गणेश चतुर्थी …6 पर जानिए कुछ  विशेष —


गणेश चतुर्थी यानी वो दिन जब लंबोदर ने जन्म लिया था. यह दिन गणपति की प्रतिष्ठा के लिए होता है बेहद शुभ और वो दिन जब विनायक की विधि विधान से पूजा कर ली जाए, तो धन संपदा, कामयाबी और खुशियां, छप्पर फाड़ कर बरसने लगती हैँ || भगवान गणेश की आराधना के लिए गणेश चतुर्थी का दिन काफी शुभ माना जाता है।


सतयुग में सत्य के प्रतिनिधि देव, महादेव यानी शिव और उनकी अर्द्धांगिनी शक्ति स्वरूपा मां पार्वती की संतान के रूप में जब गजानन का अवतरण हुआ तो इसका उद्देश्य यही था कि मानव मात्र के जीवन में जब भी सत्य मन और शक्ति को लेकर असंतुलन होगा और जीवन में बाधाएं आएंगी तो उसके निवारण का सारा उत्तरदायित्व भगवान श्रीगणेश का ही होगा।


शास्त्रों में गणेश जी को ‘एकदंतो महबुद्धि:’ कहा गया है। एकदंत श्री गणेश अपने भक्त की समस्या के समूल नाश के लिए उसे मानसिक एकाग्रता और शांति भी प्रदान करते हैं। गणेश चतुर्थी की रात्रि को चंद्र दर्शन को निषिद्ध माना गया है। इस दिन चंद्र दर्शन करने से चोरी और अनैतिक कृत्य का मिथ्या आरोप लगता है। कृष्ण भगवान पर भी चंद्र दर्शन करने के कारण द्वापर युग मे ऐसा ही आरोप लगा था। यदि दर्शन हो जाए तो ‘शमंत कोप’ की कथा का श्रवण करें। 


चन्द्रमा का दर्शन न करें—-
शास्त्रीय मान्यता है कि भादो शुक्ल चतुर्थी को चंद्रमा का दर्शन करने से चोरी का कलंक लगता है। यदि आकाश साफ हो और चंद्रमा की किरणें धरती पर पड़े तो भी चंद्रमा का दर्शन करने का मोह न करें।
लाल चंदन से करें गणेश पूजा—
गणेश प्रतिमा की विधिवत स्थापना करके लाल चंदन से पूजा करें तो धन लाभ होता है और परिवार के सदस्यों के बीच सामंजस्य बढ़ता है।


गणेश पूजा का समय मध्याह्न = 11:04 से 1.:34
अवधि = 2 घण्टे 29 मिनट्स
04.09.2016 को चन्द्रमा को नहीं देखने का समय = 18:54 से 20:30
अवधि = 1 घण्टा 35 मिनट्स
05.09.2016 को चन्द्रमा को नहीं देखने का समय = 09:16 से 21:05
अवधि = 11 घण्टे 48 मिनट्स
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ = 4 सितम्बर 2016 को 18:54 बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त = 5 सितम्बर 2016 को 21:09 बजे


यदि भूल से गणेश चतुर्थी के दिन चन्द्रमा के दर्शन हो जायें तो मिथ्या दोष से बचाव के लिये निम्नलिखित मन्त्र का जाप करना चाहिये –
सिंहः प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हतः। 
सुकुमारक मारोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः॥
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गणपति को मोदक, लड्डू प्रसाद/नैवेद्य में प्रिय है इशलिये ये विशेष अर्पण करना चाहिए |


गणपति को लाल/रक्त पुष्प, कनेका पुष्प, जासूद का पुष्प, गुलाब का पुष्प या कोईभी लाल कलर का पुष्प ज्यादा प्रिय है इशलिये ये पुष्प विशेष अर्पण करना चाहिए |


गणपति भगवन को तुलसी अप्रिय होने से तुलसी पका पत्ता/ तुलसीपत्र कभिभी प्रसद्मे या पुजमे अर्पण नहीं करना चाहिए |श्री गणपति की मूर्ति स्थापनमे कभिभी ३ गणपति की मूर्ति नहीं होना चाहिए |


खंडित गणपति की मूर्ति का पूजन नहीं करना चाहिए, ये विघ्न- मुसिबत को लेन वाला है |


श्री गणपति की स्थापना में मिट्टी की मूर्ति की ही स्थापना पूजा करना चाहिए |अपवित्र अवस्था में गणपति की पूजा या मुर्तिको स्पर्श नहीं करना चाहिए |


ये गणपति की स्थापना लड़का, लड़की, पति-पत्नी, माता-पिता कोई भी कर सकता है|
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अपनी राशि के अनुसार करें गणपति पूजन—
राशि के अनुसार गणेश जी के मंत्रों का उच्चारण करते हुए गणेश चतुर्थी के दिन दूर्वा और पुष्प अर्पित करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती है और सभी बाधाओं का शमन होता है-
मेष: ऊं हेरम्बाय नम:।
वृषभ: ऊं श्री निधिये नम:।
मिथुन: ऊं वक्रतुंडाय नम:।
कर्क: ऊं शम्भु पुत्राय नम:।
सिंह: ऊं रक्त वाससाय नम:।
कन्या: ऊं शूर्पकर्णकाय नम:।
तुला: ऊं श्रीमतये गणेशाय नम:।
वृश्चिक: ऊं अंगारकाय श्री गणेशाय नम:।
धनु: ऊं गणाधिपतये नम:।
मकर: ऊं नील लम्बोदराय नम:।
कुंभ: ऊं व्रातपतये नम:।
मीन: ऊं वरदमूर्तये नम:।
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क्या आप जानते हैं भगवान श्री गणेश के 32 मंगल रूप—


अलग-अलग युगों में श्री गणेश के अलग-अलग अवतारों ने संसार के संकट का नाश किया। शास्त्रों में वर्णित है भगवान श्री गणेश के 32 मंगलकारी स्वरूप –


श्री बाल गणपति – छ: भुजाओं और लाल रंग का शरीर
श्री तरुण गणपति – आठ भुजाओं वाला रक्तवर्ण शरीर
श्री भक्त गणपति – चार भुजाओं वाला सफेद रंग का शरीर
श्री वीर गणपति – दस भुजाओं वाला रक्तवर्ण शरीर
श्री शक्ति गणपति – चार भुजाओं वाला सिंदूरी रंग का शरीर
श्री द्विज गणपति – चार भुजाधारी शुभ्रवर्ण शरीर
श्री सिद्धि गणपति – छ: भुजाधारी पिंगल वर्ण शरीर
श्री विघ्न गणपति – दस भुजाधारी सुनहरी शरीर
श्री उच्चिष्ठ गणपति – चार भुजाधारी नीले रंग का शरीर
श्री हेरम्ब गणपति – आठ भुजाधारी गौर वर्ण शरीर
श्री उद्ध गणपति – छ: भुजाधारी कनक यानि सोने के रंग का शरीर
श्री क्षिप्र गणपति – छ: भुजाधारी रक्तवर्ण शरीर
श्री लक्ष्मी गणपति – आठ भुजाधारी गौर वर्ण शरीर
श्री विजय गणपति – चार भुजाधारी रक्त वर्ण शरीर
श्री महागणपति – आठ भुजाधारी रक्त वर्ण शरीर
श्री नृत्य गणपति – छ: भुजाधारी रक्त वर्ण शरीर
श्री एकाक्षर गणपति – चार भुजाधारी रक्तवर्ण शरीर
श्री हरिद्रा गणपति – छ: भुजाधारी पीले रंग का शरीर
श्री त्र्यैक्ष गणपति – सुनहरे शरीर, तीन नेत्रों वाले चार भुजाधारी
श्री वर गणपति – छ: भुजाधारी रक्तवर्ण शरीर
श्री ढुण्डि गणपति – चार भुजाधारी रक्तवर्णी शरीर
श्री क्षिप्र प्रसाद गणपति – छ: भुजाधारी रक्ववर्णी, त्रिनेत्र धारी
श्री ऋण मोचन गणपति – चार भुजाधारी लालवस्त्र धारी
श्री एकदन्त गणपति – छ: भुजाधारी श्याम वर्ण शरीरधारी
श्री सृष्टि गणपति – चार भुजाधारी, मूषक पर सवार रक्तवर्णी शरीरधारी
श्री द्विमुख गणपति – पीले वर्ण के चार भुजाधारी और दो मुख वाले
श्री उद्दण्ड गणपति – बारह भुजाधारी रक्तवर्णी शरीर वाले, हाथ में कुमुदनी और अमृत का पात्र होता है।
श्री दुर्गा गणपति – आठ भुजाधारी रक्तवर्णी और लाल वस्त्र पहने हुए।
श्री त्रिमुख गणपति – तीन मुख वाले, छ: भुजाधारी, रक्तवर्ण शरीरधारी
श्री योग गणपति – योगमुद्रा में विराजित, नीले वस्त्र पहने, चार भुजाधारी
श्री सिंह गणपति – श्वेत वर्णी आठ भुजाधारी, सिंह के मुख और हाथी की सूंड वाले
श्री संकष्ट हरण गणपति – चार भुजाधारी, रक्तवर्णी शरीर, हीरा जडि़त मुुकुुट पहने।
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गणेशद्वादशनामस्तोत्रम्—


।।शुक्लांम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशांतये।।1।।

अभीप्सितार्थसिद्ध्यर्थं पूजेतो य: सुरासुरै:।
सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नम:।।2।।

गणानामधिपश्चण्डो गजवक्त्रस्त्रिलोचन:।
प्रसन्न भव मे नित्यं वरदातर्विनायक।।3।।

सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णक:
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायक:।।4।।

धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचंद्रो गजानन:।
द्वादशैतानि नामानि गणेशस्य य: पठेत्।।5।।

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी विपुलं धनम्।
इष्टकामं तु कामार्थी धर्मार्थी मोक्षमक्षयम्।।6।।

विद्यारभ्मे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा
संग्रामे संकटेश्चैव विघ्नस्तस्य न जायते।।7।।
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गणपति की मूर्ति किसे बनीहोनी चाहिए? 


गणपति की मूर्ति सोनेकी या मिटटी की बनाकर पूजा करनी चाहिए |
भाद्रशुक्ल चतुर्थ्यां तु मृन्मयी प्रतिमा शुभा |
हेमाभावे तु कर्तव्या नाना पुष्पै: प्रपुज्यताम ||
-व्रतराज, पेज नं. २०१

गणपति स्थापना मुहूर्त शास्त्रार्थ:—

ये चतुर्थी भाद्रपदमास की शुक्लपक्ष में मध्यान्ह्मे, जिसदिन हो उसिदिन को मनानी कहिये।तृतीय से संयुक्त चतुर्थी ही मनानी चाहिए या जिसदिन मध्यान्हमें चतुर्थी हो तब मनानी चाहिए ऐसा शास्त्रों और पुरानो का मत है।
“”मध्यान्हव्यापिनी ग्राह्या परेश्चात्परेहनी।””


श्रीगणपति स्थापना तथा पूजा करनेका समय:–
ब्रह्म मुहूर्त ( रात्री के ३ बजेसे सूर्योदय तक का समय) से लेकर पूरादिन गणपति स्थापना तथा पूजा कर सकते है |
विशेष समय:–
मध्याह्न मे श्रीगणपती भगवान का जन्म होनेसे दिनके मध्य भाग के समय (१२-०१ बजे दोपहर) मे गणपती कि पूजा विशेष करनी चाहिये |प्रातः शुक्लातिलै: स्नात्वा मध्याह्ने पूज्येन्नृप।


-स्मृत्यनन्तरे.
विशेष:–


इसी भाद्रपदमास की शुक्लपक्ष चतुर्थी का चन्द्रदर्शन करनेका या गलतीसे हो जाये तो दोष:

इसी भाद्रपदमास की शुक्लपक्ष चतुर्थी का चन्द्रदर्शन करनेका या गलतीसे हो जायेतो मिथ्यादोषारोपण होता है, मतलब उस चन्द्र दर्शन करनेवाले के ऊपर कलंक लगता है। -महर्षि पराशर (व्रतराज)

पुराण के अनुसार चन्द्र लोक में गणपति पधारे थे तब चन्द्र ने आपनी सुन्दरताके अभिमानवश गणपति का पेट मोटा होने के कारन की दिल्लगी की थी इसी कारण भगवान गणपति ने चन्द्रमा को श्राप दीया था की भाद्रपदमास की शुक्लपक्ष चतुर्थी का चन्द्रदर्शन जो मनुष्य गलतीसे भी करेगा उसपर जल्दी ही कुछ मिथ्यादोषारोपण दोष / कलंक लगेगा |
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गणेश जी का स्वरूप है सफलता का मार्ग—
गणेश जी का स्वरूप कुछ ऐसा है कि मनुष्य अपने व्यक्तित्व में सुधार के लिए इनसे प्रेरणा ले सकता है:
1. गणेश जी को शूर्प कर्ण कहा जाता है। गणेश जी के कान सूप जैसे हैं। सूप का कार्य है सिर्फ ठोस धान को रखना और भूसे को उड़ा देना, अर्थात आधारहीन बातों को वजन न देना। कान से सुनें सभी की, लेकिन उतारें अंतर में सत्य को।
2. गणेश जी की आंखें सूक्ष्म हैं, जो जीवन में सूक्ष्म दृष्टि रखने की प्रेरणा देती हैं। नाक लंबी और बड़ी है, जो बताती है कि घ्राण शक्ति अर्थात सूंघने की शक्ति- जिससे तात्पर्य परिस्थिति और समस्याओं से है- सशक्त होनी चाहिए। मनुष्य को सूक्ष्म प्रकृति का होना चाहिए, विपदा को दूर से ही सूंघ लेने की सामर्थ्य होनी चाहिए।
3. गणेशजी के दो दांत हैं। एक अखंड और दूसरा खंडित। अखंड दांत श्रद्धा का प्रतीक है यानी श्रद्धा हमेशा बनाए रखनी चाहिए। खंडित दांत है बुद्धि का प्रतीक। इसका तात्पर्य है एक बार बुद्धि भले ही भ्रमित हो, लेकिन श्रद्धा न डगमगाए।
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गणेश चतुर्थी  के दिन कुछ उपाय किए जाएं तो गणेश जी की कृपा से सभी सुखों की प्राप्‍ति होती है। ‍
इस योग में पूजा करने का विशेष महत्‍व है एवं अगर आप भी इस शुभ योग का लाभ उठाना चाहते हैं तो करें ये उपाय -:


– गणेश चतुर्थी और बुधवार के योग में श्रीगणेश का अभिषेक करने से विशेष फल की प्राप्‍ति होती है। इसके साथ ही अथर्व शीर्ष का पाठ करें।


– इस दिन गणेश यंत्र की घर में स्‍थापना करें। घर में इस यंत्र की स्‍थापना से नकारात्‍मक शक्‍तियां प्रवेश नहीं कर पाती हैं।
– यदि आप अपने जीवन में अत्‍यंत परेशानियों से गुजर रहे हैं तो आज के दिन हाथी को हरा चारा खिलाएं एवं गणेश मंदिर जाकर भगवान से अपनी मनोकामना की पूर्ति हेतु प्रार्थना करें।


– धन की इच्‍छा है तो चतुर्थी के दिन सुबह के समय श्रीगणेश को गुड़ एवं शुद्ध घी का भोग लगाएं।


– आज के दिन किसी धार्मिक स्‍थल पर जाकर अपनी सामर्थ्‍यानुसार दान करें। कपड़े, भोजन, फल, अनाज आदि दान कर सकते हैं।

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