जानिए विवाह में बाधा के कारण और निवारण के उपाय—–
जानिए की विवाह बाद कष्ट क्यों और उनका निवारण —–


हमारे हिन्दू संस्कारों में विवाह को जीवन का आवश्यक संस्कार बताया गया है. विवाह के योग प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में होते हैं लेकिन कुछ ऐसे कारक हैं जो उसमें विलंब कराते हैं. ज्योतिषशास्त्र में मंगल, शनि, सूर्य, राहु और केतु को विलंब का कारक बताया गया है.जन्मकुंडली के सप्तम भाव में अशुभ या क्रूर ग्रह के स्थित होने अथवा सप्तमेश व उसके कारक ग्रह बृहस्पति व शुक्र के कमजोर होने से विवाह में बाधा आती है.


आम बोलचाल के शब्दों में कहें तो अगर आपके जीवन में विवाह का योग पैदा करने वाले ग्रहों के मुकाबले वे ग्रह ज्यादा हावी हैं जो विवाह योग को रोकते हैं, तो विवाह में बाधा आती है.आज लगभग लोग वैवाहिक समस्या से ग्रस्त है । किसी को विवाह होने में रूकावट का सामना करना पङता है तो कुछ विवाह बाद के वैचारिक मतभेदों से पीङित है । सबसे पहले हम देखते है कि कौनसे योग है जो विवाह होने में बाधा देते है और कौनसे योग वैवाहिक जीवन को नारकीय बना देते है। 


विवाह वह समय है ,जब दो अपरिचित युगल दाम्पत्य सूत्र में बंधकर एक नए जीवन का प्रारंभ करते है ,,ज्योतिष में योग ,दशा और गोचरीय ग्रह स्थिति के आधार पर विवाह समय का निर्धारण होता है ,परन्तु कभी-कभी विवाह के योग ,दशा और अनुकूल गोचरीय परिभ्रमण के द्वारा विवाह काल का निश्चय करने पर भी विवाह नहीं होता क्योकि जातक की कुंडली में विवाह में बाधक या विलम्ब कारक योग होते है |विवाह के लिए पंचम ,सप्तम ,द्वितीय और द्वादश भावों का विचार किया जाता है ,द्वितीय भाव सप्तम से अष्टम होने के कारण विवाह के आरम्भ व् अंत का ज्ञान कराता है ,साथ ही कुटुंब कभी भाव होता है ,द्वादश भाव शैया सुख के लिए विचारणीय होता है |स्त्रियों के संदर्भ में सौभाग्य ज्ञान अष्टम से देखा जाता है अतः यह भी विचारणीय है |शुक्र को पुरुष के लिए और स्त्री के लिए गुरु को विवाह का कारक माना जाता है |प्रश्न मार्ग में स्त्रियों के विवाह का कारक ग्रह शनि होता है |सप्तमेश की स्थिति भी महत्वपूर्ण होती है 


मंगल यदि आठवें, बारहवें भाव में स्थित हो तो निश्चित रूप से दोनों काम करते है , बारहवें भाव के मंगल तलाक अथवा पति या पत्नि की मृत्यु का कारण भी बन सकते है । मंगल की किसी भी रूप में सप्तम भाव पर दृष्टि वैवाहिक समस्याओं का कारण बनती है । शनि यदि सप्तम भाव को देखते हो या सप्तम भाव में स्थित हो तो परेशान करते है । सूर्य और राहु की लग्न या सप्तम में स्थिति भी वैवाहिक समस्याओ से दो चार करवा सकती है । 


इनमें जानने वाली बात ये है कि सिर्फ मंगल और शनि ही जीवन भर के लिए परेशानी का सबब बनते है बाकि सूर्य और राहु सिर्फ उसी समय परेशानी देते है जब कि वो गोचर अथवा अन्तर्दशा , महादशा से गुजर रहे हो । पति पत्नि दोनों की कुंडली के सप्तम भाव में अकेला शुक्र हो तो भी परेशानी देता है हालांकि यदि शुक्र सप्तमेश भी हो तो कम परेशानी देता है लेकिन देता अवश्य है । सप्तमेश यदि नीच राशि अस्त या दुःस्थान में बैठा हो तो भी कष्टकारी है । सप्तम भाव का संबंध किसी भी रूप में शनि से बनते ही समस्याऒं की शुरूआत मानिये । 


आजकल के अतिविद्वान लोग व्यर्थ की वैज्ञानिकता के चक्कर में बिना कुंडली दिखाये संतान का विवाह कर देते है और उनको कष्टपूर्ण जीवन की ओर धकेल देते है । सभी ज्योतिष प्रेमियों हेतु मजेदार बात है कि व्यक्ति प्रेम विवाह का कदम तभी उठायेगा , जब ऊपरोक्त ग्रह स्थिति हो अब बाकि बात आप समझ गए होंगे । दूसरी चीज हमारी प्रार्थना है कि यदि उपरोक्त स्थिति हो तो 9.% मामलों में संबंधित ग्रह का रत्न पहनने से बचना चाहिए । 


यदि आप भी किसी ऎसी ही वैवाहिक समस्या अर्थात् विवाह न होना अथवा विवाह के बाद कष्टों से पीङित है तो संपर्क करें , हम पूरे आत्मविश्वास के साथ कहते है कि इन समस्याओं से छुटकारा दिलाने में हम समर्थ है और हाँ , ये भी कहने में हमें संकोच नही है कि खर्चा आपका लगेगा वो चाहे आप अपने यहाँ करें या हमारे साथ , निश्चित रूप से यदि आप वैवाहिक या आर्थिक समस्या से जूझ रहे हो तो इसका निदान संभव है हम करके दिखा सकते है सिर्फ वे लोग संपर्क न करें जो प्रेम विवाह में रूचि रखते हो। आप ज्योतिष से लगाव बनाये रखिये , अगर ज्योतिष आपकी समस्या का सटीक संकेत कर सकता है तो उसका पूर्णतः निदान भी ॥
इस समस्या के निवारणार्थ अच्छा होगा की किसी विद्वान ज्योतिषी को अपनी जन्म कुंडली दिखाकर विवाह में बाधक ग्रह या दोष को ज्ञात कर उसका निवारण करें। ज्योतिषीय दृष्टि से जब विवाह योग बनते हैं, तब विवाह टलने से विवाह में बहुत देरी हो जाती है। वे विवाह को लेकर अत्यंत चिंतित हो जाते हैं।


सातवें भाव का अर्थ—-
जन्म कुन्डली का सातंवा भाव विवाह पत्नी ससुराल प्रेम भागीदारी और गुप्त व्यापार के लिये माना जाता है। सातवां भाव अगर पापग्रहों द्वारा देखा जाता है,उसमें अशुभ राशि या योग होता है,तो स्त्री का पति चरित्रहीन होता है,स्त्री जातक की कुंडली के सातवें भाव में पापग्रह विराजमान है,और कोई शुभ ग्रह उसे नही देख रहा है,तो ऐसी स्त्री पति की मृत्यु का कारण बनती है,परंतु ऐसी कुंडली के द्वितीय भाव में शुभ बैठे हों तो पहले स्त्री की मौत होती है,सूर्य और चन्द्रमा की आपस की द्रिष्टि अगर शुभ होती है तो पति पत्नी की आपस की सामजस्य अच्छी बनती है,और अगर सूर्य चन्द्रमा की आपस की १५० डिग्री,१८० डिग्री या ७२ डिग्री के आसपास की युति होती है तो कभी भी किसी भी समय तलाक या अलगाव हो सकता है।केतु और मंगल का सम्बन्ध किसी प्रकार से आपसी युति बना ले तो वैवाहिक जीवन आदर्शहीन होगा,ऐसा जातक कभी भी बलात्कार का शिकार हो सकता है,स्त्री की कुंडली में सूर्य सातवें स्थान पर पाया जाना ठीक नही होता है,ऐसा योग वैवाहिक जीवन पर गहरा प्रभाव डालता है,केवल गुण मिला देने से या मंगलीक वाली बातों को बताने से इन बातों का फ़ल सही नही मिलता है,इसके लिये कुंडली के सातंवे भाव का योगायोग देखना भी जरूरी होता है।


सातवां भाव और पति पत्नी—-
सातवें भाव को लेकर पुरुष जातक के योगायोग अलग बनते है,स्त्री जातक के योगायोग अलग बनते है,विवाह करने के लिये सबसे पहले शुक्र पुरुष कुंडली के लिए और मंगल स्त्री की कुन्डली के लिये देखना जरूरी होता है,लेकिन इन सबके बाद चन्द्रमा को देखना भी जरूरी होता है,मनस्य जायते चन्द्रमा,के अनुसार चन्द्रमा की स्थिति के बिना मन की स्थिति नही बन पाता है। पुरुष कुंडली में शुक्र के अनुसार पत्नी और स्त्री कुंडली में मंगल के अनुसार पति का स्वभाव सामने आ जाता है।
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जानिए विवाह सम्बन्धित कुछ बहुउपयोगी बातें—-


.. विवाह मे आशौच आदि की सभावना हो तो 10 दिनो पहले नान्दी मुख श्राद्ध करना चाहिये नान्दी मुख श्राध्द के बाद विवाह सम्पन्न आशौच होने पर भी वर-वघु को और करना चाहिये. नान्दी मुख श्राद्ध के बाद विवाह संमाप्ति आशौच होने पर वर-वधू को ओर उनके माता-पिता को आशौच नहीं होता.
.. “कुष्माण्ड सूक्त” के अनुसार नान्दी् श्राध्द के पहले भी विवाह के लिए सामग्री तैयार होने पर आशौच प्राप्ति हो तो प्रायश्चित करके विवाह कार्यक्रम होता है. प्रायश्चित के लिए हबन, गोदान और पञ्चगव्य प्राशन करें.
.. विवाह के समय हवन में पू्र्व अथवा मध्य में या अन्त में कन्या यदि रजस्वला हो जाने पर कन्या को स्नान करा कर “युञ्जान“इस मंत्र से हवन करके अवशिष्ट कर्म करना चाहिये 
4. वधु या वर के माता को रजोदर्शन की संभावना हो तो नान्दी श्राद्ध दस दिनो के पुर्व कर लेना चाहिये. नान्दी श्राद्ध के बाद रजोदर्शनजन्य दोष नहीं होता.
5. नान्दी श्राद्ध के पहले रजोदर्शन होने पर “श्रीशांति” करके विवाह करना चाहिये. 
6. वर या वधू की माता के रजस्वला अथवा सन्तान प्राप्ति होने पर “श्रीशांति” करके विवाह हो सकता है
7. विवाह में आशौच की संभावना हो तो, आशौच के पूर्व अन्न का संकल्प कर देना चाहिये. फिर उस संकल्पित अन्न का दोनों पक्षों के मनुष्य भोजन कर सकते हैं.उसमें कोई दोष नहीं होता है. परिवेषण असगोत्र के मनुष्य को करना चाहिये.
8. विवाह में वर-वधू को “ग्रन्थिबन्धन” कन्यादान के पूर्व शास्त्र विहित है. कन्यादान के बाद नहीं. कन्यादाता को अपनी  स्त्री के साथ ग्रन्थिबन्धन कन्यादान के पूर्व होना चाहिये.
9. दो कन्या का विवाह एक समय हो सकता है परन्तु एक साथ नहीं. लेकिन एक कन्या का वैवाहिक कृर्त्य समाप्त होने पर द्वार-भेद और आचार्य भेद से भी हो सकता है.
10. एक समय में दो शुभ क्रम करना उत्तम नहीं है. उसमें भी कन्या के विवाह के अनन्तर पुत्र का ववाह हो सकता है. परन्तु पुत्र विवाह के अनन्तर पुत्री का विवाह छ: महिने तक नहीं हो सकता.
11. एक वर्ष में सहोदर (जुड़वा) भाई अथवा बहनों का विवाह शुभ नहीं है. वर्ष भेद में और संकट में कर सकतें हैं.
12. समान गोत्र और समान प्रवर वाली कन्या के साथ विवाह निषिध्द है.
13. विवाह के पश्चात एक वर्ष तक पिण्डदान, मृक्तिका स्नान, तिलतर्पण, तीर्थयात्रा,मुण्डन, प्रेतानुगमन आदि नहीं करना चाहिये.
14. विवाह में छिंक का दोष नहीं होता है.
15. वैवाहिक कार्यक्रम में स्पर्शास्पर्श का दोष नहीं होता.
16. वैवाहिक कार्यक्रम में चतुर्थ, द्वादश, चन्द्रमा ग्राहय है.
17. विवाह में छट, अष्टमी, दशमी तथा शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा रिक्ता आदि तिथि निषिध्द है .
18. विवाह के दिन या पहले दिन अपने-अपने घरों में कन्या के पिता और वर के पिता को स्त्री,कन्या-पुत्र सहित मंगल स्नानकरना चाहिये. और शुध्द नवीन वस्त्र -तिलक-आभूषण आदि से विभूषित होकर गणेश मातृका पूजन (नान्दी श्राद्ध) करना चाहिये.
19. श्रेष्ठ दिन में सौलह या बारह या दस या आठ हाथ के परिमाण का मण्डप चारौं द्वार सहित बनाकर उसमें एक हाथ की चौकौर हवन-वेदी पूर्व को नीची करती हुई बनावें उसे हल्दी, गुलाल, गोघुम तथा चूने आदि से सुशोभित करें. हवन-वेदी के चारों ओर काठ की चार खुंठी निम्नप्रकार से रोपे, उन्हीं के बाहर सूत लपेटे कन्या, सिंह और तुला राशियां संक्राति में तो ईशान कोण में प्रथम वृश्चक, धनु, और मकर ये राशियां संक्राति में तो वायव्य कोण में प्रथम मीन, मेष और कुम्भ ये राशियां संक्रांति में तो नऋर्त्य कोण में प्रथम. वृष, मिथुन और कर्क ये राशियां संक्राति में तो अग्निकोण में प्रथम.एक काठ में पाटे के उपर गणेश, षोडशमातृका, नवग्रह आदि स्थापन करें. ईशान कोण में कलश स्थापन करें.
20. कन्या पिता / अभिभावक स्नान करके शुध्द नवीन वस्त्र पबन कर उत्तराभिमुख होकर आसन पर बैठे तथा वर पूर्वाभिमुख बैठें.
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——जानिए की शादी तय होकर भी क्यों टूट जाती है?—– 
(१)- यदि कुंडली में सातवें घर का स्वामी सप्तमांश कुंडली में किसी भी नीच ग्रह के साथ अशुभ भाव में बैठा हो तो शादी तय नहीं हो पाती है. 
(२)- यदि दूसरे भाव का स्वामी अकेला सातवें घर में हो तथा शनि पांचवें अथवा दशम भाव में वक्री अथवा नीच राशि का हो तो शादी तय होकर भी टूट जाती है. 
(३)- यदि जन्म समय में श्रवण नक्षत्र हो तथा कुंडली में कही भी मंगल एवं शनि का योग हो तो शादी तय होकर भी टूट जाती है. 
(४) यदि मूल नक्षत्र में जन्म हो तथा गुरु सिंह राशि में हो तो भी शादी तय होकर टूट जाती है. किन्तु गुरु को वर्गोत्तम नहीं होना चाहिए. 
(५) यदि जन्म नक्षत्र से सातवें, बारहवें, सत्रहवें, बाईसवें या सत्ताईसवें नक्षत्र में सूर्य हो तो भी विवाह तय होकर टूट जाता है. 


====तलाक क्यों हो जाता है?- —


(१)- यदि कुंडली मांगलीक होगी तो विवाह होकर भी तलाक हो जाता है. किन्तु ध्यान रहे किसी भी हालत में सप्तमेश को वर्गोत्तम नहीं होना चाहिए. 
(२)- दूसरे भाव का स्वामी यदि नीचस्थ लग्नेश के साथ मंगल अथवा शनि से देखा जाता होगा तो तलाक हो जाएगा. किन्तु मंगल अथवा शनि को लग्नेश अथवा द्वितीयेश नहीं होना चाहिए. 
(३) यदि जन्म कुंडली का सप्तमेश सप्तमांश कुंडली का अष्टमेश हो अथवा जन्म कुंडली का अष्टमेश सप्तमांश कुंडली का लग्नेश हो एवं दोनों कुंडली में लग्नेश एवं सप्तमेश अपने से आठवें घर के स्वामी से देखे जाते हो तो तलाक निश्चित होगा. 
(४)- यदि पत्नी का जन्म नक्षत्र ध्रुव संज्ञक हो एवं पति का चर संज्ञक तो तलाक हो जाता है. किन्तु किसी का भी मृदु संज्ञक नक्षत्र नहीं होना चाहिए. 
(५)- यदि अकेला राहू सातवें भाव में तथा अकेला शनि पांचवें भाव में बैठा हो तो तलाक हो जाता है. किन्तु ऐसी अवस्था में शनि को लग्नेश नहीं होना चाहिए. या लग्न में उच्च का गुरु नहीं होना चाहिए. 


===पति पत्नी का चरित्र—–


(१)- यदि कुंडली में बारहवें शुक्र तथा तीसरे उच्च का चन्द्रमा हो तो चरित्र भ्रष्ट होता है. 
(२)- यदि सातवें मंगल तथा शुक्र एवं पांचवें शनि हो तो चरित्र दोष होता है. 
(३)- नवमेश नीच तथा लग्नेश छठे भाव में राहू युक्त हो तो निश्चित ही चरित्र दोष होता है. 
(४)- आर्द्रा, विशाखा, शतभिषा अथवा भरनी नक्षत्र का जन्म हो तथा मंगल एवं शुक्र दोनों ही कन्या राशि में हो तो अवश्य ही पतित चरित्र होता है. 
(५)- कन्या लग्न में लग्नेश यदि लग्न में ही हो तो पंच महापुरुष योग बनता है. किन्तु यदि इस बुध के साथ शुक्र एवं शनि हो तो नपुंसकत्व होता है. 
(६)- यदि सातवें राहू हो तथा कर्क अथवा कुम्भ राशि का मंगल लग्न में हो तो या लग्न में शनि-मंगल एवं सातवें नीच का कोई भी ग्रह हो तो पति एवं पत्नी दोनों ही एक दूसरे को धोखा देने वाले होते है. 


=====मधुर वैवाहिक जीवन—–
(१)- सप्तमेश का नवमेश से योग किसी भी केंद्र में हो तथा बुध, गुरु अथवा शुक्र में से कोई भी या सभी उच्च राशि गत हो तो दाम्पत्य जीवन बहुत ही मधुर होता है. 
(२)- आगे पीछे ग्रहों से घिरे केंद्र में गज केसरी योग हो तथा आठवें कोई भी ग्रह नहीं हो तो वैवाहिक जीवन बहुत ही मधुर होता है. 
(३)- भले ही कुंडली मांगलिक हो, यदि पंच महापुरुष योग बनाते हुए शुक्र अथवा गुरु से किसी कोण में सूर्य हो तो दाम्पत्य जीवन उच्च स्तरीय होता है. 
(४)- भले ही कुंडली मांगलिक हो, यदि सप्तमेश उच्चस्थ होकर लग्नेश के साथ किसी केंद्र अथवा कोण में युति करे तो दाम्पत्य जीवन सुखी होता है. 
(५)- भले गुरु नीच का सातवें भाव में तथा नीच का मंगल लग्न में हो, यदि छठे, आठवें तथा बारहवें कोई ग्रह न हो , तथा किसी भी ग्रह के द्वारा पंच महापुरुष योग बनता हो तो वैवाहिक जीवन सुखी होता है…
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सुखी विवाह का विज्ञान


क्या वजह है कि कुछ दंपत्तियों का वैवाहिक जीवन विवाह के वर्षों बाद भी पहले जैसा ही बना रहता है. कुछ दंपत्ति विवाह के कुछ समय बाद ही अलग हो जाते हैं परंतु कुछ दंपत्तियों के लिए वह जन्मों का बंधन बन जाता है.


विवाह नामक प्रथा “विश्वास’ और “वचनबद्धता’ पर आधारित होती है. विपरित लिंग के व्यक्ति के प्रति आकर्षित होना हमारे जीन में है, परंतु अपनी भावनाओं पर काबू पाना जिनेटिक्स तथा अन्य कारकों पर निर्भर करता है और यही सफल विवाह का विज्ञान भी है.


कुछ पुरूष और महिलाएँ अपने साथी को धोखा दे सकती हैं परंतु कुछ दम्पत्ति “विपरित लिंग के शारीरिक आकर्षण’ को सीमित रख पाने में सफल रहते हैं. ऐसा किसलिए होता है? इस सवाल का जवाब पाने के लिए कई शोधकर्ता अपने अपने तरीके से शोध कर रहे हैं. इस सवाल का जवाब जिनेटिक्स और बायोलोजी से मनोविज्ञान तक जुड़ा हुआ है और इस पर गहन अध्ययन करने की आवश्यकता है.


अब तक हुई शोधों के नतीजे बताते हैं कि कुछ लोग प्राकृतिक रूप से ‘आकर्षण” के प्रति सचेत होते हैं. परंतु इसके साथ ही दिमाग को इसके लिए प्रशिक्षित भी किया जा सकता है.


न्यूयार्क टाइम्स की खबर के अनुसार मैकगिल विश्वविद्यालय के जॉन लिडोन ने इस विषय पर एक सर्वे किया. सर्वे के माध्यम से यह जाना गया कि आदर्श दम्पत्तियों के जीवन पर ‘क्षणिक विपरित आकर्षण” का कितना प्रभाव पड़ता है.


इस सर्वे के लिए कुछ वचनबद्ध विवाहित पुरूषों और महिलाओं का चयन किया गया और उन्हें उनसे विपरित लिंग के लोगों की तस्वीरें दिखाई गई, और कहा गया कि वे इनमें से सुंदर व्यक्तियों के पहचान करें. इन लोगों ने जाहिर तौर पर सुंदर माने जा सकने वाले लोगों को चुना. इसके कुछ दिन बाद इन लोगों को फिर से वही तस्वीरें दिखाई गई और वही सवाल पूछा गया परंतु इस बार कहा गया कि तस्वीरों में से चुने गए लोग आपसे मिलना भी चाहेंगे. इस बार इन लोगों ने उन तस्वीरों को कम अंक दिए जिनको पहले अधिक अंक दिए थे.


यानी कि इन लोगों का दिमाग इस तरह से प्रशिक्षित होता है कि वह विपरित लिंग के आकर्षक व्यक्ति की तरफ आकर्षित तो होता है परंतु जैसे ही उसे लगता है कि उस व्यक्ति की वजह से उनका वैवाहिक जीवन खतरे में पड़ सकता है तो “वह इतनी भी सुंदर नहीं” का अलार्म बज जाता है.


डॉ. लिडोन के अनुसार – आप जितने वचनबद्ध और अपने रिश्ते के प्रति इमानदार होते हैं, आप उतना ही उन लोगों से दूर होते रहते हैं जिनकी वजह से आपका वैवाहिक जीवन खतरे में पड़े.


हमारा दिमाग इसके लिए प्रोग्राम किया हुआ होता है. यह अनुवांशिक रूप से भी हो सकता है और इसके लिए दिमाग को प्रशिक्षित भी किया जा सकता है
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——-विवाह नही होगा अगर—–


—–यदि सप्तमेश शुभ स्थान पर नही है।
—-यदि सप्तमेश छ: आठ या बारहवें स्थान पर अस्त होकर बैठा है।
—–यदि सप्तमेश नीच राशि में है।
—-यदि सप्तमेश बारहवें भाव में है,और लगनेश या राशिपति सप्तम में बैठा है।
—-जब चन्द्र शुक्र साथ हों,उनसे सप्तम में मंगल और शनि विराजमान हों।
—-जब शुक्र और मंगल दोनों सप्तम में हों।
—-जब शुक्र मंगल दोनो पंचम या नवें भाव में हों।
—-जब शुक्र किसी पाप ग्रह के साथ हो और पंचम या नवें भाव में हो।
—-जब कभी शुक्र, बुध, शनि ये तीनो ही नीच हों।
—–जब पंचम में चन्द्र हो,सातवें या बारहवें भाव में दो या दो से अधिक पापग्रह हों।
–जब सूर्य स्पष्ट और सप्तम स्पष्ट बराबर का हो।


===विवाह में देरी—-


—सप्तम में बुध और शुक्र दोनो के होने पर विवाह वादे चलते रहते है,विवाह आधी उम्र में होता है।
—-चौथा या लगन भाव मंगल (बाल्यावस्था) से युक्त हो,सप्तम में शनि हो तो कन्या की रुचि शादी में नही होती है।
—-सप्तम में शनि और गुरु शादी देर से करवाते हैं।
—-चन्द्रमा से सप्तम में गुरु शादी देर से करवाता है,यही बात चन्द्रमा की राशि कर्क से भी माना जाता है।
—-सप्तम में त्रिक भाव का स्वामी हो,कोई शुभ ग्रह योगकारक नही हो,तो पुरुष विवाह में देरी होती है।
—जब सूर्य, मंगल,बुध लगन या राशिपति को देखता हो,और गुरु बारहवें भाव में बैठा हो तो आध्यात्मिकता अधिक होने से विवाह में देरी होती है।
—लगन में सप्तम में और बारहवें भाव में गुरु या शुभ ग्रह योग कारक नही हों,परिवार भाव में चन्द्रमा कमजोर हो तो विवाह नही होता है,अगर हो भी जावे तो संतान नही होती है।
—-महिला की कुन्डली में सप्तमेश या सप्तम शनि से पीडित हो तो विवाह देर से होता है।
—-राहु की दशा में शादी हो,या राहु सप्तम को पीडित कर रहा हो,तो शादी होकर टूट जाती है,यह सब दिमागी भ्रम के कारण होता है।
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====दाम्पत्य/वैवाहिक सुख के उपाय—-


—-यदि जन्म कुण्डली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, द्वादश स्थान स्थित मंगल होने से जातक को मंगली योग होता है इस योग के होने से जातक के विवाह में विलम्ब, विवाहोपरान्त पति-पत्नी में कलह, पति या पत्नी के स्वास्थ्य में क्षीणता, तलाक एवं क्रूर मंगली होने पर जीवन साथी की मृत्यु तक हो सकती है। अतः जातक मंगल व्रत। मंगल मंत्र का जप, घट विवाह आदि करें।
—ज्योतिष के अनुसार कुंडली में कुछ विशेष ग्रह दोषों के प्रभाव से वैवाहिक जीवन पर बुरा असर पड़ता है। ऐसे में उन ग्रहों के उचित ज्योतिषीय उपचार के साथ ही मां पार्वती को प्रतिदिन सिंदूर अर्पित करना चाहिए। सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना जाता है। जो भी व्यक्ति नियमित रूप से देवी मां की पूजा करता है उसके जीवन में कभी भी पारिवारिक क्लेश, झगड़े, मानसिक तनाव की स्थिति निर्मित नहीं होती है।
— सप्तम भाव गत शनि स्थित होने से विवाह बाधक होते है। अतः “ॐ शं शनैश्चराय नमः” मन्त्र का जप ७६००० एवं ७६०० हवन शमी की लकड़ी, घृत, मधु एवं मिश्री से करवा दें।
—–राहु या केतु होने से विवाह में बाधा या विवाहोपरान्त कलह होता है। यदि राहु के सप्तम स्थान में हो, तो राहु मन्त्र “ॐ रां राहवे नमः” का ७२००० जप तथा दूर्वा, घृत, मधु व मिश्री से दशांश हवन करवा दें। केतु स्थित हो, तो केतु मन्त्र “ॐ कें केतवे नमः” का २८००० जप तथा कुश, घृत, मधु व मिश्री से दशांश हवन करवा दें।
—–सप्तम भावगत सूर्य स्थित होने से पति-पत्नी में अलगाव एवं तलाक पैदा करता है। अतः जातक आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ रविवार से प्रारम्भ करके प्रत्येक दिन करे तथा रविवार कप नमक रहित भोजन करें। सूर्य को प्रतिदिन जल में लाल चन्दन, लाल फूल, अक्षत मिलाकर तीन बार अर्ध्य दें।
—-जिस जातक को किसी भी कारणवश विवाह में विलम्ब हो रहा हो, तो नवरात्री में प्रतिपदा से लेकर नवमी तक ४४००० जप निम्न मन्त्र का दुर्गा जी की मूर्ति या चित्र के सम्मुख करें।


“ॐ पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्ग संसार सागरस्य कुलोद्भवाम्।।”


—–किसी स्त्री जातिका को अगर किसी कारणवश विवाह में विलम्ब हो रहा हो, तो श्रावण कृष्ण सोमवार से या नवरात्री में गौरी-पूजन करके निम्न मन्त्र का २१००० जप करना चाहिए-


“हे गौरि शंकरार्धांगि यथा त्वं शंकर प्रिया।


तथा मां कुरु कल्याणी कान्त कान्तां सुदुर्लभाम।।”


—-किसी लड़की के विवाह मे विलम्ब होता है तो नवरात्री के प्रथम दिन शुद्ध प्रतिष्ठित कात्यायनि यन्त्र एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर स्थापित करें एवं यन्त्र का पंचोपचार से पूजन करके निम्न मन्त्र का २१००० जइ लड़की स्वयं या किसी सुयोग्य पंडित से करवा सकते हैं।


“कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि। नन्दगोप सुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः।।”


—–जन्म कुण्डली में सूर्य, शनि, मंगल, राहु एवं केतु आदि पाप ग्रहों के कारण विवाह में विलम्ब हो रहा हो, तो गौरी-शंकर रुद्राक्ष शुद्ध एवं प्राण-प्रतिष्ठित करवा कर निम्न मन्त्र का १००८ बार जप करके पीले धागे के साथ धारण करना चाहिए। गौरी-शंकर रुद्राक्ष सिर्फ जल्द विवाह ही नहीं करता बल्कि विवाहोपरान्त पति-पत्नी के बीच सुखमय स्थिति भी प्रदान करता है।


“ॐ सुभगामै च विद्महे काममालायै धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात्।।”


—-“ॐ गौरी आवे शिव जी व्याहवे (अपना नाम) को विवाह तुरन्त सिद्ध करे, देर न करै, देर होय तो शिव जी का त्रिशूल पड़े। गुरु गोरखनाथ की दुहाई।।”


उक्त मन्त्र की ११ दिन तक लगातार १ माला रोज जप करें। दीपक और धूप जलाकर ११वें दिन एक मिट्टी के कुल्हड़ का मुंह लाल कपड़े में बांध दें। उस कुल्हड़ पर बाहर की तरफ ७ रोली की बिंदी बनाकर अपने आगे रखें और ऊपर दिये गये मन्त्र की ५ माला जप करें। चुपचाप कुल्हड़ को रात के समय किसी चौराहे पर रख आवें। पीछे मुड़कर न देखें। सारी रुकावट दूर होकर शीघ्र विवाह हो जाता है।


—जिस लड़की के विवाह में बाधा हो उसे मकान के वायव्य दिशा में सोना चाहिए।
—-लड़की के पिता जब जब लड़के वाले के यहाँ विवाह वार्ता के लिए जायें तो लड़की अपनी चोटी खुली रखे। जब तक पिता लौटकर घर न आ जाए तब तक चोटी नहीं बाँधनी चाहिए।
—-लड़की गुरुवार को अपने तकिए के नीचे हल्दी की गांठ पीले वस्त्र में लपेट कर रखे।
—पीपल की जड़ में लगातार १३ दिन लड़की या लड़का जल चढ़ाए तो शादी की रुकावट दूर हो जाती है।
—विवाह में अप्रत्याशित विलम्ब हो और जातिकाएँ अपने अहं के कारण अनेल युवकों की स्वीकृति के बाद भी उन्हें अस्वीकार करती रहें तो उसे निम्न मन्त्र का १०८ बार जप प्रत्येक दिन किसी शुभ मुहूर्त्त से प्रारम्भ करके करना चाहिए—


“सिन्दूरपत्रं रजिकामदेहं दिव्ताम्बरं सिन्धुसमोहितांगम् सान्ध्यारुणं धनुः पंकजपुष्पबाणं पंचायुधं भुवन मोहन मोक्षणार्थम क्लैं मन्यथाम।
महाविष्णुस्वरुपाय महाविष्णु पुत्राय महापुरुषाय पतिसुखं मे शीघ्रं देहि देहि।।”


—-किसी भी लड़के या लड़की को विवाह में बाधा आ रही हो यो विघ्नकर्ता गणेशजी की उपासना किसी भी चतुर्थी से प्रारम्भ करके अगले चतुर्थी तक एक मास करना चाहिए। इसके लिए स्फटिक, पारद या पीतल से बने गणेशजी की मूर्ति प्राण-प्रतिष्टित, कांसा की थाली में पश्चिमाभिमुख स्थापित करके स्वयं पूर्व की ओर मुँह करके जल, चन्दन, अक्षत, फूल, दूर्वा, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजा करके १०८ बार “ॐ गं गणेशाय नमः” मन्त्र पढ़ते हुए गणेश जी पर १०८ दूर्वा चढ़ायें एवं नैवेद्य में मोतीचूर के दो लड्डू चढ़ायें। पूजा के बाद लड्डू बच्चों में बांट दें।
यह प्रयोग एक मास करना चाहिए। गणेशजी पर चढ़ये गये दूर्वा लड़की के पिता अपने जेब में दायीं तरफ लेकर लड़के के यहाँ विवाह वार्ता के लिए जायें।


—- तुलसी के पौधे की १२ परिक्रमायें तथा अनन्तर दाहिने हाथ से दुग्ध और बायें हाथ से जलधारा तथा सूर्य को बारह बार इस मन्त्र से अर्ध्य दें—-
 “ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्त्र किरणाय मम वांछित देहि-देहि स्वाहा।”


फिर इस मन्त्र का १०८ बार जप करें-


“ॐ देवेन्द्राणि नमस्तुभ्यं देवेन्द्र प्रिय यामिनि। विवाहं भाग्यमारोग्यं शीघ्रलाभं च देहि मे।”


—-गुरुवार का व्रत करें एवं बृहस्पति मन्त्र के पाठ की एक माला आवृत्ति केला के पेड़ के नीचे बैठकर करें।


—–कन्या का विवाह हो चुका हो और वह विदा हो रही हो तो एक लोटे में गंगाजल, थोड़ी-सी हल्दी, एक सिक्का डाल कर लड़की के सिर के ऊपर ७ बार घुमाकर उसके आगे फेंक दें। उसका वैवाहिक जीवन सुखी रहेगा।
—–जो माता-पिता यह सोचते हैं कि उनकी पुत्रवधु सुन्दर, सुशील एवं होशियार हो तो उसके लिए वीरवार एवं रविवार के दिन अपने पुत्र के नाखून काटकर रसोई की आग में जला दें।
—–विवाह में बाधाएँ आ रही हो तो गुरुवार से प्रारम्भ कर २१ दिन तक प्रतिदिन निम्न मन्त्र का जप १०८ बार करें-
“मरवानो हाथी जर्द अम्बारी। उस पर बैठी कमाल खां की सवारी। कमाल खां मुगल पठान। बैठ चबूतरे पढ़े कुरान। हजार काम दुनिया का करे एक काम मेरा कर। न करे तो तीन लाख पैंतीस हजार पैगम्बरों की दुहाई।”


—-किसी भी शुक्रवार की रात्रि में स्नान के बाद १०८ बार स्फटिक माला से निम्न मन्त्र का जप करें-
“ॐ ऐं ऐ विवाह बाधा निवारणाय क्रीं क्रीं ॐ फट्।”


—-लड़के के शीघ्र विवाह के लिए शुक्ल पक्ष के शुक्रवार को ७० ग्राम अरवा चावल, ७० सेमी॰ सफेद वस्त्र, ७ मिश्री के टुकड़े, ७ सफेद फूल, ७ छोटी इलायची, ७ सिक्के, ७ श्रीखंड चंदन की टुकड़ी, ७ जनेऊ। इन सबको सफेद वस्त्र में बांधकर विवाहेच्छु व्यक्ति घर के किसी सुरक्षित स्थान में शुक्रवार प्रातः स्नान करके इष्टदेव का ध्यान करके तथा मनोकामना कहकर पोटली को ऐसे स्थान पर रखें जहाँ किसी की दृष्टि न पड़े। यह पोटली ९० दिन तक रखें।
—–लड़की के शीघ्र विवाह के लिए ७० ग्राम चने की दाल, ७० से॰मी॰ पीला वस्त्र, ७ पीले रंग में रंगा सिक्का, ७ सुपारी पीला रंग में रंगी, ७ गुड़ की डली, ७ पीले फूल, ७ हल्दी गांठ, ७ पीला जनेऊ- इन सबको पीले वस्त्र में बांधकर विवाहेच्छु जातिका घर के किसी सुरक्षित स्थान में गुरुवार प्रातः स्नान करके इष्टदेव का ध्यान करके तथा मनोकामना कहकर पोटली को ऐसे स्थान पर रखें जहाँ किसी की दृष्टि न पड़े। यह पोटली ९० दिन तक रखें।
—-श्रेष्ठ वर की प्राप्ति के लिए बालकाण्ड का पाठ करे।
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इस लिंक पर जाकर यह भी पढ़े—–https://books.google.co.in/books?id=BQ_GWY0jO3EC&lpg=PT42&ots=ZjD36rp8tj&dq=%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%20%E0%A4%8F%E0%A4%B5%E0%A4%82%20%20%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B9%20%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A4%BE&pg=PT18#v=onepage&q=%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%20%E0%A4%8F%E0%A4%B5%E0%A4%82%20%20%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B9%20%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A4%BE&f=false
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सौभाग्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्र––


किसी भी श्रद्धा-विश्वास-युक्त स्त्री के द्वारा स्नानादि से शुद्ध होकर सूर्योदय से पहले नीचे लिखे मन्त्र की १० माला प्रतिदिन जप किये जाने से घर में सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है तथा उसका सौभाग्य बना रहता है। किसी शुभ दिन जप का आरम्भ करना चाहिये तथा प्रतिवर्ष चैत्र और आश्विन के नवरात्रों में विधिपूर्वक हवन करवा कर यथाशक्ति कुमारी, वटुक आदि को भोजनादि से संतुष्ट करना चाहिये। इस मन्त्र के हवन में समिधा केवल वट-वृक्ष की लेनी चाहिये।


मन्त्रः- ” ॐॐ ह्रीं ॐ क्रीं ह्रीं ॐ स्वाहा।”


साथ ही नीचे लिखे “सौभाग्याष्टित्तरशतनामस्तोत्र” का प्रतिदिन कम-से-कम एक पाठ करना चाहिये। इससे सौभाग्य की रक्षा होती है।


सौभाग्याष्टित्तरशतनामस्तोत्र–-


निशम्यैतज्जामदग्न्यो माहात्म्यं सर्वतोऽधिकम्।
स्तोत्रस्य भूयः पप्रच्छ दत्तात्रेयं गुरुत्तमम्।।१
भगवंस्त्वन्मुखाम्भोजनिर्गमद्वाक्सुधारसम्।
पिबतः श्रोत्रमुखतो वर्धतेऽनुरक्षणं तृषा।।२
अष्टोत्तरशतं नाम्नां श्रीदेव्या यत्प्रसादतः।
कामः सम्प्राप्तवाँल्लोके सौभाग्यं सर्वमोहनम्।।३
सौभाग्यविद्यावर्णानामुद्धारो यत्र संस्थितः।
तत्समाचक्ष्व भगवन् कृपया मयि सेवके।।४
निशम्यैवं भार्गवोक्तिं दत्तात्रेयो दयानिधिः।
प्रोवाच भार्गवं रामं मधुराक्षरपूर्वकम्।।५
श्रृणु भार्गव यत्पृष्टं नाम्नामष्टोत्तरं शतम्।
श्रीविद्यावर्णरत्नानां निधानमिव संस्थितम्।।६
श्रीदेव्या बहुधा सन्ति नामानि श्रृणु भार्गव।
सहस्त्रशतसंख्यानि पुराणेष्वागमेषु च।।७
तेषु सारतरं ह्येतत् सौभाग्याष्टोत्तरात्मकम्।
यदुवाच शिवः पूर्वं भवान्यै बहुधार्थितः।।८
सौभाग्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्रस्य भार्गव।
ऋषिरुक्तः शिवश्छन्दोऽनुष्टुप् श्रीललिताम्बिका।।९
देवता विन्यसेत् कूटत्रयेणावर्त्य सर्वतः।
ध्यात्वा सम्पूज्य मनसा स्तोत्रमेतदुदीरयेत्।।१०
।।अथ नाममन्त्राः।।
ॐ कामेश्वरी कामशक्तिः कामसौभाग्यदायिनी।
कामरुपा कामकला कामिनी कमलासना।।११
कमला कल्पनाहीना कमनीय कलावती।
कमलाभारतीसेव्या कल्पिताशेषसंसृतिः।।१२
अनुत्तरानघानन्ताद्भुतरुपानलोद्भवा।
अतिलोकचरित्रातिसुन्दर्यतिशुभप्रदा।।१३
अघहन्त्र्यतिविस्तारार्चनतुष्टामितप्रभा।
एकरुपैकवीरैकनाथैकान्तार्चनप्रिया।।१४
एकैकभावतुष्टैकरसैकान्तजनप्रिया।
एधमानप्रभावैधद्भक्तपातकनाशिनी।।१५
एलामोदमुखैनोऽद्रिशक्रायुधसमस्थितिः।
ईहाशून्येप्सितेशादिसेव्येशानवरांगना।।१६
ईश्वराज्ञापिकेकारभाव्येप्सितफलप्रदा।
ईशानेतिहरेक्षेषदरुणाक्षीश्वरेश्वरी।।१७
ललिता ललनारुपा लयहीना लसत्तनुः।
लयसर्वा लयक्षोणिर्लयकर्त्री लयात्मिका।।१८
लघिमा लघुमध्याढ्या ललमाना लघुद्रुता।
हयारुढा हतामित्रा हरकान्ता हरिस्तुता।।१९
हयग्रीवेष्टदा हालाप्रिया हर्षसमुद्धता।
हर्षणा हल्लकाभांगी हस्त्यन्तैश्वर्यदायिनी।।२०
हलहस्तार्चितपदा हविर्दानप्रसादिनी।
रामा रामार्चिता राज्ञी रम्या रवमयी रतिः।।२१
रक्षिणी रमणी राका रमणीमण्डलप्रिया।
रक्षिताखिललोकेशा रक्षोगणनिषूदिनी।।२२
अम्बान्तकारिण्यम्भोजप्रियान्तभयंकरी।
अम्बुरुपाम्बुजकराम्बुजजातवरप्रदा।।२३
अन्तःपूजाप्रियान्तःस्थरुपिण्यन्तर्वचोमयी।
अन्तकारातिवामांकस्थितान्तस्सुखरुपिणी।।२४
सर्वज्ञा सर्वगा सारा समा समसुखा सती।
संततिः संतता सोमा सर्वा सांख्या सनातनी ॐ।।२५
।।फलश्रुति।।
एतत् ते कथितं राम नाम्नामष्टोत्तरं शतम्।
अतिगोप्यमिदं नाम्नां सर्वतः सारमुद्धृतम्।।२६
एतस्य सदृशं स्तोत्रं त्रिषु लोकेषु दुर्लभम्।
अप्रकाश्यमभक्तानां पुरतो देवताद्विषाम्।।२७
एतत् सदाशिवो नित्यं पठन्त्यन्ये हरादयः।
एतत्प्भावात् कंदर्पस्त्रैलोक्यं जयति क्षणात्।।२८
सौभाग्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं मनोहरम्।
यस्त्रिसंध्यं पठेन्नित्यं न तस्य भुवि दुर्लभम्।।२९
श्रीविद्योपासनवतामेतदावश्यकं मतम्।
सकृदेतत् प्रपठतां नान्यत् कर्म विलुप्यते।।३०
अपठित्वा स्तोत्रमिदं नित्यं नैमित्तिकं कृतम्।
व्यर्थीभवति नग्नेन कृतं कर्म यथा तथा।।३१
सहस्त्रनामपाठादावशक्तस्त्वेतदीरयेत्।
सहस्त्रनामपाठस्य फलं शतगुणं भवेत्।।३२
सहस्त्रधा पठित्वा तु वीक्षणान्नाशयेद्रिपून्।
करवीररक्तपुष्पैर्हुत्वा लोकान् वशं नयेत्।।३३
स्तम्भेत् पीतकुसुमैर्णीलैरुच्चाटयेद् रिपून्।
मरिचैर्विद्वेषणाय लवंगैर्व्याधिनाशने।।३४
सुवासिनीर्ब्राह्मणान् वा भोजयेद् यस्तु नामभिः।
यश्च पुष्पैः फलैर्वापि पूजयेत् प्रतिनामभिः।३५
चक्रराजेऽथवान्यत्र स वसेच्छ्रीपुरे चिरम्।
यः सदाऽऽवर्तयन्नास्ते नामाष्टशतमुत्तमम्।।३६
तस्य श्रीललिता राज्ञी प्रसन्ना वाञ्छितप्रदा।
एतत्ते कथितं राम श्रृणु त्वं प्रकृतं ब्रुवे।।३७
।।श्रीत्रिपुरारहस्ये श्रीसौभाग्याष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रं।।


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अगर आपकी कुंडली में मंगल दोष है तो 28 साल की आयु तक विवाह न होना एक सामान्य बात है. घबराएं नहीं, 28 के बाद विवाह की प्रबल संभावना बनती है. बस आपको ध्यान यह रखना है कि किसी अन्य ग्रह के कारण उसमें विघ्न न आए.महिलाओं के लिए बृहस्पति पति, पुत्र तथा धन का प्रतिनिधि ग्रह है. इसलिए कन्याओं के विवाह पर गुरु की स्थिति का सबसे ज्यादा प्रभाव होता है.


बृहस्पति या गुरु ऐसा ग्रह है जो विवाह का कारक बनता है. इसलिए अगर गुरु को ठीक कर लिया जाए तो दूसरे ग्रहों के दोषों को कम कर विवाह का योग बनाया जा सकता है.इन ग्रहों के दोष के अलावा पूर्वजन्म के कारक और पितरों (माता-पिता औऱ पूर्वजों तक) का दोष भी विवाह में विलंब कराता है. ज्योतिषशास्त्र में अगर विलंब के कारण बताए गए हैं तो उसे दूर करने के उपाय भी हैं.


आज आपको  कन्याओं के शीघ्र विवाह के उपाय बता रहे हैं. ग्रहों की स्थिति और पितरों का दोष—— 
जब दो कारक आपके विवाह में बाधक बन रहे हैं. दोनों की शांति कैसे करें-


पितरों का दोष शांत करने के घरेलू व मुफ्त के उपायः—-
—-माता का सम्मान करें. उनकी खूब सेवा करें.
—-यदि घर में भाभी या चाची हों तो उनका सम्मान करें. सेवा से उनको प्रसन्न रखें. गौरी कृपा से उन्हें वर मिला है. इसलिए उनका सम्मान कर आप गौरी का आशीर्वाद ले रही हैं.
—-घर की पहली रोटी गाय को खिलाएं.
—-सूर्यदेव को प्रणाम करें.
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जानिए की किस राशि विशेष की लड़की साबित होती हैं अधिक भाग्यशाली,किस राशि के लड़कों के लिए–


आपने कई बार सुना होगा कि विवाह के बाद आपका आपकी किस्मत चमकेगी. 
ज्योतिषशास्त्र में कहा गया है कि जीवनसाथी अपने साथ भाग्य लेकर आता है.


विवाह के बाद का जीवन कैसा रहेगा, यह बताना मुश्किल है. फिर भी अगर कन्या की कुंडली के मित्रता और भाग्य का विचार करके शादी की जाए तो जीवनसाथी भाग्योदय और सुखद दांपत्य जीवन में सहायक हो सकता है.


इसकी गणना या विचार राशि के हिसाब से भी संभव है. आइए समझते हैं किस राशि के पुरुष के लिए सबसे अच्छा मेल किस राशि की कन्या से बैठता है जो उनके लिए भाग्योदय लेकर आए और वैवाहिक जीवन आनंददायक साबित हो.


मेष- मेष राशि के पुरुष कड़े स्वभाव के क्रोधी और जिद्दी होते हैं. इसलिए बेहतर मेल बिठाने के लिए इस राशि के लड़कों के विवाह के लिए तुला राशि की लड़कियां सबसे अच्छी हो सकती हैं.


वृष- वृष राशि वाले पुरुषों की कुंडली में चंद्रमा की स्थिति अच्छी होती है. इसलिए ये शांत स्वभाव के होते हैं. इन लड़कों के लिए वृश्चिक राशि की महिलाएं ज्यादा लकी होती हैं.


मिथुन- मिथुन राशि वाले पुरुषों का स्वभाव चंचल होता है. मिथुन राशि वाले यदि वृष राशि, तुला राशि और सिंह राशि की कन्या से शादी करें तो, वह उनके मन को शांत रखकर गलत रास्ते पर जाने से रोकती हैं और भाग्यशाली साबित होती हैं.


कर्क- कर्क राशि का स्वामी चंद्रमा होता है. इसलिए इस राशि के लड़के मीठा बोलने वाले होते हैं. उनके लिए सिंह राशि, मेष राशि और धनु राशि की कन्याएं अच्छा साथ निभाती हैं और सौभाग्य लेकर आती हैं.


सिंह- इस राशि के पुरुष आत्मविश्वास से भरे लेकिन बड़े गुस्सैल होते हैं. कर्क राशि, मेष राशि, वृश्चिक राशि, धनु राशि और मीन राशि की लड़कियां इनके जीवन को व्यवस्थित कर सुख-शांति लाने में मददगार होती हैं इसलिए वे इऩके लिए ज्यादा लकी साबित हो सकती हैं.


कन्या- कन्या राशि वालों के लिए वृष राशि की लड़कियां शुभ होती हैं. कन्या राशि वालों को वृष राशि की लड़कियों से अच्छा सहयोग तो मिलता ही है और भावनात्मक रूप से जुड़ाव ज्यादा गहरा होता है.


तुला- तुला राशि वाले लड़के मेष राशि, मिथुन राशि, कन्या राशि और मकर राशि की लड़कियों से प्रभावित होते हैं. इस राशि के लड़के स्थिर मिजाज वाले होते हैं. मेष राशि की लड़कियां इनके साथ विशेष सहयोग करती हैं और भाग्योदय कराती हैं.


वृश्चिक- वृश्चिक राशि वालों में आत्मविश्वास कुछ कम होता है क्योंकि उनकी कुंडली में चंद्रमा अशुभ होता है. वहीं वृष राशि वालों के लिए चंद्रमा शुभ फल देने वाला होता है इसलिए वृष राशि की कन्या वृश्चिक राशि, वालों का विश्वास बढ़ाकर लकी साबित होती हैं. इसके अलावा धनु राशि और मीन राशि भी उनके लिए शुभ होगा.


धनु- धनु राशि वालों का मिजाज भी मिथुन राशि वालों की तरह चंचल होता है. इसलिए धनु राशि वाले लड़कों के लिए सिंह राशि और मेष राशि की लड़कियां सबसे अच्छी साबित हो सकती हैं.


मकर- मकर राशि वाले पुरुष स्वभाव से कठोर होते हैं. उन्हें अगर भावनात्मक सहयोग की बड़ी जरूरत होती है. कर्क राशि, तुला राशि और वृष राशि की कन्या इस कमी को पूरा कर उनका भाग्योदय करा सकती है.


कुंभ- कुंभ राशि वालों को हर मोड़ पर अच्छे और सच्चे साथी की जरूरत होती है. उनके लिए सिंह राशि और वृष राशि की महिलाएं जीवन के हर क्षेत्र में तरक्की दिलाने वाली साबित होती हैं. कुंभ राशि के लड़कों को यदि सिंह और वृष राशि वाली जीवनसंगिनी मिले तो भाग्योदय जल्दी होता है.


मीन- मीन राशि वालों के जीवन में मेष और वृश्चिक राशि की महिलाएं बहुत ही महत्वपूर्ण होती हैं. इसलिए मीन राशि के लड़कों की मेष और वृश्चिक राशि की लड़की के साथ मेल ज्यादा बेहतर और लकी साबित हो सकता है.
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शुभ ग्रह हमेशा शुभ नहीं होते(पति पत्नी में अलगाव के ज्योतिषीय कारण )—
ज्योतिषीय नियम है कि कुंडली में अशुभ ग्रहों से अधिष्ठित भाव के बल का ह्वास और शुभ ग्रहों से अधिष्ठित भाव के बल की समृद्धि होती है। जैसे, मानसागरी में वर्णन है कि केन्द्र भावगत बृहस्पति हजारों दोषों का नाशक होता है। किन्तु, विडंबना यह है कि सप्तम भावगत बृहस्पति जैसा शुभ ग्रह जो स्त्रियों के सौभाग्य और विवाह का कारक है, वैवाहिक सुख के लिए दूषित सिद्ध हुआ हैं।
यद्यपि बृहस्पति बुद्धि, ज्ञान और अध्यात्म से परिपूर्ण एक अति शुभ और पवित्र ग्रह है, मगर कुंडली में सप्तम भावगत बृहस्पति वैवाहिक जीवन के सुखों का हंता है। सप्तम भावगत बृहस्पति की दृष्टि लग्न पर होने से जातक सुन्दर, स्वस्थ, विद्वान, स्वाभिमानी और कर्मठ तथा अनेक प्रगतिशील गुणों से युक्त होता है, किन्तु ‘स्थान हानि करे जीवा’ उक्ति के अनुसार यह यौन उदासीनता के रूप में सप्तम भाव से संबन्धित सुखों की हानि करता है। प्राय: शनि को विलंबकारी माना जाता है, मगर स्त्रियों की कुंडली के सप्तम भावगत बृहस्पति से विवाह में विलंब ही नहीं होता, बल्कि विवाह की संभावना ही न्यून होती है।
यदि विवाह हो जाये तो पति-पत्नी को मानसिक और दैहिक सुख का ऐसा अभाव होता है, जो उनके वैवाहिक जीवन में भूचाल आ जाता हैं। वैद्यनाथ ने जातक पारिजात, अध्याय 14, श्लोक 17 में लिखा है, ‘नीचे गुरौ मदनगे सति नष्ट दारौ’ अर्थात् सप्तम भावगत नीच राशिस्थ बृहस्पति से जातक की स्त्री मर जाती है। कर्क लग्न की कुंडलियों में सप्तम भाव गत बृहस्पति की नीच राशि मकर होती है। व्यवहारिक रूप से उपयरुक्त कथन केवल कर्क लग्न वालों के लिए ही नहीं है, बल्कि कुंडली के सप्तम भाव अधिष्ठित किसी भी राशि में बृहस्पति हो, उससे वैवाहिक सुख अल्प ही होते हैं।
एक नियम यह भी है कि किसी भाव के स्वामी की अपनी राशि से षष्ठ, अष्टम या द्वादश स्थान पर स्थिति से उस भाव के फलों का नाश होता है। सप्तम से षष्ठ स्थान पर द्वादश भाव- भोग का स्थान और सप्तम से अष्टम द्वितीय भाव- धन, विद्या और परिवार तथा उनसे प्राप्त सुखों का स्थान है। यद्यपि इन भावों में पाप ग्रह अवांछनीय हैं, किन्तु सप्तमेश के रूप में शुभ ग्रह भी चंद्रमा, बुध, बृहस्पति और शुक्र किसी भी राशि में हों, वैवाहिक सुख हेतु अवांछनीय हैं। चंद्रमा से न्यूनतम और शुक्र से अधिकतम वैवाहिक दुख होते हैं। दांपत्य जीवन कलह से दुखी पाया गया, जिन्हें तलाक के बाद द्वितीय विवाह से सुखी जीवन मिला।
पुरुषों की कुंडली में सप्तम भावगत बुध से नपुंसकता होती है। यदि इसके संग शनि और केतु की युति हो तो नपुंसकता का परिमाण बढ़ जाता है। ऐसे पुरुषों की स्त्रियां यौन सुखों से मानसिक एवं दैहिक रूप से अतृप्त रहती हैं, जिसके कारण उनका जीवन अलगाव या तलाक हेतु संवेदनशील होता है। सप्तम भावगत बुध के संग चंद्रमा, मंगल, शुक्र और राहु से अनैतिक यौन क्रियाओं की उत्पत्ति होती है, जो वैवाहिक सुख की नाशक है।
‘‘यदि सप्तमेश बुध पाप ग्रहों से युक्त हो, नीचवर्ग में हो, पाप ग्रहों से दृष्ट होकर पाप स्थान में स्थित हो तो मनुष्य की स्त्री पति और कुल की नाशक होती है।’’सप्तम भाव के अतिरिक्त द्वादश भाव भी वैवाहिक सुख का स्थान हैं। चंद्रमा और शुक्र दो भोगप्रद ग्रह पुरुषों के विवाह के कारक है। चंद्रमा सौन्दर्य, यौवन और कल्पना के माध्यम से स्त्री-पुरुष के मध्य आकर्षण उत्पन्न करता है।
दो भोगप्रद तत्वों के मिलने से अतिरेक होता है। अत: सप्तम और द्वादश भावगत चंद्रमा अथवा शुक्र के स्त्री-पुरुषों के नेत्रों में विपरीत लिंग के प्रति कुछ ऐसा आकर्षण होता है, जो उनके अनैतिक यौन संबन्धों का कारक बनता है। यदि शुक्र -मिथुन या कन्या राशि में हो या इसके संग कोई अन्य भोगप्रद ग्रह जैसे चंद्रमा, मंगल, बुध और राहु हो, तो शुक्र प्रदान भोगवादी प्रवृति में वृद्धि अनैतिक यौन संबन्धों की उत्पत्ति करती है।
ऐसे व्यक्ति न्यायप्रिय, सिद्धांतप्रिय और दृढ़प्रतिज्ञ नहीं होते बल्कि चंचल, चरित्रहीन, अस्थिर बुद्धि, अविश्वासी, व्यवहारकुशल मगर शराब, शबाब, कबाब, और सौंदर्य प्रधान वस्तुओं पर अपव्यय करने वाले होते हैं। क्या ऐसे व्यक्तियों का गृहस्थ जीवन सुखी रह सकता है? कदापि नहीं। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि कुंडली में अशुभ ग्रहों की भांति शुभ ग्रहों की विशेष स्थिति से वैवाहिक सुख नष्ट होते हैं।
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====जानिए युवक/वर कुंडली से केसा होगी जीवनसाथी—
–युवक/वर की कुंडली—


—-यदि वर की कुंडली के सप्तम भाव में वृषभ या तुला राशि होती है तो उसे सुंदर पत्नी मिलती है। यदि कन्या की कुंडली में चन्द्र से सप्तम स्थान पर शुभ ग्रह बुध, गुरु, शुक्र में से कोई भी हो तो उसका पति राज्य में उच्च पद प्राप्त करता है तथा धनवान होता है।
—–जब सप्तमेश सौम्य ग्रह होता है तथा स्वग्रही होकर सप्तम भाव में ही उपस्थित होता है तो जातक को सुंदर, आकर्षक, प्रभामंडल से युक्त एवं सौभाग्यशाली पत्नी प्राप्त होती है। जब सप्तमेश सौम्य ग्रह होकर भाग्य भाव में उपस्थित होता है तो जातक को शीलयुक्त, रमणी एवं सुंदर पत्नी प्राप्त होती है तथा विवाह के पश्चात जातक का निश्चित भाग्योदय होता है।
—-जब सप्तमेश एकादश भाव में उपस्थित हो तो जातक की पत्नी रूपवती, संस्कारयुक्त, मृदुभाषी व सुंदर होती है तथा विवाह के पश्चात जातक की आर्थिक आय में वृद्धि होती है या पत्नी के माध्यम से भी उसे आर्थिक लाभ प्राप्त होते हैं।
—-यदि जातक की जन्मकुंडली के सप्तम भाव में वृषभ या तुला राशि होती है तो जातक को चतुर, मृदुभाषी, सुंदर, सुशिक्षित, संस्कारवान, तीखे नाक-नक्श वाली, गौरवर्ण, संगीत, कला आदि में दक्ष, भावुक एवं चुंबकीय आकर्षण वाली, कामकला में प्रवीण पत्नी प्राप्त होती है।
—–यदि जातक की जन्मकुंडली में सप्तम भाव में मिथुन या कन्या राशि उपस्थित हो तो जातक को कोमलाङ्गी, आकर्षक व्यक्तित्व वाली, सौभाग्यशाली, मृदुभाषी, सत्य बोलने वाली, नीति एवं मर्यादाओं से युक्त बात करने वाली, श्रृंगारप्रिय, कठिन समय में पति का साथ देने वाली तथा सदैव मुस्कुराती रहने वाली पत्नी प्राप्त होती है। उन्हें वस्त्र एवं आभूषण बहुत प्रिय होते हैं।
—–जिस जातक के सप्तम भाव में कर्क राशि स्थित होती है, उसे अत्यंत सुंदर, भावुक, कल्पनाप्रिय, मधुरभाषी, लंबे कद वाली, छरहरी तथा तीखे नाक-नक्श वाली, सौभाग्यशाली तथा वस्त्र एवं आभूषणों से प्रेम करने वाली पत्नी प्राप्त होती है।
—-यदि किसी जातक की जन्मकुंडली के सप्तम भाव में कुंभ राशि स्थित हो तो ऐसे जातक की पत्नी गुणों से युक्त धार्मिक, आध्यात्मिक कार्यो में गहरी अभिरुचि रखने वाली एवं दूसरों की सेवा और सहयोग करने वाली होती है।
——जब सप्तम भाव में धनु या मीन राशि हो, जातक को धार्मिक, आध्यात्मिक एवं पुण्य के कार्यो में रुचि रखने वाली, सुंदर, न्याय एवं नीति से युक्त बातें करने वाली, वाक्पटु, पति के भाग्य में वृद्धि करने वाली, सत्य का आचरण करने वाली और शास्त्र एवं पुराणों का अध्ययन करने वाली पत्नी प्राप्त होती है।
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केसा मिलेगा पति–जानिए की कन्या/युवती की कुंडली——


—जिस कन्या की जन्मकुंडली के लग्न में चन्द्र, बुध, गुरु या शुक्र उपस्थित होता है, उसे धनवान पति प्राप्त होता है।
—-जिस कन्या की जन्मकुंडली के लग्न में गुरु उपस्थित हो तो उसे सुंदर, धनवान, बुद्धिमान पति व श्रेष्ठ संतान मिलती है।भाग्य भाव में या सप्तम, अष्टम और नवम भाव में शुभ ग्रह होने से ससुराल धनाढच्य एवं वैभवपूर्ण होती है।
—-कन्या की जन्मकुंडली में चन्द्र से सप्तम स्थान पर शुभ ग्रह बुध, गुरु, शुक्र आदि में से कोई उपस्थित हो तो उसका पति राज्य में उच्च पद प्राप्त करता है तथा उसे सुख व वैभव प्राप्त होता है। 
—-जब कांय की कुंडली के लग्न में चंद्र हो तो ऐसी कन्या पति को प्रिय होती है और चंद्र व शुक्र की युति हो तो कन्या ससुराल में अपार संपत्ति एवं समस्त भौतिक सुख-सुविधाएं प्राप्त करती है।
—–जिस कन्या की कुंडली में वृषभ, कन्या, तुला लग्न हो तो वह प्रशंसा पाकर पति एवं धनवान ससुराल में प्रतिष्ठा प्राप्त करती है।कन्या की कुंडली में जितने अधिक शुभ ग्रह गुरु, शुक्र, बुध या चन्द्र लग्न को देखते हैं या सप्तम भाव को देखते हैं, उसे उतना धनवान एवं प्रतिष्ठित परिवार एवं पति प्राप्त होता है।
—–जिस कन्या की जन्मकुंडली में लग्न एवं ग्रहों की स्थिति की गणनानुसार त्रिशांश कुंडली का निर्माण करना चाहिए तथा देखना चाहिए कि यदि कन्या का जन्म मिथुन या कन्या लग्न में हुआ है तथा लग्नेश गुरु या शुक्र के त्रिशांश में है तो उसके पति के पास अटूट संपत्ति होती है तथा कन्या सदैव ही सुंदर वस्त्र एवं आभूषण धारण करने वाली होती है।
—–जब कुंडली के सप्तम भाव में शुक्र उपस्थित होकर अपने नवांश अर्थात वृषभ या तुला के नवांश में हो तो पति धनाढच्य होता है।सप्तम भाव में बुध होने से पति विद्वान, गुणवान, धनवान होता है, गुरु होने से दीर्घायु, राजा के संपत्ति वाला एवं गुणी तथा शुक्र या चंद्र हो तो ससुराल धनवान एवं वैभवशाली होता है। 
—-जब एकादश भाव में वृष, तुला राशि हो या इस भाव में चन्द्र, बुध या शुक्र हो तो ससुराल धनाढच्य और पति सौम्य व विद्वान होता है।हर पुरुष सुंदर पत्नी और स्त्री धनवान पति की कामना करती है।
——यदि जातक की जन्मकुंडली के सप्तम भाव में सूर्य हो तो उसकी पत्नी शिक्षित, सुशील, सुंदर एवं कार्यो में दक्ष होती है, किंतु ऐसी स्थिति में सप्तम भाव पर यदि किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो दाम्पत्य जीवन में कलह और सुखों का अभाव होता है।
——जब जातक की जन्मकुंडली में स्वग्रही, उच्च या मित्र क्षेत्री चंद्र हो तो जातक का दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है तथा उसे सुंदर, सुशील, भावुक, गौरवर्ण एवं सघन केश राशि वाली रमणी पत्नी प्राप्त होती है। सप्तम भाव में क्षीण चंद्र दाम्पत्य जीवन में न्यूनता उत्पन्न करता है।
—-जब जातक की कुंडली में सप्तमेश केंद्र में उपस्थित हो तथा उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि होती है, तभी जातक को गुणवान, सुंदर एवं सुशील पत्नी प्राप्त होती है।पुरुष जातक की जन्मकुंडली के सप्तम भाव में शुभ ग्रह बुध, गुरु या शुक्र उपस्थित हो तो ऐसा जातक सौभाग्यशाली होता है तथा उसकी पत्नी सुंदर, सुशिक्षित होती है और कला, नाटच्य, संगीत, लेखन, संपादन में प्रसिद्धि प्राप्त करती है। ऐसी पत्नी सलाहकार, दयालु, धार्मिक-आध्यात्मिक क्षेत्र में रुचि रखती है।
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विवाह के पूर्व किन चीजो का ध्यान रखें:- एक ज्योतिषीय परामर्श
रूप, सौंदर्य, स्वास्थय, स्तर तथा गणना आदि सब तरह से जब आश्वस्त हो जाएँ तो कृपया निम्न बातो को आवश्यक रूप से जांच लें-
लडके एवं लड़की दोनों का जन्म एक दूसरे के तृतीयांत राशि में न हो। अर्थात यदि लडके का जन्म मेष राशि के अंत में अर्थात कृत्तिका नक्षत्र के प्रथम चरण में हो तो लड़की का जन्म मिथुन राशि के अंत अर्थात पुनर्वसु नक्षत्र के अंतिम चरण में नहीं होना चाहिये।
कुंडली में लडके के जिस भाव में सूर्य हो लड़की की कुंडली में उस भाव में गुरु न होवे।
लड़की के जिस भाव में मंगल हो लडके की कुंडली में उस भाव में शुक्र न होवे।
लडके की कुंडली में यदि आठवें भाव में शनि, राहु, मंगल या सूर्य हो तो लड़की की कुंडली में इसी भाव में इनमें से कोई भी ग्रह उस शर्त पर हो जो लडके के अष्टक वर्ग में आठवें भाव में 4 या इससे कम अंक लिया हो। अन्यथा अल्पायु योग स्वतः बन जायेगा।
विवाह का मुहूर्त तभी निकालें जब लड़का या लड़की किसी एक का किसी भी ग्रह में राहु की अन्तर्दशा चल रही हो। तथा दूसरे की सप्तम या दूसरे भाव की संध्या दशा में पाचक दशा चल रही हो। ऐसा इसलिये ताकि आजीवन एक की दशा विपरीत होने पर दूसरे की दशा बली होकर उसे सहारा दे देती है।
पारंपरिक गणना के अनुसार यदि नाडी एक हो जाती है। तो शादी निषिद्ध कर दी जाती है। कारण यह है की एक तो गणना में सीधे आठ अंक कम हो जाते है। दूसरे वंश क्रम अवरुद्ध होने का कथन है। किन्तु यदि दोनों की कुंडली में पंचमेश, सप्तमेश एवं लग्नेश दोनों के पांचवें भाव की राशि में 5 या इससे अधिक अंक पाते है। तो वंशक्रम अवरुद्ध नहीं हो पाता है।
केवल मांगलिक योग शादी में 20% ही बाधक बन सकता है। वह भी तब जब अष्टमेश एवं द्वादशेश दोनों के अष्टम एवं द्वादश भाव में 5 या इससे अधिक अंक पाते है। यदि लग्नेश, सप्तमेश एवं पंचमेश सप्तम भाव में 5 या इससे अधिक पाते है, तथा इनमें से कोई अस्त या नीच का न हो तो लड़का-लड़की दोनों आजीवन सुखी एवं खुश रहेगें। चाहे कुंडली कितनी भी भयंकर मांगलीक क्यों न हो।
दोनों के सप्तमांश कुंडली में सप्तमेश परस्पर शत्रु ग्रह नहीं होने चाहिये। यदि संयोग से ऐसा हो भी जाता है, तो शादी के समय उस नक्षत्र में विवाह कदापि न करें जिसमे जन्म के समय दोनों के सप्तमेश हो।
यदि सप्तम भाव में प्रत्येक ग्रह को 5 या इससे अधिक मिलें तो गणना न मिलने पर भी शादी सदा शुभ होगी।
इसके विपरीत यदि गणना के अंक 25 या 30 या इससे अधिक ही क्यों न मिलें, किन्तु अष्टक वर्ग में यदि प्रत्येक ग्रह को 3 या इससे कम अंक मिलते हो, तो वह विवाह सदा ही अशुभ होता है।
यदि भाव दोष के कारण विवाह में बाधा पहुँच रही हो तो पहले नक्षत्र व्युत्क्रमण की विधि पूरी करें। यदि नक्षत्र दोष के कारण बाधा हो तो स्थान व्युत्क्रमण की विधि पूरी करें। किन्तु यदि दोनों दोष हो तो विवाह किसी भी कीमत पर न करें।
और अंत में मैं यह कहना चाहूंगा कि ये सारे प्रतिबन्ध या सम्मति सिर्फ उनके लिए लागू है जो ज्योतिष, गणना या इस परम्परा को मानते हैं। जो नहीं मानते या विशवास करते उनके लिये यह सारा विवरण निरर्थक है।
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होती हैं हानि रात्री काल मे विवाह से —-


हमारे अधिकतर विवाहो के सम्बन्ध विच्छेदो का कारण हे हमारे रात्री काल मे विवाह के करने का प्रचलन होना हे। जबकि सनातन काल मे भी ओर हमारे भगवानो के विवाह जेसे-शिव सती व शिव पार्वती का विवाह दिन
मे हुये थे तथा सारे शुभ ध्रर्म कार्य दिन मे ही करने ओर कराने के विधान हे। रात्रिकाल मे निशाचरो का पहर माना गया ह ओर इस निशाचर काल मे किया गया विवाह ओर विवाह यग्य कर्मो मे जपे गये मन्त्रो से देवताओ का भोग निशाचरो को प्राप्त होता हे ओर निशाचरो का आवाहन होने से निशाचरो दुवारा विवाह के फ़ेरो मे वर वधु के साथ बन्ध जाने ओर उनके साथ साथ रहने का निशाचरी सम्बंध का प्रबल योग बन जाता हे ओर
यही निशाचरी ग्रहण योग हमारे विवाहो की असफ़लताओ भरा जीवन व निशाचरी प्रभाव लिये
हमारी सन्तानो का ना होना या हो कर मर जाना या सन्तानो की शिक्छा मे उनकी नोकरी रोजगार मे विघ्न होना या ज्योतिष के कालसर्प पित्र दोष आदि अनेक दोषो से हमारा व हमारी सन्तानो का दुखद भविष्य की प्राप्ति होती हे। 


हम प्राचीन सनातनी होकर भी अपने सारे धर्म सिद्दान्त भूल गये हे ओर कलियुग के निशाचरी प्रभाव वश हो कर वेभव की चकाचोध मे अपना सूर्य देव का सात्विक आशिर्वाद लेने कि जगहा रात्रि का निशाचरी शाप ले कर अशुभ दुखद जीवन क्यो जीना चाह रहे हे। अन्य मुसलिम ईसाई सिख्ख आदि धर्मो मे आज भी अधिकतर विवाह दिन मे ही होते हे। ये नही कि वे सब सुखी हे परन्तु विवाह मे दुख का कारण ये तो हे
ही साथ मे सही रुप से विवाह मन्त्रो का सही उच्चारण का न होना व सनातन विवाह मे अधकचरापन को अपना भी हे। ओर भी अनेक कारण हे परन्तु दिन मे विवाह का ना होना ही सबसे बडा दोष हे आओ पहले दिन के
विवाह का प्रचलन करे जो आज इस विचार को पड कर बेकूफ़ी भरा कह कर हसेगे पर अगर आप सनातन विवाह सिद्दान्त प्रणाली मे आस्था रखते हे तो अवश्य विचार कर अपनायेगे।

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