शनि जयंती .8  मई ..15  पर विशेष—

इस वर्ष की जयंति को लेकर बने हें मतान्तर—

शनि जयंती का शास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख नहीं—

कुछ विद्वानों के अनुसार शनि जयंती के बारे में धर्मशास्त्र में स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है। इसके बावजूद शनिदेव को अंधकार का देवता माना जाता है। अमावस्या तिथि जिस दिन रात्रि को स्पर्श करती है, उसी दिन शनि जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष 18 मई 2015 को सोमवती अमावस्या के साथ साथ  शनि जयंती बताई गई है।इस दिन कृतिका नक्षत्र रहेगा..

इस बार शनि जयंती अलग-अलग दिन मनाई जाएगी। कालनिर्णय पंचांग में 17 मई को और सिद्धविजय पंचांग में 18 मई को शनि जयंती बताई गई। पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार स्मार्त और वैष्णव मत के अनुसार पर्व मनाए जाते हैं। इस बार अमावस्या तिथि रविवार दोपहर 11.48 बजे लगेगी जो सोमवार सुबह 9.4. बजे तक रहेगी।

इसके चलते स्मार्त मत वाले 17 को और वैष्णव मत वाले 18 को जयंती मनाएंगे। भगवान शनिदेव का जन्म दोपहर 12 बजे माना जाता है। अमावस्या भी 17 मई को दोपहर 12 बजे रहेगी। इसलिए इस दिन शनि जयंती मनाना श्रेष्ठ है। 18 को अमावस्या सुबह 9.43 बजे समाप्त हो जाएगी।

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पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार शनि से प्रभावित व्यक्ति कई प्रकार के अनावश्यक परेशानियों से घिरे हुए रहते हैं। कार्य में बाधा का होना, कोई भी कार्य आसानी से न बनना जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है। इस समस्या को कम करने हेतु शनिचरी जयंती के दिन शनि से संबंधित वस्तुओं का दान करना उत्तम रहता है। जिन लोगों की जन्म कुंडली में शनि का कुप्रभाव हो उन्हें शनि के पैरों की तरफ ही देखना चाहिए, जहां तक हो सके शनि दर्शन से भी बचना चाहिए।

 पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार शनि से घबराने की आवश्यकता नहीं है बल्कि शनि को अनुकूल कर कार्य सिद्ध करने के लिए विधिपूर्वक मंत्र जाप एवं अनुष्ठान जरूरी होते हैं।  वस्तुतः पूर्व कृत कर्मों का फल यदि आराधना के द्वारा शांत किया जा सकता है, तो इसके लिए साधकों को पूरी तन्मयता से साधना और आराधना करनी चाहिए। इसदिन शनि मंदिरों एवं हनुमान के मंदिरों में शनि जयन्ती  को पूरी निष्ठा के साथ विशेष अनुष्ठान संपन्न किए जाते हैं। 


पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार नवग्रहों में शनिदेव का स्थान सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । शास्त्रों में शनिदेव को सूर्य का पुत्र माना गया है । इनकी माता का नाम छाया है । सूर्य की पत्नी छाया के पुत्र होने के कारण इनका रंग काला है । मनु और यमराज शनि के भाई हैं तथा यमुनाजी इनकी बहन हैं । शनिदेव का शरीर इंद्रनीलमणि के समान है । इनका रंग श्यामवर्ण माना जाता है। शनि के मस्तक पर स्वर्णमुकुट शोभित रहता है एवं वे नीले वस्त्र धारण किए रहते हैं । शनिदेव का वाहन कौआं है । शनि की चार भुजाएं हैं । इनके एक हाथ में धनुष, एक हाथ में बाण, एक हाथ में त्रिशूल और एक हाथ में वरमुद्रा सुशोभित है। 

पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार शनिदेव का तेज करोड़ों सूर्य के समान बताया गया हैं । शनिदेव न्याय, श्रम व प्रजा के देवता हैं । यदि किसी व्यक्ति के कर्म पवित्र हैं तो शनि सुखी-समृद्धि जीवन प्रदान करते हैं । गरीब और असहाय लोगों पर शनि की विशेष कृपा रहती है । जो लोग गरीबों को परेशान करते हैं, उन्हें शनि के कोप का सामना करना पड़ता है । सूर्यपुत्र शनि को न्यायाधीश का पद प्राप्त है । इस वजह से शनि ही हमारे कर्मों का शुभ-अशुभ फल प्रदान करते हैं । जिस व्यक्ति के जैसे कर्म होते हैं, ठीक वैसे ही फल शनि प्रदान करते हैं । परंतु ज्योतिषियों द्वारा नवग्रहों में न्यायाधीश शनि की सर्वाधिक निंदा की गई है । 

 पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार शनिदेव सूर्य पुत्र हैं और वे अपने पिता सूर्य को शत्रु भी मानते हैं। शनि देव का रंग काला है और उन्हें नीले तथा काले वस्त्र आदि विशेष प्रिय हैं। ज्योतिष में शनि देव को न्यायाधीश बताया गया है। व्यक्ति के सभी कर्मों के अच्छे-बुरे फल शनि महाराज ही प्रदान करते हैं। साढ़ेसाती और ढय्या के समय में शनि व्यक्ति को उसके कर्मों का फल प्रदान करते हैं। अमावस्या को मंदिरों में प्रातः सूर्योदय से पूर्व पीपल के वृक्ष को जल चढ़ाना तथा दिन में शनि महाराज की मूर्ति पर तैलाभिषेक एवं यज्ञ अनुष्ठानों के द्वारा हवनात्मक ग्रह शांति यज्ञ करने से मनुष्य को अपने पाप कर्मों से छुटकारा प्राप्त होता है।

किसी ने सच ही कहा है कि शनि जाते हुए अच्छा लगता है ना कि आते हुए। शनि जिनकी पत्रिका में जन्म के समय मंगल की राशि वृश्चिक में हो या फिर नीच मंगल की राशि मेष में हो तब शनि का कुप्रभाव अधिक देखने को मिलता है। बाकि की राशियां सिर्फ सूर्य की राशि सिंह को छोड़ शनि की मित्र, उच्च व सम होती है।

 पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार शनि-शुक्र की राशि तुला में उच्च का होता है। शनि का फल स्थान भेद से अलग-अलग शुभ ही पड़ता है। सम में ना तो अच्छा ना ही बुरा फल देता है। मित्र की राशि में शनि मित्रवत प्रभाव देता है। शत्रु राशि में शनि का प्रभाव भी शत्रुवत ही रहता है, जो सूर्य की राशि सिंह में होता है।  

ज्योतिष में शनि देव को न्यायाधीश बताया गया है। व्यक्ति के सभी कर्मों के अच्छे-बुरे फल शनि महाराज ही प्रदान करते हैं। साढ़ेसाती और ढय्या के समय में शनि व्यक्ति को उसके कर्मों का फल प्रदान करते हैं।
शनि को मनाने का एक और सबसे अच्छा उपाय है कि हर मंगलवार और शनिवार को हनुमान चालीसा का पाठ करें। हनुमानजी के दर्शन और उनकी भक्ति करने से शनि के सभी दोष समाप्त हो जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार शनि किसी भी परिस्थिति में हनुमानजी के भक्तों को परेशान नहीं करते हैं।

इस वर्ष शनि जयंती व सोमवती अमावस्या का विशेष योग-
10 साल बाद बनेगा शनि जयंती पर शुभअमृत योग —
इन जानिए की किस राशि के क्या करें उपाय  —


धर्म ग्रंथों के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या पर शनि जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 18 मई, सोमवार को है।पं. “विशाल” दयानंद शास्त्री के अनुसार इस बार शनि जयंती का पर्व बहुत ही खास है क्योंकि इस दिन 10 साल बाद शनि जयंती व सोमवती अमावस्या का विशेष योग बन रहा है। पं. “विशाल” दयानंद शास्त्री के अनुसार शनि जयंती का पर्व सोमवार को होने से लोग इस दिन भगवान शिव व शनिदेव दोनों की प्रसन्नता के लिए उपाय कर सकते हैं। इस दिन भगवान शिव की साधना व शनिदेव की आराधना करने से मानसिक शांति तथा ढय्या व साढ़े साती से प्रभावित लोगों को राहत मिल सकती है। साथ ही चंद्र व शनि की अनुकूलता के लिए दोनों ग्रहों के मंत्रों का जाप तथा इनसे संबंधित वस्तुओं का दान भी करना भी शुभ रहेगा। 


पं. “विशाल” दयानंद शास्त्री के अनुसार वर्तमान में जिन लोगों पर इस समय शनि की साढ़ेसाती व ढय्या चल रही है, वे यदि शनि जयंती के दिन शनिदेव को प्रसन्न करने के कुछ विशेष उपाय करें तो उन्हें कुछ राहत मिल सकती है..इस समय तुला, वृश्चिक व धनु राशि पर शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव है, वहीं सिंह व मेष राशि पर ढय्या चल रही है।इस बार 18 जून को उच्च राशि में चंद्रमा रहेगा। इस दिन शोभन योग भी बनेगा। मान्यता के अनुसार यदि अमावस्या शुभ दिन, शुभ योग तथा उच्च राशि के चंद्रमा में आ रही है तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिन वट सावित्री अमावस्या भी है।सोमवती अमावस्या पर चतुर्ग्रही योग का संयोग भी बन रहा है। ग्रह गोचर के अनुसार अमावस्या पर वृषभ राशि में क्रमशः सूर्य, चंद्र, मंगल तथा बुध ग्रह का परिभ्रमण रहेगा। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार इन ग्रहों का क्रमानुसार चतुर्ग्रही योग दुर्लभ माना जाता है। इस योग में स्नान-दान का विशेष फल प्राप्त होता है। 


पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार शनि से प्रभावित व्यक्ति कई प्रकार के अनावश्यक परेशानियों से घिरे हुए रहते हैं। कार्य में बाधा का होना, कोई भी कार्य आसानी से न बनना जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है। इस समस्या को कम करने हेतु शनिचरी जयंती के दिन शनि से संबंधित वस्तुओं का दान करना उत्तम रहता है। जिन लोगों की जन्म कुंडली में शनि का कुप्रभाव हो उन्हें शनि के पैरों की तरफ ही देखना चाहिए, जहां तक हो सके शनि दर्शन से भी बचना चाहिए।


 पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार शनि से घबराने की आवश्यकता नहीं है बल्कि शनि को अनुकूल कर कार्य सिद्ध करने के लिए विधिपूर्वक मंत्र जाप एवं अनुष्ठान जरूरी होते हैं।  वस्तुतः पूर्व कृत कर्मों का फल यदि आराधना के द्वारा शांत किया जा सकता है, तो इसके लिए साधकों को पूरी तन्मयता से साधना और आराधना करनी चाहिए। इसदिन शनि मंदिरों एवं हनुमान के मंदिरों में शनि जयन्ती  को पूरी निष्ठा के साथ विशेष अनुष्ठान संपन्न किए जाते हैं। 
पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार शनिदेव का तेज करोड़ों सूर्य के समान बताया गया हैं । शनिदेव न्याय, श्रम व प्रजा के देवता हैं । यदि किसी व्यक्ति के कर्म पवित्र हैं तो शनि सुखी-समृद्धि जीवन प्रदान करते हैं । गरीब और असहाय लोगों पर शनि की विशेष कृपा रहती है । जो लोग गरीबों को परेशान करते हैं, उन्हें शनि के कोप का सामना करना पड़ता है । सूर्यपुत्र शनि को न्यायाधीश का पद प्राप्त है । इस वजह से शनि ही हमारे कर्मों का शुभ-अशुभ फल प्रदान करते हैं । जिस व्यक्ति के जैसे कर्म होते हैं, ठीक वैसे ही फल शनि प्रदान करते हैं । परंतु ज्योतिषियों द्वारा नवग्रहों में न्यायाधीश शनि की सर्वाधिक निंदा की गई है । 


 पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार शनिदेव सूर्य पुत्र हैं और वे अपने पिता सूर्य को शत्रु भी मानते हैं। शनि देव का रंग काला है और उन्हें नीले तथा काले वस्त्र आदि विशेष प्रिय हैं। ज्योतिष में शनि देव को न्यायाधीश बताया गया है। व्यक्ति के सभी कर्मों के अच्छे-बुरे फल शनि महाराज ही प्रदान करते हैं। साढ़ेसाती और ढय्या के समय में शनि व्यक्ति को उसके कर्मों का फल प्रदान करते हैं। अमावस्या को मंदिरों में प्रातः सूर्योदय से पूर्व पीपल के वृक्ष को जल चढ़ाना तथा दिन में शनि महाराज की मूर्ति पर तैलाभिषेक एवं यज्ञ अनुष्ठानों के द्वारा हवनात्मक ग्रह शांति यज्ञ करने से मनुष्य को अपने पाप कर्मों से छुटकारा प्राप्त होता है।


किसी ने सच ही कहा है कि शनि जाते हुए अच्छा लगता है ना कि आते हुए। शनि जिनकी पत्रिका में जन्म के समय मंगल की राशि वृश्चिक में हो या फिर नीच मंगल की राशि मेष में हो तब शनि का कुप्रभाव अधिक देखने को मिलता है। बाकि की राशियां सिर्फ सूर्य की राशि सिंह को छोड़ शनि की मित्र, उच्च व सम होती है।

पं. “विशाल” दयानंद शास्त्री के अनुसार ज्येष्ठ मास में सोमवती अमावस्या के साथ शनि जयंती का अगला संयोग अब 2019 में बनेगा।


पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार इस शनि जयंती पर करें यह विशेष उपाय—
01 .अपने मता पिता का आदर-सम्मान करें..
02 .–यथा संभव सच बोलनेका प्रयास करें..
03 .–भिखारी,निर्बल-दुर्बल का मजाक/परिहास नहीं करें..
04. शनि के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए तिल का तेल एक कटोरी में लेकर उसमें अपना मुंह देखकर शनि मंदिर में रख आएं (जिस कटोरी में तेल हो उसे भी घर ना लाएं)। कहते हैं तिल के तेल से शनि विशेष प्रसन्न रहते हैं। 
05. सवापाव साबुत काले उड़द लेकर काले कपड़े में बांध कर शुक्रवार को अपने पास रखकर सोएं। ध्यान रहे अपने पास किसी को भी ना सुलाएं। फिर उसको शनिवार को शनि मंदिर में रख आएं। 
06. काला सुरमा एक शीशी में लेकर अपने ऊपर से शनिवार को नौ बार सिर से पैर तक किसी से उतरवा कर सुनसान जमीन में गाड़ देवें।
04. ना तो नीलम पहने, ना ही लोहे का बना छल्ला पहने। इसके पहनने से शनि का कुप्रभाव और बढ़ जाता है।
06 .—इस शनि जयन्ती को नित्य कर्मों के निवृत्त होने के बाद स्वच्छ व श्वेत वस्त्र पहनें। पीपल की जड़ में केसर, चंदन, चावल, फूल मिला पवित्र जल अर्पित करें। तिल का तेल का दीपक जलाएं। यहां लिखे मंत्र का जप करें।
मंत्र-
आयु: प्रजां धनं धान्यं सौभाग्यं सर्वसम्पदम्।
देहि देव महावृक्ष त्वामहं शरणं गत:।।
विश्वाय विश्वेश्वराय विश्वसम्भवाय विश्वपतए गोविन्दाय नमो नम:।
मंत्र जप के साथ पीपल की परिक्रमा करें। श्रीकृष्ण के निमित्त मिठाई का भोग लगाएं। धूप, दीपक जलाकर आरती करें। पीपल को चढ़ाया हुआ थोड़ा-सा जल घर में लाकर भी छिड़कें। ऐसा करने से घर का वातावरण पवित्र होता है।

07 .–शनि के बुरे फल को दूर करने के लिए काली चीजें जैसे काले चने, काले तिल, उड़द की दाल, काले कपड़े आदि का दान किसी गरीब और जरूरतमंद व्यक्ति को करें। इसके साथ ही शनि देव के निमित्त हर शनिवार को विशेष पूजन करें।

08 .–शनि को प्रसन्न करने के लिए बताए गए खास उपायों में से एक उपाय है किसी कुत्ते को तेल चुपड़ी हुई रोटी खिलाना। अधिकतर लोग प्रतिदिन कुत्ते को रोटी तो खिलाते ही हैं ऐसे में यदि रोटी पर तेल लगाकर कुत्ते को खिलाई जाए तो शनि के दोषों से मुक्ति मिलती है। ऐसा माना जाता है कि कुत्ता शनिदेव का वाहन है और जो लोग कुत्ते को खाना खिलाते हैं उनसे अति प्रसन्न होते हैं। 
09 .–शनि महाराज की प्रसन्नता के बाद व्यक्ति को परेशानियों के कष्ट से मुक्ति मिल जाती है। साढ़ेसाती हो या ढय्या या कुंडली का अन्य कोई दोष इस उपाय से निश्चित ही लाभ होता है। कुत्ते को तेल चुपड़ी रोटी खिलाने से शनि के साथ ही राहु-केतु से संबंधित दोषों का भी निवारण हो जाता है। राहु-केतु के योग कालसर्प योग से पीडि़त व्यक्तियों को यह उपाय लाभ पहुंचाता है।
10 .–ज्योतिष के अनुसार यदि किसी की राशि में शनि की साढ़ेसाती या ढय्या चल रही है तो शनि को प्रसन्न करने के लिए कई प्रकार के उपाय बताए हैं। इन उपायों में अधिकांश उपाय शनिवार के दिन किए जाते हैं। शनिवार शनिदेव का खास दिन है और इस दिन जो भी व्यक्ति शनि को प्रसन्न के लिए पूजन करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

शनि की साढ़ेसाती और ढय्या या अन्य कोई शनि दोष हो तो हर शनिवार को किसी भी पीपल के वृक्ष को दोनों हाथों से स्पर्श करें। स्पर्श करने के साथ ही पीपल की सात परिक्रमाएं करें। परिक्रमा करते समय शनिदेव का ध्यान करना चाहिए। किसी शनि मंत्र (ऊँ शंशनैश्चराय नम:) का जप करें या ऊँ नम: शिवाय का जप करें। 
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पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार इस शनि जयंती पर अपनी राशि अनुसार करें यह विशेष उपाय–


—मेष राशि के उपाय—
1. शनि जयंती पर सवा पांच रत्ती का नीलम या उपरत्न (नीली) सोना, चांदी या तांबे की अंगूठी में अभिमंत्रित करवा कर धारण करें।
2. शनि यंत्र के साथ नीलम या फिरोजा रत्न गले में लॉकेट की आकृति में पहन सकते हैं, यह उपाय भी उत्तम है।
3. किसी भी विद्वान ब्राह्मण से या स्वयं शनि के मंत्रों के 23000 जाप करें या करवाएं। ये है शनि का मंत्र-
‘ऊं प्रां प्रीं सरू श्नैश्चराय नमरू”
4. शनि जयंती को व्रत रखें। चींटियों को आटा डालें।
5. जूते, काले कपड़े, मोटा अनाज व लोहे के बर्तन दान करें।


—वृषभ राशि के उपाय—
1. काले घोड़े की नाल या समुद्री नाव की कील से लोहे की अंगूठी बनवाएं। उसे तिल के तेल में रखें तथा उस पर शनि मंत्र का 23000 जाप करें। शनि जयंती पर इसे धारण करें। यह अंगूठी मध्यमा (शनि की उंगली) में ही पहनें।
2. किसी भी विद्वान ब्राह्मण से या स्वयं शनि के मंत्रों के 23000 जाप करें या करवाएं। 
मंत्र- “ऊं ऐं ह्लीं श्रीशनैश्चराय नमरू”
3. शनिदेव का अभिषेक सरसो के तेल से करें व 108 दीपकों से शनिदेव की आरती करें।


—मिथुन राशि के उपाय—
1. शनि के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए 7 प्रकार के अनाज व दालों को मिश्रित करके पक्षियों को चुगाएं।
2. बैंगनी रंग का सुगंधित रूमाल अपने पास रखें।
3. शनिदेव के सामने खड़े रहकर दर्शन न करें, एक ओर खड़े रहकर दर्शन करें, ताकि शनिदेव की दृष्टि सीधे आप पर न पड़े।
4. शनि जयंती पर सवा पांच रत्ती का नीलम या उपरत्न (नीली) सोना, चांदी या तांबे की अंगूठी में अभिमंत्रित करवा कर मध्यमा उंगली में पहनें।


—कर्क राशि के उपाय—-
1. शनि जयंती पर तथा प्रत्येक शनिवार को सुबह स्नान आदि करने के बाद बड़ (बरगद) और पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक लगाएं और दूध एवं धूप आदि अर्पित करें।
2. काले धागे में बिच्छू घास की जड़ को अभिमंत्रित करवा कर शनि जयंती या किसी शनिवार को शुभ मुहूर्त में धारण करने से भी शनि संबंधी सभी कार्यों में सफलता मिलती है।
3. शनि जयंती पर इन 10 नामों से शनिदेव का पूजन करें-


कोणस्थ पिंगलो बभः कृष्णो रौद्रोन्तको यमः।
सौरिः शनैश्चरो मंदः पिप्पलादेन संस्तुतः।। 


अर्थातः 1- कोणस्थ, 2- पिंगल, 3- बभ्रु, 4- कृष्ण, 5- रौद्रान्तक, 6- यम, 7, सौरि, 8- शनैश्चर, 9- मंद व 10- पिप्पलाद। इन दस नामों से शनिदेव का स्मरण करने से सभी शनि दोष दूर हो जाते हैं।


—–सिंह राशि के उपाय—-
1. काली गाय की सेवा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। उसके शीश पर रोली लगाकर सींगों में कलावा बांधकर धूप-आरती करनी चाहिए। फिर परिक्रमा करके गाय को बूंदी के चार लड्डू खिला दें।
2. शनि जयंती पर तथा हर शनिवार को उपवास रखें। सूर्यास्त के बाद हनुमानजी का पूजन करें। पूजन में सिंदूर, काली तिल्ली का तेल, इस तेल का दीपक एवं नीले रंग के फूल का प्रयोग करें। 
3. सवा पांच रत्ती का नीलम या उपरत्न (नीली) सोना, चांदी या तांबे की अंगूठी में अभिमंत्रित करवा कर धारण करें।
4. शनि जयंती पर जूते, काले कपड़े, मोटा अनाज व लोहे के बर्तन दान करें।


—-कन्या राशि के उपाय—
1. शनि जयंती व शनिवार को बंदरों व काले कुत्तों को लड्डू खिलाने से भी शनि का कुप्रभाव कम हो जाता है अथवा काले घोड़े की नाल या नाव में लगी कील से बना छल्ला धारण करें।
2. शनि जयंती के एक दिन पहले काले चने पानी में भिगो दे। शनि जयंती के दिन ये चने, कच्चा कोयला, हल्की लोहे की पत्ती एक काले कपड़े में बांधकर मछलियों के तालाब में डाल दें। यह टोटका पूरा एक साल करें। इस दौरान भूल से भी मछली का सेवन न करें।
3. किसी भी विद्वान ब्राह्मण से या स्वयं शनि के मंत्रों के 23000 जाप करें या करवाएं। ये है शनि का मंत्र-
“ऊं प्रां प्रीं सः श्नैश्चराय नमः”
4. शनि जयंती व प्रत्येक शनिवार को व्रत रखें। चींटियों को आटा डालें।


—तुला राशि के उपाय—
1. शनि जयंती के एक दिन पहले सवा-सवा किलो काले चने अलग-अलग तीन बर्तनों में भिगो दें। अगले दिन नहाकर, साफ वस्त्र पहनकर शनिदेव का पूजन करें और चनों को सरसों के तेल में छौंक कर इनका भोग शनिदेव को लगाएं और अपनी समस्याओं के निवारण के लिए प्रार्थना करें।
इसके बाद पहला सवा किलो चना भैंसे को खिला दें। दूसरा सवा किलो चना कुष्ट रोगियों में बांट दें और तीसरा सवा किलो चना अपने ऊपर से उतारकर किसी सुनसान स्थान पर रख आएं। इस टोटके को करने से शनिदेव के प्रकोप में कमी आ सकती है।
2. सवा किलो काला कोयला, एक लोहे की कील एक काले कपड़े में बांधकर अपने सिर पर से घुमाकर जल में प्रवाहित कर दें।
3. शनि जयंती के दिन सुबह किसी नदी में स्नान करने के बाद समीप स्थित किसी शनि मंदिर में जाकर शनिदेव की आरती करें। इसके बाद जरूरतमंदों का दान करें।


—वृश्चिक राशि के उपाय—
1. शनि जयंती पर शनि यंत्र की स्थापना व पूजन करें। इसके बाद प्रतिदिन इस यंत्र की विधि-विधान पूर्वक पूजा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। प्रतिदिन यंत्र के सामने सरसों के तेल का दीप जलाएं। नीला या काला पुष्प चढ़ाएं। ऐसा करने से लाभ होगा।
2. शनि जयंती के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर कुश के आसन पर बैठ जाएं। सामने शनिदेव की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें व उसकी पंचोपचार से विधिवत पूजन करें। इसके बाद रुद्राक्ष की माला से नीचे लिखे किसी एक मंत्र की कम से कम पांच माला जाप करें तथा शनिदेव से सुख-संपत्ति के लिए प्रार्थना करें। यदि प्रत्येक शनिवार को इस मंत्र का इसी विधि से जाप करेंगे तो शीघ्र लाभ होगा।
वैदिक मंत्र- “ऊँ शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शन्योरभिस्त्रवन्तु नः”
3. किसी जरुरतमंद को काले कंबल व काले जूते का दान करें। छतरी का दान करने


—-धनु राशि के उपाय—-
1. शनि जयंती पर किसी हनुमान मंदिर में जाकर हनुमान चालीसा का पाठ करें और शनि दोष की शांति के लिए हनुमानजी से प्रार्थना करें। बूंदी के लड्डू का भोग भी लगाएं।
2. शनि जयंती पर 11 साबूत नारियल बहते हुए जल में प्रवाहित करें और शनिदेव से जीवन को सुखमय बनाने के लिए प्रार्थना करें।
3. शनि जयंती पर तथा प्रत्येक शनिवार को सुबह स्नान आदि करने के बाद सरसों के तेल का दीपक लगाएं और दूध एवं धूप आदि अर्पित करें।
4. सवा पांच रत्ती का नीलम या उपरत्न (नीली) सोना, चांदी या तांबे की अंगूठी में अभिमंत्रित करवा कर धारण करें।


—-मकर राशि के उपाय—
1. शमी वृक्ष की जड़ को विधि-विधान पूर्वक घर लेकर आएं। शनि जयंती के दिन किसी योग्य विद्वान से अभिमंत्रित करवा कर काले धागे में बांधकर गले या बाजू में धारण करें। शनिदेव प्रसन्न होंगे तथा शनि के कारण जितनी भी समस्याएं हैं, उनका निदान होगा।
2. काले धागे में बिच्छू घास की जड़ को अभिमंत्रित करवा कर श्रवण नक्षत्र में या शनि जयंती के शुभ मुहूर्त में धारण करने से भी शनि संबंधी सभी कार्यों में सफलता मिलती है।
3. शनिवार को इन 10 नामों से शनिदेव का पूजन करें-


कोणस्थ पिंगलो बभः कृष्णो रौद्रोन्तको यमः।
सौरिरू शनैश्चरो मंदरू पिप्पलादेन संस्तुतरू।। 


अर्थातरू 1- कोणस्थ, 2- पिंगल, 3- बभ्रु, 4- कृष्ण, 5- रौद्रान्तक, 6- यम, 7, सौरि, 8- शनैश्चर, 9- मंद व 10- पिप्पलाद। इन दस नामों से शनिदेव का स्मरण करने से सभी शनि दोष दूर हो जाते हैं।


—कुंभ राशि के उपाय—
1. शनि जयंती के दिन बंदरों और काले कुत्तों को लड्डू खिलाने से भी शनि का कुप्रभाव कम हो जाता है। काले घोड़े की नाल या नाव में लगी कील से बना छल्ला धारण करें।
2. शनि यंत्र के साथ नीलम या फिरोजा रत्न गले में लॉकेट की आकृति में पहन सकते हैं, यह उपाय भी उत्तम है।
3. गहरे नीले रंग का सुगंधित रूमाल अपने पास रखें।
4. शनिदेव के सामने खड़े रहकर दर्शन न करें, एक ओर खड़े रहकर दर्शन करें, ताकि शनिदेव की दृष्टि सीधे आप पर नहीं पड़े।
5. शनि जयंती के दिन हनुमानजी को चोला चढ़ाएं। चोले में सरसों या चमेली के तेल का उपयोग करें और इन तेलों से ही दीपक भी जलाएं।


—मीन राशि के उपाय—
1. शनि जयंती के दिन चोकर युक्त आटे की दो रोटी लेकर एक पर तेल और दूसरी पर घी चुपड़ दें। घी वाली रोटी पर थोड़ा मिष्ठान रखकर काली गाय को खिला दें तथा दूसरी रोटी काले कुत्ते को खिला दें और शनिदेव का स्मरण करें।
2. एक कांसे की कटोरी में तिल का तेल भर कर उसमें अपना मुख देख कर और काले कपड़े में काली उड़द, सवा किलो अनाज, दो लड्डू, फल, काला कोयला और लोहे की कील रख कर डाकोत (शनि का दान लेने वाला) को दान कर दें।
3. शनि जयंती के दिन किसी हनुमान मंदिर में जाकर हनुमान चालीसा का पाठ करें और शनि दोष की शांति के लिए हनुमानजी से प्रार्थना करें। बूंदी के लड्डू का भोग भी लगाएं।
4. शनि जयंती के दिन किसी भी विद्वान ब्राह्मण से या स्वयं शनि के मंत्रों के 23000 जाप करें या करवाएं। 
ये है शनि का मंत्र-

“ऊं प्रां प्रीं सः श्नैश्चराय नमः”


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