शनिचरी (शनि अमावस्या ) अमावस्या .8 अप्रेल 


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शनि अमावस्या का दिन शनि भक्तों के लिए विशेष फलदायी माना जाता है। इस दिन शनि देव की कृपा अपने भक्तों पर बरसती है और शनि देव सभी को उनके कर्मों के अनुरूप न्याय प्रदान करते हैं। इस वर्ष 2015 में अप्रैल माह की 18 तारीख को शनि अमावस्या होगी। शनि देव उनकी आराधना करने वाले भक्तों को उनके पापों व कष्टों से मुक्ति दिलाएंगे। 

शनि अमावस्या के दिन शनि की आराधना का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। शनिवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या की तिथि‍ को शनीश्चरी अमावस्या कहा जाता है और शनीश्चरी अमावस्या को शनिदेव का दर्शन पूजन दान , मान मनौती आदि करना बहुत शुभ माना जाता है । 

भारतवर्ष और विदेशों में लोग सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या जिसे ‘’सोमवती अमावस्या’’ कहा जाता है में तीर्थ जल स्नान व गंगा स्नान को बहुत पुण्यप्रद व धर्म अर्थ मोक्षादि प्राप्त‍ि हेतु सर्वोत्तम माना जाता है , वहीं शनीवार को पड़ने वाली शनीश्चरी अमावस्या को शनि पूजा, दान, दर्शन, मान मनौती आदि करने के लिये सर्वोत्म माना जाता है । 

इसी प्रकार मंगलवार को पड़ने वाली ‘’भौमवती अमावस्या’’ या शुक्रवती अमावस्या या रविती अमावस्या जो कि रविवार को रहती है , इन सबके अलग अलग अर्थ, फल , धर्म , पुण्य विधान मान्य व प्रचलित है ।किन्तु सबमें कई चीजें महत्वपूर्ण हो जातीं हैं, मसलन ग्रह स्थ‍िति गणना, नक्षत्र स्थि‍तियां , तिथि‍ की स्थ‍िति, वार आदि की स्थ‍िति , कुल मिलाकर ज्योतिषीय गणना , तंत्रिक गणनायें  इत्यादि , अन्यथा सब व्यर्थ हो जाता है ।

शनिचरी अमावस्या पर प्रकाश डालते हुए पंडित “विशाल” दयानंद शास्त्री के का कहना है कि शनिचरी अमावस्या का दिन बड़े सौभाग्य से आता है। प्रति शनिवार और शनिचरी अमावस्या के दिन शनि आराधना करने से दु:ख, कलेश, विकास व अन्य पारिवारिक व मानसिक परेशानियों से निजात पाने का माध्यम है शनिदेव पूजा, ऐसे अवसरों पर शनिदेव की आराधना करने से नहीं चूकना चाहिए।हमारे शास्त्रों में अमावस्या का विशेष महत्व माना गया है और सबसे खास बात यह है कि यदि अमावस्या शनिवार के दिन पड़े तो इसे सोने पर सुहागा माना जाता है। 

हमारे विद्वान ऋषि-मुनियों के बनाए हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह के .0 दिनों को 15-15 दिनों के दो पक्षों में विभाजित किया गया है शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में। शास्त्रों के अनुसार चंद्रमा की सोलहवीं कला यानि अमावस्या के दिन चांद आकाश में दिखाई नहीं देता है। इस बार शनि अमावस्या शनिवार को है और इसी वजह से इस दिन शनि देव अपने भक्तों का कल्याण करेंगे। यह कई गुणा पुण्य कारक है। शनि अमावस्या को न्याय के देवता शनिदेव का दिन माना गया है। इस दिन शनिदेव की पूजा विशेष रूप से की जाती है। जिन जातकों की जन्म कुंडली या राशियों पर शनि की साढ़ेसाती और ढैया का असर होता है, उनके लिये यह महत्वपूर्ण अवसर है, क्योंकि शनि अमावस्या पर शनि देव की पूजा-अर्चना करने पर शांति व अच्छे भाग्य की प्राप्ति होती है 

पंडित “विशाल” दयानंद शास्त्री के मुताबिक शनिदेव के दर्शन करने वाले दिन तेल, काला कपड़ा, एक छोटी कील, काली दाल अर्पित करें ऐसा करने से सुख-शांति और शनि के प्रकोपों से मुक्ति मिलेगी।जिन राशियों के लिए शनि अशुभ है, वे खासकर इस अद्भुत योग पर शनि की पूजा करें तो उन्हें शनि की कृपा प्राप्त होगी और अशुभ योगों को टाला जा सकता है। इसलिए शनि को तेल से अभिषेक करना चाहिए, सुगंधित इत्र, इमरती का भोग, नीला फूल चढ़ाने के साथ मंत्र के जाप से शनि की पी़ड़ा से मुक्ति मिल सकती है। शनि की कृपा से ही धन, ऐश्वर्य प्राप्त होगा। सर्वविदित हैं की शनि न्याय के देवता है।

ज्योतिषीय स्थि‍ति के अनुसार शनिवार 18 अप्रेल को यह उदयकालीन तिथि‍ के रूप में अमावस्या के रूप में नहीं पड़ रही है बल्क‍ि बिद्वा तिथि‍ हो जाने और चतुर्दशी तिथि‍ का क्षय हो जाने के कारण और त्रयोदशी तिथि‍ का कालक्रम बढ़ जाने के कारण इस अमावस्या तिथि‍ का 18 अप्रेल की उदयकाल रात्रि में चला गया है । और रात्रिकाल में यह तिथि‍ में 12 बजकर 26 मिनिट पर उदय होगी ।  जबकि चंद्र राशि‍ परिवर्तन प्रवेश काल सायं 5 बजकर 21 मिनिट पर और मुरैना के हिसाब से सायं 5 बजकर 01 मिनिट पर होगा ।
सूर्य और चन्द्र एकस्थ राशी होकर एक ही अंश पर होने से अमावस्या तिथि‍ का निर्माण व प्रचलन होता है, इसके ठीक उलट विपरीतस्थ आमुख सामुख समान अंश होने पर पूर्ण‍िमा तिथि‍ बनती है ।

इस समय चूंकि 14 अप्रेल को सूर्य का राशि‍ संक्रमण (संक्रान्ति‍)   हुआ है और राशि‍ परिवर्तन कर मेषस्थ हुये हैं , जबकि चन्द्रमा का राशि‍ संक्रमण (चन्द्र संक्रान्त‍ि ) कर राशि‍ परिवर्तन कर 18 अप्रेल को सायंकाल में ऊपर लिखे सायंकाल समय में होगा । इसलिये चन्द्र संक्रमण काल के हिसाब से सायंकाल में 5 बजे के बाद ही शनि प्रावधान लागू किये जा सकते हैं, जो कि बहुत ही हल्के प्रभाव के होंगें क्योंकि शनि व सूर्य दोनों ही अर्थात अमावस्या तिथि‍ इस वक्त सूर्य 3 अंश 34 कला पर होंगें और चन्द्रमा शून्य कला पर होंगें । 

परिणाम स्वरूप यह तिथि‍ काल हालांकि लगभग प्रभावहीन एवं महत्वहीन होगा जो कि रात्रि में 12 बजे के बाद सूर्य चन्द्र के समान अंश व कला पर आने के बाद और चन्द्र कलायें विकलायें बढ़ने के बाद ही असल तिथि‍ अभ्युदय अमावस्या का उदयकाल गण्यमान्य होगा । 

चूंकि शनि इस समय वक्री चल रहे हैं और वृश्च‍िक राशीस्थ होकर 18 अप्रेल को  करीब 9 अंश 54 कला पर हैं , लिहाजा प्रचण्ड व प्रबल न होकर भी फिलवक्त होशमंद हैं , जो कि कुछ समय बाद स्वयं ही प्रभावहीन होना प्रारंभ हो जायेंगें ।

चूंकि शनिदेव , सूर्य के पुत्र हैं और शनि भले ही सूर्य से शत्रुता मान कर वैर रखते हों लेकिन सूर्य के वे बहुत लाड़ले व प्रिय हैं । लिहाजा जन्म कुंडली में जिना शनि गोचर ठीक चल रहा हो वे शनिवार 18 अप्रेल को सूर्य के उच्च रहते दिन भर में कभी सूर्यास्त पूर्व शनि मंदिर में शनि संबंधी समस्त कार्य भले ही कुशलता पूर्वक संपादित कर सकते हैं , अन्य के लिये व्यर्थ या प्रभावहीन व फलहीन होंगें ।जबकि चन्द्र राशि‍ संक्रमण काल या सायंकाल के बाद अन्य व्यक्तिी भी शनि संबंधी शनीश्चरी अमावस्या की पूजन दर्शन व अन्य क्रियाविधि‍ संपन्न कर सकते हैं , किन्तु असल अमावस्या रात्रिकाल में ही रहेगी और शनि मंदिर में शनीश्चरी अमावस्या संबंधी पूजन , दानादि सहित समस्त कार्यादि संपन्न किये जाने का विधान काल होगा । यद्यपि यह दीगर बात होगी कि 18 अप्रेल रात्रिकाल में भी सूर्य व चंद्र बहुत कम अंश पर विलय कर विलीन होंगें अत: यह अमावस्या काफी हल्की या बहुत ही कम या अल्प लाक्षणि‍क प्रभाव वाली होगी । 


पंडित “विशाल” दयानंद शास्त्री के अनुसार सूर्य की द्वितीय पत्नी छाया के गर्भ से शनिदेव का जन्म हुआ। शनि के श्याम वर्ण को देखकर सूर्य ने अपनी पत्नी छाया पर आरोप लगाया कि शनि मेरा पुत्र नहीं है, तभी से शनि अपने पिता से शत्रुभाव रखते हैं। शनिदेव ने अपनी साधना-तपस्या द्वारा शिवजी को प्रसन्न कर अपने पिता सूर्यदेव की भाँति शक्ति को प्राप्त किया और शिवजी ने शनि को वरदान माँगने के लिए कहा। तब शनिदेव ने प्रार्थना की कि युगों-युगों से मेरी माता छाया की पराजय होती रही है। मेरे पिता सूर्य द्वारा बहुत ज्यादा अपमानित व प्रताडि़त किया गया है। अतः माता की इच्छा है कि मेरा पुत्र शनि अपने पिता से मेरे अपमान का बदला ले और उनसे भी ज्यादा शक्तिशाली बने। तब भगवान शंकर ने वरदान देते हुए कहा कि नवग्रहों में तुम्हारा सर्वश्रेष्ठ स्थान रहेगा। मानव तो क्या देवता भी तुम्हारे नाम से भयभीत रहेंगे। आज के इस भौतिक युग में हर व्यक्ति किसी न किसी परेशानी से व्यथित रहता है। इसका मुख्य कारण ग्रह दोष होता है। ग्रह प्रतिकूल होने के कारण ऐसी परेशानियाँ आती हैं।

पंडित “विशाल” दयानंद शास्त्री के अनुसार शनि अमावस्या के दिन श्री शनिदेव की आराधना करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होंती हैं. श्री शनिदेव भाग्यविधाता हैं, यदि निश्छल भाव से शनिदेव का नाम लिया जाये तो व्यक्ति के सभी कष्टï दूर हो जाते हैं. श्री शनिदेव तो इस चराचर जगत में कर्मफल दाता हैं जो व्यक्ति के कर्म के आधार पर उसके भाग्य का फैसला करते हैं. इस दिन शनिदेव का पूजन सफलता प्राप्त करने एवं दुष्परिणामों से छुटकारा पाने हेतु बहुत उत्तम होता है. इस दिन शनि देव का पूजन सभी मनोकामनाएं पूरी करता है.

पंडित “विशाल” दयानंद शास्त्री के अनुसार यह संपूर्ण ब्रह्मांड 360 डिग्री में विभक्त है। जिसे 12 राशियों में विभक्त करने पर 30 डिग्री की एक राशि होती है। सूर्य की परिक्रमा करने वाले नौ ग्रहों में शनि भी एक ग्रह है। जिसे सबसे धीमी गति के ग्रह के नाम से जाना जाता है क्योंकि इस ग्रह को 30 डिग्री की एक राशि को पार करने में लगभग ढ़ाई वर्ष का समय लगता है। 

क्या कहता है ज्योतिष :—-

पंडित “विशाल” दयानंद शास्त्री के अनुसार शनि अमावस्या के दिन श्री शनिदेव की आराधना करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होंती हैं. श्री शनिदेव भाग्यविधाता हैं, यदि निश्छल भाव से शनिदेव का नाम लिया जाये तो व्यक्ति के सभी कष्टï दूर हो जाते हैं. श्री शनिदेव तो इस चराचर जगत में कर्मफल दाता हैं जो व्यक्ति के कर्म के आधार पर उसके भाग्य का फैसला करते हैं. इस दिन शनिदेव का पूजन सफलता प्राप्त करने एवं दुष्परिणामों से छुटकारा पाने हेतु बहुत उत्तम होता है. इस दिन शनि देव का पूजन सभी मनोकामनाएं पूरी करता है.

शनिचरी अमावस्या का दिन काफी शुभ माना जाता है। इस दिन किए गए उपाय से कुंडली के दोष शांत होते हैं और परेशानियां समाप्त होती है। इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करने के बाद शनि की वस्तुओं का दान करना चाहिए।ज्योतिष के अनुसार जिस व्यक्ति की कुंडली में शनि अशुभ फल देने वाला हो या जिन लोगों पर शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही हो उन सभी के लिए यह योग खास फल देने वाला है। अत: इस दिन शनि दोष को दूर करने के लिए ज्योतिषीय उपाय अवश्य करने चाहिए।

पंडित “विशाल” दयानंद शास्त्री के अनुसार शनिश्चरी अमावस पर शनि के निमित्त दान-पुण्य और काल सर्प दोष, पित्र दोष, ग्रहण दोष एवं चाण्डाल दोष आदिकी पूजा अवश्य करनी चाहिए। शनि की पूर्ण दृष्टि धनु एवं कर्क राशि पर पडऩे से अशांति, बीमारी, मानसिक तनाव एवं सामाजिक परेशानियां से इस राशि वाले भी प्रभावित हो रहे हैं। शनिवार को आने वाली शनिश्चरी अमावस्या के दिन शनि दोष से प्रभावित व्यक्ति , काल सर्प दोष, पित्र दोष, ग्रहण दोष एवं चाण्डाल दोष से प्रभावित लोग इस अमावस्या पर पूजन एवं दान कर परेशानियों से राहत प्राप्त कर सकते हैं।

पंडित “विशाल” दयानंद शास्त्री के अनुसार आगामी 18 अप्रैल 2015  (शनिवार) को मेष राशि में चंद्रमा प्रवेश करेगा। इससे शनिचरी अमावस्या के योग बनेंगे।शनीचरी अमावस्या के दिन शनि से संबंधित जातकों के लिए शनि के प्रभाव को कम करने के लिए पूजा अर्चना के लिए बेहतर संयोग रहेगा।

क्या उपाय करें :— 

पंडित “विशाल” दयानंद शास्त्री के अनुसार शनिचरी अमावस्या के दिन दान-पुण्य, स्नान आदि का विशेष महत्व है। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए कुछ लोग मंदिरों के बाहर अपने चप्पल व कपड़े छोड़कर चले जाते है। आज के दिन हमें जरूरतमंदों को वस्त्र, फल, अनाज आदि का दान करना चाहिए तथा विपदानाश के लिए “ॐ शं शनैश्चराय नम:” मंत्र का जाप करना चाहिए। 

पवित्र नदी के जल में स्नान कर शनि देव को तेल, लौहा व काले तिल अर्पित करना चाहिए। मोक्षदायिनी उज्जैयिनी एक ऐसी नगरी है जहाँ हरसिद्धी देवी, काल भैरव और महाकाली तीनों ही विराजीत है। अत: शनिवार के दिन पुण्यसलिला क्षिप्रा में स्नान का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। कोई ग्रह खराब या बुरा नहीं होता। शनि के बारे में हमारे मन में कई भ्रामक धारणाएँ है। शनि भी फलदायक ग्रह है। इस शनिचरी अमावस्या के दिन शनि की उपासना करके हम शनि के कृपा पात्र बन सकते हैं।

इन प्रयोगों / उपायों से होगा लाभ—-

पंडित “विशाल” दयानंद शास्त्री के अनुसार शनिवार को आने वाली शनिश्चरी अमावस्या के दिन शनि दोष से प्रभावित व्यक्ति , काल सर्प दोष, पित्र दोष, ग्रहण दोष एवं चाण्डाल दोष से प्रभावित लोग इस अमावस्या पर पूजन एवं दान कर परेशानियों से राहत प्राप्त कर सकते हैं।

—–भगवान सूर्यदेव के पुत्र शनिदेव को खुश करने के लिए शनिचरी अमावस्या पर तिल, जौ और तेल का दान करना चाहिए, ऐसा करने पर मनोवांछित फल मिलता है।
——-जिन राशियों के लिए शनि अशुभ है, वे खासकर इस अद्भुत योग पर शनि की पूजा करें तो उन्हें शनि की कृपा प्राप्त होगी और अशुभ योगों को टाला जा सकता है।
— शनि को तेल से अभिषेक करना चाहिए, सुगंधित इत्र, इमरती का भोग, नीला फूल चढ़ाने के साथ मंत्र के जाप से शनि की पी़ड़ा से मुक्ति मिल सकती है।
—-इस दिन शनि मं-दिर में जाकर शनि देव के श्री विग्रह पर काला तिल, काला उड़द, लोहा, काला कपड़ा, नीला कपड़ा, गुड़, नीला फूल, अकवन के फूल-पत्ते अर्पण करें.
—अमावस्या के दिन काले रंग का कुत्ता घर लें आएं और उसे घर के सदस्य की तरह पालें और उसकी सेवा करें. अगर ऐसा नहीं कर सकते तो किसी कुत्ते को तेल चुपड़ी हुई रोटी खिलाएं. कुत्ता शनिदेव का वाहन है और जो लोग कुत्ते को खाना खिलाते हैं उनसे शनि अति प्रसन्न होते हैं.
—-अमावस्या की रात्रि में 8 बादाम और 8 काजल की डिब्बी काले वस्त्र में बांधकर संदूक में रखें.
—–शनि अमावस्या के दिन शनि ग्रह शांति के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए—–
शनि अमावस्या के दिन सुबह जल्दी स्नान आदि से निवृत्त होकर सबसे पहले अपने इष्टदेव, गुरु और माता-पिता का आशीर्वाद लें. सूर्य आदि नवग्रहों को नमस्कार करते हुए श्रीगणेश भगवान का पंचोपचार (स्नान, वस्त्र, चंदन, फूल, धूप-दीप) पूजन करें.
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इस वर्ष शनिचरी अमावस्या 18 अप्रेल  2015  (शनिवार) के दिन मनाई जाएगी..

शनिचरी अमावस्या को की जाने वाली पूजा अर्चना से विशेष पुण्यदायी फल भी मिलता है जिसका परिणाम बहुत लाभकारी होता हैं..शनिदेव की पूजा करने का सबसे बड़ा अवसर शनिचरी अमावस्या होता है इसलिए ऐसे अवसर का लाभ उठाकर ईश्वरीय आराधना अवश्य करें।

शनि अमावस्या पितृदोष से मुक्ति दिलाए—–

शनि अमावस्या, पितृकार्येषु अमावस्या के रुप में भी जानी जाती है. कालसर्प योग, ढैय्या तथा साढ़ेसाती सहित शनि संबंधी अनेक बाधाओं से मुक्ति पाने का यह दुर्लभ समय होता है जब शनिवार के दिन अमावस्या का समय हो जिस कारण इसे शनि अमावस्या कहा जाता है.

पंडित “विशाल” दयानंद शास्त्री के अनुसार शनि अमावस्या के अवसर पर अनेक श्रद्धालु नदियों एवं सरोवर में श्रद्धा की डुबकी लगते । अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंड दान भी करते हैं । पंडित ने बताया कि है आज के दिन ही सावित्री ने शनिदेव से अपने पति की प्राण वापस लिए थे और शनिचरी अमावस्या के दिन दान औऱ तृपण करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।सनातन संस्कृति के अनुसार वंशजों का यह कर्तव्य है कि वे अपने माता-पिता और पूर्वजों के निमित्त कुछ ऐसे शास्त्रोक्त कर्म करें जिससे उन मृत आत्माओं को परलोक में अथवा अन्य योनियों में भी सुख की प्राप्ति हो सके।

शास्त्रोक्त विधि से किया हुआ श्राद्ध सदैव कल्याणकारी होता है परन्तु जो लोग शास्त्रोक्त समस्त श्राद्धों को न कर सकें, उन्हें कम से कम आश्विन मास में पितृगण की मरण तिथि के दिन श्राद्ध अवश्य ही करना चाहिए।

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