जानिए ज्योतिष और यौन सुख का सम्बन्ध :-


प्रिय पाठकों, नौ ग्रहों में सूर्य को राजा, चंद्रमा को राजमाता और शुक्र को रानी माना गया है। चंद्रमा व शुक्र दोनों ही स्त्रीकारक ग्रह हैं लेकिन दोनों में सूक्ष्म अंतर है। चंद्रमा स्नेहिल है, पावन है, मां जैसा प्रेम चंद्रमा में है। शुक्र मन मोहता है, उसमें आकर्षण है, आसक्ति है और वासना है। इसलिए शुक्र से विवाह या पत्नी के लिए देखा जाता है। शुक्र को आकर्षण, खूबसूरती व मर्दानगी को चुनौती देने वाला, विषय वासनामय कहा गया है।


ज्योतिष विज्ञान के अनुसार शुक्र ग्रह की अनुकूलता से व्यक्ति भौतिक सुख पाता है। जिनमें घर, वाहन सुख आदि समिल्लित है। इसके अलावा शुक्र यौन अंगों और वीर्य का कारक भी माना जाता है। शुक्र सुख, उपभोग, विलास और सुंदरता के प्रति आकर्षण पैदा करता है। विवाह के बाद कुछ समय तो गृहस्थी की गाड़ी बढिय़ा चलती रहती है किंतु कुछ समय के बाद ही पति पत्नि में कलह झगडे, अनबन शुरू होकर जीवन नारकीय बन जाता है. इन स्थितियों के लिये भी जन्मकुंडली में मौजूद कुछ योगायोग जिम्मेदार होते हैं. अत: विवाह तय करने के पहले कुंडली मिलान के समय ही इन योगायोगों पर अवश्य ही दॄष्टिपात कर लेना चाहिये |


ज्योतिष विज्ञान के अनुसार शुक्र ग्रह की अनुकूलता से व्यक्ति भौतिक सुख पाता है। इसके अलावा शुक्र यौन अंगों और वीर्य का कारक भी माना जाता है। विवाह तय करने के पहले कुंडली मिलान के समय ही इन योगायोगों पर अवश्य ही दॄष्टिपात कर लेना चाहिए। यदि शुक्र के साथ लग्नेश, चतुर्थेश, नवमेश, दशमेश अथवा पंचमेश की युति हो तो दांपत्य सुख यानि यौन सुख में वॄद्धि होती है।शुक्र मनोरंजन का कारक ग्रह है | शुक्र स्त्री, यौन सुख, वीर्य और हर प्रकार के सुख और सुन्दरता का कारक ग्रह है | यदि शुक्र की स्थिति अशुभ हो तो जातक के जीवन से मनोरंजन को समाप्त कर देता है | नपुंसकता या सेक्स के प्रति अरुचि का कारण अधिकतर शुक्र ही होता है | मंगल की दृष्टि या प्रभाव निर्बल शुक्र पर हो तो जातक को ब्लड शुगर हो जाती है | इसके अतिरिक्त शुक्र के अशुभ होने से व्यक्ति के शरीर को बेडोल बना देता है | बहुत अधिक पतला शरीर या ठिगना कद शुक्र की अशुभ स्थिति के कारण होता है |


किसी भी व्यक्ति की भौतिक समृद्धि एवं सुखों का भविष्य ज्ञान प्राप्त करने के लिए जन्म कुंडली में शुक्र ग्रह की स्थिति एवं शक्ति (बल) का अध्ययन करना अत्यंत महत्वपूर्ण एवं आवश्यक है। अगर जन्म कुंडली में शुक्र की स्थिति सशक्त एवं प्रभावशाली हो तो जातक को सब प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। इसके विपरीत यदि शुक्र निर्बल अथवा दुष्प्रभावित (अपकारी ग्रहों द्वारा पीड़ित) हो तो भौतिक अभावों का सामना करना पड़ता है।


इस ग्रह को जीवन में प्राप्त होने वाले आनंद का प्रतीक माना गया है। प्रेम और सौंदर्य से आनंद की अनुभूति होती है और श्रेष्ठ आनंद की प्राप्ति स्त्री से होती है। अत: इसे स्त्रियों का प्रतिनिधि भी माना गया है और दाम्पत्य जीवन के लिए ज्योतिषी इस महत्वपूर्ण स्थिति का विशेष अध्ययन करते हैं।


सातवें भाव में खुद सप्तमेश स्वग्रही हो एवं उसके साथ किसी पाप ग्रह की युति अथवा दॄष्टि भी नही होनी चाहिये. लेकिन स्वग्रही सप्तमेश पर शनि मंगल या राहु में से किन्ही भी दो ग्रहों की संपूर्ण दॄष्टि संबंध या युति है तो इस स्थिति में दापंत्य सुख अति अल्प हो जायेगा. इस स्थिति के कारण सप्तम भाव एवम सप्तमेश दोनों ही पाप प्रभाव में आकर कमजोर हो जायेंगे |


यदि शुक्र के साथ लग्नेश, चतुर्थेश, नवमेश, दशमेश अथवा पंचमेश की युति हो तो दांपत्य सुख यानि यौन सुख में वॄद्धि होती है वहीं षष्ठेश, अष्टमेश उआ द्वादशेश के साथ संबंध होने पर दांपत्य सुख में न्यूनता आती है.


यदि सप्तम अधिपति पर शुभ ग्रहों की दॄष्टि हो, सप्तमाधिपति से केंद्र में शुक्र संबंध बना रहा हो, चंद्र एवम शुक्र पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो दांपत्य जीवन अत्यंत सुखी और प्रेम पूर्ण होता है |


शुक्र के अधिकार वाली वृषभ राशि नैसर्गिक कुण्डली में द्वितीय भाव यानी कुटुम्ब स्थान में आती है। यह स्थान परिवार और खाने-पीने की आदतों का है, इसलिए परिवार सुख, परिवार के लोग, मीठी बातें और रसदार भोज्य पदार्थ शुक्र के अधिकार में है। पुराणों में शुक्र को शुक्राचार्य से संबंधित माना गया है। अत: मंत्र, तंत्र और काम्य साधना भी शुक्र के अधिकार में है। चेहरे की खूबसूरती जिससे बढ़ती है उसपर भी इसका अधिकार है। सुखोपभोग अर्थात केवल शरीर सुख ही नहीं बल्कि शरीर के हर हिस्से को सुख देने वाली चीजें- संगीत, गायन, वादन, आंखों को सुख देने वाली फिल्में, नाटक, खूबसूरत चीजें व चित्र, खूबसूरत जगह, नाक को सुख देने वाले इत्र, सुगन्ध, चंदन जैसी चीजें, जीव को सुख देने वाली स्वादिष्ट मीठी वस्तुएं, शराब, पेय, तम्बाकू, सिगरेट, सिगार आदि चीजें शुक्र के अधिकार में आती हैं। 


शुक्र के गुण— शुक्र खूबसूरती का कारक है अत: कलात्मक सोच और आकर्षण के कारण ये प्रतिवादियों पर हावी रहते हैं। यह शरीर सुख का कारक ग्रह है इसलिए भिन्न लिंग के प्रति आकर्षण, अत्यधिक चाह, प्यार का कारक होने से दया, समझ व समझौता शुक्र का गुण है। 


शरीर में शुक्र के हिस्से-  शुक्र खूबसूरती का कारक ग्रह है इसलिए आंखें, नाक, ठुड्डी, शुक्र की वृषभ राशि द्वितीय भाव में है इसलिए गला, गर्दन, कान के हिस्से, शुक्र यौन का कारक ग्रह है इसलिए लिंग, शुक्राणु, वीर्य पर इसका प्रभाव होता है। शुक्र की तुला राशि नैसर्गिक कुण्डली में सप्तम भाव में आती है, इसलिए इस भाव से देखा जाने वाला मूत्रपिण्ड, मूत्राशय, गर्भाशय आदि हिस्से शुक्र के अधिकार में हैं। 


लग्नेश सप्तम भाव में विराजित हो और उस पर चतुर्थेश की शुभ दॄष्टि हो, एवम अन्य शुभ ग्रह भी सप्तम भाव में हों तो ऐसे जातक को अत्यंत सुंदर सुशील और गुणवान पत्नि मिलती है जिसके साथ उसका आजीवन सुंदर और सुखद दांपत्य जीवन व्यतीत होता है. (यह योग कन्या लग्न में घटित नही होगा)


सप्तमेश की केंद्र त्रिकोण में या एकादश भाव में स्थित हो तो ऐसे जोडों में परस्पर अत्यंत स्नेह रहता है. सप्तमेश एवम शुक्र दोनों उच्च राशि में, स्वराशि में हों और उन पर पाप प्रभाव ना हो तो दांपत्य जीवन अत्यंत सुखद होता है.
सप्तमेश बलवान होकर लग्नस्थ या सप्तमस्थ हो एवम शुक्र और चतुर्थेश भी साथ हों तो पति पत्नि अत्यंत प्रेम पूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं.


अगर शुक्र ग्रह जन्मकुंडली में निर्बल अथवा दुष्प्रभावित हो तो दाम्पत्य सुख का अभाव रहता है। सप्तम भाव में शुक्र की स्थिति विवाह के बाद भाग्योदय की सूचक है। शुक्र पर मंगल के प्रभाव से जातक का जीवन अनैतिक होता है और शनि का प्रभाव जीवन में निराशा व वैवाहिक जीवन में अवरोध, विच्छेद अथवा कलह का सूचक है।


पुरूष की कुंडली में स्त्री सुख का कारक शुक्र होता है उसी तरह स्त्री की कुंडली में पति सुख का कारक ग्रह वॄहस्पति होता है. स्त्री की कुंडली में बलवान सप्तमेश होकर वॄहस्पति सप्तम भाव को देख रहा हो तो ऐसी स्त्री को अत्यंत उत्तम पति सुख प्राप्त होता है.


जिस स्त्री के द्वितीय, सप्तम, द्वादश भावों के अधिपति केंद्र या त्रिकोण में होकर वॄहस्पति से देखे जाते हों, सप्तमेश से द्वितीय, षष्ठ और एकादश स्थानों में सौम्य ग्रह बैठे हों, ऐसी स्त्री अत्यंत सुखी और पुत्रवान होकर सुखोपभोग करने वाली होती है.


पुरूष का सप्तमेश जिस राशि में बैठा हो वही राशि स्त्री की हो तो पति पत्नि में बहुत गहरा प्रेम रहता है.
वर कन्या का एक ही गण हो तथा वर्ग मैत्री भी हो तो उनमें असीम प्रम होता है. दोनों की एक ही राशि हो या राशि स्वामियों में मित्रता हो तो भी जीवन में प्रेम बना रहता है.


अगर वर या कन्या के सप्तम भाव में मंगल और शुक्र बैठे हों उनमे कामवासना का आवेग ज्यादा होगा अत: ऐसे वर कन्या के लिये ऐसे ही ग्रह स्थिति वाले जीवन साथी का चुनाव करना चाहिये | सभी ग्रह यहां अलग-अलग परिणाम देते हैं। केवल गुरु, चंद्र और शुक्र ही ऐसे ग्रह हैं, जो यौन संतुष्टि देते हैं। अन्यथा की स्थिति में व्यक्ति को कभी आनंद नहीं आता और इससे उनके यौन व्यवहार में भी बदलाव आते हैं, जो कदापि सही नहीं होते।


ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मंगल पहले घर में होने पर व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में चोट एवं दुर्घटना की आशंका अधिक रहती है। यह मंगल पारिवारिक जीवन के साथ ही साथ जीवनसाथी एवं यौन सुख में कमी लाता है। मंगल की दृष्टि पहले घर से आठवें घर पर होने के कारण जीवनसाथी की आयु भी प्रभावित होती है।


जिनकी कुण्डली में मंगल चौथे घर में बैठा होता है उनके जीवन में सुख की कमी करता है। सातवें घर में मंगल की दृष्टि से इनकी शादी में देरी होती है। जीवनसाथी से मतभेद एवं यौन सुख में कमी लाता है। ऐसे व्यक्ति यौन रोग से पीड़ित भी हो सकते हैं। 


जिनकी जन्मपत्री में मंगल सातवें यानी जीवनसाथी के घर में होता है उनका अपने जीवनसाथी से अक्सर मतभेद बना रहता है और जिससे दांपत्य जीवन के सुख में कमी आती है। मंगल की दृष्टि यहां से पहले घर पर होने के कारण व्यक्ति क्रोधी होता है |


दांपत्य सुख का संबंध पति पत्नि दोनों से होता है. एक कुंडली में दंपत्य सुख हो और दूसरे की में नही हो तो उस अवस्था में भी दांपत्य सुख नही मिल पाता, अत: सगाई पूर्व माता पिता को निम्न स्थितियों पर ध्यान देते हुये किसी सुयोग्य और विद्वान ज्योतिषी से दोनों की जन्म कुंडलियों में स्वास्थ्य, आयु, चरित्र, स्वभाव, आर्थिक स्थिति, संतान पक्ष इत्यादि का समुचित अध्ययन करवा लेना चाहिये सिफर् गुण मिलान से कुछ नही होता |


वैवाहिक जीवन को सफल बनाने में यौन आनंद महत्वपूर्ण कारक होता है। हर व्यक्ति की यौन संतुष्टि का पैमाना अलग-अलग है और देखने में आया है कि सभी को यौन संतुष्टि नहीं मिल पाती। ऐसे लोगों को यह पता चल जाए कि वास्तव में उनके ग्रह इसका कारक हैं, तो शायद वह अपने संतुष्टि के स्तर पर मन को समझा सकते हैं अथवा उन ग्रहों का उपाय कर सकते हैं।


वर वधु की आयु का अधिक अंतर भी नही होना चाहिये, दोनों का शारीरिक ढांचा यानि लंबाई उंचाई, मोटाई, सुंदरता में भी साम्य देख लेना चाहिये. अक्सर कई धनी माता पिता अपनी काली कलूटी कन्या का विवाह धन का लालच देकर किसी सुंदर और गौरवर्ण लड़के से कर देते हैं जो बाद में जाकर कलह का कारण बनता है.


स्त्री की कुंडली (स्त्री जातक) में शुक्र की अच्छी स्थिति का महत्व है। अगर स्त्री की कुंडली में लग्र में शुक्र और चंद्र हो तो उसे अनेक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति होती है। शुक्र और बुध की युति सौंदर्य, कलाओं में दक्षता और सुखमय दाम्पत्य जीवन की सूचक है। शुक्र की अष्टम स्थिति गर्भपात को सूचित करती है और यदि मंगल के साथ युति हो तो वैधव्य की सूचक है।


जीवन में प्राप्त होने वाले आनंद, अलंकार, सम्पत्ति, स्त्री सुख, विवाह के कार्य, उपभोग के स्थान, वाहन, काव्य कला, संभोग तथा स्त्री आदि के संबंध में शुक्र से विचार करना उपयुक्त है। अगर यह ग्रह जन्म कुंडली में शुभ एवं सशक्त प्रधान है तो जातक का जीवन सफल एवं सुखमय माना जाता है किंतु शुक्र के निर्बल या अशुभ होने पर जातक की अनैतिक कार्यों में प्रवृत्ति होती है, समाज में मान-सम्मान नहीं मिलता तथा अनेक सुखों का अभाव रहता है।


शुक्र सौंदर्य, भोग विलास और प्रसन्नता का कारक ग्रह है. लंबे और सुंदर केश स्त्रियों का आधारभूत सौंदर्य हैं, इनके बाद ही सौंदर्य की अन्य उपमाओं का नंबर आता है. जब स्त्री द्वारा अपने केशों को कटवा कर छोटा कर लिया जाता है तो शुक्र बुरी तरह पीड़ित हो जाता है और अशुभ परिणाम देने लगता है | हिन्दू समाज में किसी की मृत्योपरांत पारिवारिक सदस्यों का मुंडन और किसी सन्यासी परंपरा के अनुसरण द्वारा पुरुषों का गंजा रहना भी इसी सत्य को प्रतिपादित करता है. यह भी शुक्र को निर्बल करने की प्रक्रिया है | अनुभव में पाया गया है की लड़कों जैसे छोटे बाल रखने वाली स्त्रियां दुखी रहती हैं | चाहे वे  उच्च पदस्थ अथवा धनी हों उनके जीवन में सुख नहीं होता. खासतौर पर पति सुख या विपरीत लिंगी सुख. ऐसी स्त्रियों को पुरुषों के प्यार और सहानुभूति की तलाश में भटकते देखा जा सकता है. यदि वे विवाहित हैं तो पति से नहीं बनती और अलगाव की स्थिति बन जाती है और अधिकांश मामलों में पति से संबंध विच्छेद हो भी जाता है | इसका कारण ज्योतिष में छिपा है. कालपुरुष कुंडली का सप्तम भाव शुक्र का भाव है. यहां शुक्र की मूलत्रिकोण राशि तुला विराजमान है. सप्तम भाव सौंदर्य और कला का भाव है, साथ ही यह विपरीत लिंगी और जीवनसाथी का भी प्रतिनिधित्व करता है |


कुल मिलाकर शिक्षा, खानदान, खान पान परंपरा इत्यादि की साम्यता देखकर ही निर्णय लेना चाहिये. इस सबके अलावा वर कन्या के जन्म लग्न एवन जन्म राशि के तत्वों पर भी दॄष्टिपात कर लेना चाहिये. दोनों के लग्न, राशि के एक ही ततव हों और परस्पर मित्र भाव वाले हों तो भी पति पत्नि का जीवन प्रेम मय बना रहता है. इस मामले में विपरीत तत्वों का होना पति पत्नि में शत्रुता पैदा करता है यानि पति अग्नि तत्व का हो और पत्नि जल तत्व की हो तो गॄहस्थी की गाड़ी बहुत कष्ट दायक हो जाती है. कुल मिलाकर एक ही तत्व वाले जोडे अधिक सुखद दांपत्य जीवन जीते हैं..
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यौन रोग और ज्योतिष—


मनुष्य का वर्तमान जीवन उनके पूर्व जन्म के कार्मों पर न‌िर्भर करता है। अपने कार्मों के कारण ही मनुष्य को सुख-दुख, रोग और मृत्यु की प्राप्त‌ि होती है। व्यक्त‌ि का जैसा कर्म होता है उसी अनुसार जन्म के समय उनकी कुंडली में ग्रहों की स्‍थ‌ित‌ि बनती है और उनसे व्यक्त‌ि जीवन भर प्रभाव‌ित होता है। हृदय रोग, कैंसर, एड्स और यौन रोग के ल‌िए भी उनके कर्म और ग्रहों की स्थित‌ि ज‌िम्मेदार होती है। प्राचीन काल में च‌िक‌ित्सक रोगी का उपचार करते समय उनकी जन्मपत्री भी देखते थे और उसके अनुसार जड़ी-बूटी, रत्नों और मंत्रों का प्रयोग करते थे।


ज्योत‌िष में यौन रोग की चर्चा करते हुए बताया गया है क‌ि वृश्च‌िक राश‌ि का प्रभाव व्यक्त‌ि के गुप्तांग पर होता है। कुंडली में अगर वृश्च‌िक राश‌ि दूसरे, छठे, आठवें या बारहवें घर में हो और इन पर अशुभ ग्रहों प्रभाव हो तब व्यक्त‌ि को यौन और गुप्त रोग होने की आशंका रहती है। लेक‌िन इस रोग का एक मात्र कारण यही नहीं है। कुछ दूसरे ग्रह भी हैं जो इस रोग के ल‌िए ज‌िम्मेदार होते हैं।


जन्मकुंडली में आठवां घर और उस घर के स्वामी ग्रह के साथ शुक्र, मंगल, शन‌ि, राहु का संबंध एड्स रोग की आशंका को जन्म देता है। दी गई कुंडली में आठवें घर में शन‌ि के साथ राहु भी बैठें है और आठवें घर के स्वामी मंगल को देख रहे हैं। इसके अलावा शन‌ि और राहु की दृष्ट‌ि शुक्र, केतु, मंगल और सूर्य पर है। ग्रहों की यह स्‍थ‌ित‌ि यौन संक्रमण और मृत्यु योग को दर्शाता है।


जन्मपत्री के सातवें घर में शन‌ि, राहु का संबंध हो और सप्तेश पर इन दोनों ग्रहों की दृष्ट‌ि होने पर पुरुष में शुक्र की कमी होती है ज‌िससे संतानोत्पत्त‌ि में बाधा आती है। दी गई कुंडली में शुक्र सातवें घर का स्वामी है और सातवें घर में शन‌ि राहु बैठे हैं जो लग्न स्‍थान में शुक्र को देख रहे हैं। वृश्च‌िक राश‌ि को यौन रोग देने वाला माना गया है । इस कुंडली में शुक्र के साथ वृश्च‌‌िक लग्‍न के स्वामी मंगल पर भी शन‌ि राहु की दृष्ट‌ि है जो नपुंसकता का योग बना रहे हैं।


ज्योत‌िषशास्‍त्र के अनुसार कुंडली के सातवें घर में शन‌ि राहु बैठे हों, सातवें घर का स्वामी पर शन‌ि राहु की दृष्ट‌ि हो या शन‌ि के साथ नीच का शुक्र हो तब पुरुषों में शुक्र की कमी होती है। स्‍त्री की कुंडली में ऐसा योग होने पर गर्भाशय में परेशानी रहती है ज‌िससे संतान प्राप्त‌ि में परेशानी आती है। दी गई कुंडली में शुक्र शन‌ि और राहु के साथ सातवें घर में बैठा जो इस तरह के योग का न‌िर्माण कर रहा है।


सरल उपाय : —
फ‌िरोजा रत्न को यौन रोग के रोकथाम में कारगर माना गया है।
शुक्र ग्रह के मंत्र (ऊँ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:) जप से भी यौन रोग में लाभ म‌िलता है।
यौन रोग में हीरा, जर्कन, और गोमेद रत्न धारण करना भी लाभप्रद रहता है।
यौन रोग में हीरा, जर्कन, और गोमेद रत्न धारण करना भी लाभप्रद रहता है।


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