क्या हें शेर/सिंह  मुखी प्लाट/भूखंड  के लाभ और हानियाँ???आइये जाने भूमि /प्लाट के बारे में—

भवन निर्माण के लिए सबसे पहले भूमि का चयन किया जाता है। हर तरह के प्राकृतिक प्रभावों का संबंध प्रत्यक्ष रूप से भूखंड के आकार-प्रकार पर निर्भर करता है। तो भूमि की आकृति को नजरअंदाज करना कई तरह की आपदाओं और हानियों को बुलावा देना है। वास्तु शास्त्र में शुभाशुभ भूखंडों के विषय में विस्तृत रूप से चर्चा की गई है—-

शेर/सिंह  मुखी–अर्थात ऐसा प्लाट जो आगे से छोड़ा हो पीछे से थोडा संकरा…सर्व प्रथम यह सोचना भी जरुरी हें ही आप इस प्लाट का उपयोग क्या करेंगे?? 
शेर मुखी प्लाट व्यावसायिक गतिविधि जेसे –दुकान/ऑफिस/बैंक/ या फिर अन्य किसी कामकाज से लिए सर्वोत्तम होता हें ..इस पर बने भवन/दुकान/फ्लेट के रिजल्ट अच्छे होते हें..लेकिन इसमें भी बनाते समय/निर्माण के समय किसी अनुभवी वास्तुशास्त्री की सेवा/सलाह लेने की जरुरत होगी…वास्तु के ऐसे बहुत से नियम होते हें जिन्हें निर्माण से पूर्व ही लागु करना होता हें..
यदि ऐसे प्लाट का यूज /उपयोग रहने /आवास के लिए किया जाये तो असका प्रभाव/असर नेगेटिव होगा.. सिंह/शेर  मुखाकार भूखंड को मिले-जुले प्रभावों वाला माना गया है। इसकी पहचान है सामने से अधिक तथा पीछे से कम लंबा होना। ऐसे भूखंड से संचालित की जाने वाली व्यापारिक एवं वाणिज्यिक गतिविधियां काफी सफल रहती हैं। लेकिन यदि इस पर भवन निर्माण कराकर निवास किया जाए, तो परिवार के सदस्य प्रायः अस्वस्थ रहने लगते हैं।ऐसे भूखंड को वाणिज्यिक एवं व्यापारिक गतिविधियों के लिए अत्यंत शुभ कहा गया है। इस भूखंड की लंबाई एक ओर कम और दूसरी ओर अधिक होती है। इस पर भवन निर्माण कराने से सभी प्रकार के लाभ तथा सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
गोमुखी प्लाट–अर्थात ऐसा प्लाट जो आगे से थोडा संकरा /छोटा हो और पीछे से छोड़ा हो आकर में..ऐसे प्लाट में निवास करने वाले /रहने वाले शुखी और खुशहाल/समुद्ध  होते हे यदि सब कुछ वास्तु अनुसार बना हो किसी वास्तुशास्त्री की सलाह अनुसार…गोमुखी प्लाट  वास्तु सिद्धांत अनुसार रहने के लिए ठीक/बेहतर माने जाते हें..आयताकार/वर्गाकार प्लाट भी उत्तम होते हें आवास/निवास/भवन निर्माण हेतु…कोई भी कोना कटा हुआ नहीं होना चाहिए अन्यथा कोई भी बीमारी/हानि /समस्या खड़ी हो सकती हें..मुख्य द्वार/दरवाजा की स्थिति का भी ध्यान रखना बेहद जरुरी हें..

व्‍यवसायिक दृष्टि से हो लाभकारी—-
घर बनाने से पहले ही व्यक्ति का मन उसे लेकर कई सपने बुन लेता है। वो सभी सपने सच हों, इसलिए यह जरूरी है कि आप भूखंड का चयन सही-सही करें। ऐसा न होने पर घर में कलह हो सकती है। कई भूखंड ऐसे होते हैं, जो सिर्फ व्यवसायिक दृष्टि से उपयोगी होते हैं। ऐसी भूमि पर बनाया गया घर फलता नहीं है। इसलिए घर बनाते समय भूखंड के आकार का भी पूरा-पूरा ध्यान रखना चहिए।
– वर्गाकार भूखंड सभी प्रकार के निर्माण कार्यों के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। ऐसे भूखंड पर भवन बनाने से व्यक्ति को सुख, समृद्धि और उन्नति की प्राप्ति तो होती ही है साथ ही किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं झेलना पड़ता।
– आयताकार भूखंड को भी अत्यंत शुभ माना गया है। इस पर भवन बनवाने से धन, यश और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। व्यक्ति सफलता की ओर बढ़ता चला जाता है।
– वृत्ताकार भूखंड को अनेक लाभों वाला कहा गया है। इस भूखंड पर भवन निर्माण कराने से धनागमन, सुख-समृद्धि, सफलता एवं पुत्र-पौत्र लाभ की प्राप्ति होती है। ऐसी भूमि बड़ी कठिनाई से मिलती है।
– अष्टकोणीय भूखंड को भी श्रेष्ठ कहा जाता है। ऐसी भूमि पर वास्तु निर्माण कराने से भवन-स्वामी एवं परिवारजनों की सफलता के द्वार खुल जाते हैं। इसके अलावा घर में सुख-शांति भी बनी रहती है।
– षट्कोणीय भूखंड को भी वास्तुशास्त्रियों ने शुभ भूखंड माना है। ऐसे भूखंड पर निवास करने से धन लाभ एवं स्वास्थ्य लाभ मिलता रहता है। इसे भी एक दुर्लभ भूखंड माना जाता है।
– चहुंमार्गी भूखंड की महिमा असीम है। इसमें भूखंड के चारों तरफ मार्ग होते हैं। ऐसे भूखंड पर निवास करने से सुख-समृद्धि, धन-धान्य की वृद्धि तथा वैभव-ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। – इसके अलावा व्यक्ति सभी प्रकार के कष्टों तथा आपदाओं से भी बचा रहता है। लेकिन इस पर भवन निर्माण कराने से पूर्व दिशा-वेध का निवारण कर लेना चाहिए।
—कुछ खास बातें—
– —मकान पूर्व मुखी हो और ईशान कोण भी ठीक हो लेकिन घर के अंदर का हिस्सा लंबाई-चौड़ाई और ऊंचाई में बराबर हो तो घर के स्वामी को धनात्मक ऊर्जा नहीं मिलेगी। इस प्रकार के भवन से ऋणात्मक ऊर्जा मिलती है और घर में रहने वाले तनाव में रहेंगे। 
– —मकान तिरछा और पतंगनुमा हो तो भी शुभ फल नहीं मिलते। ईशान कोण में शौचालय बनाया गया तो आर्थिक कष्ट झेलने पड़ेंगे। 
—- पूर्वी दिशा की ओर दीवार और चबूतरे ऊंचे नहीं नीचे होने चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता तो घर का स्वामी धन से रहित हो जाएगा और संतान अस्वस्थ और मंदबुद्धि होगी।
– —पूर्व दिशा में खाली जगह छोड़ बिना मकान चारदीवारी से सटकर बना हो तो पुरुष संतान में कमी होती है व संतान विकलांग भी हो सकती है। पूर्व में खाली जगह नहीं छोड़ी हो और पश्चिम में ढलान हो तो वहां रहने वालों को आंखों की बीमारी और लकवा हो सकता है। 
– –घर के सामने नाली हो और दक्षिण से उत्तर की ओर जाती हो तो शुभ फल मिलते हैं। यहां पानी की टंकी रखने से भी अच्छा फल मिलता है। 
– —घर का प्रवेश द्वार लकड़ी का हो तो शुभ है। द्वार पर पायदान जरूर बिछाए, यह नकारात्मक विचारों और ऊर्जा को घर में प्रवेश करने से रोकता है। घर का फर्नीचर लकड़ी का हो और उसके कोने नुकीले न होकर गोल व चपटे हों। 
—प्लाट या जमीन लेते समय ईशान कोण का विशेष ध्यान रखें। यह कोण उत्तर-पूर्व दिशा में पड़ेगा। भवन का यह कोना थोड़ा बढ़ा हुआ होना शुभ होता है। इस कोण में लक्ष्मीजी, जल तत्व व गुरुतत्व का प्रभाव रहता है। घर के नौकरों को इस कौने में रखा जाए तो वे वफादार होते हैं। घर का हवनकुंड भी यहीं बनाना चाहिए। 

—दक्षिण पूर्व दिशा—-
दक्षिण पूर्व कोण में अग्रि व शुक्र का प्रभाव होता है। यह आग्नेय कोण कहलाता है अतः यहां रसोई इत्यादि बनाई जानी चाहिए। इस कोण में घर के मेहमानों का निवास होना चाहिए। यह कोना बढ़ा हुआ नहीं होना चाहिए। यह कोना सबसे ऊंचा होना चाहिए। और इस कोने का फर्श भी सभी कमरों से ऊंचा होना चाहिए। 
—मध्य भाग—
भवन का मध्य भाग हमेशा खुला और हवादार बनाएं। मध्य भाग की छत हमेशा खुली बनानी चाहिए। घर में जल की निकासी का इंतजाम कभी भी मध्य भाग में न कराएं। इससे ब्रह्मस्थान दूषित होता है। 
—भूमि का वास्तु—भूमि का वास्तु उस पर बनने ले भवन के वास्तु के समान ही महत्त्वपूर्ण है। भूमि के वास्तु के लिए हमें उस भूखण्ड के लेवल, कोण, आकार तथा क्षेत्रफल के बारे में जानकारी लेकर वास्तु के दृष्टिकोण से परखना चाहिए।
—भूखण्ड का आकारः — यदि भूखण्ड वर्गाकार या उसके निकटतम हो तो सर्वोत्तम होता है। यदि भूखण्ड आयताकार हो और उसकी चौड़ाई तथा लम्बाई का अनुपात .:. तक हो तो वह शुभ होता है। चौड़ाई और लम्बाई का अनुपात 1:1.6 श्रेष्ठ होता है। त्रिकोण, गोल, षट्कोण, अष्टकोण व अन्य विविध आकारों वाले भूखण्ड अशुभ होते हैं। भूखण्ड वास्तु के सिद्धान्तों के अनुसार न होने पर उसमें संशोधन करना चाहिए। यदि भूखण्ड का आकार संशोधित नहीं किया जा सकता है तो उसे त्याग देना चाहिए अथवा यदि संभव हो तो भूखण्ड में चारदीवारी एवं मुख्यद्वार न बनाकर केवल वास्तु अनुकूल भवन बनाये जायें ताकि हरेक भवन अपने आप में स्वतः एक अलग वास्तु हो और खाली जगह सार्वजनिक स्थल के रूप में रहे।किसी भी वास्तु-सम्मत निर्माण के लिए सबसे पहले आवद्गयकता होती है ऐसे भूखंड की, जो सब दृष्टियों से दोष रहित हो। भूखंड का चयन करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए। भूमि की आकृति भूमि की ढलान भूमि के कटाव व विस्तार आदि भूमि तक पहुंचने के मार्ग वातावरण भूमि परीक्षण व शुभाशुभ ज्ञान भूमि दिशा विचार भूमि की आकृति :— 

गृह वास्तु में मकान बनाने के लिए वर्गाकार, आयताकर, वृत्ताकार व गोमुखी भूंखड को शुभ माना गया है। अनियमित आकार के व अनियमित कोणों वाले भूखंड अशुभ होते हैं। भूखंड के सभी कोण 9.0 के हों, तो उत्तम माने जाते हैं। आयताकार भूखंड सर्वोत्तम माना गया है। वर्गाकार : वर्गाकार भूखंड की चारों भुजाएं समान और चारों कोण 900 के होते हैं। वास्तु के अधिकतर गं्रथों में इसे शुभ माना गया है। किंतु ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि इसमें रहने वाले गृहस्थों के धन का नाश होता है। 
आयताकार भूखंड : जिस भूखंड में आमने-सामने की दोनों भुजाएं समान हों और चारों कोण 900 के हों, उसे आयताकार भूखंड कहते हैं। इसकी लंबाई व चौड़ाई में 1:2 से कम का अनुपात होना चाहिए। अर्थात् लंबाई चौड़ाई से दुगुनी से कम रहे। चौड़ाई से दुगुनी या उससे अधिक लंबाई वाला भूखंड गृहस्वामी के लिए विनाशकारक होता है। 

—वृत्ताकार भूखंड :— वृत्ताकार भूखंड में निर्माण भी वृत्ताकार ही होना चाहिए। इस तरह के भूखंड में वर्गाकार या आयताकार निर्माण अशुभ होता है। ऐसे भूखंड बहुत कम देखने में आते हैं। (मतांतर से कुछ विद्वान इसे अशुभ मानते हैं।) गोमुखी प्लाट : जो भूखंड गाय के मुख के आकार का हो उसे गोमुखी भूखंड कहते हैं। ऐसे भूखंड आगे से तंग व पीछे से बड़े होते हैं। इन्हें गृह वास्तु के लिए शुभ माना गया है। (मतांतर से ऐसे भूखंड पश्चिममुखी व दखिणमुखी होने पर ही शुभ होते हैं, पूर्वमुखी व उत्तरमुखी होने पर ईशान कोण कटा हुआ माना जाएगा जो अशुभ होता है।) 

—त्रिकोण भूखंड :— गृह वास्तु में इसे अशुभ माना गया है। ऐसे भूखंड में रहने से व्यक्ति को राजभय होता है। उसके विरुद्ध मुकदमेबाजी हो सकती है व उसे मानसिक कष्टों का भय रहता है। अंडाकार भूखंड : अंडाकार भूखंड गृह वास्तु में तनावकारक व हानिकारक माने गए हैं। ऐसे भूखंड धार्मिक वास्तु, मंदिर आदि के निर्माण हेतु काम में लाए जा सकते हैं। सिंहमुखी भूंखड : सिंहमुखी भूखंड शेर के मुंह की तरह आगे से खुले व पीछे से तंग होते हैं। ये भूखंड गृह वासतु में अशुभ माने गए हैं लेकिन व्यावसायिक वास्तु निर्माण हेतु शुभ होते हैं। 

—अर्द्धवृत्ताकर भूखंड :—- ऐसे भूखंड दरिद्रताकारक, भयकारक व अशुभ होते हैं। ढोलनुमा भूखंड : ढोलनुमा भूखंड अशुभ माने गए हैं। ये भूखंड स्त्रीनाशक व विधुरता का कष्ट देने वाले होते हैं। 

—डमरू के आकार का भूखंड :— डमरू के आकार के भूखंड आंखों के लिए कष्टकारी व नुकसानदायक होते हैं। छडी़ के आकार का भूखंड : छड़ी की तरह लंबे व कम चौड़े भूखंड व्यक्ति को दुबला-पतला व कमजोर बनाते हैं। साथ ही उसके पशु धन की हानि होती है। 

—-पंखाकार भूखंड :— हाथ से झलने वाले पंखे के आकर का भूखंड धन-संपत्ति का नाशक होता है। यह वयक्ति को धीरे-धीरे गरीब बना देता है। 

—धनुषाकार भूखंड :— धनुष के आकर का भूखंड उस पर वास करने वाले व्यक्ति को मूर्ख बनाता है। उसे पापी पुत्र की प्राप्ति होती है व चोरी का भय लगा रहता है। 

—कुंभाकार भूखंड :— घड़े के आकार के भूखंड पर रहने वाले व्यक्ति को कुष्ठ का रोग होने की संभावना रहती है। 

—पंचकोणी भूखंड :—- ऐसे भूखंड व्यक्ति के लिए क्लेश कारक व गृह स्वामी के लिए मत्ृ यकु ारक हाते े ह।ैं 

–षटकोणीय भूखंड :— ऐसे भूखंड व्यक्ति के लिए सुख व समृद्धिकारक माने गए हैं। सप्तकोणीय भूखंड : सात कोणों वाला भूखंड सर्वदा अशुभ फलदायक होता है। 

—विषमबाहु भूखंड :—- असमान आकार वाली भुजाओं और असमान कोणों वाले विषमबाहु भूखंड शोककारक, रोगकारक व धननाशक होते हैं। 

भूमि की ढलान भूमि की ढलान वास्तु में बहुत महत्व रखती है। यदि यह शुभ दिशा में न हो, तो मकान बनाते समय इसे शुभ दिशा में कर लेना चाहिए। ढलान पूर्व, उत्तर और ईशान में शुभ और अन्य सभी दिशाओं में अशुभ कष्टकारी मानी गई है। 

वास्तु शास्त्र में 26 प्रकार के भूखंडों का उल्लेख आता है। उनमें से कुछ मुखय भूखंडों का विवरण यहां प्रस्तुत है—

—गोवीथी भूखंड :— जो भूखंड पश्चिम से ऊंचा व पूर्व से नीचा हो वह गोवीथी कहलाता है। ऐसे भूखंड पर वास करने से वंश की वृद्धि होती है। गणवीथी भूखंड : जो भूखंड दक्षिण से ऊंचा व उत्तर से नीचा हो, उसे गणवीथी भूखंड कहते हैं। ऐसे भूखंड पर वास करने से व्यक्ति निरोग रहता है। 

—धनवीथी भूखंड :— जो भूखंड नैत्य से ऊंचा व इर्श् ाान काण्े ा स े नीचा हो उसे धनवीथी भूखंड कहते हैं। यह धन देने वाला लाभदायक भूखंड होता है। 

—गजपृष्ठ भूखंड :— जो भूखंड दक्षिण-पश्चिम व वायव्य से ऊंचा और ईशान से नीचा हो उसे गजपृष्ठ भूखंड कहते हैं। हाथी की पीठ के आकार का यह भूखंड लाभदायक व स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम होता है। 

—कूर्मपृष्ठ भूखंड :— जो भूखंड मध्य में ऊंचा व अन्य सभी दिशाओं में नीचा हो, वह कूर्मपृष्ठ भूखंड कहलाता है। कछुए की पीठ के आकार के इस भूखंड पर वास करने से धन-धान्य, सुख व उत्साह की वृद्धि होती है। 

—जलीवीथी भूखंड :—- जो भूखंड पूर्व से ऊंचा व पश्चिम से नीचा हो, उसे जलवीथी भूखंड कहते हैं। यह भूखंड अशुभ होता है और इस पर वास करने से वंश का नाश होता है। यमवीथी भूखंड : जो भूखंड उत्तर से ऊंचा व दक्षिण से नीचा हो, यमवीथी भूखंड कहलाता है। ऐसी भूमि पर वास करने से व्यक्ति रोगग्रस्त होता है। 

—भूतवीथी भूखंड :— जो भूखंड ईशान से ऊंचा व नैत्य से नीचा हो, उसे भूतवीथी भूखंड कहते हैं। ऐसी भूमि पर वास करने से भूत-प्रेत बाधा व कष्टों की प्राप्ति होती है। वैश्वानर वीथी भूखंड : जो भूखंड वायव्य से ऊंचा व आग्नेय से नीचा हो, वैश्वानर वीथी भूखंड कहलाता है। इस पर वास करने वाला व्यक्ति अग्नि भय से ग्रस्त होता है। 

—स्वमुख वास्तु :— जो भूखंड आग्नेय, ईशान व वायव्य से ऊंचा, वायव्य व आग्नेय से नीचा और नैऋत्य से नीचा हो, स्वमुख भूखंड कहलता है। इस भूखंड पर वास करने वाले रोगग्रस्त रहते हैं और उनके धन का नाश होता है। शांडूल वास्तु जो भूखंड ईशान से ऊंचा, वायव्य व आग्नेय से नीचा हो, शांडूल वास्तु कहलाता है। यह भूमि क्लेशकारक होती है। 

—श्वमुख वास्तु :—- जो भूखंड आग्नेय व ईशान से ऊंचा व पश्चिम से नीचा हो, श्वमुख वास्तु कहलाता है। ऐसी भूमि पर वास करने से सुख, शांति व धन का नाश होता है। 

—नागपृष्ठ वास्तु :— जो भूखंड ब्रह्मस्थान से नीचा व सभी दिशाओं से ऊंचा हो, नागपृष्ठ वास्तु कहलाता है। ऐसी भूमि पर वास करने वाले की पुत्री को कष्ट, परिवार में रोगों की वृद्धि, शत्रुओं से भय आदि की संभावना रहती है। भूमि के कोण व कटाव : भूमि के सभी कोणों का 900 होना अति शुभ होता है। भूमि का विस्तार पूर्व, उत्तर, व ईशान में शुभ और बाकी दिशाओं में अशुभ फलदायक होता है। इसका कटाव नुकसानदायक होता है। 

—भूखण्ड के कोणः — यदि भूखण्ड के चारों कोने समकोण हों तो सर्वोत्तम होता है। दक्षिण-पश्चिम या नैऋत्य कोण संपूर्ण (Exact) समकोण 900 गुनिया में होना आवश्यक है। उत्तर-पश्चिम या वायव्य कोण समकोण या अधिक हो सकता है परन्तु किसी भी हालत में 900 से कम न हो। इसी प्रकार आग्नेय कोण समकोण या उससे अधिक हो सकता है, परंतु किसी भी स्थिति में 900 से कम नहीं होना चाहिए। ईशान या उत्तर पूर्वी कोण समकोण या उससे कम होना चाहिए, परंतु किसी भी हालत में 900 से अधिक नहीं होना चाहिए।
—भूखण्ड कि स्थिति एवं दिशाः — सामान्यतः उत्तर एवं पूर्व दिशा की ओर मुखवाले प्लॉट शुभ होते हैं परंतु प्लाट की दिशा पर अधिक ध्यान न देते हुए भूखण्ड के मुख्यद्वार एवं उस पर बनने वाले भवन की स्थिति पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।
—भूखंड के दो या अधिक दिशाओं में सड़क का मापदण्डः —यदि किसी भूखण्ड के चारों और सड़क है तो वह अत्यन्त शुभ है। किसी भूखण्ड के दो ओर सड़क होना भी शुभ है। यदि भूखण्ड के उत्तर, पश्चिम या पूर्व में सड़क है तो वह शुभ है। दक्षिण एवं पश्चिम में सड़क व्यापारियों के लिए अच्छी होती है। दक्षिण और पूर्व में सड़क महिलाओं और महिलाओं के संगठन या संस्था के लिए उपयुक्त बतायी गयी है। तीन तरफ सड़कवाले भवन अच्छा प्रभाव नहीं रखते। ऐसी दशा में चौथी सड़क अपने भूखण्ड में बनाना लाभदायक होता है अथवा एक सड़क की तरफ कोई द्वार न रखकर भी उचित प्रभाव लिया जा सकता है।

—भूखण्ड का लेवलः —भूमि का ढाल उत्तर या पूर्व की ओर शुभ होता है। भूखण्ड का उत्तर एवं पूर्वी भाग सबसे नीचा होना चाहिए। वायव्य कोण एवं आग्नेय कोण का तल लगभग समान होना चाहिए। आग्नेय कोण एवं वायव्य कोण में भूमि स्तर ईशान से ऊँचा हो तथा नैऋत्य से नीचा होना चाहिए।
–भूखण्ड के बाहर का लेवलः– पूर्व एवं उत्तर के भूखण्ड से संलग्न सड़क का लेवल नीचा होना चाहिए। किन्तु दक्षिण एवं पश्चिम में भूखण्ड से संलग्न सड़क प्लाट से ऊँची होनी चाहिये।
दक्षिण या पश्चिम में यदि कोई टीला या पहाड़ी हो तो शुभ होता है। भूखण्ड के उत्तर, पूर्व या ईशान कोण में तालाब, नदी अथवा जल स्रोत हो तो वह अत्यन्त शुभ होता है। भूखण्ड के दक्षिण, पश्चिम या नैऋत्य कोण में ऊँचा भवन होना वास्तु-अनुकूल होता है।
—भूखण्ड में कुआँ या जल स्रोत–मकान का निर्माण कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व प्लाट में कुआँ या टयूबवैल खुदवाना चाहिए।
यदि पूर्व में कुआँ खुदवाना हो तो वह प्लाट के पहले खण्ड के उत्तर की ओर खुदवाना चाहिए। यदि उत्तर में खुदवाना हो तो पहले खण्ड के पूर्व की ओर खुदवाना चाहिए। पश्चिम, दक्षिण, नैऋत्य में कुआँ अत्यन्त हानिकारक होता है। उसी प्रकार वायव्य अथवा आग्नेय कोण में अथवा मध्य (ब्रह्मस्थान) में भी कुआँ अत्यन्त हानिकारक होता है। कुआँ या टयूबवैल ईशान व नैऋत्य विकर्ण (Diagnol) पर नहीं होना चाहिए, वह हानिकारक होता है।

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