क्या पूजा स्थल ईशान कोण में होना जरूरी हैं,  उत्तम स्वास्थ्य के लिए ?????

पूजा स्थल का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान हैं। यदि यह शुभ स्थान में स्थापित होता हैं तो जातक व राष्ट्र के लिए शुभ होता हैं। उनके लिए विभिन्न प्रकार के सौभाग्य जैसे स्वास्थ्य , धन , कीर्ति , यश , मान , दीर्घायु आदि प्रदान करता हैं तथा उन पर ईश्वर की असीम कृपा रहती हैं। इसके विपरीत यदि पूजा स्थान नकारात्मक स्थान में हो तो यही पूजा स्थल वरदान की जगह अभिशाप बन जाता हैं व जातक विभिन्न प्रकार के रोगों , दुर्भाग्यों , कर्जो , विपत्तियों तथा समस्याओं से घिर जाता हैं। अग्निपुराण में भी कहा गया हैं कि भवन के सामने या आसपास भवन की ऊँचाई की सीमा के भीतर मन्दिर निषिद्ध माना गया हैं। 
पूजा स्थल कितना शुभ कितना अशुभ हैं।वास्तुशास्त्र अर्थात हवा, पानी, अग्नि, भूमि व आकाश के परस्पर सम्बन्ध का शास्त्र या विज्ञान होता हैं। पूजा स्थल अर्थात पूजा, भजन, प्रार्थना, अरदास, इबादत, नमाज, आदि का स्थान चाहे वह मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारा, चर्च देश की मान्यता वाले हो या सामाजिक सोसायटी द्वारा स्थापित हो या पास पड़ोस में हो स्थित हो भवन, आॅफिस, फैक्ट्री, कंपनी, गोदाम आदि में स्थापित हो वास्तुशास्त्र की दृष्टि से प्रत्येक वह स्थान जहाँ आत्म केन्द्रित होकर ईश्वर, अल्ला, वाहेगुरू से जुड़ने की कोशिश की जाती है।वश्व के लगभग प्रत्येक परिवार में पूजा करने का रिवाज है। हमारे देश में पूजा करने का स्थान या पूजाघर भवन के उत्तर पूर्व के मध्य ईशान कोण में बनाने की धार्मिक मान्यता है। यदि किसी घर में पूजाघर ईशान कोण में न हो और परिवार में रहने वालों को कोई परेशानी चल रही हो, तब वास्तु शास्त्री एक ही बात कहते हैं, कि इस परिवार की समस्या का कारण पूजा घर का गलत जगह पर होना है। इसको सही दिशा ईशान कोण में स्थानान्तरित करना पड़ेगा। पूजा घर को भवन के उत्तर व पूर्व दिशा के मध्य के भाग ईशान कोण में स्थानान्तरित करने के लिए जरुरत पड़ने पर बहुत तोड़-फोड़ भी कराते हैं। इसके साथ ही पूजा घर में विभिन्न देवी-देवताओं के मुंह किस दिशा में होंगे, इसकी जानकारी भी देते हैं। कोई कहता है कि, पूजा करते समय व्यक्ति का मुंह पूर्व की ओर होना चाहिए और कोई कहता है कि देवी-देवताओं की मूर्ति और फोटो का मुंह पूर्व दिशा की ओर हो अर्थात् पूजा कर रहा व्यक्ति पश्चिम की ओर मंुह करके पूजा करें वास्तुशास्त्र के सिद्धांतों की रचना भी सूर्य को आधार मानकर की गई है। वास्तुशास्त्र के सिद्धांत के अनुसार पूर्व व उत्तर की ओर भवन में खुला स्थान ज्यादा रखना चाहिए। भवन के उत्तर पूर्व की चहारदीवारी की ऊंचाई दक्षिण पश्चिम की तुलना में कम रखनी चाहिए, ताकि घर के आंगन में सुबह की सकारात्मक न्स्ज्त्। टव्प्स्म्ज् किरणें भरपूर मात्रा में पड़ सकें। जब व्यक्ति प्रातःकाल उठकर नहाने के बाद पूर्व दिशा में जाकर सूर्य को जल दें, उस समय जल पर पड़ने वाली सूर्य की जीवनदायी किरणें परावर्तित होकर उस व्यक्ति के शरीर पर पड़ें, जो स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद होती हैैं। इसी कारण घर में भूमिगत पानी की टंकी, कुंआ, ट्यूबवेल इत्यादि ईशान कोण में बनवाए जाते हैं, क्योंकि इन जल स्रोतों पर प्रातःकालीन सूर्य की जीवनदायी किरणें पड़ने से जल नहाने व पीने के लिए अधिक स्वास्थ्यप्रद हो जाता है। यदि किसी घर के ईशान कोण में पूजाघर होगा तो उस घर में रहने वाले को वहां आकर पूजा करना होगी। इस प्रकार उन्हें प्रातःकालीन सूर्य की किरणों का लाभ होगा। इससे उस घर में रहने वाले लोग स्वस्थ, सुखी एवं संपन्न रहेंगे।वास्थ्य की दृष्टि से पूजा घर का ईशान कोण में होना बहुत शुभ होता है उसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि, सृष्टि का आधार सूर्य है। सूर्य के बिना प्राण नहीं, जीवन भी संभव नहीं। इसी कारण हम सूर्य को भगवान मानकर प्रातःकाल होते ही नमस्कार करते हैं, और उसकी पूजा भी करते हैं।
घर की पूर्व दिशा में पड़ने वाली प्रातःकाल सूर्य की किरणें सभी प्राणियों के स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद होती हैं। सौभाग्य से हमारे देश में लगभग पूरे बारह माह सूर्य के दर्शन होते हैं। प्रकृति की इस कृपा का लाभ अधिक से अधिक लेने के लिए ही हिन्दू धर्म की धार्मिक परम्परा है कि प्रातःकाल उठ कर नहाना, सूर्य को जल देना और उसके बाद पूजा करना।ईशान कोण मे टाॅयलेट या सैप्टिक टैंक होना बहुत अशुभ होता है। ईशान कोण में टाॅयलेट या सैप्टिक टैंक होने से सूर्य से मिलने वाली प्रातःकालीन लाभदायक किरणें दूषित होकर हानिकारक हो जाती हैं। पूजाघर के नीचे व ऊपर शौचालय भी नहीं होना चाहिए। क्योंकि पूजा घर के नीचे से गैस व ऊपर से कभी भी गंदा पानी रिसना शुभ नहीं होता है। वास्तुशास्त्र का प्रभाव भारतीय जनमानस के मन मस्तिष्क पर बहुत गहराई तक बैठ गया है। आजकल लगभग सभी अखबारों व पत्रिकाओं में वास्तुशास्त्र पर लेख छपते रहते हैं। वास्तुशास्त्र पर कई किताबें भी बाजार में उपलब्ध हैं। जिनमें यह छपा कि पूजा घर भवन के ईशान कोण मंे होना चाहिए व ईशान कोण नीचा भी होना चाहिए।हमारे ऋषि, मुनियों व विद्वानों ने लोगों की भलाई के लिए जब भी यह महसूस किया कि कोई कार्य लाभदायक है, तो उसे धर्म का चोला पहनाकर जनता के सामने रखा। सामान्यतः देखा गया है कि किसी भी धर्म को मानने वाले हों, वह सामान्यतः अपनी धार्मिक परंपराओं को तोड़ने की हिम्मत नहीं करते। देशवासी प्रातःकाल सूर्य की जीवनदायक ऊर्जा का अधिक से अधिक लाभ लें इसी कारण वास्तुशास्त्र में यह प्रावधान रखा गया है कि मंदिर ईशान कोण में ही होना चाहिए। 
 वास्तुशास्त्र भी हमारे पुराने धार्मिक ग्रंथांे का ही एक हिस्सा है और केवल वास्तुशास्त्र के ग्रंथों में लिखा गया है कि पूजाघर ईशान कोण में होना चाहिए। जिसके पीछे वैज्ञानिक कारण हैं। वास्तुशास्त्र के अलावा हमारे सैकड़ों पुराने धार्मिक एवं अन्य ग्रंथों में यह लिखा है कि ईश्वर हर दिशा हर जगह कण-कण में विद्यमान है, जो कि इस धारणा के विपरीत है।
सभी दिशाएं प्रकृति की ही दिशाएं हैं और सभी दिशाएं शुभ हैं। वास्तुशास्त्र तो मात्र प्रकृति में व्याप्त सूर्य की जीवनदायी अच्छे स्वास्थ्य के लिए घर का ईशान कोण साफ सुथरा व नीचा रहना चाहिए, ताकि प्रातःकालीन सूर्य की लाभदायक किरणों से वहां का वातावरण स्वच्छ एवं जीवनदायी ऊर्जा से युक्त रहे, और वहां रहने वाले लोग स्वस्थ, सुखी एवं संपन्न रहें।सकारात्मक ऊर्जा केे श्रेष्ठ उपयोग का तरीका बताता है, ताकि पृथ्वी वासी स्वस्थ, सुखद एवं शांतिपूर्वक जीवन जी सकें। सभी दिशाएं प्रकृति की ही दिशाएं हैं और सभी दिशाएं शुभ हैं। वास्तुशास्त्र तो मात्र प्रकृति में व्याप्त सूर्य की जीवनदायी सकारात्मक ऊर्जा केे श्रेष्ठ उपयोग का तरीका बताता है, ताकि पृथ्वी वासी स्वस्थ, सुखद एवं शांतिपूर्वक जीवन जी सकें।

जानिए दिशा अनुसार पूजास्थल का फल—-

यदि पूर्व दिशा में पूजा स्थल हैं तो जातक के यश, मान और एश्वर्य में वृद्धि होती हैं। यदि पूजा स्थल पश्चिम दिशा में हो तो जातक को आर्थिक हानि उठानी पड़ सकती है। यदि पूजा स्थल उत्तर में स्थित हो तो जातक को धन लाभ होगा। यदि पूजा स्थल दक्षिण दिशा में स्थित हो तो जातक पर शत्रुदृष्टि रहती है। यदि यह ईशान दिशा में हो तो जातक के लिए यह सर्वश्रेष्ठ होता हैं। यदि यह नैर्ऋत्य दिशा में हो तो जातक को भय बना रहता हैं। यदि यह वायव्य दिशा में हो तो जातक अनेक प्रकार के रोगों से घिरा रहता हैं और यदि यह आग्नेय दिशा में हो तो जातक को किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं होती और उसे किसी प्रकार का फल नहीं मिलता। 

 पं. दयानन्द शास्त्री 
विनायक वास्तु एस्ट्रो शोध संस्थान ,  
पुराने पावर हाऊस के पास, कसेरा बाजार, 
झालरापाटन सिटी (राजस्थान) ..6023
मो0 नं0– .
E-Mail –    dayanandashastri@yahoo.com,      
                  -vastushastri08@rediffmail.com

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