जानिए श्राद्ध कर्म क्या हैं ???कब, क्यों और कैसे करें श्राद्ध कर्म ???

“श्रद्धयां इदम् श्राद्धम्”
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शास्त्र का वचन है-“श्रद्धयां इदम् श्राद्धम्” अर्थात पितरों के निमित्त श्रद्धा से किया गया कर्म ही श्राद्ध है। मित्रों, आगामी .8 सितम्बर 2..5 ( सोमवार) से महालय “श्राद्ध पक्ष” प्रारम्भ होने जा रहा है। इन सोलह (16) दिनों पितृगणों (पितरों) के निमित्त श्राद्ध व तर्पण किया जाता है। किन्तु जानकारी के अभाव में अधिकांश लोग इसे उचित रीति से नहीं करते जो कि दोषपूर्ण है क्योंकि शास्त्रानुसार “पितरो वाक्यमिच्छन्ति भावमिच्छन्ति देवता:” अर्थात देवता भाव से प्रसन्न होते हैं और पितृगण शुद्ध व उचित विधि से किए गए कर्म से।                                            ***** पित्र पक्ष(श्राद्धपक्ष) में पितृदोष ( कालसर्प योग/दोष) के निवारण के लिए उज्जैन स्थित गयाकोठी तीर्थ उनके लिए वरदान हैं जो गया जाकर पित्र दोष शांति नहीं करवा सकते हैं।। इस प्राचीन तीर्थ पर पितृदोष शांति का शास्त्रोक्त निवारण  के लिए आप पंडित दयानन्द शास्त्री से संपर्क कर सकते हैं।।                                                 **** पितृदोष — वह दोष जो पित्तरों से सम्बन्धित होता है पितृदोष कहलाता है। यहाँ पितृ का अर्थ पिता नहीं वरन् पूर्वज होता है। ये वह पूर्वज होते है जो मुक्ति प्राप्त ना होने के कारण पितृलोक में रहते है तथा अपने प्रियजनों से उन्हे विशेष स्नेह रहता है।                                          श्राद्ध या अन्य धार्मिक कर्मकाण्ड ना किये जाने के कारण या अन्य किसी कारणवश रूष्ट हो जाये तो उसे पितृ दोष कहते है।
विश्व के लगभग सभी धर्मों में यह माना गया है कि मृत्यु के पश्चात् व्यक्ति की देह का तो नाश हो जाता है लेकिन उनकी आत्मा कभी भी नहीं मरती है। पवित्र गीता के अनुसार जिस प्रकार स्नान के पश्चात् हम नवीन वस्त्र धारण करते है उसी प्रकार यह आत्मा भी मृत्यु के बाद एक देह को छोड़कर नवीन देह धारण करती है।
हमारे पित्तरों को भी सामान्य मनुष्यों की तरह सुख दुख मोह ममता भूख प्यास आदि का अनुभव होता है। यदि पितृ योनि में गये व्यक्ति के लिये उसके परिवार के लोग श्राद्ध कर्म तथा श्रद्धा का भाव नहीं रखते है तो वह पित्तर अपने प्रियजनों से नाराज हो जाते है।
समान्यतः इन पित्तरों के पास आलौकिक शक्तियां होती है तथा यह अपने परिजनों एवं वंशजों की सफलता सुख समृद्धि के लिये चिन्तित रहते है जब इनके प्रति श्रद्धा तथा धार्मिक कर्म नहीं किये जाते है तो यह निर्बलता का अनुभव करते है तथा चाहकर भी अपने परिवार की सहायता नहीं कर पाते है तथा यदि यह नाराज हो गये तो इनके परिजनों को तमाम कठनाइयों का सामना करना पड़ता है।
पितृ दोष होने पर व्यक्ति को अपने जीवन में तमाम तरह की परेशानियां उठानी पड़ती है ।।।  
                  
जैसे —–घर में सदस्यों का बिमार रहना ।।मानसिक परेशानी ।।सन्तान का ना होना।। कन्या संतान का अधिक होना या पुत्र का ना होना।। पारिवारिक सदस्यों में वैचारिक मतभेद होना ।।। जीविकोपार्जन में अस्थिरता या पर्याप्त आमदनी होने पर भी धन का ना रूकना।। प्रत्येक कार्य में अचानक रूकावटें आना ।। जातक पर कर्ज का भार होना।। सफलता के करीब पहुँचकर भी असफल हो जाना ।। प्रयास करने पर भी मनवांछित फल का ना मिलना।। आकस्मिक दुर्घटना की आशंका तथा वृद्धावस्था में बहुत दुख प्राप्त होना आदि।।।
                                 
****   आजकल बहुत से लोगों की कुण्डली में कालसर्प योग(दोष) भी देखा जाता है वस्तुतः कालसर्प योग भी पितृ दोष के कारण ही होता जिसकी वजह से मनुष्य के जीवन में तमाम मुसीबतों एवं अस्थिरता का सामना करना पड़ता है।।।           
पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार इस प्रकार की समस्या (पितृदोष/ कालसर्प योग या दोष निवारण के लिए आप हमसे संपर्क कर सकते हैं)।। उज्जैन स्थित गया कोठी तीर्थ , प्राचीन सिद्धवट तीर्थ जो  पवित्र शिप्रा नदी के किनारे स्थित हैं, पर इस दोष का शास्त्रोक्त विधि विधान से निवारण करवाया जाता हैं।।। 
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जानिए श्राद्ध कर्म कब, क्यों और कैसे करें ???

भारतीय शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि पितृगण पितृपक्ष में पृथ्वी पर आते हैं और 15 दिनों तक पृथ्वी पर रहने के बाद अपने लोक लौट जाते हैं।

शास्त्रों में बताया गया है कि पितृपक्ष के दौरान पितृ अपने परिजनों के आस-पास रहते हैं इसलिए इन दिनों कोई भी ऐसा काम नहीं करें जिससे पितृगण नाराज हों।
पितरों को खुश रखने के लिए पितृ पक्ष में कुछ निम्न  बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए—
***पितृ पक्ष के दौरान ब्राह्मण, जामाता, भांजा, मामा, गुरु, नाती को भोजन कराना चाहिए। इससे पितृगण अत्यंत प्रसन्न होते हैं।
*** ब्राह्मणों को भोजन करवाते समय भोजन का पात्र दोनों हाथों से पकड़कर लाना चाहिए अन्यथा भोजन का अंश राक्षस ग्रहण कर लेते हैं।
जिससे ब्राह्मणों द्वारा अन्न ग्रहण करने के बावजूद पितृगण भोजन का अंश ग्रहण नहीं करते हैं।
****पितृ पक्ष में द्वार पर आने वाले किसी भी जीव-जंतु को मारना नहीं चाहिए बल्कि उनके योग्य भोजन का प्रबंध करना चाहिए।
**** हर दिन भोजन बनने के बाद एक हिस्सा निकालकर गाय, कुत्ता, कौआ अथवा बिल्ली को देना चाहिए। मान्यता है की इन्हें दिया गया भोजन सीधे पितरों को प्राप्त हो जाता है।
**** शाम के समय घर के द्वार पर एक दीपक जलाकर पितृगणों का ध्यान करना चाहिए।
***** हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार जिस तिथि को जिसके पूर्वज गमन
करते हैं, उसी तिथि को उनका श्राद्ध करना चाहिए।
**** इस पक्ष में जो लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं, उनके समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं।
**** जिन लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती, उनके लिए पितृ पक्ष में कुछ विशेष तिथियां भी निर्धारित की गई हैं, जिस दिन वे पितरों के निमित्त श्राद्ध कर सकते हैं।
***आश्विन कृष्ण प्रतिपदा:—- इस तिथि को नाना-नानी के श्राद्ध के लिए सही बताया गया है।
****इस तिथि को श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
**** यदि नाना-नानी के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला न हो और उनकी मृत्युतिथि याद न हो, तो आप इस दिन उनका श्राद्ध कर सकते हैं।
*** पंचमी:— जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि को किया जाना चाहिए।
*** नवमी:—सौभाग्यवती यानि पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गई हो, उन स्त्रियों का श्राद्ध नवमी को किया जाता है। यह तिथि माता के श्राद्ध के लिए भी उत्तम मानी गई है। इसलिए इसे मातृनवमी भी कहते हैं। मान्यता है कि इस तिथि पर श्राद्ध कर्म करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है।
**** एकादशी और द्वादशी:— एकादशी में वैष्णव संन्यासी का श्राद्ध करते हैं।। अर्थात् इस तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किए जाने का विधान है, जिन्होंने संन्यास लिया हो।
**** चतुर्दशी:—इस तिथि में शस्त्र, आत्म-हत्या, विष और दुर्घटना यानि जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध किया जाता है। जबकि बच्चों का श्राद्ध कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को करने के लिए कहा गया है।
****सर्वपितृमोक्ष अमावस्या:—
पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार यदि  किसी कारण से पितृपक्ष की अन्य तिथियों पर पितरों का श्राद्ध करने से चूक गए हैं या पितरों की तिथि याद नहीं है, तो इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। शास्त्र अनुसार, इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है। यही नहीं जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो, उनका भी अमावस्या तिथि को ही श्राद्ध करना चाहिए।  बाकी तो जिनकी जो तिथि हो, श्राद्धपक्ष में उसी तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए। यही उचित भी है।
पितृपक्ष में विशेष ध्यान रखे इन बातों का —
—पिंडदान करने के लिए सफेद या पीले वस्त्र ही धारण करें।
—-जो इस प्रकार श्राद्धादि कर्म संपन्न करते हैं, वे समस्त मनोरथों को प्राप्त करते हैं और अनंत काल तक स्वर्ग का उपभोग करते हैं।
—–विशेष:— श्राद्ध कर्म करने वालों को निम्न मंत्र तीन बार अवश्य पढ़ना चाहिए। यह मंत्र ब्रह्मा जी द्वारा रचित आयु, आरोग्य, धन, लक्ष्मी प्रदान करने वाला अमृतमंत्र है—-
देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिश्च एव च।
नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव भवन्त्युत ।।
(वायु पुराण) ।। 
—-श्राद्ध सदैव दोपहर के समय ही करें। प्रातः एवं सायंकाल के समय श्राद्ध निषेध कहा गया है। हमारे धर्म-ग्रंथों में पितरों को देवताओं के समान संज्ञा दी गई है।
—–‘सिद्धांत शिरोमणि’ ग्रंथ के अनुसार चंद्रमा की ऊध्र्व कक्षा में पितृलोक है जहां पितृ रहते हैं।
—– पितृ लोक को मनुष्य लोक से आंखों द्वारा नहीं देखा जा सकता। जीवात्मा जब इस स्थूल देह से पृथक होती है उस स्थिति को मृत्यु कहते हैं।
—- यह भौतिक शरीर 27 तत्वों के संघात से बना है। स्थूल पंच महाभूतों एवं स्थूल कर्मेन्द्रियों को छोड़ने पर अर्थात मृत्यु को प्राप्त हो जाने पर भी 17 तत्वों से बना हुआ सूक्ष्म शरीर विद्यमान रहता है।
—–हिंदू मान्यताओं के अनुसार एक वर्ष तक प्रायः सूक्ष्म जीव को नया शरीर नहीं मिलता।
——मोहवश वह सूक्ष्म जीव स्वजनों व घर के आसपास घूमता रहता है।
—- श्राद्ध कार्य के अनुष्ठान से सूक्ष्म जीव को तृप्ति मिलती है इसीलिए श्राद्ध कर्म किया जाता है।
—-श्रद्धापूर्वक श्राद्ध में दिए गए ब्राह्मण भोजन का सूक्ष्म अंश परिणत होकर उसी अनुपात व मात्रा में प्राणी को मिलता है जिस योनि में वह प्राणी है।
—पितृ लोक में गया हुआ प्राणी श्राद्ध में दिए हुए अन्न का स्वधा रूप में परिणत हुए को खाता है।
—यदि शुभ कर्म के कारण मर कर पिता देवता बन गया तो श्राद्ध में दिया हुआ अन्न उसे अमृत में परिणत होकर देवयोनि में प्राप्त होगा। गंधर्व बन गया हो तो वह अन्न अनेक भोगों के रूप में प्राप्त होता है।
—पशु बन जाने पर घास के रूप में परिवर्तित होकर उसे तृप्त करेगा। यदि नाग योनि मिली तो श्राद्ध का अन्न वायु के रूप में तृप्ति को प्राप्त होगा।
–दानव, प्रेत व यक्ष योनि मिलने पर श्राद्ध का अन्न नाना अन्न पान और भोग्यरसादि के रूप में परिणत होकर प्राणी को तृप्त करेगा।
—सच्चे मन, विश्वास, श्रद्धा के साथ किए गए संकल्प की पूर्ति होने पर पितरों को आत्मिक शांति मिलती है। तभी वे हम पर आशीर्वाद रूपी अमृत की वर्षा करते हैं।
—श्राद्ध की संपूर्ण प्रक्रिया दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके की जाती है।
—इस अवसर पर तुलसी दल का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।
— गया, पुष्कर, प्रयाग, हरिद्वार आदि तीर्थों में श्राद्ध करने का विशेष महत्व है।
—जिस दिन श्राद्ध करें उस दिन पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें।
—श्राद्ध के दिन क्रोध, चिड़चिड़ापन और कलह से दूर रहें।
—पितरों को भोजन सामग्री देने के लिए मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग किया जाए तो के पत्ते या लकड़ी के बर्तन का भी प्रयोग किया जा सकता है।

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