जानिए राहु को और जानिए कैसे करें राहु को प्रसन्न–


हिंदू धर्म के ज्योतिषियों के अनुसार माना जाता है कि हर कोई किसी न किसी ग्रह दोष से परेशान रहता है। जिसके कारण उसके जीवन में हमेशा समस्याएं बनी रहती है। जिसके लिए हम ऐसे उपाय करते है। जिससे इऩ समस्याओं से निजात मिल जाएं, लेकिन जब तक आप यह नही जान पाएगे कि कौन सा ग्रह का दोष है। तब तक न तो उस ग्रह को शांत कर सकते है न ही आप परेशानियों से निजात पा सकते है। हिंदु धर्म ग्रंथों में राहु और केतू दो ग्रह हैं जिन्‍हे दोष के रूप में जाना जाता है। राहु और केतू, एक ही असुर का नाम है जिसने अमृत मंथन के दौरान छल से अमृत पी लिया था और जब उसने आधा अमृत पी लिया तब पता चला कि वह असुर है तो भगवान विष्‍णु ने सुदर्शन चक्र से उसका गला काट दिया। वह मरा नहीं, लेकिन सि‍र और धड़ दो हिस्‍सों में बंट गया, जिसे राहु-केतु के नाम से जाना गया। ये एक ग्रह बन गए जो लोगों की कुंडली में दोष माने जाते हैं। हिंदू धर्म में इन्‍हे दूर करने के कई उपाय हैं, जिन्‍हे लोगों के द्वारा अपनाया जाता है।



अगर आपकी कुंडली में राहु दोष है तो यह आपको बुरे प्रभाव देगा। लेकिन समस्या यह है कि आप कैसे पहचानेगे कि राहु दोष है। तो हम आपको बताते है कि किन लक्षणों से आप जान सकते है कि राहु दोष है कि नही। जानिे राहु दोष के लक्षण और इससे निजात पाने के सरल उपाय।


लक्षण-


अगर आपकी कुंडली में राहु दोष है तो आपको मानसिक तनाव, आर्थिक नुकसान, स्वयं को ले कर ग़लतफहमी, आपसी तालमेल में कमी, बात बात पर आपा खोना, वाणी का कठोर होना और अपशब्द बोलना साथ ही अगर आपकी कुंडली में राहु की स्थिति अशुभ हौ तो आपके हाथ के नाखून अपने आप टूटने लगते हैं।  


कई बार किसी समय-विशेष में कोई ग्रह अशुभ फल देता है, ऐसे में उसकी शांति आवश्यक होती है। गृह शांति के लिए कुछ शास्त्रीय उपाय प्रस्तुत हैं। इनमें से किसी एक को भी करने से अशुभ फलों में कमी आती है और शुभ फलों में वृद्धि होती है।


राहु मंत्र-




ह्रीं अर्धकायं महावीर्य चंद्रादित्य विमर्दनम्।
सिंहिका गर्भ संभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम्।


ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:।


ॐ शिरोरूपाय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो राहु प्रचोदयात्।


ग्रहों के मंत्र की जप संख्या, द्रव्य दान की सूची आदि सभी जानकारी एकसाथ दी जा रही है। मंत्र जप स्वयं करें या किसी कर्मनिष्ठ ब्राह्मण से कराएं।दान द्रव्य सूची में दिए पदार्थों को दान करने के अतिरिक्त उसमें लिखे रत्न-उपरत्न के अभाव में जड़ी को विधिवत् स्वयं धारण करें, शांति होगी ,


राहु के लिए :समय रात्रिकालभैरव पूजन या शिव पूजन करें। काल भैरव अष्टक का पाठ करें।


राहु मूल मंत्र का जप रात्रि में .8,.00 बार 40 दिन में करें।मंत्र : ‘ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:’।


दान-द्रव्य :गोमेद, सोना, सीसा, तिल, सरसों का तेल, नीला कपड़ा, काला फूल, तलवार, कंबल, घोड़ा, सूप।शनिवार का व्रत करना चाहिए। भैरव, शिव या चंडी की पूजा करें। 8 मुखी रुद्राक्ष धारण कर गोमेद राहु रत्नगोमेद एक रत्न है जिसे राहु ग्रह से समबन्धित किसी भी विषय के लिए धारण करने हेतु ज्योतिषशास्त्री परामर्श देते हैं. गोमेद न सिर्फ राहु ग्रह की बाधाओं को दूर करता है बल्कि, गोमेद कई प्रकार की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं से भी निजातदिलाता है | गोमेद एक ऐसा रत्न है जो नज़र की बाधाओं, भूत-प्रेत एवं जादू-टोने से भी सुरक्षा प्रदान करता है. गोमेद में इतनी सारी खूबियां हैं जिनसे व्यक्ति के जीवन की बहुत सीमुश्किलें दूर हो सकती हैं. लेकिन इसे किसी अच्छे ज्योतिषी से सलाह लेकर धारण करना चाहिए.


गोमेद क्या है ??
गोमेद को अंग्रेजी में Agate, Hessonit, Onyx के नाम से जाना जाता है. संस्कृत में गोमद को गोमेदक, पीत रक्तमणि, पिग स्फटिक कहा गया है. सुलेमानी, हजार यामनी नाम से भी गोमद को जाना जाता है. गोमद को बंगाल में मोदित मणि के नाम से पुकारते हैं. गोमेद राहु का मुख्य रत्न है. इस रत्न में राहु की शक्तियां एवं गुण मौजूद है. गोमेद राहु की नकारात्मक उर्जा को सकारत्मक उर्जा में परिवर्तित करके राहु के कष्टकारी प्रभाव से व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करता है.


गोमेद की पहचान—


असली गोमेद को उसके रंग एवं चमक से पहचाना जा सकता है. गोमूत्र से मिलता जुलता रंग होने के कारण इसे गोमेद कहा जाता है. यह एक चमकीला पत्थर होता है जो दिखने में शहद के रंग के समान भूरा होता है. गोमेद धुएं के सामन एवं काले रंग का भी होता है. गोमेद के ऊपर जब प्रकाश डालाजाता है जो उससे जो रोशनी पार करके निकली है उसका रंग गोमूत्र जैसा दिखता है. असली गोमेद कीपहचान इस तरह आसानी से की जा सकती है. शुद्ध गोमेद चिकना, चमकीला एवं सुन्दर दिखता है.


गोमेद किसे धारण करण चाहिए—


कुण्डली में राहु जिस भाव में हो उस भाव के शुभ फल को बढ़ाने के लिए राहु रत्न गोमेद पहनना चाहिए (Hessonite should be worn to strengthen the house where Rahu is located). ज्योतिषशास्त्र के अनुसार राहु तीसरे, छठे भाव में हो तो गोमेद पहनना चाहिए. मेष लग्न की कुण्डली में यदि राहु नवें घर मेंहै तो गोमेद पहनने से भाग्य बलवान होता है. राहु यदि दशम अथवा एकादश भाव में है तब भी गोमेदधारण करना उत्तम होता है. लग्न में राहु होने पर स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों को कम करने हेतु गोमद पहनना फायदेमंद होता है. राजनीति एवं न्याय विभाग से जुड़े लोगों की कुण्डली में राहु मजबूत होने पर सफलता तेजी से मिलती है. राहु को बलवान बनाने के लिए इन्हें गोमेद रत्न धारण करना चाहिए.गोमेद धारण करने का समय (When to wear Gomed / Hessonite)कोई भी रत्न तब अधिक शुभ फल देता है जब वह शुभ समय में धारण किया जाता है. गोमेद रत्न धारण करने का शुभ और उचित समय तब माना जाता है जब राहु की महादशा अथवा दशा चल रही हो.गोमेद नहीं पहनें (Who should not wear Gomed / Hessonite)रत्न विज्ञान के अनुसार जिस व्यक्ति की जन्म कुण्डली में राहु अष्टम या द्वादश भाव में हो तो गोमेद धारण करना उपयुक्त नहीं होता है.गोमेद के उपरत्न (The sub-gemstones of Gomed / Hessonite)गोमेद रत्न जो धारण नहीं कर सकते वह चाहें तो इसका उपरत्न पहन सकते हैं. गोमेद के उपरत्न हैं अकीक, तुरसा एवं साफीगोमेद धारण में सावधानी (Precautions while wearing Gomed /Hessonite)गोमेद रत्न धारण करने से पहले यह जांच करलें कि रत्न में दोष नहीं हो. दोषपूर्ण रत्न धारण करने से फायदे की बजाय नुकसान हो सकता है (Do not wear a flawed Hessonite). जिस गोमेद में लाल या काले धब्बे हों उसे पहनने से दुर्घटना की आशांका रहती है. गोमेद यदि चमकहीन हो तो धारण करने वाले व्यक्ति के सम्मान में कमी आती है. जिस गोमेद में अनेक रंगों की परछाई हों उसे पहनने से धन की हानि होती है. ऐसे गोमेद को नहींपहनना चाहिए.गोमेद से लाभ (Benefits from Gomed / Hessonite)गोमेद पहनने से राहु का अशुभ प्रभाव दूर होता है. कालसर्प दोष के कष्टों से भी बचाव होता है. जिन लोगों की सेहत अक्सर खराब रहती है उन्हें भी गोमेद पहनने से स्वास्थ्य लाभ मिलता है. पाचन सम्बन्धी रोग, त्वचा रोग, क्षय रोग तथा कफ-पित्त को भी यह संतुलित रखता है. आयुर्वेद के अनुसार गोमेद के भस्म का सेवन करने से बल एवं बुद्धि बढ़ती है. पेट की खराबी में गोमद का भस्म काफी फायदेमंद होता है. राहु तीव्र फल देने वाला ग्रह है. गोमेद पहनने से राहु से मिलने वाले शुभ फलों में तेजी आती है. व्यक्ति को मान-सम्मान एवं धन आदि प्राप्त होता है ,राहु-केतु का उपाय( Remedy for Rahu – Ketu)अधिकांश व्यक्ति राहु-केतु से पीड़ित रहते हैं। ऐसे जातकों के लिए शिव की पूजा करना सर्वथा लाभकारी है। इसके साथ ही छोटे-छोटे उपाय करें, तो राहु-केतु निस्तेज होंगे शिव भक्त बड़े उत्साह से हर साल श्रावण मास की प्रतीक्षा करते हैं। सत्यम् शिवम् और सुंदरम् के प्रतीक भगवान शिव सभी जीवों के लिए परम कल्याणकारी माने जाते हैं। इनके शिव नाम में पूरा ब्रह्मांड समाया हुआ है। पौराणिक मान्यता के अनुसार सावन का महीना भगवान शंकर को अतिप्रिय है। ज्योतिष शास्त्र में भी इस माह का महत्व बताया गया है और साथ ही यह भी कहा गया है कि अगर भक्त अपने सारे दु:खों से निजात पाना चाहते हैं, तो इसमाह उन ग्रहों को शांत कर सकते हैं, जो उनकी कुंडली में अशुभ भाव में बैठे हुए हैं। ऐसे ही दो ग्रह हैं, राहु और केतु। जिस तरह शनि को प्रसन्न करने के लिए शिव जी की पूजा करना शुभ कहा गया है, उसी तरह सावन माह में इन ग्रहों के लिए विशेष पूजा लाभकारी बताई जाती है। अगर आपके ऊपर शनि-राहु या अशुभ ग्रहों की दशा चल रही है, तो आप पूरे माह शिवलिंग पर प्रतिदिन काले तिल चढ़ाएं तथा तामसिक भोजन का त्याग करें। जन्मकुंडली के अनुसार जो ग्रह आपके लिए सकारात्मक हो, इस माह में उस ग्रह का रत्न धारण कर उसे मजबूत करने से भी न चूकें। अगर आपकी कुंडली में राहु और केतु अशुभ स्थान पर बैठे हों, तो श्रावण मास में इनका भी उपाय कर लेना श्रेयस्कर रहता है। दरअसल राहु और केतु कुंडली में कालसर्प योग बनाते हैं। यह ऐसा योग है, जो आपके बनते हुए कामों में बाधा डाल देता है। अगर राहु और केतु के बीच में सारे ग्रह आ जाएं या फिर राहु सूर्य अथवा चंद्र के साथ आ जाए, तो जातक की कुंडली में बाधा दिखाई देती है। कुंडली में इनकी महादशा और अंतर्दशा भी होतीहै। इसलिए श्रावण मास में शिव की पूजा से इन्हें निस्तेज करना सबसे प्रमुख उपाय माना जाता है। अगर आप इस माह में बुधवारया शनिवार के दिन रुद्राभिषेक करते हैं, तो आपको राह-केतु की अशुभ छाया से मुक्ति मिल सकती है। इसके अलावा नदी में चांदी के नाग-नागिन प्रवाहित करने से कालसर्प योग नाम का दोष भी मिटता है। यदि आप श्रावण मास में आने वाली नाग पंचमी के दिन शिव मंदिर में शिवलिंग पर तांबे के नाग की स्थापना करवाएं, तो यह लाभप्रद होगा। इससे सर्प बाधा भी दूर होती है। आपकी कुंडली में राहु पांचवें घर में हो, तो ऐसे जातक को संतान सुख बाधित होता है। इसके लिए सावन में व्रत रखें और नाग-नागिन को कद्दू या सीताफल में रखकर बहाएं। आपको शीघ्र इस दोष से मुक्ति मिल जाएगी।यदि आप केतु से परेशान हैं, तो शिव के साथ भैरव की पूजा करें तथा शनिवार को कुत्तों को गुलाबजामुन या दूसरी मीठी चीजें खिलाएं। असल में भैरव की सवारी कुत्ता मानी गई है। इसके साथ ही चितकबरे वस्त्र दान करें। केतु की पीड़ा शांत होगी। शिव मंदिर में ध्वज लगाने से भी केतु शांत होता है। केतु को ध्वज का प्रतीक भी माना जाता हैै ।
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जानिए राहु की महादशा में अन्य ग्रह की अन्तर्दशा आने पर क्या उपाय करने चाहिए—




 “कुंडली में राहु की स्तिथि/पोजीशन ये बताती है की राहु अपनी महादशा मैं कैसा फल देगा। परन्तु राहु कितना भी शुभ क्यों न हो ये तो पक्का है की कुछ तो अशुभ करेगा ही। राहु को सर्प का मुंह कहा गया ये और ये कैसे हो सकता है की सर्प का मुंह कुछ भी बुरा न करे। नवग्रहों में यह अकेला ही ऐसा ग्रह है जो सबसे कम समय में किसी व्यक्ति को करोड़पति, अरबपति या फिर कंगाल भी बना सकता है।”


राहु महादशा उपाय—


महादशा अन्तर्दशा उपाय—
【१】राहू की महादशा में राहू का अंतर 
दान करें उड़द दाल, काले तिल, नीले कपडे, गरम कम्बल सफाई कर्मचारी अथवा नीची जाती को,
चीटी को शुगर
भगवन भैरव के मंदिर में रविवार को शराब चदाएं और तेल का दीपक जलाएं
शराब का सेवन बिलकुल न करें    


【.】राहू की महादशा में  बृहस्पति, गुरु का अंतर
स्वर्ण से बनी भगवन शिव की मूर्ति की पूजा करें
किसी अपांग छात्र की पड़ी या इलाज़ में सहायता करें
शिव मंदिर में नित्य झाड़ू लगायें
पीले रंग के फूल से शिव पूजन करें
शैक्षणिक संस्था के शौचालयों की सफाई की व्यवस्था कराएं
【३】 राहू  की महादशा में  शनि  का अंतर
महामृत्युंजय मंत्र का एक दिन में कम से कम ३२४ बार जप महामृत्युंजय मंत्र के जप स्वयं, अथवा किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण से कराएं। जप के पश्चात् दशांश हवन कराएं जिसमें जायफल की आहुतियां अवश्य दें।
भगवान शिव की शमी के पत्रों से पूजा
शिव सहस्त्रनाम का पाठ
काले तिल से शिव का पूजन
नवचंडी का पूर्ण अनुष्ठान करते हुए पाठ एवं हवन कराएं।
【4】 राहू  की महादशा में  बुध  का अंतर
दान करें उड़द दाल, काले तिल, नीले कपडे, गरम कम्बल सफाई कर्मचारी अथवा नीची जाती को, चीटी को शुगर
भगवन गणेश को शतनाम सहित दुर्वांकुर चडाते रहे
पक्षी को हरी मूंग खिलाएं
हाथी को हरे पत्ते, नारियल गोले या गुड़ खिलाएं।
कोढ़ी, रोगी और अपंग को खाना खिलाएं।
【 ५】राहू की महादशा में केतु  का अंतर
दान करें उड़द दाल, काले तिल, नीले कपडे, गरम कम्बल सफाई कर्मचारी अथवा नीची जाती को, चीटी को शुगर
भैरव जी के मंसिर में ध्वजा चदाएं
कुत्तो को रोटी, बराद या बिस्किट खिलाएं
घर या मंदिर में गुग्गुल का धुप करें
कौओं को खीर-पूरी खिलाएं।
【6】राहू की महादशा में Venus, शुक्र  का अंतर 
माँ दुर्गा तथा माँ लक्ष्मी की पूजा करें
सांड को गुड या घास खिलाएं
शिव मंदिर में स्थित नंदी की पूजा करें तथा वस्त्र आदि दें
स्फटिक की माला धारण करें
एकाक्षी श्रीफल की स्थापना कर पूजा करें।


【 7 】राहू की महादशा में Sun, सूर्य  का अंतर


भगवन सूर्य की पूजा करें तथा सुभाह जल्दी उनको जल अर्पित करें
हरिवंश पुराण का पाठ या श्रवण करते रहें।
चाक्षुषोपनिषद् का पाठ करें।
सूअर को मसूर की दाल खिलाएं।


【८】 राहू की महादशा में Moon, चन्द्र  का अंतर


माता की सेवा करें—
हर सोमवार को भगवन शिव का शुद्ध दूध से अभिषेक करें
चांदी की प्रतिमा या कोई अन्य वस्तु मौसी, बुआ या बड़ी बहन को भेंट करें
【९】राहू की महादशा में Mars, मंगल  का अंतर
गाय का दान करें राहु मंत्र दिन में कम से कम ३ माला करें            
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सांसारिक जीवन में व्यक्तिगत व पारिवारिक जीवन को सुखी व संपन्न बनाने की कोशिशें जन्म से लेकर मृत्यु तक लगातार चलती हैं। सुखों से भरे जीवन की कामनाओं को पूरा करने के लिए खासतौर पर हर इंसान बुद्धि, ज्ञान के साथ संतान, भवन, वाहन से समृद्ध होना चाहता है। जिसके लिये वह देव उपासना व शास्त्रों के उपाय भी अपनाता है। 
ज्योतिष विज्ञान के मुताबिक जन्मकुण्डली में शनि-राहु की युति भी इन सुखों को नियत करने वाली होती है। खासतौर पर जब जन्मकुण्डली में शनि-राहु की युति चौथे भाव में बन रही हो। तब वह पांचवे भाव पर भी असर करती है। हालांकि दूसरे ग्रहों के योग और दृष्टि भी अच्छे और बुरे फल दे सकती है। लेकिन यहां मात्र शनि-राहु की युति के अशुभ प्रभाव की शांति के उपाय बताए जा रहे हैं। 
हिन्दू पंचांग में शनिवार का दिन न्याय के देवता शनि की उपासना कर पीड़ा और कष्टों से मुक्ति का माना जाता है। यह दिन शनि की पीड़ा, साढ़े साती या ढैय्या से होने वाले बुरे प्रभावों की शांति के लिए भी जरूरी है। किंतु यह दिन एक ओर क्रूर ग्रह राहु की दोष शांति के लिए भी अहम माना जाता है। राहु के बुरे प्रभाव से भयंकर मानसिक पीड़ा और अशांति हो सकती है। 
अगर आपको भी सुखों को पाने में अड़चने आ रही हो या कुण्डली में बनी शनि-राहु की युति से प्रभावित हो, तो यहां जानें ऐसे सुख व आनंद लेने के लिए शनि-राहु के दोष शांति के सरल उपाय – 
– शनिवार की सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहन नवग्रह मंदिर में शनिदेव और राहु को शुद्ध जल से स्नान कर पंचोपचार पूजा करें और विशेष सामग्रियां अर्पित करें।  
– शनि मंत्र ऊँ शं शनिश्चराये नम: और राहु मंत्र ऊँ रां राहवे नम: का जप करें। हनुमान चालीसा का पाठ भी बहुत प्रभावी होता है। 
– शनिदेव के सामने तिल के तेल का दीप जलाएं। तेल से बने पकवानों का भोग लगाएं। लोहे की वस्तु चढाएं या दान करें। 
– राहु की प्रसन्नता के लिए तिल्ली की मिठाईयां और तेल का दीप लगाएं। शनि  व राहु की धूप-दीप आरती करें।  
समयाभाव होने पर नीचे लिखें उपाय भी न के वल आपकी मुसीबतों को कम करते हैं, बल्कि जीवन को सुख और शांति से भर देते हैं। 
– किसी मंदिर में पीपल के वृक्ष में शुद्ध जल या गंगाजल चढ़ाएं। पीपल की सात परिक्रमा करें। अगरबत्ती, तिल के तेल का दीपक लगाएं। समय होने पर गजेन्दमोक्ष स्तवन का पाठ करें। इस बारे में किसी विद्वान ब्राह्मण से भी जानकारी ले सकते हैं।
– इसी तरह किसी मंदिर के बाहर बैठे भिक्षुक को तेल में बनी वस्तुओं जैसे कचोरी, समोसे, सेव, भुजिया यथाशक्ति खिलाएं या उस निमित्त धन दें। 
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कुत्ते को तेल चुपड़ी रोटी खिलाने से शनि के साथ ही राहु-केतु से संबंधित दोषों का भी निवारण हो जाता है। राहु-केतु के योग कालसर्प योग से पीड़‍ित व्यक्तियों को यह उपाय लाभ पहुंचाता है। इसके अलावा निम्न मंत्रों से भी पीड़ित जातकों को अत्यंत फायदा पहुंचता है। 


राहु मंत्र को अगर सिद्ध किया जाए तो राहु से जुड़ी परेशानियां समाप्त होती हैं। ध्यान रहे कि राहु मंत्र की माला का जाप 8 बार किया जाता है। 
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राहु पुराणों और ज्योतिष शास्त्र में—-


श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार महर्षि कश्यप की पत्नी दनु से विप्रचित्ति नामक पुत्र हुआ जिसका विवाह हिरण्यकशिपु की बहन सिंहिका से हुआ | राहु का जन्म सिंहिका के गर्भ से हुआ इसीलिए राहू का एक नाम सिंहिकेय भी है | जब भगवान विष्णु की प्रेरणा से देव दानवों ने क्षीर सागर का मंथन किया तो उस में से अन्य रत्नों के अतिरिक्त अमृत की भी प्राप्ति हुई | भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण करके देवों व दैत्यों को मोह लिया और अमृत बाँटने का कार्य स्वयम ले लिया तथा पहले देवताओं को अमृत पान कराना आरम्भ कर दिया| राहु  को संदेह हो गया और वह देवताओं का वेश धारण करके सूर्य देव तथा चन्द्र देव के निकट बैठ गया |विष्णु जैसे ही राहु को अमृत पान कराने लगे सूर्य व चन्द्र ने जो राहु को पहचान चुके थे विष्णु को उनके बारे में सूचित कर दिया |भगवान विष्णु ने उसी समय सुदर्शन चक्र द्वारा राहु के मस्तक को धड से अलग कर दिया |पर इस से पहले अमृत की कुछ बूंदें राहु के गले में चली गयी थी जिस से वह सर तथा धड दोनों रूपों में जीवित रहा |सर को राहु तथा धड को केतु कहा जाता है
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राहु व केतु को ग्रहत्व की प्राप्ति—


राहु के मस्तक कटते  ही देवों व दानवों में महा संग्राम छिड़ गया |राहु और केतु सूर्य व चन्द्र से बदला लेने के उद्देश्य से ग्रसित करने के लिए उनके पीछे दोडे| भयभीत हो कर चंद्रमा शिव की शरण में चला गया |आशुतोष ने चन्द्र को अपने मस्तक पर धारण कर लिया | राहु ने भगवान शंकर की स्तुति की और अपना ग्रास चन्द्र देने की प्रार्थना की |शिव ने प्रसन्न होकर राहु और केतु दोनों को नवग्रह मंडल में स्थान दिया तथा समस्त लोकों में पूजित होने का वर दिया |


राहु का स्वरूप और प्रकृति—


मत्स्य पुराण के अनुसार  राहु विकराल मुख का ,नील वर्ण ,हाथ में तलवार ,ढाल ,त्रिशूल व  वर मुद्रा धारण किये है | इसकी वात प्रकृति है |इसे दूसरों के अभिप्राय को जान लेने वाला तीव्र बुद्धि का कहा गया है |सर्वमान्य ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार राहु अशुभ ,क्रूर ,मलिंरूप वाला ,अन्त्यज जाति का , दीर्घ सूत्री ,नील वर्ण का तथा तीव्र बुद्धि का माना गया है |


राहु का रथ एवम गति—


पुराणों के अनुसार राहु का रथ तमोमय है जिसको काले रंग के आठ अश्व खींचते हैं |इसकी गति सदैव वक्री रहती है |एक राशि को यह अठारह मास में भोग करता है |अमावस्या में पृथ्वी और सूर्य के मध्य राहु रुपी चन्द्र छाया आने पर सूर्य का बिंब अदृश्य हो जाता है जिसे सूर्य ग्रहण कहते हैं |


कारकत्व—


 प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रंथोंके अनुसार राहु सांप,सपेरे,कीट,विष,जूआ , कुतर्क,अपवित्रता असत्य वादन ,नैऋत्य दिशा ,सोये हुए प्राणी ,वृद्ध , ,दुर्गा की उपासना ,ढीठ पना , चोरी ,आकस्मिक प्राकृतिक घटनाएं ,मद्य पान ,मांसाहार  ,वैद्यक ,हड्डी ,गुप्तचर ,गोमेद ,रांगा ,मछली व नीले पदार्थों का कारक है |


रोग  —


जनम कुंडली में  राहु पाप ग्रहों से युत  या दृष्ट हो , छटे -आठवें -बारहवें  भाव में स्थित हो तो चर्म रोग,शूल,अपस्मार ,चेचक वात शूल, दुर्घटना, कुष्ठ ,सर्प दंश ,हृदय रोग,पैर में चोट तथा अरुचि इत्यादि रोग होते हैं |


फल देने का समय—


राहु  अपना शुभाशुभ फल  42 से 48 वर्ष कि आयु में , अपनी दशाओं व गोचर में प्रदान करता है |वृद्धावस्था पर भी  इस का अधिकार कहा गया है |
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जानिए आपकी राशि अनुसार राहु का फल—


जन्म कुंडली में राहु  का मेषादि राशियों में स्थित होने का फल इस प्रकार है :-


मेष में –राहु हो तो जातक तमोगुणी ,क्रोध की अधिकता से दंगा फसाद करने वाला तथा जूए लाटरी में धन नष्ट करने वाला होता है |आग और बिजली से भय रहता है |


वृष   में  राहु   हो तो जातक सुखी ऐश्वर्यवान,सरकार से पुरस्कृत ,कामी और विद्वान होता है |


मिथुन में राहु  हो तो जातक विद्वान ,धन धान्य से सुखी ,समृद्ध व् यश मान प्राप्त करने वाला होता है |


कर्क में  राहु   हो तो जातक मनोरोगी ,नजला जुकाम से पीड़ित ,माता के कष्ट से युक्त होता है |


सिंह में राहु  हो तो जातक ह्रदय या उदररोगी राजकुल का विरोधी तथा अग्नि विष आदि से कष्ट उठाने वाला होता है | |


कन्या में राहु हो तो जातक विद्यावान,मित्रवान, साहस के कार्यों से लाभ उठाने वाला तथा सफलता प्राप्त करने वाला होता है |


तुला मे राहु हो तो जातक गुर्दे के दर्द से पीड़ित ,व्यापार से लाभ उठाने वाला होता है |


वृश्चिकमेंराहु  हो तो जातक नीच संगति वाला ,शत्रु से पीड़ित ,दुःसाहसी व् अग्नि विष शस्त्र आदि से पीड़ित होता है |


धनु में राहु हो तो जातक असफल ,परेशान,वात रोगी , निम्न कार्यों में रूचि लेने वाला होता है |


मकर में  राहु  हो तो जातक विदेश यात्रा करने वाला ,धनी,घुटने से पीड़ित और मित्र से हानि उठाने वाला होता है |


कुम्भ  में राहु  हो तो जातक श्रम के कार्य से लाभ उठाने वाला ,मित्रों से सहयोग लेने वाला ,धन संपत्ति से युक्त होता है |


मीन  में  राहु  हो तो जातक उत्साह हीन ,मन्दाग्नि युक्त होता है |


(राहु पर किसी अन्य शुभाशुभ ग्रह कि युति या दृष्टि के प्रभाव से उपरोक्त राशि फल में शुभाशुभ परिवर्तन भी संभव है )
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राहु का भाव फल—-


जन्म कुंडली में राहु  का विभिन्न भावों में स्थित होने का फल इस प्रकार है :—


लग्न में स्थित राहु से जातक शत्रु विजयी ,अपना काम निकाल लेने वाला ,कामी ,शिरो वेदना से युक्त,आलसी,क्रूर,दया रहित,साहसी,अपने सम्बन्धियों को ही ठगने वाला ,दुष्ट स्वभाव का ,वातरोगी होता है |


धन भाव में स्थित राहु से जातक असत्य बोलने वाला ,नष्ट कुटुंब वाला ,अप्रिय भाषण कर्ता,निर्धन ,परदेस में धनी,कार्यों में बाधाओं वाला,मुख व नेत्र रोगी ,अभक्ष्य पदार्थों का सेवन करने वाला होता है


पराक्रम भाव में स्थित राहु से जातक पराक्रमी ,सब से मैत्री पाने वाला ,शत्रु को दबा कर रखने वाला ,कीर्तिमान ,धनी ,निरोग होता है | निर्बल और पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट होने पर छोटे भाई के सुख में कमी करता  है |


सुख भाव में स्थित राहु से जातक की माता को कष्ट रहता है |मानसिक चिंता रहती है |प्रवासी तथा अपने ही लोगों से झगड़ता रहता है |


संतान भाव में स्थित राहु से संतान चिंता ,उदर रोग ,शिक्षा में बाधा ,वहम का शिकार होता है |


शत्रु भाव में स्थित राहु से जातक रोग और शत्रु को नष्ट करने वाला ,पराक्रमी ,धनवान ,राजमान्य ,विख्यात होता है |


जाया भाव में स्थित राहु से  विवाह में विलम्ब या बाधा ,स्त्री को कष्ट ,व्यर्थ भ्रमण ,कामुकता  ,मूत्र विकार ,दन्त पीड़ा तथा प्रवास में कष्ट उठाने वाला होता है |


आयु भाव में स्थित राहु से पैतृक धन संपत्ति की हानि,कुकृत्य करने वाला ,बवासीर का रोगी ,भारी श्रम से वायु गोला ,रोगी तथा .2 वें वर्ष में कष्ट प्राप्त करने वाला होता है |


भाग्य भाव में स्थित राहु से विद्वान ,कुटुंब का पालन करने वाला ,देवता और तीर्थों में विशवास करने वाला ,कृतज्ञ ,दानी ,धनी, सुखी होता है |


कर्म भाव में स्थित राहु से अशुभ कार्य करने वाला ,घमंडी ,झगडालू ,शूर ,गाँव या नगर का अधिकारी ,पिता को कष्ट देने वाला होता है |


लाभ भाव में स्थित राहु से पुत्रवान ,अपनी बुद्धि से दूसरों का धन अपहरण करने वाला ,विद्वान ,धनी ,सेवकों से युक्त,कान में पीड़ा वाला ,विदेश से लाभ उठाने वाला होता है |


व्यय भाव में स्थित राहु से दीन, पसली में दर्द से युक्त ,असफल ,दुष्टों का मित्र ,नेत्र व पैर का रोगी,कलहप्रिय,बुरे कर्मों में धन का व्यय करने वाला ,अस्थिर मति का होता है |
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 राहु  का सामान्य  दशा फल—


जन्म कुंडली में राहु स्व ,मित्र ,उच्च राशि -नवांश का  ,शुभ युक्त -दृष्ट ,लग्न से शुभ स्थानों पर हो, केन्द्रेशसे त्रिकोण में या त्रिकोणेश से केन्द्र में युति सम्बन्ध बनाता हो तो राहु  की दशा में बहुत सुख ,ज्ञान वृद्धि ,धन धान्य की वृद्धि ,पुत्र प्राप्ति ,राजा और मित्र सहयोग से अभीष्ट सिद्धि ,विदेश यात्रा ,प्रभाव में वृद्धि, राजनीति और कूटनीति में सफलता तथा सभी प्रकार के सुख वैभव प्रदान करता है |


राहु  शत्रु –नीचादि राशि का पाप युक्त,दृष्ट हो कर 6-8-12 वें स्थान पर हो तो उसकी अशुभ दशा में सर्वांग पीड़ा ,चोर –अग्नि –शस्त्र से भय ,विष या सर्प से भय ,पाप कर्म के कारण बदनामी,असफलता ,विवाद ,वहम करने की मनोवृत्ति ,कुसंगति से हानि ,वात तथा त्वचा रोग ,दुर्घटना से भय होता है |
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गोचर में राहु—-


जन्म या नाम राशि से 3,6 ,11वें स्थान पर राहु  शुभ फल देता है |शेष स्थानों पर राहु का भ्रमण अशुभ कारक  होता है |


जन्मकालीन चन्द्र से प्रथम स्थान पर  राहु का गोचर सर पीड़ा ,भ्रम ,अशांति , विवाद और वात पीड़ा करता है


दूसरे स्थान पर राहु  के गोचर से घर में अशांति और कलह क्लेश होता है |चोरी या ठगी से  धन कि हानि ,नेत्र या दांत में कष्ट होता है | परिवार से अलग रहना पड़ जाता है |


तीसरे स्थान पर राहु  का गोचर आरोग्यता , मित्र  व व्यवसाय लाभ ,शत्रु की पराजय ,साहस पराक्रम में वृद्धि ,शुभ समाचार प्राप्ति ,भाग्य वृद्धि ,बहन व भाई के सुख में वृद्धि व राज्य से सहयोग दिलाता  है |


चौथे स्थान पर राहु  के  गोचर से कुसंगति , स्थान हानि  ,स्वजनों से वियोग या विरोध ,सुख हीनता ,मन में स्वार्थ व लोभ का उदय , वाहन से कष्ट ,छाती में पीड़ा होती है |


पांचवें स्थान पर  राहु  के  गोचर से भ्रम ,योजनाओं में असफलता ,पुत्र को कष्ट, धन निवेश में हानि व उदर विकार होता है |शुभ  राशि में शुभ युक्त या शुभ दृष्ट  हो तो सट्टे लाटरी से लाभ कराता है |


छ्टे स्थान पर  राहु  के गोचर से धन अन्न व सुख कि वृद्धि ,आरोग्यता , शत्रु पर विजय व संपत्ति का लाभ, मामा या मौसी को कष्ट  होता है |


सातवें स्थान पर  राहु  के  गोचर से दांत व  जननेंन्द्रिय सम्बन्धी रोग , मूत्र विकार ,पथरी ,यात्रा में कष्ट , दुर्घटना ,स्त्री को कष्ट या उस से विवाद , आजीविका में बाधा होती है|


आठवें स्थान पर राहु  के गोचर से धन हानि ,कब्ज ,बवासीर इत्यादि गुदा रोग ,असफलता ,स्त्री को कष्ट ,राज्य से भय ,व्यवसाय में बाधा ,पिता को कष्ट ,परिवार में अनबन ,शिक्षा प्राप्ति में बाधा व संतान सम्बन्धी कष्ट होता है |


नवें  स्थान पर राहु के  गोचर से भाग्य कि हानि ,असफलता ,रोग व शत्रु का उदय ,धार्मिक कार्यों व यात्रा में बाधा आती है |


दसवें  स्थान पर राहु  के  गोचर से मानसिक चिंता , अपव्यय ,पति या पत्नी  को कष्ट ,  कलह,नौकरी व्यवसाय में विघ्न , अपमान ,कार्यों में असफलता ,राज्य से परेशानी होती है |


ग्यारहवें स्थान पर राहु  के गोचर से धन ऐश्वर्य की वृद्धि ,सट्टे लाटरी से लाभ ,आय में वृद्धि ,रोग व शत्रु से मुक्ति , कार्यों में सफलता, मित्रों का सहयोग मिलता है |


बारहवें स्थान पर  राहु  के  गोचर  से धन कि हानि ,खर्चों कि अधिकता ,संतान को कष्ट ,प्रवास , बंधन ,परिवार में अनबन व भाग्य कि प्रतिकूलता होती है |


( गोचर में राहु के उच्च ,स्व मित्र,शत्रु नीच आदि राशियों में स्थित होने पर , अन्य ग्रहों से युति ,दृष्टि के प्रभाव से या वेध स्थान पर शुभाशुभ ग्रह होने पर उपरोक्त गोचर फल में परिवर्तन संभव है | )
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कालसर्प दोष—-


कुछ आधुनिक ज्योतिषियों ने गत कुछ वर्षों से यह भ्रामक प्रचार किया है की जब कुंडली में सभी ग्रह राहु और केतु के मध्य में आ जाएँ तो काल सर्प योग बनता है जिसका प्रभाव जातक पर बड़ा अशुभ पड़ता है | वास्तविकता यह है कि पराशर होरा शास्त्र ,बृहज्जातक ,सारावली ,मानसागरी,फलदीपिका ,जातक पारिजात आदि किसी भी वैदिक शास्त्रीय ज्योतिष ग्रन्थ  में ऐसे किसी कुयोग का  कहीं वर्णन नहीं है| साथ ही जीवन में सभी प्रकार से सफलता पाने वाले असंख्य ऐसे  व्यक्ति हैं जिनकी कुंडली में यह कुयोग है पर फिर भी वे सफलता के शिखर पर पहुंचे|मार्तंड पंचांगकार ने इस विषय पर 2011-12 के पंचांग में विस्तृत लेख लिखा है तथा कालसर्प योग में जन्में कुछ महान व्यक्तियों कि सूची दी है जिसमें सम्राट हर्ष वर्धन ,अब्राहम लिंकन ,जवाहर लाल नेहरु ,डा ० राधा कृष्णन ,अभिनेता दलीप कुमार व अशोक कुमार, धीरू भाई अम्बानी इत्यादि शामिल हैं | अतः इस योग से भयभीत करने वाले पाखंडी ज्योतिषियों से दूर रहें और उनकी बातों में आ कर धन को व्यर्थ में न गवाएं |


राहु शान्ति के उपाय—-
जन्मकालीन राहु  अशुभ फल देने वाला हो या गोचर में अशुभ कारक हो तो निम्नलिखित उपाय करने से बलवान हो कर शुभ फल दायक हो जाता है |
रत्न धारण –गोमेद पञ्च धातु की अंगूठी में आर्द्रा,स्वाती या शतभिषा नक्षत्र  में जड़वा कर शनिवार  को  सूर्यास्त  के बाद  पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ  भ्रां भ्रीं भ्रों सः राहवे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , नीले पुष्प,  काले तिल व अक्षत आदि से पूजन कर लें|रांगे का छल्ला धारण करना भी शुभ रहता है |


दान ,जाप –   | ॐ  भ्रां भ्रीं भ्रों सः राहवे नमः मन्त्र का १८००० की संख्या में जाप करें | शनिवार को काले उडद ,तिल ,तेल ,लोहा,सतनाजा ,नारियल  ,  रांगे की मछली ,नीले   रंग का वस्त्र इत्यादि का दान करें | मछलियों को चारा देना भी राहु शान्ति का श्रेष्ठ उपाय है |
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राहु के कुप्रभाव से बचने के लिये रत्न धारण करना—-
राहु के कुप्रभाव से कालान्तर तक बचने के लिये रत्नों को धारण किया जाता है,अलग अलग भावों के राहु के प्रभाव के लिये अलग अलग तरह के रंग के और प्रकृति के रत्न धारण करवाये जाते है,अधिकतर लोग गोमेद को राहु के लिये प्रयोग करवाते है,लेकिन गोमेद एक ही रंग और प्रकृति का हो,यह जरूरी नही होता है,जैसे धन के भाव को राहु खराब कर रहा है,और अक्समात कारण बनने के बाद धन समाप्त हो जाता है,तो खूनी लाल रंग का गोमेद ही काम करेगा,अगर उस जगह पीला या गोमूत्र के रंग का गोमेद पहिन लिया जाता है,तो वह धार्मिक कारणों को करने के लिये और सलाह लेने का मानस ही बनाता रहेगा.
इसके अलावा भी राहु के लिये कई उपाय जीवन में बहुत जरूरी है,इन उपायों के करने से भी राहु अपनी सिफ़्त को कन्ट्रोल में रखता है।


राहु का पहला कार्य होता है झूठ बोलना और झूठ बोलकर अपनी ही औकात को बनाये रखना,वह किसी भी गति से अपने वर्चस्व को दूसरों के सामने नीचा नही होना चाहता है। अधिकतर जादूगरों की सिफ़्त में राहु का असर बहुत अधिक होता है,वे पहले अपने शब्दों के जाल में अपनी जादूगरी को देखने वाली जनता को लेते है फ़िर उन्ही शब्दों के जाल के द्वारा जैसे कह कुछ रहे होते है जनता का ध्यान कहीं रखा जाता है और अपनी करतूत को कहीं अंजाम दे रहे होते है,इस प्रकार से वे अपने फ़ैलाये जाल में जनता को फ़ंसा लेते है.
राहु का कार्य अपने प्रभाव में लेकर अपना काम करना होता है,सम्मोहन का नाम भी दिया जाता है,जो लोग अपने प्रभाव को फ़ैलाना चाहते है वे अपने सम्मोहन को कई कारणों से फ़ैलाना भी जानते है,जैसे ही सम्मोहन फ़ैल जाता है लोगों का काम अपने अपने अनुसार चलने लगता है। जैसे पुलिस के द्वारा अक्सर शक्ति प्रदर्शन किया जाता है,उस शक्ति प्रदर्शन की भावना में लोगों के अन्दर पुलिस का खौफ़ भरना होता है,यही खौफ़ अपराधी को अपराध करने से रोकता है,यह खौफ़ नाम का सम्मोहन फ़ायदा देने वाला होता है। इसी प्रकार से अपने कार्यालय आफ़िस गाडी घर शरीर को सजाने संवारने के पीछे जो सम्मोहन होता है वह अपने को समाज में बडा प्रदर्शित करने का सम्मोहन होता है,अपने को बडा प्रदर्शित करना भी शो नामका सम्मोहन राहु की श्रेणी में आता है.
राहु की जादूगरी से अक्सर लोग अपने को दुर्घटना में भी ले जाते है,जैसे उनके अन्दर किसी अच्छे या बुरे काम को करने का विचार लगातार दिमाग में चल रहा है,अथवा घर या कोई विशेष टेंसन उनके दिमाग में लगातार चल रही है,उस टेंशन के वशीभूत होकर जहां उनको जाना है उस स्थान पर जाने की वजाय अन्य किसी स्थान पर पहुंच जाते है,अक्सर गाडी चलाते वक्त जब इस प्रकार का कारण दिमाग में चलता है तो अक्समात ही अपनी गाडी या वाहन को मोडना या साइड में ले जाना या वचारों की तंद्रा में खो कर चलना दुर्घटना को जन्म देता है,राहु की यह कार्यप्रणाली बहुत ही खतरनाक होती है.
राहु अगर कमजोर है तो किसी ग्रह की सहायता से केतु राहु से बचाने का काम करता है,वह वक्त पर या तो ध्यान देता है और या फ़िर किसी के द्वारा इशारा करवा कर आने वाली दुर्घटना को दूर कर देता है.
राहु शराब के रूप में शरीर के खून में उत्तेजना देता है,मानसिक गति को भुलाने का काम करता है लेकिन शरीर पर अधिक दबाब आने के कारण शरीर के अन्दरूनी अंग अपना अपना बल समाप्त करने के बाद बेकार हो जाते है,यह राहु अपने कारणों से व्यक्ति की जिन्दगी को समाप्त कर देता है.
लाटरी जुआ सट्टा के समय राहु केवल अपने ख्यालों में रखता है और जो अंक या कार्य दिमाग में छाया हुआ है उस विचार को दिमाग से नही निकलने देता है,सौ मे से दस को वह कुछ देता है और नब्बे का नुकसान करता है.
ज्योतिष के मामले में राहु अपनी चलाने के चक्कर में ग्रह और भावों को गलत बताकर भय देने के बाद पूंछने वाले से धन या औकात को छीनने का कार्य करता है.
वैसे राहु की देवी सरस्वती है और अपने समय पर व्यक्ति को सत्यता भी देती है लेकिन सरस्वती और लक्ष्मी में बैर है,जहां सरस्वती होती है वहां लक्ष्मी नही और जहां लक्ष्मी होती है वहां सरस्वती नही.जो लोग दोनो को इकट्ठा करने के चक्कर में होते है वे या तो कुछ समय तक अपने झूठ को चलाकर चुप हो जाते है या फ़िर सरस्वती खुद उन्हे शरीर धन और समाज से दूर कर देती है,अथवा किसी लक्ष्मी के कारण से उन्हे खुद राहु के साये में जैसे जेल या बन्दी गृह में अपना जीवन निकालना पडता है.
राहु अलग अलग भावों में अपनी अलग अलग शक्ति देता है,अलग अलग राशि से अपना अलग अलग प्रभाव देता है,तुला राशि के दूसरे भाव में अगर राहु विद्यमान है तो इस राशि वाला जातक विष जैसी वस्तुओं को आराम से सेवन कर सकता है,और मृत्यु भी इसी प्रकार के कारकों से होती है,उसके बोलने पर गालियों का समिश्रण होता है,मतलब जो भी बात करता है वह बिच्छू के जहर जैसी लगती है,अगर गुरु या कोई सौम्य ग्रह सहायता में नही है तो अक्सर इस प्रकार के लोग शमशान के कारकों के लिये मशहूर हो जाते है,जैसे जन्म तारीख 8th September 1993 समय 11.10 स्थान कानपुर भारत, जातक का नाम विशेश्वर कानपुर में गंगा नदी के किनारे शवों को जलाने का काम कर रहा है.राहु धुयें के रूप में चिताओं की बदबू को सूंघ भी रहा है और देखने में मैला कुचैला भी है,जन्म एक सभ्रांत परिवार में छठे भाई के रूप में हुआ है.
राहु गाने बजाने की विद्या के साथ में अपनी गति भी देता है और मनोरंजन के रूप में भी माना जाता है,जैसे किसी सिनेमा मनोरंजन के काम में महारत हासिल करना,भद्दी बातें कहकर अपने को मनोरंजन की दुनिया में शामिल कर लेना और उन बातों को मजाक में कह देना जो बातें अगर सभ्रांत परिवार में कही जायें तो लोग लड मरे,इस बात को समझने के लिये देखिये “पप्पू-हरामी” कर्क का राहु मंगल बुध केतु सामने.
राहु खून की बीमारियां और इन्फ़ेक्सन भी देता है,जैसे मंगल नीच के साथ अगर मंगल की युति है तो जातक को लो ब्लड प्रेसर की बीमारी होगी,वही बात अगर उच्च के मंगल के साथ है तो हाई ब्लड प्रेसर की बीमारी होगी,और मंगल राहु के साथ गुरु भी कन्या राशि के साथ या छठे भाव के मालिक के साथ मिल गया है तो शुगर की बीमारी भी साथ में होगी.
राहु मंगल गुरु अगर बारहवें भाव में है तो केतु अपने आप छठे भाव में होगा,जातक को समाज में कहा तो जायेगा कि वह बहुत विद्वान है लेकिन छुपे रूप में वह शराब मांस का शौकीन होगा,या फ़िर अस्पताल की नौकरी करता होगा या जेल के अन्दर खाना बनाने का काम करता होगा.
तीसरे भाव का राहु अपने पराक्रम और चालाकी के लिये माना जायेगा इस प्रकार के व्यक्ति के अन्दर अपनी छा जाने वाली प्रकृति से कोई रोक नही सकता है,वह जिसके सामने भी बात करेगा,उस पर वह अपने कार्यों से बातों से और अपने शौक आदि से छा जाने वाली प्रकृति को अपनायेगा,इसके साथ बुद्धि के अन्दर केवल अपने को प्रदर्शित करने की कला का ही विकास होगा,उसका जीवन साथी अक्सर समाज से अलग और गृहस्थ जीवन कभी सुखी नही होगा।
चौथे भाव का राहु शक की बीमारी को देता है रहने वाले स्थान को सुनसान रखने के लिये माना जाता है,मन के अन्दर आशंकाये हमेशा अपने प्रभाव को बनाये रखती है,यहां तक कि रोजाना के किये जाने वाले कामों के अन्दर भी शंका होती है,जो भी काम किया जाता है उसके अन्दर अपमान मृत्यु और जान जोखिम का असर रहता है,बडे भाई और मित्र के साथ कब अपघात कर दे कोई पता नही होता है,जो भी लाभ के साधन होते है उनके लिये हमेशा शंका वाली बातें ही होती है,माता के लिये अपमान और जोखिम देने वाला घर में रहते हुये अपने प्रयासों से कोई न कोई आशंका को देते रहना उसका काम हो जाता है,लेकिन बाहर रहकर अपने को अपने अनुसार किये जाने वाले कामों में वह सुरक्षित रखता है पिता के लिये कलंक देने वाला होता है.
पंचम भाव का राहु संतान और बुद्धि को बरबार रखता है,जल्दी से जल्दी हर काम को करने के चक्कर में वह अपनी विद्या को बीच में तोड लेता है,नकल करने की आदत या चोरी से विद्या वाली बातों को प्रयोग करने के कारण वह बुद्धि का विकास नही कर पाता है,जब भी कभी विद्या वाली बात को प्रकट करने का अवसर आता है कोई न कोई बहाना बनाकर अपने को बचाने का प्रयास करता है पत्नी या जीवन साथी के प्रति वह प्रेम प्रदर्शित नही कर पाता है और आत्मीय भाव नही होने से संतान के उत्पन्न होने में बाधा होती है.
छठा राहु बुद्धि के अन्दर भ्रम देता है,लेकिन उसके मित्रों या बडे भाई बहिनो के प्रयास से उसे मुशीबतों से बचा लिया जाता है,अपमान लेने में उसे कोई परहेज नही होता है,कोई भी रिस्क को ले सकता है,किसी भी कुये खाई पहाड से कूदने में उसे कोई डर नही लगता है,वह किसी भी कार्य को करने के लिये भूत की तरह से काम कर सकता है और किसी भी धन को बडे आराम से अपने कब्जे में कर सकता है,गूढ ज्ञान के लिये वह अपने को आगे रखता है,बाहरी लोगों से और पराशक्तियों के प्रति उसे विश्वास होता है,अपने खुद के परिवार के लिये आफ़तें और शंकाये पैदा करता रहता है.
राहु को दवाइयों के रूप में भी माना जाता है,जो दवाइयां शरीर में एल्कोहल की मात्रा को बनाती है और जो दवाइयां दर्द आदि से छुटकारा देती है वे राहु की श्रेणी में आती है.
राहु की आशंका कभी कभी बहुत बडा कार्य कर जाती है जैसे कि अपना प्रभाव फ़ैलाने के लिये कोई झूठी अफ़वाह फ़ैला कर अपना काम बना ले जाना.
धर्म स्थान पर राहु का रूप साफ़ सफ़ाई करने वाले व्यक्ति के रूप में होता है,धन के स्थान में राहु का रूप आई टी फ़ील्ड की सेवाओं के रूप में माना जाता है,जहां असीमित मात्रा की गणना होती है वहां राहु का निवास होता है.
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राहु दोष दूर करने के आध्‍यात्मिक उपाय—


 प्रत्‍येक शनिवार शाकाहारी भोजन करें:– राहु और केतू दोष ग्रह है। इसके लिए आपको शनिवार को पूजा करनी चाहिए और इस दिन पूर्णत: शाकाहारी भोजन का सेवन करना चाहिए। 


भगवान शिव की पूजा करें:— अगर आपकी कुंडली में राहु-केतू का दोष है तो भगवान शिव की पूजा करें। भगवान शिव, राहु-केतू और शनि के दोषों का निवारण करते है। आप प्रतिदिन 21 बार ओउम् नम: शिवाय का जाप करेें। 


राहु शांति पूजा का प्रदर्शन करें:— राहु और केतू के दोषों को शांत करने के लिए आप राहु शांति पूजा का प्रदर्शन करें। इस पूजा को आप घर पर आयोजित करवाएं, इससे आपके घर में सुख और शांति भी आएगी। 


सिद्धवट मंदिर/घाट (उज्जैन–मध्यप्रदेश) पर राहु दोष निवारणार्थ पूजन/दान आदि करें ||
श्रीकलाहस्‍ती मंदिर के दर्शन करें:—श्रीकला हस्‍ती मंदिर आंध्रप्रदेश में स्थित है। जिन लोगों के जीवन में राहु-केतू दोष है वह इस मंदिर में दर्शन के लिए अवश्‍य जाएं। साल में भारी संख्‍या में लोग यहां दर्शन करने आते है। =================================================================
http://essenceofastro.blogspot.in/2013/04/rahu-remedies.html

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