमुखी घर कहते हैं। इस गृह का मुख्य द्वार यदि बड़ा हो और पूर्व की ओर बहुत से खिड़की दरवाजे खुलते हों जिससे पर्याप्त मात्रा में सौर ऊर्जा घर में प्रवेष करती हो तो उस घर में रहने वाले मनुष्य सिंह के समान पराक्रमी एंव यषस्वी होते

हैं। पूर्व मुखी गृह का निर्माण करते समय निम्न बातों का विषेष ध्यान रखना चाहिए।
1:- पूर्व दिषा में खिडकी दरवाजे जरूर बनवाऐं, जिससे सूर्य का प्रकाष घर में प्रवेष कर सके।
.:- पूर्व दिषा का स्थल पष्चिम दिषा की तुलना में हमेषा नीचा रखना चाहिए।
.:- घर के आगे खाली स्थान छोड़ने से घर में संतान की वृद्धि होती है।
4:- पूर्व दिषा में मुख्याद्वार कभी भी अग्नेय दिषा द्ध में न बनाएं। यह द्वार या तो बिल्कुल बीच में ( पूर्ण ) में हो या फिर
ईषान ;छवतजी म्ंेजद्ध दिषा में ही बनाना लाभकारी है। अग्नेय दिषा में मुख्यद्वार बनाने से घर में दरिद्रता, चोर व अग्नि भय बना रहता है।
5:- पूर्वी भाग को सदा साफ स्वच्छ रखने से घर में धन व संतान लाभ होता है।
6:- पूर्वमुखी घरों की चारदिवारी ऊँची नही होनी चाहिए पूर्व दिषा की चारदिवारी पष्चिम दिषा से हमेषा नीची होनी चाहिए।
7:- रसोईघर हमेषा आग्नेय दिषा में ही बनाना चाहिए। इससे घर में सुख शंाति व बरकत आती है एंव सभी परिवारजन निरोगी रहते हैं।
8:- पूजन गृह ईषान दिषा में बनाना चाहिए।
9:- गृहस्वामी अपना शयनकक्ष सदा त्रैऋत्य दिषा में बनाएं । ऐसा करने से उसका परिवारजनों में सम्मान बढता है एंव सभी उसकी आज्ञा का पालन करते हैं।
1.:- यदि सम्भव हो तो घर के बीच में चोक (बरामदा) अवष्य छोड़ें एंव उसे बिल्कुल साफ स्वच्छ रखें। इससे घर में धन धान्य की वृद्धि होती है।
11:- ईषान दिषा में पानी का स्त्रोत ( बोरिंग, कुआँ आदि ) शुभ फल देने वाले माने जाते हैं।
12:- घर के पूर्व एंव उत्तरी भाग में भारी सामान नही रखना चाहिए।
उपरोक्त वास्तुनियमों का पालन करते हुए पूर्वमुखी गृहों का निमार्ण करना चाहिए जिससे हमारा जीवन आनन्दमय व सुख समृद्धि से व्यतीत हो। क्योंकि गृह में वास्तुविकृति होने से उसका फल गृहनिवासियों को भोगना पड़ता है।

सपनों का घर, अपनाएं ये टिप्स—

दिनोंदिन बढ़ती मंहगाई का असर सीधे-सीधे मकान की लागत पर हो रहा है। इससे नया मकान बनवाने वालों को अपनी जेबें कुछ ज्यादा ही ढीली करनी पड़ रही है। 
आइये जाने की इसका निर्देश वास्तु शास्त्र के द्वारा क्या है..??? 
अगर नीचे लिखे बातों पर ध्यान दें तो कम लागत में भी मजबूत व सुंदर घर बन सकता है-


शयनकक्ष

गृहस्वामी का शयनकक्ष घर के दक्षिण-पश्चिम में होना चाहिए. पलंग को दक्षिणी दीवार से इस प्रकार लगा हुआ होना चाहिए कि शयन के समय सिरहाना दक्षिण दिशा की ओर व पैर उत्तर दिशा की ओर हों. यह स्थिति श्रेष्ठ मानी जाती है. ऐसा यदि किसी कारण वश न हो सके तो, इसका विकल्प यह है कि सिरहाना पश्चिम की ओर करना चाहिए. इसके विपरीत यदि हम करते है तो वास्तु के अनुरूप नहीं माना जाता है. और इसके कारण हमे हानि का सामना करना पड़ सकता है.

स्नान घर

स्नानघर को पूर्व दिशा में बनाना चाहिए तथा शौचालय को दक्षिण-पश्चिम में बनाना चाहिए. यह श्रेष्ठ समाधान है. लेकिन आजकल व्यवहार में देखने को आता है कि स्थान की कमी आदि के कारण इन दोनों को एक ही स्थान पर बनाया जाता है. यदि किसी भी कारण इन्हें एक ही स्थान पर बनाना पड़े तो वहां इन्हें कमरों के बीच में दक्षिण-पश्चिम दिशा में बनाना चाहिए. पूर्व दिशा में स्नानघर के साथ शौचालय कभी भी नहीं बनाना चाहिए.
स्नानघर के जल का बहाव उत्तर-पूर्व दिशा की ओर रखना चाहिए. उत्तर-पूर्व दीवार पर एक्जोस्ट फैनExhaust Fan लगाया जा सकता है.गीजर लगाना हो तो दक्षिण-पूर्व के कोण में लगाया जा सकता है.क्योंकि यह आग्नेय कोण है, गीजर का सम्बन्ध अग्नि से होता है.

रसोईघर—-
रसोई के लिए आग्नेय (दक्षिण-पूर्व) सबसे अच्छी स्थिति मानी जाती है. अतः रसोई मकान के दक्षिण-पूर्व कोण में ही होनी चाहिए. रसोई में भी जो दक्षिण-पूर्व का कोना है, वहां गैस सिलिंडर या चूल्हा या स्टोव रखा जाना चाहिए.
भोजन कक्ष—
भोजन यदि रसोई घर में न किया जाए तो इसकी व्यवस्था ड्राइंगरूम में की जा सकती है. अतः डायनिंग टेबल ड्राइंगरूम के दक्षिण-पूर्व में रखनी चाहिए.
बैठक—
वर्तमान समय में ड्राइंगरूम का विशेष महत्व है. इसमें फर्नीचर दक्षिण और पश्चिम दिशाओं में ही रखना चाहिए. ड्राइंगरूम में हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि उत्तर-पूर्व अर्थात ईशान कोण को हमेशा खाली रखना चाहिए.
अतिथि कक्ष—
घर/ भवन में अतिथि कक्ष की सर्व श्रेष्ठ स्थिति उत्तर-पश्चिम का कोना है. इस जगह पर यदि अतिथि निवास करता है तो, वह आपके पक्ष में ही हमेशा रहेगा.
अन्न भण्डार गृह—
पहले समय में लोग अपने घर में पूरे वर्ष भर का अनाज भंडारण किया करते थे. अतः अन्न भण्डार के लिए अलग से एक कमरा हुआ करता था. लेकिन वर्तमान समय में एक मास या इससे भी कम अवधि के लिए अन्न रखा जाता है इसे रसोईघर में ही रख लेना वास्तु शास्त्र द्वारा सम्मत है.
गैराज—-
गैराज का निर्माण दक्षिण-पूर्व या उत्तर-पश्चिम दिशा में अनुकूल होता है.
नगदी व भण्डार—
रोकड़ एवं घरेलू सामान उत्तर में रखना चाहिए एवं कीमती सामान आभूषण आदि दक्षिण की सेफ में रखना चाहिए. इससे सम्पन्नता में वृद्धि होने लगती है.
पोर्टिको—
इसे उत्तर पूर्व में बनवाना चाहिए एवं इसकी छत मुख्य छत से नीची होनी चाहिए.
नौकरों के घर—
नौकरों के घरों का रुख हमेशा उत्तर में या उत्तर-पूर्व में करना चाहिए.
तहखाना—
यदि तहखाने का निर्माण कराना हो तो, उत्तर में या उत्तर-पूर्व में करना चाहिए. तहखाने में प्रवेश द्वार भी उत्तर या पूर्व दिशा की ओर से करना चाहिए.
बालकनी—–
सवा और भवन की सुंदरता के लिए बालकनी का निर्माण किया जाता है. इसे उत्तर-पूर्व में बनाना चाहिए यदि पूर्व निर्मित मकानों में दक्षिण-पश्चिम दिशा में बालकनी बनी हो तो, इन्हें फिर उत्तर-पूर्व में बनाना श्रेष्ठ रहता है.
योग एवं ध्यान—
अपने जीवन में शारीर और मन को स्वस्थ रखने के लिए योग और ध्यान की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है. अतः इसके लिए घर में उत्तर-पूर्व का कोना जिसे ईशान कोण भी कहते है वहा पर योग और ध्यान करने से एकाग्रता में वृद्धि होती है.
सीढ़ी —
सीढियाँ उत्तर-पूर्व को छोड़ कर अन्य दिशाओं में सुविधानुसार बनाई जा सकती है. लेकिन पश्चिम या उत्तर दिशा इसके लिए अभीष्ट है. सीडियों का निर्माण विषम संख्या में होना चाहिए एवं चढ़ते समय दांयी ओर मुड़नी चाहिए.

  • शौचालय  —  नैर्ऋत्य कोण में
  • भण्डार घर—-   उत्तर दिशा में
  • पशुघर    —वायव्य कोण में
  •  चौक  —  भवन के बीच में

  •   कुआं —   पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं ईशान कोण में

  •   घृत-तेल भण्डार  —  दक्षिणी आग्नेय कोण में

  •   अन्य वस्तु भण्डार    —-दक्षिण दिशा में

  •   अन्न भण्डार  —  पश्चिमी वायव्य कोण में

  •   एकांतवास कक्ष  —  पश्चिमी वायव्य कोण में

  •   चिकित्सा कक्ष  —  पूर्वी ईशान कोण में

  •  कोषागार   —– उत्तर दिशा

निर्माण पूर्व की तय्यारी—
1- गृह निर्माण करवाने से पहले घर का एक वास्तु सम्मत नक्शा बनवा लें और उसके अनुसार निर्माण करवाएं ताकि अनावश्यक तोड़-फोड़ न करनी पड़े।

2- विवाद ग्रस्त अथवा उबड़-खाबड़ भूखण्ड नहीं खरीदना चाहिए नहीं तो इसे व्यवस्थित करवाने में ही काफी पैसा खर्च हो जाएगा।

3- भूखण्ड के आस-पास यदि कोई  कोई खाली कमरा हो तो उसे किराए पर लेकर उसमें निर्माण सामग्री रखवा सकते हैं। इससे चौकीदार का खर्चा बचेगा।

4- निर्माण आरंभ करने से पूर्व भूखण्ड पर निर्माण सामग्री पर्याप्त मात्रा में खरीद लें ताकि निर्माण कार्य में व्यवधान न हो। एक साथ खरीदने पर सामान सस्ता भी पड़ेगा।

5- नींव आवश्यकतानुसार ही खुदवाएं। अधिक गहरी नींव खुदवाने से भरने में खर्चा ही बढ़ेगा। सामान्यत: चार-पांच फुट गहरी नींव पर्याप्त होती है।

6- बाउंड्री वॉल पर अधिक मंहगी रैलिंग न लगाएं। पत्थर, मार्बल व लोहे की जाली मंहगी होती है। सीमेंट की जाली अपेक्षाकृत सस्ती होती है।

7- यदि कारीगर अधिक लग रहे हों तो मसाला तैयार करने के लिए मिक्सर मशीन का उपयोग करें। मशीन से मसाला जल्दी व संतुलित बनता है तथा श्रम, समय व पैसे की बचत भी होती है।

8- शेल्फ व खिड़कियों में नीचे-ऊपर सस्ते पत्थर लगवाना चाहिए। सैण्ड स्टोन अन्य पत्थरों से काफी सस्ता पड़ता है।

9- शीशम व सागवान की लकड़ी की जगह बबूल की लकड़ी का उपयोग किया जा सकता है। यह सस्ती होने के साथ मजबूत भी होती है।

10- बिजली फिटिंग अण्डर ग्राउण्ड ही करवाएं। यह अपेक्षाकृत सस्ती पड़ती है।

वास्तुदोष निवारक यन्त्र :- 

वास्तु दोषों के विभिन्न  दिशाओं में होने से उससे सम्बन्धित यन्त्र उपयोग में लाकर उन दोषों का निवारण किया जा सकता है। इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि यन्त्र जानकर व्यक्ति द्वारा विधि पूर्वक बनाये गये  हों व उनकी शुद्धि भी कर ली गई हो। यन्त्र का उपयोग किसी भी जानकर वास्तुशास्त्री से सलाह लेकर विधि पूर्वक करना चाहिए।
मुख्य यन्त्र :-
  पूर्व में दोष होने पर    –    सूर्य यन्त्र पूर्व की तरफ स्थापित करें।
  पश्चिम में दोष होने पर    –    वरूण यन्त्र या चन्द्र यन्त्र पूजा में रखें।
  दक्षिण में दोष होने पर    –    मंगल यन्त्र पूजा में रखें।
  उत्तर में दोष होने पर    –    बुध यन्त्र पूजा में रखें।
  ईशान में दोष होने पर    –    ईशान में प्रकाश डालें व तुलसी का पौधा रखें। पूजा में
                                      गुरू यन्त्र रखें।
  आग्नेय में दोष होने पर    –    प्रवेश द्वार पर सिद्ध गणपति की स्थापना एवं शुक्र यन्त्र
                                        पूजा में रखें।
  नैरूत में दोष होने पर    –    राहु यन्त्र पूजा में स्थापित करें।
  वायव्य में दोष होने पर    –    चन्द्र यन्त्र पूजा में रखें।
 उपरोक्त के अलावा अन्य भी कई यन्त्र हैं, जैसे व्यापार वृद्धि यन्त्र, वास्तुदोष नाशक यन्त्र, श्री यन्त्र इत्यादि। वास्तुदोष नाशक यन्त्र को द्वार पर लगाया जा सकता है। भूमि पूजन के समय भी चांदी के सर्प के साथ वास्तु यन्त्र गाड़ा जाना बहुत फलदायक होता है।

 पं0 दयानन्द शास्त्री 
विनायक वास्तु एस्ट्रो शोध संस्थान ,  
पुराने पावर हाऊस के पास, कसेरा बाजार, 
झालरापाटन सिटी (राजस्थान) 326023
मो0 नं0 —-.

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