वर्ष …2 में  शनि का प्रभाव —

विगत माह में मंगलवार 15 नवम्‍बर,2011 को सुबह 10:10 बजे शनि ग्रह ने तुला राशि में प्रवेशकिया था  इससे पृथ्‍वी पर कई बड़े प्रभाव दिखाई देने की संभावना है। साथ ही आपका जीवन भी प्रभावित हो सकता है।केसे..?? आइये जाने-
 “”ॐ शं शनिश्चराय नमः””
तुला राशि में शनि का प्रवेश-
विक्रम संवत् 2068 में मार्गशीर्ष मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी, दिन मंगलवार 15 नवम्बर 2011ई0 को प्रातः 10:10 बजे मिथुन राशिस्थ चन्द्र के समय शनि ग्रह अपनी उच्च राशि तुला में प्रविष्ट होकर, वर्षान्त तक वहीं संक्रमण करेगा।

शनि की साढ़ेसाती का विचार-
द्वादशे जन्मगे राशौ द्वितीये च शनैश्चरः।
सार्धानि सप्त वर्षाणि तथा दुःखैर्युतो भवेत।।

जन्म राशि यानि चन्द्र राशि से गोचर में जब शनि ग्रह द्वादश भाव, प्रथम भाव एंव द्वितीय भाव में भ्रमण करता है, तो साढ़े सात वर्ष के समय को शनि की साढ़ेसाती कहते है।
भारतीय वैदिक ज्योतिष के नियमानुसार सभी ग्रह गोचरवश एक राशि से दूसरी राशि में भ्रमण करते हैंशनि ग्रह भी इस नियम का पालन करता है। शनि जब आपके लग्न से बारहवीं राशिमें प्रवेश करता है तो उस विशेष राशि से अगली दो राशि में गुजरते हुए अपनासमय चक्र पूरा करता है। यह समय चक्र साढ़े सात वर्ष का होता हैंज्योतिषशास्त्र में इसे ही साढ़े साती के नाम से जाना जाता है।शनि कीगति चुंकि मंद होती है अत: एक राशि को पार करने में इसे ढ़ाई वर्ष का समयलगता है (। उदाहरण के तौरपर देखें तो माना लीजिए आपके लग्न से बारहवीं राशि है मेष है तो इस राशिमें जब शनि प्रवेश करेगा तब क्रमश: वृष और मिथुन तीन राशियों से गुजरेगाऔर अपना समय चक्र पूरा करेगा।साढ़े साती के शुरू होने को लेकरकई मान्यताएं हैं (। प्राचीन मान्यता के अनुसार जिस दिन शनि का गोचर किसी विशेष राशिमें होता है उस दिन से शनि की साढ़े साती शुरू हो जाती है। यह मान्यताहलांकि तर्क संगत नहीं है फिर भी प्राचीन होने के कारण व्यवहार में है।इसी संदर्भ में एक मान्यता यह भी है कि शनि गोचर में जन्म राशि से बारहवेंराशि में प्रवेश करता है तब साढ़े साती की दशा शुरू हो जाती है और जब शनिजन्म से दूसरे स्थान को पार कर जाता है तब इसकी दशा से मुक्ति मिल जातीहै।तर्क के आधार पर ज्योतिषशास्त्री शनि के आरम्भ और समाप्ति कोलेकर एक गणितीय विधि का हवाला देते हैं। इस विधि में साढ़े साती के शुरूहोने के समय और समाप्ति के वक्त का ज़ायज़ा लेने के लिए चन्द्रमा केस्पष्ट अंशों की आवश्यकता होती है। चन्द्रमा को इस विधि में केन्द्रबिन्दुमान लिया जाता है। चुंकि साढ़े साती के दौरान शनि तीन राशियों से गुजरताहै (अत: तीनों राशियों केअंशों को जोड़ कर दो भागों में विभाजित कर लिया जाता है। इस प्रक्रिया मेंचन्द्र से दोनों तरफ अंश अंश की दूरी बनती है। शनि जबइस अंश केआरम्भ बिन्दु पर पहुचता है तब साढ़े साती का आरम्भ माना जाता है और जबअंतिम सिरे को अर्थात अंश को पार कर जाता है तब इसका अंत माना जाता है।शनि की साढ़े साती की शुरूआत को लेकर जहां कई तरह की विचारधाराएंमिलती हैं वहीं इसके प्रभाव को लेकर भी हमारे मन में भ्रम और कपोल कल्पितविचारों का ताना बाना बुना रहता है। लोग यह सोच कर ही घबरा जाते हैं किशनि की साढ़े साती आज शुरू हो गयी तो आज से भी कष्ट और परेशानियों कीशुरूआत होने वाली है। ज्योतिषशास्त्री कहते हैं जो लोग ऐसा सोचते हैंवेअकारण ही भयभीत होते हैंवास्तव में अलग अलग राशियों के व्यक्तियों परशनि का प्रभाव अलग अलग होता है । कुछ व्यक्तियों को साढ़े साती शुरू होनेके कुछ समय पहले ही इसके संकेत मिल जाते हैं और साढ़े साती समाप्त होने सेपूर्व ही कष्टों से मुक्ति मिल जाती है और कुछ लोगों को देर से शनि काप्रभाव देखने को मिलता है और साढ़े साती समाप्त होन के कुछ समय बाद तकइसके प्रभाव से दो चार होना पड़ता है अत: आपको इस विषय में घबराने कीआवश्यकता नहीं है।अंत में एक छोटी किन्तु महत्वपूर्ण बात यहकहूंगा कि साढ़े साती के संदर्भ में व्यक्ति के जन्म चन्द्र से द्वादशस्थान का विशेष महत्व है। इस स्थान का महत्व अधिक होने का कारण यह है किद्वादश स्थान चन्द्र रशि से काफी निकट होता है। ज्योतिष परम्परा मेंद्वादश स्थान से काल पुरूष के पैरों का विश्लेषण किया जाता है तो दूसरी ओरबुद्धि पर भी इसका प्रभाव होता है। शनि के प्रभाव से बुद्धि प्रभावित होतीहै और हम अपनी सोच व बुद्धि पर नियंत्रण नहीं रख पाते हें जिसके कारण ग़लतकदम उठा लेते हैं और हमें कष्ट व परेशानी से गुजरना होता है। हमें यादरखना चाहिए कि साढ़े साती के दौरान मन और बुद्धि के सभी दरवाजे़ वखिड़कियां खोल देनी चाहिए और शांत चित्त होकर कोई भी काम और निर्णय लेनाचाहिए।

शनि की साढ़े साती शुभ भी–शनि की ढईया और साढ़े साती का नाम सुनकर बड़े बड़े पराक्रमी और धनवानों केचेहरे की रंगत उड़ जाती है। लोगों के मन में बैठे शनि देव के भय का कई ठगज्योतिषी नाज़ायज लाभ उठाते हैं। विद्वान ज्योतिषशास्त्रियों की मानें तोशनि सभी व्यक्ति के लिए कष्टकारी नहीं होते हैं। शनि की दशा के दौरान बहुतसे लोगों को अपेक्षा से बढ़कर लाभसम्मान व वैभव की प्राप्ति होती है।कुछ लोगों को शनि की इस दशा के दौरान काफी परेशानी एवं कष्ट का सामना करनाहोता है। देखा जाय तो शनि केवल कष्ट ही नहीं देते बल्कि शुभ और लाभ भीप्रदान करते हैं (। हम विषय की गहराई में जाकर देखें तो शनि का प्रभाव सभी व्यक्ति परउनकी राशिकुण्डली में वर्तमान विभिन्न तत्वों व कर्म पर निर्भर करता हैअत: शनि के प्रभाव को लेकर आपको भयग्रस्त होने की जरूरत नहीं है।आइयेहम देखे कि शनि किसी के लिए कष्टकर और किसी के लिए सुखकारी तो किसी कोमिश्रित फल देने वाला कैसे होता है। ज्योतिषशास्त्री बताते हैं यह ज्योतिषका गूढ़ विषय है जिसका उत्तर कुण्डली में ढूंढा जा सकता है। साढ़े साती केप्रभाव के लिए कुण्डली में लग्न व लग्नेश की स्थिति के साथ ही शनि औरचन्द्र की स्थिति पर भी विचार किया जाता है। शनि की दशा के समय चन्द्रमाकी स्थिति बहुत मायने रखती है। चन्द्रमा अगर उच्च राशि में होता है तो आपमें अधिक सहन शक्ति आ जाती है और आपकी कार्य क्षमता बढ़ जाती है जबकिकमज़ोर व नीच का चन्द्र आपकी सहनशीलता को कम कर देता है व आपका मन काम मेंनहीं लगता है जिससे आपकी परेशानी और बढ़ जाती है।जन्म कुण्डलीमें चन्द्रमा की स्थिति का आंकलन करने के साथ ही शनि की स्थिति का आंकलनभी जरूरी होता है। अगर आपका लग्न वृषमिथुनकन्यातुलामकर अथवा कुम्भहै तो शनि आपको नुकसान नहीं पहुंचाते हैं बल्कि आपको उनसे लाभ व सहयोगमिलता है (। उपरोक्त लग्न वालों केअलावा जो भी लग्न हैं उनमें जन्म लेने वाले व्यक्ति को शनि के कुप्रभाव कासामना करना पड़ता है। ज्योतिर्विद बताते हैं कि साढ़े साती का वास्तविकप्रभाव जानने के लिए चन्द्र राशि के अनुसार शनि की स्थिति ज्ञात करने केसाथ लग्न कुण्डली में चन्द्र की स्थिति का आंकलन भी जरूरी होता है।शनिअगर लग्न कुण्डली व चन्द्र कुण्डली दोनों में शुभ कारक है तो आपके लिएकिसी भी तरह शनि कष्टकारी नहीं होता है (। कुण्डली में अगर स्थिति इसके विपरीत है तो आपको साढ़े साती केदौरान काफी परेशानी और एक के बाद एक कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है। अगरचन्द्र राशि आर लग्न कुण्डली उपरोक्त दोनों प्रकार से मेल नहीं खाते होंअर्थात एक में शुभ हों और दूसरे में अशुभ तो आपको साढ़ेसाती के दौरान मिलाजुला प्रभाव मिलता है अर्थात आपको खट्टा मीठा अनुभव होता है।निष्कर्षके तौर पर देखें तो साढ़े साती भयकारक नहीं है शनि चालीसा (में एक स्थान पर जिक्र आया है “गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं । हय ते सुखसम्पत्ति उपजावैं।।गर्दभ हानि करै बहु काजा । गर्दभ सिद्घ कर राजसमाजा ।। श्लोक के अर्थ पर ध्यान दे तो एक ओर जब शनि देव हाथी पर चढ़ करव्यक्ति के जीवन प्रवेश करते हैं तो उसे धन लक्ष्मी की प्राप्ति होती तोदूसरी ओर जब गधे पर आते हैं तो अपमान और कष्ट उठाना होता है। इस श्लोक सेआशय यह निकलता है कि शनि हर स्थिति में हानिकारक नहीं होते अत: शनि से भयखाने की जरूरत नहीं है। अगर आपकी कुण्डली में शनि की साढ़े साती चढ़ रहीहै तो बिल्कुल नहीं घबराएं और स्थिति का सही मूल्यांकण करें।

शनि की साढ़े साती के लक्षण और क्या करें उपाय बचाव/रक्षा हेतु..???जिस प्रकार हर पीला दिखने वाला धातु सोना नहीं होता उस प्रकार जीवन में आने वाले सभी कष्ट का कारण शनि नहीं होता। आपके जीवन में सफलता और खुशियों में बाधा आ रही है तो इसका कारण अन्य ग्रहों का कमज़ोर या नीच स्थिति में होना भी हो सकता है। आप अकारण ही शनिदेव को दोष न दें, शनि आपसे कुपित हैं और उनकी साढ़े साती चल रही है अथवा नहीं पहले इस तत्व की जांच करलें फिर शनि की साढ़े साती के प्रभाव में कमी लाने हेतु आवश्यक उपाय करें।

ज्योतिषशास्त्री कहते हैं शनि की साढ़े साती के समय कुछ विशेष प्रकार की घटनाएं होती हैं जिनसे संकेत मिलता है कि साढ़े साती चल रही है। शनि की साढ़े साती के समय आमतौर पर इस प्रकार की घटनाएं होती है जैसे घर कोई भाग अचानक गिर जाता है। घ्रर के अधिकांश सदस्य बीमार रहते हैं, घर में अचानक अग लग जाती है, आपको बार-बार अपमानित होना पड़ता है। घर की महिलाएं अक्सर बीमार रहती हैं, एक परेशानी से आप जैसे ही निकलते हैं दूसरी परेशानी सिर उठाए खड़ी रहती है। व्यापार एवं व्यवसाय में असफलता और नुकसान होता है। घर में मांसाहार एवं मादक पदार्थों के प्रति लोगों का रूझान काफी बढ़ जाता है। घर में आये दिन कलह होने लगता है। अकारण ही आपके ऊपर कलंक या इल्ज़ाम लगता है। आंख व कान में तकलीफ महसूस होती है एवं आपके घर से चप्पल जूते गायब होने लगते हैं।
आपके जीवन में जब उपरोक्त घटनाएं दिखने लगे तो आपको समझ लेना चाहिए कि आप साढ़े साती से पीड़ित हैं। इस स्थिति के आने पर आपको शनि देव के कोप से बचने हेतु आवश्यक उपाय करना चाहिए। ज्योतिषाचार्य साढ़े साती के प्रभाव से बचने हेतु कई उपाय बताते हैं आप अपनी सुविधा एवं क्षमता के आधार पर इन उपायों से लाभ प्राप्त कर सकते हैं। आप साढ़े साती के दुष्प्रभाव से बचने क लिए जिन उपायों को आज़मा सकते हैं वे निम्न हैं:
शनिदेव भगवान शंकर के भक्त हैं, भगवान शंकर की जिनके ऊपर कृपा होती है उन्हें शनि हानि नहीं पहुंचाते अत: नियमित रूप से शिवलिंग की पूजा व अराधना करनी चाहिए। पीपल में सभी देवताओं का निवास कहा गया है इस हेतु पीपल को आर्घ देने अर्थात जल देने से शनि देव प्रसन्न होते हैं। अनुराधा नक्षत्र में जिस दिन अमावस्या हो और शनिवार का दिन हो उस दिन आप तेल, तिल सहित विधि पूर्वक पीपल वृक्ष की पूजा करें तो शनि के कोप से आपको मुक्ति मिलती है। शनिदेव की प्रसन्नता हेतु शनि स्तोत्र का नियमित पाठ करना चाहिए।
शनि के कोप से बचने हेतु आप हनुमान जी की आराधाना कर सकते हैं, क्योंकि शास्त्रों में हनुमान जी को रूद्रावतार कहा गया है। आप साढ़े साते से मुक्ति हेतु शनिवार को बंदरों को केला व चना खिला सकते हैं। नाव के तले में लगी कील और काले घोड़े का नाल भी शनि की साढ़े साती के कुप्रभाव से आपको बचा सकता है अगर आप इनकी अंगूठी बनवाकर धारण करते हैं। लोहे से बने बर्तन, काला कपड़ा, सरसों का तेल, चमड़े के जूते, काला सुरमा, काले चने, काले तिल, उड़द की साबूत दाल ये तमाम चीज़ें शनि ग्रह से सम्बन्धित वस्तुएं हैं, शनिवार के दिन इन वस्तुओं का दान करने से एवं काले वस्त्र एवं काली वस्तुओं का उपयोग करने से शनि की प्रसन्नता प्राप्त होती है।
साढ़े साती के कष्टकारी प्रभाव से बचने हेतु आप चाहें तो इन उपायों से भी लाभ ले सकते हैं। शनिवार के दिन शनि देव के नाम पर आप व्रत रख सकते हैं। नारियल अथवा बादाम शनिवार के दिन जल में प्रवाहित कर सकते हैं। शनि के कोप से बचने हेतु नियमित 108 बार शनि की तात्रिक मंत्र का जाप कर सकते हैं स्वयं शनि देव इस स्तोत्र को महिमा मंडित करते हैं। महामृत्युंजय मंत्र काल का अंत करने वाला है आप शनि की दशा से बचने हेतु किसी योग्य पंडित से महामृत्युंजय मंत्र द्वारा शिव का अभिषेक कराएं तो शनि के फंदे से आप मुक्त हो जाएंगे।
निष्कर्ष के तौर पर हम यह समझ सकते हैं कि जीवन में मुश्किलें तो हज़ार आती हैं, सिकन्दर वही होता है जो मुश्किलों से टकाराकर आगे बढ़ता है।
निकालो रास्ता ऐसा जिससे आप हों बुलंद, मुश्किलें देखकर आपको, फिर देखना कैसे रूख बदलता है।।
कहना यही है कि साढ़े साती से आपको बिल्कुल भयभीत होने की जरूरत नहीं है, आप कुशल चिकित्सक की तरह मर्ज़ को पहचान कर उसका सही ईलाज़ करें..   =============================================================================================
भारतीय ज्योतिष के सिधान्तानुसार शनि मुख्य रूप से शारीरिक श्रम से संबंधित व्यवसायों तथा इनके साथ जुड़े व्यक्तियों के कारक होते हैं जैसे कि श्रम उद्योगों में काम करने वाले श्रमिक, इमारतों का निर्माण कार्य तथा इसमें काम करने वाले श्रमिक, निर्माण कार्यों में प्रयोग होने वाले भारी वाहन जैसे रोड रोलर, क्रेन, डिच मशीन तथा इन्हें चलाने वाले चालक तथा इमारतों, सड़कों तथा पुलों के निर्माण में प्रयोग होने वाली मशीनरी और उस मशीनरी को चलाने वाले लोग। इसके अतिरिक्त शनि जमीन के क्रय-विक्रय के व्यवसाय, इमारतों को बनाने या फिर बना कर बेचने के व्यवसाय तथा ऐसे ही अन्य व्यवसायों, होटल में वेटर का काम करने वाले लोगों, द्वारपालों, भिखारियों, अंधों, कोढ़ियों, लंगड़े व्यक्तियों, कसाईयों, लकडी का काम करने वाले लोगों, जन साधारण के समर्थन से चलने वाले नेताओं, वैज्ञानिकों, अन्वेषकों, अनुसंधान क्षेत्र में काम करने वाले लोगों, इंजीनियरों, न्यायाधीशों, परा शक्तियों तथा इसका ज्ञान रखने वाले लोगों तथा अन्य कई प्रकार के क्षेत्रों तथा उनसे जुड़े व्यक्तियों के कारक होते हैं।  
आप यह भी जानते हें की शनि मनुष्य के शरीर में मुख्य रूप से वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा ज्योतिष की गणनाओं के लिए ज्योतिषियों का एक र्वग इन्हें तटस्थ अथवा नपुंसक ग्रह मानता है जबकि ज्योतिषियों का एक अन्य वर्ग इन्हें पुरुष ग्रह मानता है। तुला राशि में स्थित होने से शनि को सर्वाधिक बल प्राप्त होता है तथा इस राशि में स्थित शनि को उच्च का शनि भी कहा जाता है। तुला के अतिरिक्त शनि को मकर तथा कुंभ में स्थित होने से भी अतिरिक्त बल प्राप्त होता है जो शनि की अपनी राशियां हैं। शनि के प्रबल प्रभाव वाले जातक आम तौर पर इंजीनियर, जज, वकील, आई टी क्षेत्र में काम करने वाले लोग, रिअल ऐस्टेट का काम करने वाले लोग, परा शक्तियों के क्षेत्रों में काम करने वाले लोग तथा शनि ग्रह के कारक अन्य व्यवसायों से जुड़े लोग ही होते हैं। शनि के जातक आम तौर पर अनुशासन तथा नियम की पालना करने वाले, विश्लेषनात्मक, मेहनती तथा अपने काम पर ध्यान केंद्रित रखने वाले होते हैं। ऐसे जातकों में आम तौर पर चर्बी की मात्रा सामान्य से कुछ कम ही रहती है अर्थात ऐसे लोग सामान्य से कुछ पतले ही होते हैं। 
वर्तमान समय में अधिकतर लोग शनि ग्रह से सबसे अधिक बेवजह/बिना कारन के भयभीत रहते हैं तथा अपनी जन्म कुंडली से लेकर गोचर, महादशा तथा साढ़े सती में इस ग्रह की स्थिति और उससे होने वाले लाभ या हानि को लेकर चिंतित रहते हैं तथा विशेष रुप से हानि को लेकर। शनि ग्रह को भारतवर्ष में शनिदेव तथा शनि महाराज के नाम से संबोधित किया जाता है तथा भारतीय ज्योतिष में विश्वास रखने वाले बहुत से लोग यह मानते हैं कि नकारात्मक होने पर यह ग्रह कुंडली धारक को किसी भी अन्य ग्रह की अपेक्षा बहुत अधिक नुकसान पहुंचा सकता है। शनि ग्रह के भारतीय ज्योतिष में विशेष महत्व को इस तथ्य से आसानी से समझा जा सकता है कि भारत में शनि मंदिरों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है तथा इन मंदिरों में आने वाले लोगों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। इनमें से अधिकतर लोग शनि मंदिरों में शनिवार वाले दिन ही जाते हैं तथा शनिदेव की कारक वस्तुएं जैसे कि उड़द की साबुत काली दाल तथा सरसों का तेल शनि महाराज को अर्पण करते हैं तथा उनकी कृपा दृष्टि के लिए प्रार्थना करते हैं। 
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तुला राशि में शनि के गोचर फल-
सूर्य पुत्रे तुलायाते हा्रग्न्युपद्रवमादिशेत।
सप्तधान्यमहधारणि मेदिनी नष्टकारिका।।

जब तुला राशि में शनि का प्रवेश होता है, तब विश्व में अग्निकाण्ड का उपद्रव होता है, सभी अन्न सप्तधान्य महगें होते है और पृथ्वी पर आपदायें व विपदायें अधिक आती हैं। तुला में शनि के आने से अनाज के भाव तेज हो जाते हैं, विश्व में व्याकुलता, पश्चिमी देशों और भू-भागों में क्लेश, मुनियों को शारीरिक कष्ट, जनपदों में रोगोत्पत्ति, वनों का विनाश और धन का अभाव होता है।

तुला का शनि जनता के लिए कष्टकारी होता है एंव महिलाओं को न्याय मिलने के लिए कोई विशेष कानून पारित करा सकता है। बंगाल में उत्पात व छत्रभंग होने की आशंका रहती है। तुला राशि में शनि के प्रवेश व संचार काल में इसकी दृष्टि पश्चिम दिशा पर होगी। शनि की जॅहा पर दृष्टि पड़ती है, उस स्थान की हानि होती है। अतः विश्व व भारत के दक्षिणी तथा पश्चिमी क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदायें, बाढ़ तथा आतंकवाद, हिंसा, तूफान, आरजकता तथा जनान्दोलन के कारण क्षति की आशंका रहती है।


तुला का शनि और बारह राशियों पर प्रभाव —
* मेष राशि वालों के लिए शनि का भ्रमण दशमेश व एकादशेश होकर सप्तम भाव से होने की वजह से जीवनसाथी से लाभकारी रहेगा। दैनिक व्यापार-व्यवसाय में भी लाभ के योग हैं। भाग्य पर सम दृष्टि है अत: भाग्य के मामलों में मिलीजुली स्थिति देगा। लग्न पर यानी स्वयं पर स्वास्थ्य संबंधित परेशानियों का कारण भी बनेगा। दशम दृष्टि चतुर्थ भाव पर सम होने से पारिवारिक, जनता से संबंधित, माता से संबंधित मामलों में ठीक ही रहेगा। स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव होने पर सरसों का तेल या काले तिल का तेल प्रत्येक शनिवार को जमीन पर गिराएं।

* वृषभ राशि वालों के लिए शनि का गोचरीय भ्रमण षष्ट भाव से भाग्येश व दशमेश होने से शत्रु पक्ष प्रभावहीन होंगे। कर्ज की स्थिति से छुटकारा मिलेगा। बाहरी मामलों में सावधानी रखें, स्वास्थ्य ठीक ही रहेगा। व्यापार, नौकरी, पिता के मामलों में रूकावटों के बाद सफलता रहेगी, पराक्रम बढ़ेगा।

* मिथुन राशि वालों के लिए शनि का गोचरीय भ्रमण पंचम भाव से अष्टमेश व भाग्येश होकर रहेगा। इसके फलस्वरूप भाग्य में वृद्धि होगी, विद्या में सफलता, परिश्रम पूर्ण, स्वास्थ्य ठीक रहेगा। जीवनसाथी के मामलों में समय ठीक ही कहा जा सकता है। आय के मामलों में बाधा रह सकती है। धन कुटुंब के मामलों में मिलीजुली स्थिति पाएंगे।

* कर्क राशि वालों के लिए शनि का गोचरीय भ्रमण चतुर्थ भाव से सप्तमेश व अष्टमेश से होकर रहने के कारण प्रथम पारिवारिक मामलों मे कठिनाई के बाद सफलता का रहेगा। शत्रु प्रभावहीन होंगे। राज्य, पिता, व्यापार, नौकरी के मामलों में सावधानी रखना होगी। स्वयं को संभल कर चलना होगा।

* सिंह राशि वालों के लिए शनि तृतीयेश से भ्रमण करेग। षष्ट व सप्तमेश होने के कारण पराक्रम अधिक करने पर सफलता मिलेगी। भाईयों, मित्रों, साझेदारियों से लाभ व सहयोग रहेगा। भाग्य के क्षेत्र में थोडी़ बाधा भी रहेगी, शनिवार को सरसों या काले तिल का तेल जमीन पर गिराएं। बाहरी मामलों में मिलीजुली स्थिति पाएंगे।

* कन्या राशि वालों के लिए शनि का गोचरीय भ्रमण द्वितीय भाव से पंचमेश व षष्टेश होने से वाणी के प्रभाव से लाभ रहेगा। सन्तान का सहयोग भी रहेगा। परीक्षाओं में सफल भी होंगे। वाहनादि सावधानी से चलाएं। आय के मामलों में मिलीजुली स्थिति रहेगी।

* तुला राशि वालों के लिए शनि राशि से ही भ्रमण चतुर्थेश व पंचमेश होकर करने से प्रभाव में वृद्धि, नवीन कार्य होंगे। सन्तान से लाभ, माता, भूमि, भवन, जनता के कार्यों से लाभ रहेगा। जीवनसाथी से चिंता भी रहेगी। राज्य, व्यापार, नौकरी आदि में सफलता रहेगी।

* वृश्चिक राशि वालों के लिए शनि का गोचरीय भ्रमण द्वादश भाव से तृतीयेश व चतुर्थेश होने से पराक्रम द्वारा ही सफलता के योग हैं। किसी महत्वपूर्ण कार्य में भाई की सलाह या मदद ठीक रहेगी। पारिवारिक स्थिति ठीक-ठीक ही रहेगी। शत्रु पक्ष से बचकर चलना होगा। शनि की साढे़साती प्रारंभ होगी, जो लाभकारी भी रहेगी। भाग्य व धर्म के मामलों में मिलीजुली स्थिति रहेगी।

* धनु राशि वालों के लिए शनि का गोचरी भ्रमण द्वितीयेश व तृतीयेश होकर एकादश भाव से भ्रमण करने से धन कुटुंब, वाणी के प्रभाव से लाभ मिलेगा, धन की बचत भी कर पाएंगे। भाईयों का सहयोग मिलेगा, मित्र से भी अनुकूल स्थिति पाएंगे। विद्यार्थी वर्ग सावधानी से बरतें। पढ़ाई पर अधिक ध्यान दें। स्वास्थ्य ठीक ही रहेगा, आयु उत्तम रहेगी।

* मकर राशि वालों के लिए शनि का गोचरीय भ्रमण दशम भाव से होकर लग्न व द्वितीयेश होने से स्वप्रयत्नों से उत्तम सफलता मिलेगी। पराक्रम बढ़ेगा, धन कुटुंब का भी सहयोग रहेगा। माता के मामलों में सावधानी रखें। मकान, जमीन के सौदों में संभलकर चलें। जीवनसाथी से मिलीजुली स्थिति पाएंगे।

* कुंभ राशि वालों के लिए द्वादशेश व लग्नेश होकर नवम भाग्य भाव से भ्रमण करने से भाग्यबल द्वारा सफलता के योग हैं। साथ ही महत्वपूर्ण कार्य भी बनेंगे। भाग्य साथ देगा, भाईयों के मामलों में सावधानी रखना होगी। शत्रु पक्ष प्रभावहीन होंगे। स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। पिता का सहयोग मिलेगा। देश-विदेश की यात्रा भी संभव है।

* मीन राशि वालों के लिए शनि का गोचरीय भ्रमण अष्टम भाव से एकादशेश व द्वादशेश होने से आय के मामलों में कठिनाई आएगी, लेकिन आवश्यक पूर्ति भी होगी। बाहरी मामलों में सहयोग रहेगा। धन कुटुंब में खर्च होगा। सम्मान भी बढ़ेगा। स्वविवेक का इस्तेमाल लाभदायक रहेगा।
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तुला राशि में शनि के संक्रमण का विभिन्न राशियों पर वर्ष 2012 में प्रभाव/परिणाम—

मेष- इस राशि के लिए शनि ताम्रपाद का रहेगा। यात्रा में भय, जीवन साथी को मानसिक व शरीरिक कष्ट, शत्रुओं से भय, धन का अपव्यय एंव बुद्धिभ्रंश होने की आशंका रहेगी।

वृष- इस राशि के लिए शनि रजतपाद का रहेगा। पराक्रम में व उत्साह में वृद्धि, शासन की कृपा, जीवन साथी का सुख व सहयोग, प्रतिष्ठित व्यक्तियों का साथ मिलेगा, धन का लाभ एंव धन संचय भी होगा।

मिथुन- इस राशि के लिए शनि स्वर्णपाद का रहेगा। स्त्री, सन्तान व बन्धुवर्ग को कष्ट रहेगा। वायु रोग, श्वास रोगियों को विशेष सावधान रहने की आवश्यकता है। कठोर परिश्रम से ही धन की प्राप्ति होगी।

कर्क- इस राशि के लिए शनि लौहपाद का रहेगा। धन का अपव्यय, जीवन साथी को कष्ट, मन में व्याकुलता, माता को कष्ट, नेत्र रोग, गृह क्लेश की आंशका है।

सिंह- इस राशि के लिए शनि स्वर्णपाद का रहेगा। चिन्ताओं से मन अप्रसन्न रहेगा, परिश्रम से धन,वस्त्र, आभूषण तथा वाहन आदि की प्राप्ति हो सकती है। शासन से जुड़े लोगों को लाभ मिलेगा।

कन्या- इस राशि के लिए शनि ताम्रपाद का रहेगा। पैरों की उतरती साढ़ेसाती मुख और नेत्र रोग को उत्पन्न कर सकती है। जीवन साथी तथा सन्तान की चिन्ता, धन का व्यय एंव शासन से भय बना रहेगा।

तुला- इस राशि के लिए शनि रजतपाद का रहेगा। ह्रदय पर आयी हुयी शनि की साढ़ेसाती मस्तक और छाती में रोगजन्य पीड़ा उत्पन्न करेगी। स्वजनों से विवाद एंव परिवार में कलह की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। जीवन साथी का सुख एंव सहयोग रहेगा।

वृश्चिक- लौह पाद की मस्तक एंव शिर पर चढ़ती शनि की साढ़ेसाती। नेत्र, छाती व पैरों में पीड़ा रहेगी। सांस वाले रोगी विशेष सावधानी बरतें। धन की हानि, बुद्धि भ्रमित एंव अपनों से विवाद हो सकता है।

धनु- इस राशि के लिए शनि ताम्रपाद का रहेगा। प्रतिष्ठा में वृद्धि, क्रय व विक्रय से लाभ, जीवन साथी व सन्तान का सुख और उत्साह व धैर्य में वृद्धि होगी।

मकर- इस राशि के लिए शनि स्वर्णपाद का रहेगा। शासन से भय, धन की हानि, व्यापार में चिन्ता, नौकरी वाले लोगों का स्थानान्तरण हो सकता है। रोग वृद्धि एंव चोरों से सावधान रहने की आवश्यकता है।

कुम्भ- इस राशि के लिए शनि रजतपाद का रहेगा। सामान्य समय रहेगा, स्थान च्युति, धन का कुछ दुरूपयोग तथा शासन से भय बना रहेगा। अपने विवेक से कार्य करना उचित रहेगा।

मीन- इस राशि वालों पर शनि की लौह पाद की ढैया रहेगी। रोगजन्य पीड़ा, जीवन साथी को कष्ट, सन्तान को कष्ट, प्रवास, शत्रु से भय तथा कठोर परिश्रम से कुछ लाभ होगा।

शनि की साढे़साती का प्रभाव सिंह से हटकर वृश्चिक वालों को शुरू होगा। कन्या को उतरती, तुला को मध्य से, वृश्चिक को लगती साढे़साती रहेगी।कन्या, तुला को लाभकारी, वृश्चिक को चिंताजनक रहेगी।

शनि की साढ़ेसाती से प्रभावित राशियां- कन्या, तुला, वृश्चिक, मिथुन, कर्क, कुम्भ एंव मीन है। इस राशि वाले जातक निम्न उपाय कर सकते है—

इन उपायों से होगा लाभ…मिलेगा आराम–(क्या करें जब तुला के शनि का असर कम करना हो)
1- मदिरा या मादक पदार्थो का सेंवन न करें।
2- नौंकरो को समय पर वेतन दें।
.- काले रंगों का प्रयोग न करें।
4- नित्य किसी बड़े, बुजर्ग का पैर छुकर आशीर्वाद लें।
5- कर्ज-ब्याज का लेन-देन न करें।
6- रिस्क वाले कार्य एंव शेयर आदि में अधिक निवेश न करें।
7- महामृत्युजंय मन्त्र का नित्य 10 माला 125 दिन तक करें।
8- प्रति शनिवार सुरमा, काले तिल, सौंफ और नागरमोथा इन सभी को जल में डालकर स्नान करें।
9- पिप्पलाद उवाच का पाठ करें।
10-पश्चिम दिशा में कबाड़ या गन्दगीं न रखें

11 –शनि के अशुभ प्रभाव होने पर कोई भी किसी भी राशि वाले जातक सरसों या काले तिल का तेल एक चम्मच जमीन पर गिराएं।
12 –काला सुरमा अपने सिर से पैर की और नौ बार उतार कर जमीन में गाढ़ देने से अशुभ प्रभाव में कमी आएगी।

13 .-नीलम सोच-समझ कर ही पहनें

14- घर के दरवाजे पर काले घोड़े की नाल लगाएं।
15- घर के पूराने जूते-चप्पल फेंक दें।
16- घर का कबाड़ शनिवार के दिन बेच दें और उन पैसों से गरीबों को खाना खिला दें।
17- घर में लोहे का सामान शनिवार के दिन नहीं लाएं।

वक्री शनि का मानव जीवन पर प्रभाव—-
शनि के बदलने से आपकी राशि पर तो असर पड़ेगा ही साथ ही आपके घर पर भी शनि देव का असर पड़ेगा। आप घर पर शनि की बदली हुई नजर पड़ेगी। जानें शनि देव का क्या असर होगा आपके घर पर और क्या करें शनि से बचने के लिए—-
शनि बदलेगा तो आपके घर पर भी इसका असर होगा। शनि की प्रिय दिशा पश्चिम होती है। अगर आपके घर का मुख्य द्वार पश्चिम में है तो आपके घर पर शनि का विशेष प्रभाव पड़ेगा।
जिस घर का मेन गेट पश्चिम दिशा में होता है उस घर में रहने वालों को शनि देव विशेष रूप से प्रभावित करेंगे। शनि के उच्च राशि में होने से उस घर के लोगों को मेहनत का पूरा फल मिलने लगेगा। अगर उस घर के बुजुर्गों का सम्मान नहीं होगा तो शनि देव नाराज हो जाएंगे।
– अगर आपके घर का नाम प, र या न से शुरु हो रहा है तो आपके घर पर शनि का विशेष प्रभाव रहेगा। इन अक्षरों से शुरू होने वाले घरों पर भी साढ़ेसाती का कुछ प्रभाव जरूर रहेगा। अगर आपके आशियाने का नाम इन अक्षरों से शुरू होता है और ऐसे घर में रहने वाले लोग अगर भ्रष्टाचार में लिप्त है तो ऐसे लोगों को आर्थिक नुकसान का शिकार होना पड़़ेगा। ऐसे घरों में चोरी होने के योग बनेंगे।
– अगर आपका घर पश्चिमी कोण में या पश्चिम दिशा में है और आपके घर का नाम ह या द अक्षर से शुरू हो रहा है तो आपके घर में कोई सदस्य बीमार या परेशान हो सकता है।
वक्रेचशौरोपितृ संस्थितेचके अनुसार यदि शनि वक्री होता है तो राज्य, जल एवं जनता को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। शनि सूर्यादिग्रहों में सातवां ग्रह है। शनै:शनै:चरतिइति शनैश्चर: के अनुसार जो धीरे-धीरे चलता है, उसे शनैश्चर कहते हैं। शनि या कोई भी ग्रह जब सीधे चलता है तो उसे मार्गी कहते हैं तथा विपरीत दिशा में चलता है तो उसे वक्री कहते हैं। सूर्य एवं चन्द्रमा सदैव मार्गी होते हैं अर्थात् हमेशा सीधे चलते हैं तथा राहु एवं केतु सदैव उल्टी दिशा में चलते हैं, यानी सदैव वक्री रहते हैं। मार्गी शनि से वक्री शनि का प्रभाव कू्रर होता है। त्रिकाण्ड शेष नामक ग्रन्थ में शनि को नीलवासाअर्थात् नीला वस्त्र धारण करने वाला, मन्द एवं छायात्मजके नाम से जाना जाता है। ज्योतिष तत्व में काल एवं सूर्यपुत्र के रूप में शनि का वर्णन मिलता है। फलदीपिकानामक ग्रन्थ के अनुसार आयु, मरण, भय, पतन, अपमान, बीमारी, दु:ख, दरिद्रता, बदनामी, पाप, मजदूरी, अपवित्रता, निन्दा, आपत्ति, कलुषता, आपत्ति, नीच व्यक्तियों का आश्रय, गैस, तन्द्रा, (आलस्य, ऊंघना) कर्जा, लोहे की वस्तु, नौकरी, दासता,जेल जाना, गिरफ्तार होना, खेती के साधन आदि का विचार शनि ग्रह से किया जाता है। शनि का स्वरूप लंगडा है (शनि द्वादश में होने से या शनि का विशेष प्रभाव होने से पैर में विकार होता है) इसकी आंखें गडेदारहोती है। संस्कृत में शनि को निमन्लोचनकहा गया है। निम्नलोचनका सीधा-साधा अर्थ जिनकी आंखें धसी हुई हों। शनि का शरीर दीर्घ एवं कृश एवं नसोंकी अधिकता वाला है। शनि स्वभाव से आलसी हैं तथा रंग काला है। वात यानी वायु की प्रधानताहै। इनका स्वभाव कठोर हृदय वाला है। ये देखने में भयानक एवं क्रोधी हैं। शनि तमोगुण विशिष्ट, कषायरसवाला,कुम्भ एवं मकर राशि, के अधिपति हैं। ये भुजाओं में क्रमश:भल्ल, बाण, वर एवं शूल धारण किए हुए हैं। इनके अधिदेव यम एवं प्रत्यधिदेवता स्वयं प्रजापति हैं। शनि का नाम सुनते ही लोग भयाक्रान्त हो जाते हैं। शनि केवल बुरा ही नहीं भला भी करते हैं। जिनके जन्मांगमें ये शुभ हो जाते हैं, उन्हें राजयोग प्रदान करते हैं। शनि की शांति के लिए ॐऐं ह्रींश्रींशनैश्चरायइस नवाक्षरीमंत्र का जप करना चाहिए। ॐशन्नोदेवी रभिष्टयआपोभवन्तु पीतये।शंयो रभिस्श्रवन्तुन:॥इस वैदिक मंत्र से हवन करना चाहिए। शनि की शांति काले तिल के सहित कृसरायानी खिचडी के दान से भी होती है। शमी की समिधा का हवन, पीपल वृक्ष में जलदान, दीपदान, लौहनिर्मितसामग्री का धारण एवं हनुमान जी महाराज की आराधना श्रेयस्कर बताई गई है। शनि के शुभाशुभ ज्ञानार्थआदमी को शनि चक्र का विचार करना चाहिए। नर के आकार का शनि का चक्र बनाकर सूर्य के नक्षत्र से वर्तमान नक्षत्र तक गिनकर शुभ एवं अशुभ का ज्ञान किया जा सकता है। मुख में एक, दो से चार दाहिने हाथ में, दोनों पैरों में छह, हृदय में पांच, बाएं हाथ में चार, मस्तक में तीन, नेत्र में दो एवं गुह्य में दो नक्षत्रों की परिकल्पना की जानी चाहिए। मुख में हानि, दाहिने हाथ में जय, पैरोमें भ्रमण करना, हृदय में श्री, वाम हस्त में भय, मस्तक में राज्य, नेत्र में सुख, गुदा में मरण के समान संकट होता है। चक्र के जिस स्थान पर शनि पीडा कर रहा है, उस स्थान का नाम काली स्याही से लिखकर तैल में डुबोकर भूमि के बीच में रखकर काले पुष्प से पूजन कर भूमि में गाड दें। इससे निश्चित रूप से शनि की शांति होती है।
इन राशिवालों को हे बीमारी/रोग की संभावना—
वृश्चिक- इस राशि वालों पर शनि का असर तेज होगा क्योंकि आपकी राशि पर शनि की साढ़ेसाती का पहला चरण रहेगा। साढ़ेसाती के पहले चरण में व्यक्ति के सिर पर शनि देव का असर होता है। इस राशि वालों को मानसिक रूप से परेशान होना पड़ेगा। वृश्चिक राशि वालों को सिर दर्द की शिकायत होने लगेगी। इस राशि वालों की योजनाएं अधूरी रहेगी। मनसिक रूप से ज्यादा मेहनत करना पड़ेगी लेकिन परिणाम कम मिलेंगे और असंतोष होगा।
तुला- इस राशि में शनि देव के आ जाने से तुला राशि वालों के सिर से कमर तक के हिस्सों पर शनि देव का असर रहेगा। तुला राशि वालों को साढ़ेसाती का दूसरा चरण रहेगा इस समय में इस राशि वालों को  पेट के रोग होंगे। इस राशि वालों को हृदय रोग होने की संभावनाएं रहेंगी। तुला राशि वाले जो डायबिटीज के रोगी है वो सावधान रहें। इस राशि के लोगों पाचन तंत्र संबंधित बीमारियां भी हो सकती है।
कन्या- इस राशि वालों पर शनि का आखिरी चरण रहेगा। कन्या राशि वालों के शरीर के कमर नीचे और पैरों पर शनि देव का असर रहेगा। शनि देव की साढ़ेसाती के अनुसार पैरों में चोट लगेगी। इस राशि वालों को सावधान रहना चाहिए कन्या राशि वालों को कमर के नीचले हिस्से में रोग हो सकते हैं।

आइये जाने जन्मकुंडली के सभी घरों/भावों में शनि का प्रभाव—-
शनि ऐसा ग्रह है जिसके प्रति सभी का डर सदैव बना रहता है। आपकी कुंडली में शनि किस भाव में है, इससे आपके पूरे जीवन की दिशा, सुख, दुख आदि सभी बात निर्धारित हो जाती है।
शनि किस भाव में है और उसके क्या फल है, जानिएं…

जब लग्न में शनि हो तो…

जिस व्यक्ति की कुंडली में शनि प्रथम भाव में हो वह व्यक्ति राजा के समान जीवन जीने वाला होता है। यदि शनि अशुभ फल देने वाला है तो व्यक्ति रोगी, गरीब और बुरे कार्य करने वाला होता है।

जब द्वितीय भाव में शनि हो तो—

द्वितीय भाव में शनि हो तो व्यक्ति विकृत मुख वाला, लालची, विदेश में धन अर्जित करने वाला होता है।

जब तृतीय भाव में शनि हो तो—

तृतीय भाव में शनि हो तो व्यक्ति संस्कारवान, सुंदर शरीर वाला, नीच, आलसी, चतुर होता है।

जब चतुर्थ भाव में शनि हो तो—-

जिस व्यक्ति की कुंडली में शनि चतुर्थ भाव में है वह रोगी, दुखी, भाई, वाहन, धन और बुद्धि से हीन होता है। 

जब पंचम भाव में शनि हो तो—

जन्म कुंडली में पंचम भाव का शनि हो तो वह व्यक्ति दुखी, पुत्र हीन, मित्र हीन और कम बुद्धि वाला होता है।

जब षष्ठ भाव में शनि हो तो—

जिस व्यक्ति की कुंडली में शनि छठे भाव में हो तो वह कामी, सुंदर, शूरवीर, अधिक खाने वाला, कुटिल स्वभाव, बहुत शत्रुओं को जीतने वाला होता है।

जब सप्तम भाव में शनि हो तो—-

सप्तम भाव का शनि होने पर व्यक्ति रोग, गरीब, कामी, खराब वेशभूषा वाला, पापी, नीच होता है।

जब अष्टम भाव में शनि हो तो—

अष्टम भाव में शनि होने पर व्यक्ति कुष्ट या भगंदर रोग से पीडि़त, दुखी, अल्पायु, हर कार्य को करने में अक्षम होता है।

जब नवम भाव में शनि हो तो—

ऐसा व्यक्ति जिसकी कुंडली में नवम भाव में शनि हो वह अधार्मिक, गरीब, पुत्रहीन, दुखी होता है।

जब दशम भाव में शनि हो तो—

जब दशम भाव का शनि होने पर व्यक्ति धनी, धार्मिक, राज्यमंत्री या उच्चपद पर आसीन होता है।

जब एकादश भाव में शनि हो तो—

जिस व्यक्ति की कुंडली में ग्याहरवें भाव में शनि हो वह लंबी आयु वाला, धनी, कल्पनाशील, निरोग, सभी सुख प्राप्त करने वाला होता है।

जब द्वादश भाव में शनि हो तो—

बाहरवें भाव में शनि होने पर व्यक्ति अशांत मन वाला, पतित, बकवादी, कुटिल दृष्टि, निर्दय, निर्लज, खर्च करने वाला होता है।

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