पितृ दोष और श्राद्ध पक्ष मैं केसे करें उनका निवारण .??? 
कुछ ज्योतिषी यह मानते हैं जातक ने अपने पूर्वजों के मृत्योपरांत किये जाने वाले संस्कार तथा श्राद्ध आदि उचित प्रकार से नहीं किये होते जिसके चलते जातक के पूर्वज अर्थात पित्र उसे शाप देते हैं जो पित्र दोष बनकर जातक की कुंडली में उपस्थित हो जाता है तथा जातक के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समस्याएं उत्पन्न करता है।ऐसे ज्योतिषी पित्र दोष के निवारण के लिए पित्रों के श्राद्ध कर्म आदि करने, पिंड दान करने तथा नारायण पूजा, आदि का सुझाव देते हैं जबकि वास्तविकता में इन उपायों को करने वाले जातकों को पित्र दोष कुंडली में सूर्य अथवा कुंडली के नौवें घर पर एक अथवा एक से अधिक अशुभ ग्रहों के प्रभाव से बनता है तथा पित्र दोष निवारण पूजा करवाने के लिए सबसे पहले यह पता होना आवश्यक है कि कुंडली में पित्र दोष बनाने वाला ग्रह कौन सा है। हम यह मान लेते हैं कि कुंडली विशेष में राहु के सूर्य पर अशुभ प्रभाव होने के कारण कुंडली में पित्र दोष बनता है तथा  वेदों के अनुसार पित्रों के लिए किये गये चार प्रकार के विशेष कर्म श्राद्ध कर्म कहलाते हैं तथा ये कर्म हैं हवन, पिंड दान, तर्पण और ब्राह्मण भोजन। इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि अधिकतर जातकों द्वारा किया जाने वाला ब्राह्मण भोजन का कर्म भी एक प्रकार का श्राद्ध कर्म है किन्तु यह कर्म अपने आप में संपूर्ण श्राद्ध नहीं है। वेदों के अनुसार उपर बताये गये चारों प्रकार के श्राद्ध कर्मों का अपना विशेष महत्व है तथा यथासंभव प्रत्येक परिवार में से एक व्यक्ति को पितृ पक्ष के समय अपने मृतक पूर्वजों के लिए ये चारों श्राद्ध कर्म करने चाहिएं।


ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानन्द शास्त्री(मोब.-. ) के अनुसार शास्त्रो में मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण कहे गए है। देव ऋण ,ऋषि ऋण व पितृ ऋण। इसमें से पितृ ऋण के निवारण के लिए पितृ यज्ञ का वर्णन किया गया है। पितृ यज्ञ का दुसरा नाम ही श्राद्ध कर्म है। श्रद्धायंा इदम् श्राद्ध। अर्थात पितरो के उदेश्य से जो कर्म श्रद्धापूर्वक किया जाए,वही श्राद्ध है। महर्षि बृहस्पति के अनुसार जिस कर्म विशेष में अच्छी प्रकार से पकाए हुए उत्तम व्यंजन को दुग्ध घृत और शहद के साथ श्रद्धापूर्वक पितरो के उदेश्य से ब्राह्मणादि को प्रदान किया जाए वही श्राद्ध है।
        
भारतीय संस्कृति में माता पिता को देवता तुल्य माना जाता है। इसलिए शास्त्र वचन है कि पितरो के प्रसन्न होने पर सारे देव प्रसन्न हो जाते है। ब्रह्मपूराण के अनुसार श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने वाला मनुष्य अपने पितरो के अलावा ब्रह्म, इन्द्र, रूद्र, अश्विनी कुमार, सुर्य, अग्नि, वायु, विश्वेदेव, एवं मनुष्यगण को भी प्रसन्न कर देता है।  मृत्यु के पश्चात हमारा स्थूल शरीर तो यही रह जाता है। परंतु सूक्ष्म शरीर यानि आत्मा मनुष्य के शुभाशुभ कर्मो के अनुसार किसी लोक विशेष को जाती है। शुभकर्मो से युक्त आत्मा अपने प्रकाश के कारण ब्रह्मलोक, विष्णुलोक एवं स्वर्गलोक को जाती है। परंतु पापकर्म युक्त आत्मा पितृलोक की ओर जाती है। इस यात्रा में उन्हे भी शक्ति की आवश्यकता होती है जिनकी पूर्ति हम पिंड दान द्वारा करते है। ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानन्द शास्त्री(मोब.-.90.4.90067 ) के अनुसार  परिवार में किसी व्यक्ति की मृत्यु के उपरांत परिवारजनों द्वारा जब उसकी इच्छाओं एवं उसके द्वाराछुटे अधुरे कार्यों को परिवारजनों द्वारा पुरा नही किया जाता। तब उसकी आत्मा वही भटकती रहती है एवं उन कार्यो को पुरा करवाने के लिए परिवारजनों पर दबाव डालती है। इसी कारणपरिवार में शुभ कार्यो में कमी एवं अशुभता बढती जाती है। इन अशुभताओं का कारण पितृदोष माना गया है। इसके निवारण के लिए श्राद्धपक्ष में पितर शांति एवं पिंडदान करना शुभ रहता हैं। भारतीय धर्म शास्त्रों के अनुसार    ’’पुन्नाम नरकात् त्रायते इति पुत्रम‘‘ एवं ’’पुत्रहीनो गतिर्नास्ति‘‘ अर्थात पुत्रहीन व्यक्तियों की गति नही होती व पुत नाम के नरक से जो बचाता है, वह पुत्र है। इसलिए सभी लोग पुत्र प्राप्ति की अपेक्षा करते है। वर्तमान में पुत्र एवं पुत्री को एक समान माने जाने के कारण इस भावना में सामान्य कमी आई है परन्तु पुत्र प्राप्ति की इच्छा सबको अवश्य ही बनी रहती है जब पुत्र प्राप्ति की संभावना नही हो तब ही आधुनिक विचारधारा वाले लोग भी पुत्री को पुत्र के समान स्वीकारते है। इसमे जरा भी संशय नही है।

पुत्र द्वारा किए जाने वाले श्राद्ध कर्म से जीवात्मा को पुत नामक नरक से मुक्ति मिलती है। किसी जातक को पितृदोष का प्रभाव है या नही। इसके बारे में ज्योतिष शास्त्र में प्रश्न कुंडली एवं जन्म कुंडली के आधार पर जाना जा सकता है। पाराशर के अनुसार-

कर्मलोपे पितृणां च प्रेतत्वं तस्य जायते।
तस्य प्रेतस्य शापाच्च पुत्राभारः प्रजायते।।

अर्थात कर्मलोप के कारण जो पुर्वज मृत्यु के प्श्चात प्रेत योनि में चले जाते है, उनके शाप के कारण पुत्र संतान नही होती। अर्थात प्रेत योनि में गए पितर को अनेकानेक कष्टो का सामना करनापडता है। इसलिये उनकी मुक्ति हेतु यदि श्राद्ध कर्म न किया जाए तो उसका वायवीय शरीर हमे नुकसान पहुंचाता रहता है। जब उसकी मुक्ति हेतु श्राद्ध कर्म किया जाता है, तब उसे मुक्ति प्राप्त होने से हमारी उनेक समस्याएं स्वतः ही समाप्त हो जाती है। 

ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानन्द शास्त्री(मोब.-09024390067 ) के अनुसार   सूर्य को नवग्रहों में से राजा माना जाता है तथा सूर्य हमारी कुंडली में हमारी आत्मा, हमारे पिता, हमारे पूर्वजों, हमारी नर संतान पैदा करने की क्षमता आदि का प्रदर्शन करते हैं जिसके चलते प्रत्येक कुंडली में सूर्य बहुत महत्वपूर्ण ग्रह माना जाता है तथा इसी के कारण सूर्य पर कुंडली में किसी एक या एक से अधिक अशुभ ग्रहों का प्रभाव पड़ने पर जातक के लिए बहुत सीं समस्याएं पैदा हो सकती हैं। कुंडली का नौवां घर हमारे पिता, हमारे दादा, हमारे पूर्वजों आदि को दर्शाता है तथा साथ ही साथ कुंडली का नौवां घर हमारे उस भाग्य को भी दर्शाता है जिसका निर्माण हमारे पूर्व जन्म के अच्छे अथवे बुरे कर्मों के फलस्वरूप हुआ है। इसलिए कुंडली का नौवां घर भी कुंडली के बहुत महत्वपूर्ण घरों में से एक माना जाता है क्योंकि भाग्य के बिना तो कोई भी व्यक्ति कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकता। इसलिए किसी कुंडली में सूर्य अथवा कुंडली के नौवें घर के एक अथवा एक से अधिक अशुभ ग्रहों के प्रभाव में आ जाने पर कुंडली में पित्र दोष बन जाता है जो जातक को उसके जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक प्रकार के कष्टों से पीड़ित कर सकता है । ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानन्द शास्त्री(मोब.-09024390067 ) के अनुसार   राहु को बिना सोचे समझे मन में आ जाने वाले विचार, बिना सोचे समझे अचानक मुंह से निकल जाने वाली बात, क्षणों में ही भारी लाभ अथवा हानि देने वाले क्षेत्रों जैसे जुआ, लाटरी, घुड़दौड़ पर पैसा लगाना, इंटरनैट तथा इसके माध्यम से होने वाले व्यवसायों तथा ऐसे ही कई अन्य व्यवसायों तथा क्षेत्रों का कारक माना जाता है। राहु की अन्य कारक वस्तुओं में लाटरी तथा शेयर बाजार जैसे क्षेत्र, वैज्ञानिक तथा विशेष रूप से वे वैज्ञानिक जो अचानक ही अपने किसी नए अविष्कार के माध्यम से दुनिया भर में प्रसिद्ध हो जाते हैं, इंटरनैट से जुड़े हुए व्यवसाय तथा इन्हें करने वाले लोग, साफ्टवेयर क्षेत्र तथा इससे जुड़े लोग, तम्बाकू का व्यापार तथा सेवन, राजनयिक, राजनेता, राजदूत, विमान चालक, विदेशों में जाकर बसने वाले लोग, अजनबी, चोर, कैदी, नशे का व्यापार करने वाले लोग, सफाई कर्मचारी, कंप्यूटर प्रोग्रामर, ठग, धोखेबाज व्यक्ति, पंछी तथा विशेष रूप से कौवा, ससुराल पक्ष के लोग तथा विशेष रूप से ससुर तथा साला, बिजली का काम करने वाले लोग, कूड़ा-कचरा उठाने वाले लोग, एक आंख से ही देख पाने वाले लोग तथा ऐसे ही अन्य कई प्रकार के क्षेत्र तथा लोग आते हैं। किसी कुंडली में अशुभ राहु द्वारा पित्र दोष बनाये जाने का अर्थ यह होता है कि ऐसे जातक तथा उसके पूर्वजों ने पिछ्ले जन्मों में राहु की विशेषताओं से संबंधित अपराध किये होते हैं अथवा इन विशेषताओं का दुरुपयोग किया होता है जिसके चलते राहु अशुभ होकर ऐसे जातक की जन्म कुंडली में पित्र दोष बनाते हैं। 
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानन्द शास्त्री(मोब.-09024390067 ) के अनुसार  जिन जातकों के पूर्वजों ने राहु महाराज द्वारा प्रदान की गईं विशेषताओं का दुरुपयोग करके अवैध तथा अनैतिक कार्यों से धन कमाया होता है उन जातकों की कुंडली में इस प्रकार का पित्र दोष बन सकता है। उदाहरण के लिए किसी कुंडली के छठे घर में अशुभ राहु से बनने वाले पित्र दोष का अर्थ यह हो सकता है कि जातक के पूर्वजों ने अनेक प्रकार के अनैतिक तथा अवैध कार्यों के माध्यम से धन अर्जित किया था जिसके चलते जातक की कुंडली में इस प्रकार का पित्र दोष बनता है जिसके अशुभ प्रभाव में आने के कारण जातक को एक अथवा एक से अधिक गंभीर रोग हो सकते हैं जो जातक को बहुत कष्ट पहुंचाते हैं तथा जो जातक की मृत्यु का कारण भी बनते हैं। इस प्रकार के पित्र दोष से पीड़ित कुछ जातक अपराधी भी बन सकते हैं तथा ऐसे जातक सामान्यतया अपराध का जीवन आरंभ करने के बाद शीघ्र ही पकड़े जाते हैं तथा इन जातकों को अपने अपराध की तुलना में कहीं अधिक लंबा समय कारावास में व्यतीत करना पड़ सकता है। इस प्रकार के कुछ अन्य जातकों को किसी प्रकार के न्यायालय के निर्णय के चलते धन अथवा संपत्ति की हानि भी उठानी पड़ सकती है। 
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानन्द शास्त्री(मोब.-09024390067 ) के अनुसार  जिन जातकों के पूर्वजों ने नशीले पदार्थों के अवैध व्यापार के माध्यम धन कमाया होता है उनकी कुंडली में भी इस प्रकार का पित्र दोष बन सकता है। उदाहरण के लिए किसी कुंडली के दूसरे घर में बनने वाला इस प्रकार के पित्र दोष का यह अर्थ हो सकता है कि जातक के पूर्वज मादक पदार्थों की अवैध बिक्री करते थे तथा उनका द्वारा बेचे जाने वाले मादक पदार्थों के सेवन से बहुत लोगों को अनेक प्रकार के रोगों का सामना करना पड़ा था जिसके चलते इस प्रकार का पित्र दोष जातक की कुंडली में बन जाता है जिसके अशुभ प्रभाव के कारण जातक को मादक पदार्थों के सेवन की लत लग सकती है जिसके कारण ऐसे जातक को धन, सम्मान तथा स्वास्थ्य सभी की हानि होती है। इस प्रकार के पित्र दोष से पीड़ित कुछ जातकों को मादक पदार्थों के निरंतर सेवन के कारण गंभीर रोग लग सकते हैं, इनके शरीर के कुछ अंग इन मादक पदार्थों के सेवन के कारण निष्क्रिय हो सकते हैं तथा इस दोष के कुंडली में बहुत प्रबल होने पर जातक की मादक पदार्थों का सेवन अधिक मात्रा में करने के कारण मृत्यु भी हो सकती है। जातक को मिलने वाले इस प्रकार के सभी कष्ट वास्तव में जातक अथवा उसके पूर्वजों के पिछ्ले जन्मों के बुरे कर्मों का फल ही होते हैं। 
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानन्द शास्त्री(मोब.-09024390067 ) के अनुसार  जिन जातकों के पूर्वजों ने राहु महाराज की कृपा से मिली सत्ता अथवा प्रभुत्व वाले किसी पद का दुरुपयोग किया होता है, उनकी कुंडली में भी इस प्रकार का पित्र दोष बन सकता है। उदाहरण के लिए किसी कुंडली के चौथे घर में अशुभ राहु से बनने वाले पित्र दोष का अर्थ यह हो सकता है कि जातक के पूर्वजों ने राहु महाराज की विशेषताओं के कारण मिली सत्ता अथवा प्रभुत्व का दुरुपयोग करके निर्दोष लोगों को सताया था तथा अनैतिक ढंग से धन संपत्ति अर्जित की थी जिसके कारण जातक की कुंडली में इस प्रकार का पित्र दोष बन जाता है जिसके अशुभ प्रभाव के कारण जातक को कोई गंभीर मानसिक रोग लग सकता है जिसका उचित उपचार सारा जीवन नहीं हो पाता तथा जिसके कारण जातक को बहुत सा समय किसी मानसिक अस्पताल में व्यतीत करना पड़ सकता है। इस प्रकार के पित्र दोष से पीड़ित कुछ जातकों को किसी ऐसे आरोप के चलते बहुत बदनामी तथा अपयश मिल सकता है जो वास्तव में सच ही न हो तथा वास्तव में ऐसा झूठा आरोप जातक के पिछले जन्मों के बुरे कर्मों के कारण ही जातक को भुगतना पड़ता है। जिन जातकों ने अथवा जिन जातकों के पूर्वजों ने अपने पिछले जन्मों में अपने ससुराल पक्ष को बहुत पीड़ित किया होता है, उन जातकों की कुंडली में भी इस प्रकार का पित्र दोष बन सकता है जिसके चलते इन जातकों के वैवाहिक जीवन में अनेक प्रकार की समस्याएं आतीं हैं तथा बहुत बार इन समस्याओं का कारण जातक का ससुर अथवा साला ही होता है। 
केतु पहले भाव में होने से सूर्य के फल को नष्ट कर देता है एवं चंद्र और राहू एक सांथ होने से ग्रहण दोष बनता जो कई तरह कष्ट कारी है ये पित्र दोष है 
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानन्द शास्त्री(मोब.-09024390067 ) के अनुसार  सबसे पहले यह पता होना आवश्यक है कि कुंडली में पित्र दोष बनाने वाला ग्रह कौन सा है। हम यह मान लेते हैं कि कुंडली विशेष में राहु के सूर्य पर अशुभ प्रभाव होने के कारण कुंडली में पित्र दोष बनता है तथा इस प्रकार हमें इस पित्र दोष के निवारण के लिए राहु के वेद मंत्र के जाप से पित्र दोष निवारण पूजा करनी होगी। इसी प्रकार नवग्रहों में से भिन्न भिन्न प्रकार के ग्रहों के द्वारा विभिन्न कुंडलियों में बनाए जाने वाले पित्र दोष के निवारण के लिए उसी ग्रह के वेद मंत्र के माध्यम से पित्र दोष निवारण पूजा की जाती है।

कैसे जाने पितृऋण एवं पितृदोष…?????

         संतान की उत्पति में गुणसुत्र का अत्यधिक महत्व है। इन्ही गुणसुत्रो के अलग-अलग संयोग से पुत्र एवं पुत्री की प्राप्ति होती है। शास्त्रो में पुत्र को श्राद्ध कर्म का अधिकारी मुख्यतः माना गया है। पिता के शुक्राणु से जीवात्मा माता के गर्भ मे प्रवेश करती है। उस जीवांश में 84 अंश होते है। जिसमे 28 अंश शुक्रधारी पुरूष अर्थात पिता के होते है। ये 28 अंश पिता के स्वंय के उपार्जित होते है एवं शेष अंश पूर्व पूरूषो के होते है। उसमे से 2. अंश पिता, 15 अंश पितामह के, 10 अंश प्रपितामह के, 6 अंश चतुर्थ पुरूष, 3 अंश पंचम पुरूष व 1 अंश षष्ठ पुरूष का होता है। इस प्रकार सात पीढीयो तक के सभी पूर्वजो के रक्त का अंश हमारे शरीर में विद्यमान होने से हम अपने पूर्वजो के ऋणी है अर्थात हम पर पितृ ऋण रहता है। इसलिए उनको पिंडदान करना चाहिए।
         
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानन्द शास्त्री(मोब.-09024390067 ) के अनुसार पितृदोष होने पर परिवार एवं परिवार जनो को विचित्र प्रकार की घटनाओ का सामना करना पडता है। ऐसे परिवार मे रोग का प्रकोप बना रहता है। किसी एक के स्वस्थ होने पर दुसरा बीमार हो जाता है। कई बार रोग का पता ही नही चल पाता रोगी को थोडी राहत महसुस होती है फिर रोग का पुनः प्रकोप होता रहता है। कई बार इनके कार्य व्यवसाय मे भी अवरोध की स्थिति बनकर घाटा उठाना पडता है। इनके परिवार मे भी मतभेद की स्थिति बनती है। आपस मे कलह के कारण जीवन तनावपूर्ण हो जाता है। इन सभी प्रकार की अप्रत्भाशित घटनाओ के पीछे पितृदोष ही मुख्य रूप से होता है। इसकी जानकारी जन्मपत्रिका एवं प्रश्न कुंडली के द्वारा जान सकते है। वृह को मुख्य रूप से इसके लिए जिम्मेदार माना जाता है। यदि जन्मांग में वृह निर्बल, अशुभ, वक्री, अस्त, होकर स्थित हो तो उस जातक के पितर उससे अप्रसन्न रहते है। ऐसे जातक को किस पितर के प्रकोप के कारण इस प्रकार की परेशानियां आ रही है। इसके लिए प्रश्नकुंडली के अष्ट एवं द्वादश भाव में स्थित ग्रह से पता लगाया जा सकता है। प्रत्येक ग्रह को किसी रिश्तेदार का प्रतिनिधि माना जाता है। इसमे सूर्य का पिता का कारक, चंद्र को माता, मंगल को छोटा भाई, बुध को बहन, बुआ, मौसी, वृह को बडे भाई एवं पत्रिका शुक्र को पत्नी का कारक माना जाता है। राहु एवं केतु को प्रेत योनि मे गए पितरो का प्रतिनिधि माना है। इस प्रकार प्रश्न कुंडली में स्थिति के अनुसार पितर दोष के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते है। इसके पश्चात कुशल देवज्ञ से शांति कर्म की व्यवस्था करवा सकते है।

पितृ दोष के प्रमुख ज्योतिषिय योग—- ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानन्द शास्त्री(मोब.-09024390067 ) के अनुसार  
1 ——-जब लग्न एवं पंचम भाव में सूर्य , मंगल एवं शनि स्थित हो एवं अष्टम या द्वादश भाव में वृहस्पति राहु से युति कर स्थित हो पितृशाप से संतान नही होती।
2 —–सूर्य को पिता का एवं वृह. को पितरो का कारक माना जाता है। जब ये दोनो ग्रह निर्बल होकर शनि, राहु, केतु के पाप प्रभाव में हो तो पितृदोष होता है।
3 ———-जब अष्टम या द्वादश भाव में कोई ग्रह निर्बल होकर उपस्थित हो तो पितृदोष होता है।
4  ——-जब सूर्य, चंद्र एवं लग्नेश का राहु केतु से संबंध होने पर पितृदोष होता है।
5 —–जब जन्मांग चक्र में सूर्य शनि की राशि में हो एवं वृह. वक्री होकर स्थित हो तो ऐसे जतक पितृदोष से पिडित रहते है।
6 —–जब राहु एवं केतु का संबंध पंचम भाव-भावेश से हो तो पितृदोष से संतान नही होती है।
7 ——अष्टमेश एवं द्वादशेश का संबंध सूर्य वृह. से हो तो पितृदोष होता है।
8 ——-जब जब वृह. एवं सूर्य नीच नवांश में स्थित होकर शनि राहु केतु से युति-दृष्टि संबंध बनाए तो पितृदोष होता है।

ऐसे करें पितृदोष निवारण—- ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानन्द शास्त्री(मोब.-09024390067 ) के अनुसार  
1पितृदोष निवारण के लिए श्राद्ध करे। समयाभाव में भी सर्वपितृ अमावस्या या आश्विन कृष्ण अमावस्या के दिन श्राद्ध अवश्य श्रद्धापूर्वक करे।
2 ——गुरूवार के दिन सायंकाल के समय पीपल पेड की जड पर जल चढाकर सात बार परिक्रमा कर घी का दीपक जलाए।
3 —–प्रतिदिन अपने भोजन मे से गाय, कुते व कौओ को अवश्य खिलाए।
4 —-श्रीमद भागवत कथा पाठ करवाएं / श्रवण करे।
5 —-
पितृदोष शांति हेतु नारायण बली, नागबली आदि करे।
6 ——-माह में एक बार रूद्राभिषेक करे। संभव नही होने पर श्रावण मास में रूद्राभिषेक अवश्य करे।
7 ——अपने  कुलदेवी-देवता का पुजन करते रहे।
8 —–श्राद्ध काल में पितृसुक्त का प्रतिदिन पाठ अवश्य करे।
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पितृ सुक्त——
पितृदोष के निवारण के लिए श्राद्ध काल में पितृ सुक्त का पाठ संध्या समय में तेल का दीपक जलाकर करे तो पितृदोष की  शांति होती है।
अर्चितानाम मूर्ताणां पितृणां दीप्ततेजसाम्।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्चक्षुषाम्।।
  हिन्दी- जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यनत तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्य दुष्टि सम्पन्न है, उन पितरो को मै सदा नमस्कार करता है।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान्।।
अर्थात जो इन्द्र आदि देवताओ, दक्ष, मारीच, सप्त ऋषियो तथा दुसरो के भी नेता है। कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता है।
मन्वादीनां मुनीन्द्राणां सूर्याचन्द्रूसोस्तयथा।
तान् नमस्याम्यहं सर्वान पितृनप्सुदधावपि।।
अर्थात जो मनु आदि राजार्षियों, मुनिश्वरो तथा सूर्य चंद्र के भी नायक है, उन समस्त पितरो को मैं जल और समुद्र मै भी नमस्कार करता है।
नक्षत्राणां ग्रहणां च वाच्व्यग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलि5।।
अर्थात जो नक्षत्रों ,ग्रहो,वायु,अग्नि,आकाश और द्युलोक एवं पृथ्वीलोक के जो भी नेता है, उन पितरो को मै हाथ जोडकर प्रणाम करता हूँ।
देवर्षिणां जनितंृश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षच्चस्य सदादातृन नमस्येळहं कृतांजलिः।।
अर्थात जो देवर्षियो के जन्मदाता, समस्त लोको द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता है। उन पितरो को मै हाथ जोडकर प्रणाम करता हूँ।
प्रजापतेः कश्यपाय सोमाय वरूणाय च।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृतांजलिः।।
अर्थात प्रजापति, कश्यप, सोम,वरूण तथा योगेश्वरो के रूप् में स्थित पितरो को सदा हाथ जोडकर प्रणाम करता हूँ।
नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।
स्वयंभूवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।
अर्थात सातो लोको मे स्थित सात पितृगणो को नमस्कार है। मै योगदृश्टि संपन्न स्वयंभू ब्रह्मजी को प्रणाम करता है।
सोमाधारान् पितृगणानयोगमूर्ति धरांस्तथा।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।
अर्थात चंद्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित और योगमूर्तिधारी पितृगणों को मै प्रणाम करता हूँ। साथ ही संपूर्ण जगत के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ।
अग्निरूपांस्तथैवान्याम् नमस्यामि पितृनहम्।
अग्निषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः।।
अर्थात अग्निस्वरूप् अन्य पितरो को भी प्रणाम करता हूँ क्याकि यह संपूर्ण जगत अग्नि और सोममय है।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः।
जगत्स्वरूपिणश्चैवतथा ब्रह्मस्वरूपिणः।।
अर्थात जो पितर तेज मे स्थित है जो ये चन्द्रमा, सूषर्् और अग्नि के रूप् मै दृष्टिगोचर होते है तथा जो जगतस्वरूप् और ब्रह्मस्वरूप् है।
तेभ्योळखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः।
नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुजः।।
अर्थात उन संपूर्ण योगी पितरो को मै। एकाग्रचित होकर प्रणाम करता है। उन्हे बारम्बार नमस्कार है। वे स्वधाभोजी पितर मुझ पर प्रसन्न हो।
विशेष- यदि आप संस्कृत पाठ नही कर सके तो हिन्दी में पाठ कर भी पितृ कृपा प्राप्त कर सकते है। 
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ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानन्द शास्त्री(मोब.-09024390067 ) के अनुसार किसी भी प्रकार के दोष के निवारण के लिए की जाने वाली पूजा को विधिवत करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है उस दोष के निवारण के लिए निश्चित किये गए मंत्र का एक निश्चित संख्या में जाप करना तथा यह संख्या अधिकतर दोषों के लिए की जाने वाली पूजाओं के लिए 125,000 मंत्र होती है। पित्र दोष के निवारण के लिए की जाने वाली पूजा में भी पित्र दोष के निवारण मंत्र अर्थात वेद मंत्र का 125,000 बार जाप करना अनिवार्य होता है।
पूर्ण पित्रदोष शांती हेतु पित्रपक्ष में वैदिक अनुष्ठान के साथ श्रीमद् भागवत कथा का मूल पाठ कराने से पूर्ण लाभ प्राप्त होगा 

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