ज्योतिष द्वारा जानिए की केसा हैं आपका मित्र…फ्रेंड या दोस्त….??? 
जन्म कुंडली बताएगी आपकी दोस्ती /मैत्री / फ्रेंडशिप का सम्बन्ध 


प्रिय पाठकों/मित्रों,  
संसार में खून के रिश्ते ईश्वर बनाता है। ये रिश्ते ऐसे होते हैं, जिन्हें हम स्वयं नहीं चुन सकते, इन्हें स्वीकार करना हमारी नियति होती है, लेकिन एक रिश्ता ऐसा भी होता है, जो हम स्वयं बनाते हैं, वह रिश्ता है ‘मित्रता’ का। यह रिश्ता दो व्यक्तियों के मध्य समान विचारधारा, समान रुचियों के कारण बनता है।


मित्रों, किसी भी जन्मपत्री में मुख्य रूप से मित्र का विचार पंचम भाव से किया जाता है तथा एकादश भाव से मित्र की प्रकृति एवं तृतीय भाव से मित्र से होने वाले हानि-लाभ का विचार किया जाता है।


पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार  प्रत्येक प्राणी किसी न किसी ग्रह, राशि व लग्न के प्रभाव में होता है और मित्रता जातक की कुंडली तय करती है। ज्योतिष के अनुसार नौ ग्रहों में पांच प्रकार की मित्रता होती है। परम मित्र, मित्र, शत्रु, अधिशत्रु एवं ग्रहों की स्थिति के अनुसार तात्कालिक मैत्री।
इसी प्रकार राशियों में भी आपसी मैत्री संबंध होते हैं। कुंडली के प्रथम, चतुर्थ, द्वितीय, पंचम, सप्तम व एकादश भाव और बुध ग्रह प्रमुख रूप से मित्रता के कारक होते हैं। कुंडली का सीधा संबंध भाव, ग्रह व राशियों से होता है। तीनों प्रकार के संबंध जीवन की दिशा तय करते हैं।


पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार मनुष्य जीवन के सारे महत्वपूर्ण रिश्ते जन्म से मिलते हैं जो हमारे हाथ में नहीं होते है लेकिन जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और करीबी रिश्ता जो हम बनाते हैं वह दोस्ती का रिश्ता होता है यह रिश्ता कब और किससे बनता है साथ ही आप और आपके दोस्त के आचार-विचार, रहन-सहन सब कुछ सितारों से बनते हैं इसलिए आपकी जन्मकुंडली, आपका लग्न व आपकी राशि बताती है कौन आपका सच्चा दोस्त होगा |



ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हमारी कुंडली में स्थित सभी नौ ग्रहों की भी आपस में मित्रता और शत्रुता होती है। इनके संबंधों का भी प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है।


पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार प्रत्येक प्राणी किसी न किसी ग्रह, राशि व लग्न के प्रभाव में होता है और मित्रता जातक की कुंडली तय करती है। ज्योतिष के अनुसार नौ ग्रहों में पांच प्रकार की मित्रता होती है। परम मित्र, मित्र, शत्रु, अधिशत्रु एवं ग्रहों की स्थितिनुसार तात्कालिक मैत्री। इसी प्रकार राशियों में भी आपसी मैत्री संबंध होते हैं। 


कुंडली के प्रथम, चतुर्थ, द्वितीय, पंचम, सप्तम व एकादश भाव और बुध ग्रह प्रमुख रूप से मित्रता के कारक होते हैं। कुंडली का सीधा संबंध भाव, ग्रह व राशियों से होता है। तीनों प्रकार के संबंध जीवन की दिशा तय करते हैं। 
उग्र व गर्म मिजाज….


दो विभिन्न व्यक्तियों, प्रेमी-प्रेमिका, पति-पत्नी का आपसी संबंध राशियों के तत्व पर आधारित होता है। हमारा शरीर पंच तत्त्वों से बना है और .. राशियां इन्हीं में से 4 तत्वों में विभाजित की गई है। अग्नि, भूमि, वायु (इसमें आकाश तत्व भी शामिल है) व जल। 


मेष, सिंह व धनु राशियां अग्नि तत्व प्रधान अर्थात ये उग्र व गर्म मिजाज वाली राशियां होती हैं। वृष, कन्या व मकर राशियां भूमि या पृथ्वी तत्त्व प्रधान होने के कारण धैर्यशाली व ठंडे मिजाज वाली, मिथुन, तुला व कुंभ राशियां वायु तत्त्व प्रधान होने के कारण अस्थिर चित्त व द्विस्वभाव वाली होती हैं।


राशियों में गहरी मित्रता—-
पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार कर्क , वृश्चिक व मीन राशियां जल तत्व प्रधान हैं। ये धीर-गंभीर व विशाल हृदया होती हैं। ज्योतिष के मुताबिक एक ही तत्व की राशियों में गहरी मित्रता होती है। पृथ्वी, जल तत्त्व और अग्नि, वायु तत्त्वों वाले जातकों की भी पटरी अच्छी बैठती है। अग्नि व वायु तत्त्व वालों की मित्रता भी होती है। लेकिन पृथ्वी, अग्नि तत्त्व, जल तथा अग्नि तत्व एवं जल तथा वायु तत्त्वों वाले जातकों में शत्रुता के संबंध होते हैं। 



तत्व के अलावा राशियों के स्वभाव पर भी मित्रता का असर होता है। राशियों के हिसाब से देखें तो स्वयं की राशि के अलावा मेष, सिंह व धनु राशि वालों की मित्रता मिथुन, तुला व कुंभ राशि वाले लोगों से होती है। वृष, कन्या व मकर राशि वाले लोगों की मित्रता कर्क, वृश्चिक व मीन राशि वाले लोगों से ज्यादा पटती है। 


सिर्फ राशियां ही नहीं ग्रहों की भी मित्रता में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। नव ग्रहों में सूर्य-सिंह राशि, चंद्रमा-कर्क राशि, मंगल-मेष व वृश्चिक, बुध-मिथुन व कन्या, गुरु-धनु व मीन राशि, शुक्र-वृष व तुला तथा शनि-मकर व कुंभ राशि के स्वामी होते हैं। शास्त्रों में इनमें नैसर्गिक मैत्री संबंध बताए गए हैं। 


पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार किसी भी जातक की जन्म कुंडली में मौजूद नवमांश कुंडली के अनुसार मनुष्य का आचरण या स्वभाव जाना जा सकता है । 


इस संसार में मोजुद प्राणियों में मनुष्य बड़ा विचित्र प्राणी है । इसके चेहरे पर कुछ और होता है और अंदर मन मे कुछ और होता है ।।


पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार मनुष्य के स्वभाव को जानना बहुत मुश्किल काम है । कुछ मनुष्य देखने मे बहुत सुंदर होते है लेकिन मन से बहुत काले कपटी और घमंड या ईगो तथा गंदगी से भरे होते है । इसको जानने के लिए किसी भी जातक की नवमांश कुंडली का प्रयोग करना चाहिए ।
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ज्योतिष अनुसार राशियां भी जिम्मेदार—-


पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार दो विभिन्न व्यक्तियों, प्रेमी-प्रेमिका, पति-पत्नी का आपसी संबंध राशियों के तत्व पर आधारित होता है। हमारा शरीर पंच तत्वों से बना है और 12 राशियां इन्हीं में से 4 तत्वों में विभाजित की गई हैं। ‘अग्नि’ ‘भूमि’, ‘वायु’ (इसमें आकाश तत्व भी शामिल है) व जल। मेष, सिंह व धनु राशियां अग्नि तत्व प्रधान अर्थात ये उग्र व गर्म मिजाज वाली राशियां होती हैं। वृष, कन्या व मकर राशियां भूमि या पृथ्वी तत्व प्रधान होने के कारण धैर्यशाली व ठंडे मिजाज वाली, मिथुन, तुला व कुंभ राशियां वायु तत्व प्रधान होने के कारण अस्थिर चित्त व द्विस्वभाव वाली होती हैं। कर्क, वृश्चिक व मीन राशियां जल तत्व प्रधान हैं। ये धीर-गंभीर व विशाल हृदया होती हैं।


पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार एक ही तत्व की राशियों में गहरी मित्रता होती है। पृथ्वी, जल तत्व और अग्नि, वायु तत्वों वाले जातकों की भी पटरी अच्छी बैठती है। अग्नि व वायु तत्व वालों की मित्रता भी होती है लेकिन पृथ्वी, अग्नि तत्व, जल तथा अग्नि तत्व एवं जल तथा वायु तत्वों वाले जातकों में शत्रुता के संबंध होते हैं। तत्व के अलावा राशियों के स्वभाव पर भी मित्रता का असर होता है। राशियों के हिसाब से देखें तो स्वयं की राशि के अलावा मेष, सिंह व धनु राशि वालों की मित्रता मिथुन, तुला व कुंभ राशि वाले लोगों से होती है। वृष, कन्या व मकर राशि वाले लोगों की मित्रता कर्क, वृश्चिक व मीन राशि वाले लोगों से ज्यादा पटती है।
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दोस्ती पर पीले रंग का प्रभाव—
पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार पीला रंग शुभ चीज़ों और मंगल कार्यों से संबंध रखता है. ज्योतिष में इसे बृहस्पति का रंग माना जाता है. पीले रंग का संबंध दोस्ती से है, लेकिन रोमांस से नहीं. वैसे ज्योतिष कहता है कि दोस्ती को प्रेम में बदलने के लिए पीले रंग का प्रयोग लाभकारी है.
वैवाहिक जीवन में पीले रंग का प्रयोग नहीं करना चाहिए. बेडरूम में भी पीले रंग का प्रयोग सामान्य रूप से नहीं करना चाहिए. हां, संतानहीन हों तो कुछ समय के लिए पीले रंग की बेडशीट बिछाएं और बेडरूम में पीले रंग के पर्दों का भी प्रयोग करें ||



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दोस्ती में होता है ग्रहों का बोलबाला —


पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार सिर्फ राशियां ही नहीं, ग्रहों की भी मित्रता में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। नवग्रहों में सूर्य-सिंह राशि, चंद्रमा-कर्क राशि, मंगल-मेष व वृश्चिक, बुध-मिथुन व कन्या, गुरु-धनु व मीन राशि, शुक्र-वृष व तुला तथा शनि-मकर व कुंभ राशि के स्वामी होते हैं। शास्त्रों में इनमें नैसर्गिक मैत्री संबंध बताए गए हैं। इसके अलावा ग्रहों में तात्कालिक मैत्री भी होती है, जो इनकी कुंडली में स्थिति के अनुसार होती है जैसे मंगल व शनि कुंडली में एक साथ बैठे हों तो इनमें तात्कालिक मैत्री संबंध होते हैं। मोटे तौर पर हम ग्रहों की तीन प्रकार-मित्रता, शत्रुता व साम्यता के बारे में जानकारी लेते हैं। 


आइए देखें ग्रहों के नैसर्गिक मैत्री संबंध क्या हैं :—


सूर्य :— सूर्य के चंद्रमा, मंगल व गुरु मित्र होते हैं। शनि-शुक्र शत्रु व बुध से साम्यता के संबंध हैं। इस प्रकार सिंह राशि वाले की मित्रता मेष, कर्क, वृश्चिक, धनु व मीन राशि वालों से व मकर, कुंभ, वृष व तुला वाले लोगों से शत्रुता होती है। सूर्य तेज व अधिकारिता के स्वामी हैं अत: इनकी चाहत रखने वाले से मैत्री संबंध व शनि व शुक्र क्रमश: सेवा व आराम पसंद होते हैं इसलिए इनसे शत्रुता होती है।
चंद्र :— चंद्र ग्रह के अधिकांश ग्रह मित्र होते हैं परंतु बुध, शुक्र, शनि, राहु, केतू इन्हें पसंद नहीं करते। बुध, शुक्र, गुरु, शनि मित्र व सिर्फ मंगल से शत्रुता होती है। चंद्रमा जल प्रधान व मंगल अग्नि तत्व प्रधान होते हैं। जाहिर है कि आग और पानी में मित्रता नहीं हो सकती।
मंगल :— मंगल के मित्र शनि व सूर्य होते हैं। चंद्र व गुरु से साम्यता व शुक्र व बुध से शत्रुता के संबंध होते हैं। इस प्रकार मेष व वृश्चिक राशि वाले लोगों की मित्रता कर्क, धनु व मीन से तथा वृष, तुला, मिथुन व कन्या राशि से शत्रुता होती है।
बुध :— इस ग्रह के सूर्य, गुरु व चंद्र मित्र होते हैं। शनि से इनकी शत्रुता होती है। इस प्रकार मिथुन व कन्या राशि वाले लोगों की मित्रता सिंह, कर्क, धनु व मीन राशि के लोगों से होती है। मकर व कुंभ राशि से असामान्य संबंध होते हैं।
गुरु :– गुरु के मंगल, चंद्र, शनि मित्र व शुक्र तथा बुध से शत्रुता होती है। इस प्रकार धनु व मीन राशि के लोगों की मेष, वृश्चिक, कर्क, मकर व कुंभ से मित्रता तथा वृष, तुला व मिथुन, कन्या से शत्रुतापूर्ण संबंध होते हैं। गुरु स्वयं मर्यादा में रहना सिखाते हैं जबकि बुध व शुक्र दोनों ही आदतन इससे दूर रहने वाले होते हैं।
शुक्र :– इसके गुरु, सूर्य मित्र व मंगल शत्रु होते हैं। इस प्रकार शुक्र की राशि वृष व तुला वाले लोगों की मित्रता, सिंह, धनु व मीन राशि वालों से तथा मेष व वृश्चिक राशि के लोगों से शत्रुतापूर्ण संबंध होते हैं। चंद्रमा, बुध व शनि के साथ इनके समानता के संबंध होते हैं। 
शनि :— इस ग्रह की गुरु, चंद्र, मंगल से मित्रता व शनि सूर्य से शत्रुता रखते हैं। अत: मकर व कुंभ राशि वाले लोगों की मित्रता मेष, वृश्चिक, कर्क, धनु व मीन राशि के लोगों से होती है। सिंह राशि के लोगों से मित्रता नहीं होती है।
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ज्योतिष के अनुसार मैत्री के प्रमुख भाव —-
पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार  मित्रता का प्रमुख भाव एकादश भाव है जो आय भाव भी है जिसके जितने अच्छे मित्र होंगे, आय भाव उतना ही मजबूत होगा। अन्यथा कमजोर होगा। इस भाव में यदि सूर्य हो तो ऐसे जातक की उच्च पदासीन, सत्तासीन व राजनीतिक लोगों से मित्रता होगी। चंद्रमा इस भाव में होने पर मित्र कलाकार, वायुयान चालक, जहाज के कैप्टन, नाविक आदि मित्र होंगे। 


यदि एकादश भाव में मंगल है तो मित्र खिलाड़ी, पहलवान, कुक आदि प्रकृति के लोग होंगे व बुध इस भाव में होने पर व्यावसायिक वृत्ति के लोग, गुरु इस भाव में होने पर बैंकिंग, वित्त धार्मिक आस्था, दार्शनिक आदि मित्र होंगे। शुक्र इस भाव में होने पर अभिनय क्षेत्र, स्त्री जातक, कलाकार आदि मित्रों की संख्या अधिक होगी। 


शनि एकादश भाव में होने पर नौकरी पेशा, सेवावृत्ति, अपनी आयु से अधिक उम्र वाले लोगों से मैत्री संबंध होते हैं। यदि इस भाव में राहु या केतू हो तो ऐसे व्यक्ति के छद्म मित्रों व अपनी जाति से इतर लोगों से मित्रों की संख्या अधिक होती है। वह अपने लोगों से दूर-दूर रहता है।



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जानिए बुध ग्रह और दोस्ती/मैत्री /फ्रेंडशिप का सम्बन्ध —


पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार बुध को मित्रता का नैसर्गिक ग्रह माना जाता है। इस प्रकार बुध इन भावों से संबंध बना ले, तो जातक के जीवन में मित्रों की संख्या अधिक होती है। इन भावों तथा बुध के अतिरिक्त जब किन्हीं दो जातकों के राशि स्वामी, लग्न स्वामी, नक्षत्र स्वामी आदि एक ही हो जाएं अथवा उनमें मित्रता हो, तो उन जातकों के मध्य मित्रता होना स्वाभाविक है।


—पंचम भाव में यदि दो या उससे अधिक पाप ग्रह स्थित हों या उसे देखते हों, तो जातक के जीवन में मित्रों का सुख नहीं होता। पंचमेश यदि पंचम, नवम, एकादश अथवा तृतीय भाव में स्थित हो और उसको पाप ग्रह नहीं देखते हों और न ही युति करते हों, तो जातक को मित्रों का सुख होता है।
—एकादश तथा पंचम भाव के स्वामी यदि युति करते हुए त्रिकोण या केंद्र भावों में स्थित हो, तो जातक की मित्रता श्रेष्ठ व्यक्तियों से होती है। यदि तृतीयेश की स्थिति शुभ हो, तो उसे मित्रों से लाभ भी होता है।
—-तृतीयेश यदि बली तथा शुभ ग्रहों से युक्त होकर शुभ स्थानों में स्थित हो अथवा तृतीयेश का शुभ संबंध पंचमेश या एकादशेश से हो जाए, तो तत्सम्बन्धी ग्रह की राशि वाले जातकों की मित्रता से उसको अधिक लाभ की प्राप्ति होगी।
—-बुध एवं मंगल पंचम भाव के विशेष योगकारी ग्रह हैं। यदि किसी जातक की कुंडली में बुध अथवा मंगल योगकारी अथवा मित्रक्षेत्री होकर पंचम में स्थित हों, तो उस जातक के जीवन में मित्रों की कमी नहीं होती है।
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पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार जानिए अपनी जन्म कुंडली अनुसार कौन सा ग्रह किस दूसरे ग्रह का मित्र, शत्रु तथा सम (न मित्र और न शत्रु) है—-
— सूर्य ग्रह की मित्रता चंद्र, मंगल और गुरु से है, शुक्र तथा शनि से इसकी शत्रुता है और बुध ग्रह से सम भाव है।
—- चंद्र के बुध, सूर्य मित्र हैं। मंगल, शुक्र, शनि तथा गुरु समय है।
— मंगल ग्रह के सूर्य, चंद्र और गुरु मित्र हैं, बुध शत्रु है और शुक्र तथा शनि से इसका सम भाव है।
— बुध ग्रह की मित्रता सूर्य तथा शुक्र मित्र हैं, चंद्र शत्रु है और मंगल गुरु तथा शनि सम है।
— गुरु की मित्रता सूर्य, चंद्र और मंगल से है। कुछ ज्योतिष के विद्वान गुरु और चंद्र एक-दूसरे को शत्रु भी मानते हैं।
— शुक्र के बुध और शनि मित्र हैं, सूर्य और चंद्र शत्रु हैं तथा मंगल और गुरु समय हैं।
—- शनि ग्रह बुध और शुक्र से मित्रता रखता है जबकि सूर्य, चंद्र, मंगल को शत्रु मानता है। गुरु से सम भाव है।
—राहु और केतु छाया ग्रह माने जाते हैं, विद्वानों के अनुसार राहु और केतु दोनों शुक्र और शनि से मित्रता रखते हैं एवं सूर्य, चंद्र मंगल तथा गुरु इन चारों ग्रह से शत्रुता रखते हैं। बुध इन दोनों ग्रहों से सम भाव रखता है।
—सूर्य, चंद्र, मंगल और गुरु ये चारों ग्रह राहु तथा केतु से शत्रुता मानते हैं जबकि शुक्र और शनि राहु-केतु के मित्र हैं। बुध इन दोनों से सम भाव रखता है।
–जेसे यदि किसी जातक की कुंडली मे लग्न का स्वामी ग्रह शुभ हो और नवमांश मे नीच या अशुभ हो या 6,8,12 मे बैठा हो तथा शनि राहू केतू से पीड़ित हो तो जातक बाहर से सुंदर तथा अंदर से काला होता है । 
—– जेसे यदि किसी जातक की लग्न कुंडली मे लग्न का स्वामी ग्रह शुभ हो और नवमांश मे भी शुभ हो तथा शुभ ग्रहों से युति या दृष्टि मे हो तो ऐसा जातक बाहर से भी सुंदर और अंदर से भी सुंदर होता है । 
—- जेसे यदि किसी जातक की लग्न कुंडली मे लग्न का स्वामी ग्रह क्रूर या पापी हो तथा नवमांश मे शुभ दृष्टि हो या शुभ राशि मे या वर्गोत्तम हो तो ऐसा जातक बाहर से कुरूप या स्पष्टवादी तथा अंदर से भी सुंदर होता है ।
—– जेसे यदि किसी जातक की लग्न कुंडली मे लग्न का स्वामी ग्रह क्रूर या पापी हो और नवमांश मे भी पापी नीच या 6,8,12 मे हो या अशुभ राशि मे हो तो ऐसा जातक बाहर से भी कुरूप तथा अंदर से भी कुरूप और गंदगी से भरा होता है । 


सावधान रहें।। सुरक्षित रहें।। 


मित्र….फ्रेंड या दोस्त बनाने से पहले उसकी जन्म कुंडली किसी योग्य और विद्वान् ज्योतिषाचार्य को अवश्य दिखा लेवें।।  
आपका भावी जीवन सुखी, समृद्ध और सुरक्षित रह पाएं इसी कामना के साथ कल्याण हो।। 


शुभम भवतु।।। 


पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री
मोब.नंबर—.9669290067….
वाट्स अप–090.9390067….

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