जानिए की रत्न क्या हैं??? जानिए रत्न का प्रभाव एवं रत्न को केसे जागृत करें ?

आचार्य पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री, मोब.–.9669.90067–M.P.  एवं .–RAJ.

रत्नों को धारण करने के पीछे मात्र उनकी चमक प्रमुख कारण नहीं है बल्कि अपने लक्ष्य के अनुसार उनका लाभ प्राप्त करना अत्यंत महत्वपूर्ण है और यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि ये रत्न जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का कार्य करते किस प्रकार हैं। हम अपने आस-पास व्यक्तियों को भिन्न-भिन्न रत्न पहने हुए देखते हैं। ये रत्न वास्तव में कार्य कैसे करते हैं और हमारी जन्मकुंडली में बैठे ग्रहों पर क्या प्रभाव डालते हैं और किस व्यक्ति को कौन से विशेष रत्न धारण करने चाहिये, ये सब बातें अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। रत्नों का प्रभाव: रत्नों में एक प्रकार की दिव्य शक्ति होती है। वास्तव में रत्नों का जो हम पर प्रभाव पड़ता है वह ग्रहों के रंग व उनके प्रकाश की किरणों के कंपन के द्वारा पड़ता है। हमारे प्राचीन ऋषियों ने अपने प्रयोगों, अनुभव व दिव्यदृष्टि से ग्रहों के रंग को जान लिया था और उसी के अनुरूप उन्होंने ग्रहों के रत्न निर्धारित किये। जब हम कोई रत्न धारण करते हैं तो वह रत्न अपने ग्रह द्वारा प्रस्फुटित प्रकाश किरणों को आकर्षित करके हमारे शरीर तक पहुंचा देता है और अनावश्यक व हानिकारक किरणों के कंपन को अपने भीतर सोख लेता है। अतः रत्न ग्रह के द्वारा ब्रह्मांड में फैली उसकी विशेष किरणों की ऊर्जा को मनुष्य को प्राप्त कराने में एक विशेष फिल्टर का कार्य करते हैं।
जितने भी रत्न या उपरत्न है वे सब किसी न किसी प्रकार के पत्थर है। चाहे वे पारदर्शी हो, या अपारदर्शी, सघन घनत्व के हो या विरल घनत्व के, रंगीन हो या सादे…। और ये जितने भी पत्थर है वे सब किसी न किसी रासायनिक पदार्थों के किसी आनुपातिक संयोग से बने हैं। विविध भारतीय एवं विदेशी तथा हिन्दू एवं गैर हिन्दू धर्म ग्रंथों में इनका वर्णन मिलता है।
आधुनिक विज्ञान ने अभी तक मात्र शुद्ध एवं एकल .28 तत्वों को पहचानने में सफलता प्राप्त की है। जिसका वर्णन मेंडलीफ की आधुनिक आवर्त सारणी (Periodic Table) में किया गया है। किन्तु ये एकल तत्व है अर्थात् इनमें किसी दूसरे तत्व या पदार्थ का मिश्रण नहीं प्राप्त होता है। किन्तु एक बात अवश्य है कि इनमें कुछ एक को समस्थानिक (Isotopes) के नाम से जाना जाता है।
वैज्ञानिक भी मानते हैं कि हमारे शरीर के चारों ओर एक आभामण्डल होता है, जिसे वे AURA कहते हैं। ये आभामण्डल सभी जीवित वस्तुओं के आसपास मौजूद होता है। मनुष्य शरीर में इसका आकार लगभग 2 फीट की दूरी तक रहता है। यह आभामण्डल अपने सम्पर्क में आने वाले सभी लोगों को प्रभावित करता है। हर व्यक्ति का आभामण्डल कुछ लोगों को सकारात्मक और कुछ लोगों को नकारात्मक प्रभाव होता है, जो कि परस्पर एकदूसरे की प्रकृति पर निर्भर होता है। विभिन्न मशीनें इस आभामण्डल को अलग अलग रंगों के रूप में दिखाती हैं ।
वैज्ञानिकों ने रंगों का विश्लेषण करके पाया कि हर रंग का अपना विशिष्ट कंपन या स्पंदन होता है। यह स्पन्दन हमारे शरीर के आभामण्डल, हमारी भावनाओं, विचारों, कार्यकलाप के तरीके, किसी भी घटना पर हमारी प्रतिक्रिया, हमारी अभिव्यक्तियों आदि को सम्पूर्ण रूप से प्रभावित करते है।
वैज्ञानिकों के अनुसार हर रत्न में अलग क्रियात्मक स्पन्दन होता है। इस स्पन्दन के कारण ही रत्न अपना विशिष्ट प्रभाव मानव शरीर पर छोड़ते हैं।
प्राचीन संहिता ग्रंथों में जो उल्लेख मिलता है, उसमें एकल तत्व मात्र 108 ही बताए गए हैं। इनसे बनने वाले यौगिकों एवं पदार्थों की संख्या .9000 से भी ऊपर बताई गई हैं। इनमें कुछ एक आज तक या तो चिह्नित नहीं हो पाए है, या फिर अनुपलब्ध हैं। इनका विवरण, रत्नाकर प्रकाश, तत्वमेरू, रत्न वलय, रत्नगर्भा वसुंधरा, रत्नोदधि आदि उदित एवं अनुदित ग्रंथों में दिया गया है।
कज्जलपुंज, रत्नावली, अथर्वप्रकाश, आयुकल्प, रत्नाकर निधान, रत्नलाघव, Oriental Prism, Ancient Digiana तथा Indus Catalog आदि ग्रंथों में भी इसका विषद विवरण उपलब्ध है।
कुछ रत्न बहुत ही उत्कट प्रभाव वाले होते है। कारण यह है कि इनके अंदर उग्र विकिरण क्षमता होती है। अतः इन्हें पहनने से पहले इनका रासायनिक परिक्षण आवश्यक है। जैसे- हीरा, नीलम, लहसुनिया, मकरंद, वज्रनख आदि। यदि यह नग तराश (cultured) दिए गए हैं, तो इनकी विकिरण क्षमता का नाश हो जाता है। ये प्रतिष्ठापरक वस्तु (स्टेट्‍स सिंबल) या सौंदर्य प्रसाधन की वस्तु बन कर रह जाते हैं। इनका रासायनिक या ज्योतिषीय प्रभाव विनष्ट हो जाता है।
कुछ परिस्थितियों में ये भयंकर हानि का कारण बन जाते हैं। जैसे- यदि तराशा हुआ हीरा किसी ने धारण किया है तथा कुंडली में पांचवें, नौवें या लग्न में गुरु का संबंध किसी भी तरह से राहु से होता है, तो उसकी संतान कुल परंपरा से दूर मान-मर्यादा एवं अपनी वंश-कुल की इज्जत डुबाने वाली व्यभिचारिणी हो जाएगी।
दूसरी बात यह कि किसी भी रत्न को पहनने के पहले उसे जागृत (Activate) अवश्य कर लेना चाहिए। अन्यथा वह प्राकृत अवस्था में ही पड़ा रह जाता है व निष्क्रिय अवस्था में उसका कोई प्रभाव नहीं हो पाता है।
रत्नों के प्रभाव को प्रकट करने के लिए सक्रिय किया जाता है। इसे ही जागृत करना कहते हैं।
रत्नों का ज्योतिष में उपयोग ज्योतिष शास्त्र में बतायें गये विभिन्न उपायों में रत्नों का भी बड़ा विशेष महत्व है और रत्नों के द्वारा बहुत सकारात्मक परिवर्तन जीवन में आते हैं। परंतु वर्तमान में रत्न धारण करने के विषय में बहुत सी भा्रंतियां देखने को मिलती हैं जिससे बड़ी समस्याएं और दिक्कते उठानी पड़ती है। ज्यादातर व्यक्ति अपनी राशि के अनुसार रत्न धारण कर लेते हैं परंतु उन्हें समाधान मिलने के बजाय और समस्याएं आ जाती हैं।
सर्वप्रथम हमें यह समझना चाहिये कि रत्न धारण करने से होता क्या है। इसके विषय में हमेशा यह स्मरण रखें कि रत्न पहनने से किसी ग्रह से मिल रही पीड़ा समाप्त नहीं होती या किसी ग्रह की नकारात्मकता समाप्त नहीं होती है बल्कि किसी भी ग्रह का रत्न धारण करने से उस ग्रह की शक्ति बढ़ जाती है अर्थात् आपकी कुंडली का वह ग्रह बलवान बन जाता है। उससे मिलने वाले तत्वों में वृद्धि हो जाती है। हमारी कुंडली में सभी ग्रह शुभ फल देने वाले नहीं होते। कुछ ग्रह ऐसे होते हैं जो हमारे लिये अशुभकारक होते हैं और उनका कार्य केवल हमें समस्याएं देना होता है। 
प्रकृति ने अपने विकार निवारण हेतु हमें बहुत ही अनमोल उपहार के रूप में विविध रत्न प्रदान किए हैं, जो हमें भूमि (रत्नगर्भा), समुद्र (रत्नाकर) आदि विविध स्त्रोतों से प्राप्त होते हैं। कौटिल्य ने भी यही बात बताई है- ‘खनिः स्त्रोतः प्रकीर्णकं च योनयः’। ये रत्न हमारे हर विकार को दूर करने में सक्षम हैं। चाहे विकार भौतिक हो या आध्यात्मिक। इसी बात को ध्यान में रखते हुए महामति आचार्य वराह मिहिर ने बृहत्संहिता के 79वें अध्याय में लिखा है- ‘रत्नेन शुभेन शुभं भवति नृपाणामनिष्टमषुभेन। यस्मादतः परीक्ष्यं दैवं रत्नाश्रितं तज्ज्ञैः।’
ratna vighyan
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अर्थात्‌ शुभ, स्वच्छ व उत्तम श्रेणी का रत्न धारण करने से राजाओं का भाग्य शुभ तथा अनिष्ट कारक रत्न पहनने से अशुभ भाग्य होता है। अतः रत्नों की गुणवत्ता पर अवश्य ध्यान देना चाहिए। दैवज्ञ को खूब जाँच-परखकर ही रत्न देना चाहिए, क्योंकि रत्न में भाग्य निहित होता है।
किसी रत्न विशेष की व्याख्या करने से पूर्व मूल रत्नों को नामांकित करना आवश्यक है। ये रत्न इस प्रकार हैं- हीरा (वज्र क्पंउवदक), नीलम (इन्द्रनील-चीपतम), पन्ना (मरकत), लहसुनिया या कटैला, विमलक, राजमणि, (सम्भवतः फनंतज्र), स्फटिक, चन्द्रकान्तमणि, सौगन्धिक, गोमेद, शंखमणि, महानील, ब्रह्ममणि, ज्योतिरस, सस्यक, मोती व प्रवाल (मूँगा)। ये रत्न भाग्य वृद्धि के लिए धारण करने योग्य हैं।
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किन ग्रहों के रत्न पहने जाएँ..?????
सामान्यत: रत्नों के बारे में भ्रांति होती है जैसे विवाह न हो रहा हो तो पुखराज पहन लें, मांगलिक हो तो मूँगा पहन लें, गुस्सा आता हो तो मोती पहन लें। मगर कौन सा रत्न कब पहना जाए इसके लिए कुंडली का सूक्ष्म निरीक्षण जरूरी होता है। लग्न कुंडली, नवमांश, ग्रहों का बलाबल, दशा-महादशाएँ आदि सभी का अध्ययन करने के बाद ही रत्न पहनने की सलाह दी जाती है। यूँ ही रत्न पहन लेना नुकसानदायक हो सकता है। मोती डिप्रेशन भी दे सकता है, मूँगा रक्तचाप गड़बड़ा सकता है और पुखराज अहंकार बढ़ा सकता है, पेट गड़बड़ कर सकता है।
समस्त पृथ्वी से मूल रूप में प्राप्त होने वाले मात्र 21 ही हैं किन्तु जिस प्रकार से 18 पुराणों के अलावा इनके 18 उपपुराण भी हैं ठीक उसी प्रकार इन 21 मूल रत्नों के अलावा इनके 21 उपरत्न भी हैं। इन रत्नों की संख्या 21 तक ही सीमित होने का कारण है। जिस प्रकार दैहिक, दैविक तथा भौतिक रूप से तीन तरह की व्याधियाँ तथा इन्हीं तीन प्रकार की उपलब्धियाँ होती हैं और इंगला, पिंगला और सुषुम्ना इन तीन नाड़ियों से इनका उपचार होता है।
इसी प्रकार एक-एक ग्रह से उत्पन्न तीनों प्रकार की व्याधियों एवं उपलब्धियों को आत्मसात्‌ या परे करने के लिए एक-एक ग्रह को तीन-तीन रत्न प्राप्त हैं। ध्यान रहे, ग्रह भी मूल रूप से मात्र तीन ही हैं।
सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र एवं शनि, राहु एवं केतु की अपनी कोई स्वतन्त्र सत्ता न होने से इनकी गणना मूल ग्रहों में नहीं होती है। इन्हें छाया ग्रह कहा जाता है। इस प्रकार एक-एक ग्रह के तीन-तीन रत्न के हिसाब से सात ग्रहों के लिए 21 मूल रत्न निश्चित हैं। अस्तु, ये मूल रत्न जिस रूप में पृथ्वी से प्राप्त होते हैं, उसके बाद इन्हें परिमार्जित करके शुद्ध करना पड़ता है तथा बाद में इन्हें तराशा जाता है।
सामान्यत: लग्न कुंडली के अनुसार कारकर ग्रहों के (लग्न, नवम, पंचम) रत्न पहने जा सकते हैं जो ग्रह शुभ भावों के स्वामी होकर पाप प्रभाव में हो, अस्त हो या श‍त्रु क्षेत्री हो उन्हें प्रबल बनाने के लिए भी उनके रत्न पहनना प्रभाव देता है।
सौर मंडल के भी हर ग्रह की अपनी ही आभा है, जैसे सूर्य स्वर्णिम, चन्द्रमा दूधिया, मंगल लाल, बुध हरा, बृहस्पति पीला, शुक्र चाँदी जैसा चमकीला, शनि नीला। प्रत्येक ग्रह की अलग अलग आभा भी मानव शरीर के सातों चक्रों को अलग अलग तरह से प्रभावित करती है। रत्न इन्हीं का प्रतिनिधित्व करते हैं। शरीर पर धारण करने पर ये रत्न इन ग्रहों की रश्मियों के प्रभाव को कई गुणा बढ़ा देते हैं।
रत्न – ग्रह – प्रभाव
१ – माणिक्य – सूर्य – शरीर की ऊष्णता को नियंत्रित करता है, मानसिक संतुलन देता है
२ – मोती – चन्द्रमा – भावनाओं को नियंत्रित करता है
३ – मूंगा – मंगल – शरीर की ऊष्णता को बढ़ाता है, पाचन क्षमता बढ़ाता है
४ – पन्ना – बुध – बौद्धिक क्षमताओं की वृद्धि करता है, संतुलन सिखाता है
५ – पुखराज – बृहस्पति – आध्यात्मिक उन्नति देता है, ज्ञान का बेहतर प्रयोग करना सिखाता है
६ – हीरा – शुक्र – प्रेम और सौन्दर्य के प्रति सकारात्मकता देता है, समृद्धि देता है 
७ – नीलम – शनि – न्याय, तकनीकी ज्ञान, तार्किकता बढ़ाता है
८ – गोमेद – राहु – शरीर के हार्मोन्स को संतुलित करता है
९ – वैदूर्य – केतु – शरीर में नकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को रोकता है
रत्न पहनने के लिए दशा-महादशाओं का अध्ययन भी जरूरी है। केंद्र या त्रिकोण के स्वामी की ग्रह महादशा में उस ग्रह का रत्न पहनने से अधिक लाभ मिलता है।
3, 6, 8, 12 के स्वामी ग्रहों के रत्न नहीं पहनने चाहिए। इनको शांत रखने के लिए दान-मंत्र जाप का सहारा लेना चाहिए। रत्न निर्धारित करने के बाद उन्हें पहनने का भी विशेष तरीका होता है। रत्न अँगूठी या लॉकेट के रूप में निर्धारित धातु (सोना, चाँदी, ताँबा, पीतल) में बनाए जाते हैं।
उस ग्रह के लिए निहित वार वाले दिन शुभ घड़ी में रत्न पहना जाता है। इसके पहले रत्न को दो दिन कच्चे दूध में भिगोकर रखें। शुभ घड़ी में उस ग्रह का मंत्र जाप करके रत्न को सिद्ध करें। (ये जाप 21 हजार से 1 लाख तक हो सकते हैं) तत्पश्चात इष्ट देव का स्मरण कर रत्न को धूप-दीप दिया तो उसे प्रसन्न मन से धारण करें। इस विधि से रत्न धारण करने से ही वह पूर्ण फल देता है। मंत्र जाप के लिए भी रत्न सिद्धि के लिए किसी ज्ञानी की मदद भी ली जा सकती है।
शनि और राहु के रत्न कुंडली के सूक्ष्म निरीक्षण के बाद ही पहनना चाहिए अन्यथा इनसे भयंकर नुकसान भी हो सकता है।
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रत्नों का चुनाव कैसे करें:———— 
अनिष्ट ग्रहों के प्रभाव को कम करने के लिए या जिस ग्रह का प्रभाव कम पड़ रहा हो उसमें वृद्धि करने के लिए उस ग्रह के रत्न को धारण करने का परामर्श ज्योतिषी देते हैं। एक साथ कौन-कौन से रत्न पहनने चाहिए, इस बारे में ज्योतिषियों की राय है कि,
* माणिक्य के साथ- नीलम, गोमेद, लहसुनिया वर्जित है।
* मोती के साथ- हीरा, पन्ना, नीलम, गोमेद, लहसुनिया वर्जित है।
* मूंगा के साथ- पन्ना, हीरा, गोमेद, लहसुनिया वर्जित है।
* पन्ना के साथ- मूंगा, मोती वर्जित है।
* पुखराज के साथ- हीरा, नीलम, गोमेद वर्जित है।
* हीरे के साथ- माणिक्य, मोती, मूंगा, पुखराज वर्जित है।
* नीलम के साथ- माणिक्य, मोती, पुखराज वर्जित है।
* गोमेद के साथ- माणिक्य, मूंगा, पुखराज वर्जित है।
* लहसुनिया के साथ- माणिक्य, मूंगा, पुखराज, मोती वर्जित है।
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रत्न स्वयं सिद्ध ही होते हैं —–
ज्योतिष ग्रहों के आधार पर व जन्म समय की कुंडलीनुसार ही भाग्य का दर्शन कराता है एवं जातक की परेशानियों को कम करने की सलाह देता है। आज हर इन्सान परेशान है, कोई नोकरी से तो कोई व्यापार से। कोई कोर्ट-कचहरी से तो कोई संतान से। कोई प्रेम में पड़ कर चमत्कारिक ज्योतिषियों के चक्कर में फँस कर धन गँवाता है। ना तो वो किसी से शिकायत कर सकता है और ना किसी को बता सकता है। इस प्रकार न जानें कितने लोग फँस जाते हैं। न काम बनता है ना पैसा मिलता है।
आज हम देख रहे हैं ज्योतिष के नाम पर बडे़-बडे़ अनुष्ठान, हवन, पूजा-पाठ कराएँ जाते है। जबकि इस प्रकार धन व समय की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है। कुछ ज्योतिषगण प्रेम विवाह, मूठ, करनी, चमत्कारी नग बताकर जनता को लूट रहे है। तो कोई वशीकरण करने का दावा भरते नजर आते है जबकि ऐसा करना कानूनन अपराध है, क्योंकि पहले तो ऐसा होता ही नहीं है।
यदि कोई दावा भरता है तो ये अपराध है। कई तो ऐसे भी है जो जेल से छुडा़ने तक का दावा भरते है, तो कोई बीमारी के इलाज का भी दावा करते है। कुछ एक तो संतान, दुश्मन बाधा आदि दूर करने के दावा भरते है। 
कई ज्योतिषगण बगैर पढ़े, बगैर डिर्गी लिए एक बार नहीं कई बार गोल्ड मैडल पाते हैं। बड़े ताज्जुब की बा‍त है कि जिन्हें ज्योतिष का जरा भी ज्ञान नहीं है वे भी गोल्ड मैडलिस्ट बना दिए जाते है। कई तो करोड़ों मंत्रों की सि‍द्धि द्वारा रत्नों का चमत्कार करने का दावा भरते है। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है, रत्न तो स्वयं सिद्ध होते हैं। बस जरूरत है उन्हें कुंडली के अनुसार सही व्यक्तियों तक पहुँचाने की।
असल में रत्न स्वयं सिद्ध ही होते है। रत्नों में अपनी अलग रश्मियाँ होती है और कुशल ज्योतिष ही सही रत्न की जानकारी देकर पहनाए तो रत्न अपना चमत्कार आसानी से दिखा देते है। माणिक के साथ मोती, पुखराज के साथ मोती, माणिक मूँगा भी पहनकर असीम लाभ पाया जा सकता है। 
नीलम के साथ मूँगा पहना जाए तो अनेक मुसीबातों में ड़ाल देता है। इसी प्रकार हीरे के साथ लहसुनिया पहना जाए तो निश्चित ही दुर्घटना कराएगा ही, साथ ही वैवाहिक जीवन में भी बाधा का कारण बनेगा। पन्ना-हीरा, पन्ना-नीलम पहन सकते है। फिर भी किसी कुशल ज्योतिष की ही सलाह लें तभी इन रत्नों के चमत्कार पा सकते है।
जैसे मेष व वृश्चिक राशि वालों को मूँगा पहनना चाहिए। लेकिन मूँगा पहनना आपको नुकसान भी कर सकता है अत: जब तक जन्म के समय मंगल की स्थिति ठीक न हो तब तक मूँगा नहीं पहनना चाहिए। यदि मंगल शुभ हो तो यह साहस, पराक्रम, उत्साह प्रशासनिक क्षेत्र, पुलिस सेना आदि में लाभकारी होता है।
वृषभ व तुला राशि वालों को हीरा या ओपल पहनना चाहिए। यदि जन्मपत्रिका में शुभ हो तो। इन रत्नों को पहनने से प्रेम में सफलता, कला के क्षेत्र में उन्नति, सौन्दर्य प्रसाधन के कार्यों में सफलता का कारक होने से आप सफल अवश्य होंगे।
मिथुन व कन्या राशि वाले पन्ना पहनें तो सेल्समैन के कार्य में, पत्रकारिता में, प्रकाशन में, व्यापार में सफलता दिलाता है।
सिंह राशि वालों को माणिक ऊर्जावान बनाता है व राजनीति, प्रशासनिक क्षेत्र, उच्च नौकरी के क्षेत्र में सफलता का कारक होता है। 
कर्क राशि वालों को मोती मन की शांति देता है। साथ ही स्टेशनरी, दूध दही-छाछ, चाँदी के व्यवसाय में लाभकारी होता है। 
मकर और कुंभ नीलम रत्न धारण कर सकते हैं, लेकिन दो राशियाँ होने सावधानी से पहनें। 
धनु व मीन के लिए पुखराज या सुनहला लाभदायक होता है। यह भी प्रशासनिक क्षेत्र में सफलता दिलाता है। वहीं न्याय से जुडे व्यक्ति भी इसे पहन सकते है। आपको सलाह है कि कोई भी रत्न किसी योग्य ज्योतिषी की सलाह बगैर कभी भी ना पहनें।
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रत्न भी बदल देते हैं मनुष्य की तकदीर —–
कहते हैं कि घूरे के दिन भी बदलते हैं तो इंसान के क्यों‍ नहीं। कहावत सच तो है लेकिन लंबा इंतजार करने से अच्छा है यदि आपकी कुंडली सही है तो रत्न धारण करने से अच्छी सफलता मिल सकती है। लेकिन रत्न धारण करने से पहले किसी पारंगत ज्योतिषी से सलाह लेना आवश्यक है।
आजकल कई ज्योतिषी राशि के अनुसार रत्न पहना देते हैं जो कभी-कभी नुकसानदायक भी हो सकता है। आप इस राशि के हैं तो यह रत्न पहन लीजिए। ऐसा कहकर वे रत्न पहना देते हैं। जबकि राशि के साथ ही राशि स्वामी ‍की स्थिति उसके बैठने का स्थान आदि भी बहुत महत्व रखते हैं। जातक को क्या आवश्यकता है, इस बात का ध्यान नहीं रखते।
रत्न पहनाने के ‍पहले उस ग्रह की नवांश व अन्य वर्गों में क्या स्थिति है, उसकी डिग्री क्या है? यह देखना जरूरी है। तभी जाकर सही रत्न पहनकर भरपूर लाभ उठाया जा सकता है।
कहते हैं कि घूरे के दिन भी बदलते हैं तो इंसान के क्यों‍ नहीं। कहावत सच तो है लेकिन लंबा इंतजार करने से अच्छा है यदि आपकी कुंडली सही है तो रत्न धारण करने से अच्छी सफलता मिल सकती है।

आपकी जन्म पत्रिका में लग्नेश मित्र राशि में हो या भाग्य में मित्र का होकर बैठा हो या पंचम में स्वराशि का हो या मित्र राशि का हो। चतुर्थ भाव में मित्र का हो या उच्च का हो तब उससे संबंधित रत्न धारण करने से अच्छे परिणाम मिलते हैं।
भाग्य नवम भाव का स्वामी नवम में हो या स्वराशि का होकर बैठा हो या मित्र राशि का होकर लग्न, चतुर्थ, पंचम, तृतीय, दशम या एकादश में हो या उच्च का होकर द्वादश में हो तो उससे संबंधित रत्न पहनकर अच्छा लाभ उठाया जा सकता है। विद्या, संतान भाव को प्रबल करना हो तो उस भाव का स्वामी नवम में होकर मित्र राशि का हो तो उस भाव के स्वामी का रत्न व पंचम भाव का रत्न नवम भाव से संबंधित रत्न जिस उँगली में पहनते हों तो उसमें पहनने से संतान का भाग्य, विद्या दोनों बढ़ते हैं और मनोरंजन के साधनों में वृद्धि होती है।
मान-प्रतिष्ठा बढ़ती है। चतुर्थ भाव का रत्न भी पहनकर माता, भूमि, भवन, जनता से संबंधित कार्यों में लाभ उठाया जा सकता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि नवांश में नीच का न हो, नहीं तो लाभ के बजाए नुकसान ही होता है। इसी प्रकार पंचमेश विद्या विचार शुभ हो तो उस रत्न से अच्छा लाभ मिल सकता है। यदि जो रत्न पहना जाए उसकी महादशा का या अंतर्दशा चर ही हो तो अच्छे परिणाम मिलते हैं।
रत्न पहनने से पहले शुभ मुहूर्त में ही रत्न बनवाना चाहिए और प्राण-प्रतिष्ठा कर पहनना चाहिए। फिर देखिए कैसे नहीं रत्न तकदीर बदलने में कामयाब होता है।
अब यदि ऐसे ग्रह का रत्न धारण कर लिया जाये तो वह अशुभकारक ग्रह बलवान हो जायेगा और अधिक समस्यायें उत्पन्न होंगी। अतः प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक रत्न धारण नहीं करना चाहियें। रत्न धारण के लिये यह देखें जो ग्रह हमारी कुंडली का लग्नेश है उसका व लग्नेश के मित्र ग्रहों (जोकि केवल त्रिक 6, 8, 12 भावों के स्वामी न हों) का रत्न ही हमें धारण करना चाहिये। जब केवल लग्नेश, पंचमेश व नवमेश ग्रह का रत्न आजीवन धारण किया जाता है तो वह शुभ फल ही देता है। अतः इस बात पर भी ध्यान नहीं देना चाहिए कि जिस ग्रह की महादशा है उसी का रत्न धारण कर लें। यदि वह ग्रह शुभकारक है तो ही उसका रत्न पहनें। वस्तुतः रत्न धारण करने में राशि की नहीं जन्मकुंडली के अग्नि पुराण की कथा के अनुसार वृत्रासुर ने देव लोक पर आक्रमण किया तब भगवान विष्णु की सलाह पर देवराज इंद्र ने महर्षि दधीचि से दान में प्राप्त उनकी हड्डियों से वज्र नामक अस्त्र का निर्माण किया। वस्तुतः दधीचि की हड्डियों के पृथ्वी पर गिरने वाले सूक्ष्मखंड ही हीरे की खाने बनकर प्रकट हुए। वस्तुतः चैरासी रत्न/उपरत्नों में सबसे मूल्यवान माणिक और हीरा ही है। जहां तक हीरे की उत्पत्ति का प्रश्न है, इसका जन्म शुद्ध कोयले से होता है। वैज्ञानिक परीक्षण से ज्ञात होता है कि कोयले (कार्बन) का प्रमुख तत्व कार्बनडाई आॅक्साइड जब घनीभूत होकर जम जाता है, तो वह पारदर्शी क्रिस्टल का रूप ले लेता है। यही पारदर्शी कार्बन हीरा कहलाता है। हीरा एक मूल्यवान रत्न है। हीरे में सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि यह रत्नों में सर्वाधिक कठोर एवं अभंजनशील है। इन्हें विशेष तरीके से तराश कर छोटे-छोटे हीरे तैयार किये जाते हैं।
इसका अर्थ यह नहीं है कि हीरा टूट गया है। धूप में हीरा रख दिया जाए तो उसमें से इंद्रधनुष के समान लग्न की तथा तदनुसार अनुकूल व प्रतिकूल ग्रहों की प्रधानता होती है। रत्न धारण विधि: रत्न को धारण करने से पहले उसे तदनुरूप धातु की अंगूठी में बनवाये। तत्पश्चात् उसे शुद्ध व सिद्ध करना होगा। तभी वह अपना प्रभाव दिखायेगा। रत्न से संबंधित ग्रह के वार को उसे पहले गाय के कच्चे दूध में फिर गंगाजल मंे अभिषेक करके धूप-दीप जलाकर उस ग्रह के मंत्र की कम से कम तीन व अधिकतम ग्यारह माला जाप करके पूर्वाभिमुख होकर रत्न को ग्रह से संबंधित सही उंगली में धारण करें।

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