आइये जाने तनाव/टेन्शन का कारण(वास्तु का योगदान)—-

तनाव! तनाव! तनाव……..आज लगभग समस्त संसार किसी न किसी प्रकार के तनाव की गिरफ्त में है। आज तनाव को मानसिक घबराहट के रूप में हर चेहरे पर पढ़ा जा सकता है, जो तीव्रता से प्रयत्क्ष भी हो रहा है। वास्तु शास्त्र प्राकृतिक तत्वों पर आधारित उच्चकोटि का विज्ञान हैं। वास्तुशास्त्र परोक्ष रूप से प्र्रकृति के नियमों का अनुसरण करता हैं जो मानव को पंच तत्वों में सन्तुलन बनाएँ रखने की प्रेरणा देता हैं। सृष्टि की रचना पंच तत्वों से हुई हैं जो कि वायु, अग्नि, जल, आकाश एवं पृथ्वी हैं। यह तत्व एक निश्चित रूप में पाये जाते हैं। यदि इन पंच तत्वों के गुणधर्म को समझकर निर्माण किया जाए तो वास्तु सम्बन्धी अनेक समस्याओं का सहज समाधान संभव हो जाएगा। संसार वास्तव में ईश्वर का आभास हैं और यह आभास इस कारण उत्पन्न होता हैं कि हमने अज्ञानता वश संसार को सत्य समझ लिया हैं जो क्षण भंगुर है और प्रत्येक क्षण परिवर्तनीय हैं। यह कदापि सत्य नहीं हो सकता। सत्य होने की एक मात्र शर्त यह हैं कि मनुष्य माया में लिप्त न हो। यह चराचर जगत रूपी नश्वर संसार ईश्वर का मायावी रूप हैं और तमाशा यह हैं कि ईश्वर उस माया से ढक नहीं पाता, वरन हमें ही अथवा हमारे विचारों को ही माया में लिप्त कर देता हैं। हम संसार में एश्वर्य प्राप्त करना चाहते हैं, जो केवल कल्पना हैं, वास्तविकता नहीं। यह हमारे अज्ञान का खेत हैं। हम आत्मा ही हैं अर्थात अमर और अजन्मा।

वास्तु का अर्थ है वास करने का स्थान। महाराज भोज देव द्वारा ग्यारहवीं शताब्दी में ‘समरांगण सूत्रधार’ नामक ग्रंथ लिखा गया था जो वस्तु शास्त्र का प्रमाणिक एवं अमूल्य ग्रथं है। वैसे वास्तु शास्त्र कोई नया विषय या ज्ञान नहीं है। बहुत पुराने समय से यह भारत में प्रचलित था। जीवनचर्या की तमाम क्रियाएं किस दिशा से संबंधित होकर करनी चाहिए इसी का ज्ञान इस शास्त्र में विशेष रूप से बताया गया है। भूमि, जल प्रकाष, वायु तथा आकांश नामक महापंच भूतों के समन्वय संबंधी नियमों का सूत्रीकरण किया, ऋशि मुनियों ने। वास्तु शास्त्र के अनुसार जागृत चेतना ही मानव पुरूषार्थों को कर्मयोग का बल प्रदान करती है, परंतु क्या आज के तनावपूर्ण वातावरण में मन की चेतना को स्वस्थ रखा जा सकता है? इसका उत्तर ‘हां’ है और इसके लिए आपको किसी आश्रम या पहाड़ों की वादियों में जाने की आवश्यकता भी नहीं है।वर्तमान में वास्तु का प्रभाव जिस प्रकार से बढ़ा हैं , उसने जीवन के प्रत्येक क्षैत्र को प्रभावित किया हैं। वास्तु की ऊर्जा जीवन के प्रत्येक क्षैत्र में आपकी सहायता कर सकती हैं। हमारी ऊर्जा दो प्रकार की होती हैं-शारीरिक ऊर्जा व मानसिक ऊर्जा। शारीरिक ऊर्जा की कमी से जीवन के सभी क्षेत्रों में शिथिल एवं सुस्त अनुभव करेंगे , ठीक उसी प्रकार मानसिक ऊर्जा की कमी हमें नकारात्मक सोच वाला बना सकती है फिर चाहे वह व्यवसाय का क्षेत्र हो या स्वास्थ्य अथवा प्रेम यह उर्जा प्रत्येक क्षेत्र को प्रभवित करती है।वास्तु ही वह विषय है जो हमारी शारीरिक मानसिक भावनात्मक आध्यात्मिक और भौतिक सामग्रियों तथा वातावरणीय समरसता जैसी सभी आवश्यकताओं से प्रत्यक्षत जुडा है यह विषय बहुत ही रूचिकर विस्तृत और हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव डालने वाला है। कहा गया है:-
स्त्री पुत्रादि भोग सौख्यं जननं धमार्थ कामप्रदम,।
जन्तु न मयनं सुखास्पद मिदं शीताम्बुधर्मापहम्।।
बापी देव गुहादि पुण्यमरिवलं मेहात्समुपद्यते।
गेहं पुर्वमुशातिन्त तेन विबुधाः श्री विश्रृकर्मादयः।।
अर्थात् स्त्री पुत्र आदि के भोग सुख अर्थ काम धर्म आदि देन वाला प्राणियों का सुख स्थल सर्दी गर्मी मे वायु से रक्षा करने वाला गृह ही है। नियमानुसार गृह निर्माणकर्ताओं को बावडी और देवस्थान निर्माण का आदेश दिया। 

आपका अपना घर ही आपके स्वास्थ्य का सबसे बड़ा केंद्र है। इसके इशान कोण (उत्तर-पूर्व) की वायु में अद्भुत आरोग्य तत्व छिपा हुआ है। आवश्यकता सिर्फ इस बात की है कि आप अपने घर को वास्तु शास्त्र के दिव्य नियमों की छाया में आध्यात्मिक बनाने की चेष्टा करें तथा घर के ब्रह्यस्थान से लेकर इशान तक के क्षेत्र को स्वच्छ, पवित्र व खुला रखकर उस शुभ ऊर्जा को आकर्षित करें, जो भोर की अमृत बेला में इशान कोण से निकलकर ब्रह्यस्थान में समा जाती है। इसके साथ ही जरूरत है सांस के उस क्रिया को करने की, जिससे इस दिव्य ऊर्जा को आप अपनी देह में समा सकते हैं। योग शास्त्र में इसे ‘प्राणायाम’ कहा गया है। आपके घर का इशान कोण गधांत है, पूर्व से प्राणिक व उत्तर जैविक ऊर्जा के अद्भुत संगम का, जो अमृत बेला (सूर्योदय के बाद का .4 मिनट तक का समय) की वायु में शुभ ऊर्जा का संचार करता है। 
प्राणायाम के माध्यम से ग्रहण की गई शुभ ऊर्जा आपकी चेतना को जागृत कर देह व मस्तिष्क को प्रकृति की लय में ले आती है और आपको आपकी असली क्षमता का बोध कराती है, परंतु इंद्रियों को  प्रकृति की लय में लाने के लिए मस्तिश्क से नकारात्मक इच्छाओं व धारणाओं को निकालना आवश्यक रहता है। अतः ध्यान लगाते वक्त षिवलिंग को ध्यान में रखकर ऊं शब्द का उच्चारण आपके मस्तिश्क को पवित्र कर, वायु में छिपी शुभ ऊर्जा के प्रति सचेत कर देता है। स्वच्छ व सषक्त प्राणायाम के लिए प्रातःकाल सूर्योदय के समय इशान कोण में बैठकर तीन गिलास शीतल जल पीएं तथा पूर्व की ओर मुख कर सुखासन में नेत्र मूंद कर नौ बार सरल सांसें लें। अब एक गहरी सांस लेकर इसे झटके से बाहर निकालें। इस क्रिया को 27 बार दोहराए। इसके बाद एक बार फिर षिवलिंग का ध्यान कर गहरी सांस लें तथा ऊं के उच्चारण के साथ धीरे-धीरे इसे बाहर निकालें। इस क्रिया को नौ बार दोहराएं। अब 27 गहरी सांसों की क्रिया के साथ प्राणायाम आरंभ करें। इसके बाद 54 मध्यम तथा ..8 लघु सांसे लें। 27 गहरी, 54 मध्यम तथा 108 लघु सांसों के इस क्रम को तीन बार दोहराएं। 
प्राणायाम की इस सरलतम क्रिया के अंत में आप खुद को उस शून्य में पाएंगे, जहां आपकी सच्ची चेतना लुप्त है और इसी अनुभव में सच्चे सुख का तत्व छिपा है। भोर की अमृत बेला में प्रतिदिन केवल 10 मिनट के सरल प्राणायाम से ही आपका यह अनुभव गहरा होता जाएगा और हर विपरीत परिस्थिति या भावना के उपद्रव में आपके चित्त को सरल, शांत व मधुर रहना सिखा देगा। इस क्रिया से प्राप्त हुई शुभ ऊर्जा आपके उन पुरूषार्थों को जगा देगी, जो आपको सफलता के मार्ग पर ले जाएंगे। 
घर में सुख और समृद्धि रहे इस हेतु सुबह-शाम घर में गायत्री मंत्र, णमोकार मंत्र या जो भी मंत्र व आरती आप सुनना पसंद करते हैं उसे सुनिये या उसका जाप कीजिए । प्रत्येक धर्म के लोग पूजा-पाठ करते समय धूप व अगरबत्ती का प्रयोग अवश्य करते हैं इनकी सुगन्ध से सारा वातावरण सुगंधित एवं स्वच्छ हो जाता हैं । धूप जलाने से ऊर्जा का सृजन होता हैं जिससे नकारात्मक ऊर्जा वाली वायु शुद्ध और पवित्र हो जाती हैं जिससे वह स्थान पवित्र हो जाता हैं और मन को शंाति मिलती हैं। पूजा स्थल का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान हैं। यदि यह शुभ स्थान में स्थापित होता हैं तो जातक व राष्ट्र के लिए शुभ होता हैं। उनके लिए विभिन्न प्रकार के सौभाग्य जैसे स्वास्थ्य , धन , कीर्ति , यश , मान , दीर्घायु आदि प्रदान करता हैं ।आदमी का जीवन कैसे बदले ? मनुष्य को परमानन्द एवं परम शान्ति कैसे प्राप्त हो ? अध्यात्म और विज्ञान की सहायता से यह संभव किया जा सकता हैं। विज्ञान (ज्योतिष , वास्तु , हस्तरेखा व अंकशास्त्र) और आध्यात्म का समन्वय मनुष्य को चिन्ताओं , परेशानियों एंव व्याधियों से मुक्ति दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता हैं। 
कुछ भी हो मनुष्य जब तक मनुष्य अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हैं , पर्यावरण के प्रति प्र्रतिबद्ध हैं और अपने घर में तनाव रहित जीवन बिताते हुए सुख-शान्ति व समृद्धि की लालसा रखता हैं, तब तक वास्तु शास्त्र का महत्व बढ़ता रहेगा अर्थात इक्कीसवी सदी में वास्तु की उपयोगिता सर्वाधिक रहेगी। 

 पं0 दयानन्द शास्त्री 
विनायक वास्तु एस्ट्रो शोध संस्थान ,  
पुराने पावर हाऊस के पास, कसेरा बाजार, 
झालरापाटन सिटी (राजस्थान) .26023
मो0 नं0— .

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