आइये जाने क्या हें मलमास?? इस बार के मलमास का राशियों पर प्रभाव??


सूर्य का धनु राशी में प्रवेश करना ही मल्नस कहलाता हें..इस बार यह .6 दिसंबर,..11 को दोपहर एक बजकर 44 मिनट से शुरू होकर 14 जनवरी 2012 की रात्रि में 12 बजकर 2. मिनट पर समाप्त होगा…
इस मलमास के प्रारम्भ होते ही शुभ मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाएगी…सूर्य और गुरु दोनों ग्रहों का मिलान होने के कारण ही मलमास होता हें.. वर्ष में एक बार मलमास इसलिए आता हें की इसमें वर्षभर में किये गए गलत /बुरे कार्य हो जाते हें उनका समाधान हो जाये…इस मलमास में दान पुण्य और सेवा करने का बहुत महत्त्व हें…ऐसा करने से सालभर तक मनुष्य रोग मुक्त होने के साथ-साथ गृहों की शांति भी होती हें…किसी भी विवाह संस्कार के लिए सूर्य गृह और गुरु(वृहस्पति) का होना  बहुत जरुरी होता हें…इसीलिए इस समय (इस मलमास) में विवाह कार्य नहीं होते हें…जरुरत/रोजमर्या के सामान भी नहीं ख़रीदे जाते हें…
आइये जाने किस राशी पर क्या प्रभाव होगा और इसका समाधान क्या होगा..???
मेष राशी—मंगलकारी  /शुभ यात्रा की संभावना…स्वास्थ्य का ध्यान रखें…
समाधान–हनुमान जी को तेल का दीपक लड़ाएं..
वृषभ राशी—माध्यम फलदायी होगा…स्वास्थ्य कमजोर रहने की संभावना…
समाधान—माँ दुर्गा की सेवा/आराधना करें..
मिथुन राशी–मन -सम्मान बढेगा…
समाधान– गणेश जी को दूर्वा ओए मुंग के लड्डू अर्पित करें…
कर्क राशी–चिडचिडापन रहेगा…कठिन परीक्षा की घडी हें…
समाधान–भगवान शिव को दूध मिश्रित जल अर्पित करें..
सिंह राशी—किसी बात को लेकर अपमान हो सकता हें/ठेस लग सकती हें..
समाधान—विशेष रूप से सूर्य देव की सेवा/आराधना करें..
कन्या राशी– सम्मान मिलेगा/पदोन्नति हो सकती हें…
समाधान–गो सेवा करें..गाय को हरा चारा खिलाएं…
तुला राशी–अधूरे कार्य पुरे होंगे…
समाधान—पक्षियों(चिड़िया)को मुंग और चावल खिलाये…
वृश्चिक राशी—ये समय शुभ और आनद दायक रहेगा…
समाधान–गाय को गुड  खिलाएं..
धनु राशी–अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें/कंट्रोल करें,,,व्यर्थ का खर्चा होगा…
मकर राशी–हानी की संभावना,गुप्त शत्रुओ से सावधान रहें..
समाधान–शनि भगवान की सेवा-आराधना करें..उन्हें तेल अर्पित करें..
कुम्भ राशी—विवाद/झगडे की संभावना..तरक्की/प्रमोशन संभव हें…
समाधान—शनिवार दे दिन बेसहारा/विकलांगों की सेवा करें..
मीन राशी–धार्मिक यात्रा की संभावना..तनाव रह सकता हें/टेंशन…
समाधान—केले का दान करें…
“इति शुभम भवतु””
( पंडित  दयानंद शास्त्री)

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